पंजाब के निवर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इस्तीफा देने में भी कैप्टन हैं। सिद्धू से विवाद के बाद लंबी खिंचतान के बाद आखिरकार उन्होने इस्तीफा दे दिया। लेकिन जब- जब कैप्टन को लगा कि अब एक्शन का समय है तो उन्होने इस्तीफा देने में एक भी मिनट की देरी नहीं की। बीते दिन दिया गया यह उनका चौथा इस्तीफा था। पिछले तीन इस्तीफे बताते हैं कि कैप्टन अपने इस्तीफों के बाद और अधिक शक्तिशाली बनकर उभरे हैं। कैप्टन जानते हैं कि दबाव कि राजनीति से उनको रोका नहीं जा सकता है। ऐसे में अब कभी उनके नई पार्टी बनाने की अटकल लगती है तो कभी भाजपा में जाने को लेकर कयास शुरू हो जाते हैं।
अमरिंदर सिंह पहली बार 1980 में सांसद बने थे और पंजाब के मुद्दे को सुलझाने के लिए बातचीत में शामिल हुए थे. हालांकि, ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ और सिंह ने गांधी परिवार के करीबी दोस्त होने के बावजूद पार्टी और संसद से इस्तीफा दे दिया. उनका यह कदम गांधी के पक्ष में काम करता रहा. दो दशकों तक पंजाब कांग्रेस के मामलों में प्रमुख रहे। वह पार्टी की राज्य इकाई में एक बड़े नेता रहे।
अमरिंदर सिंह, शिरोमणि अकाली दल में चले गए और 1985 में सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार में मंत्री भी बने. उन्होंने सात महीने बाद कैबिनेट से उस वक्त इस्तीफा दे दिया जब पुलिस बरनाला के आदेश पर दरबार साहिब में दाखिल हुई. इस कदम ने अमरिंदर को एक सिख नेता के रूप में उभारा. यह कदम भी अमरिंदर के लिए कारगर सिद्ध हुआ. अमरिंदर 1995 के चुनाव में अकाली दल (लोंगोवाल) के टिकट पर राज्य विधानसभा में पहुंचे थे।
साल 1984 में हुआ ऑपरेशन ब्लू स्टार और बरगारी बेअदबी मामला शिअद और कांग्रेस के लिए बारी-बारी से संकट की वजह बना. लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह इन दो घटनाओं के बाद बाहर निकलने के बाद एक बड़े नेता के रूप में उभरे. रिपोर्ट्स के अनुसार केवल सिखों के बीच अमरिंदर की स्वीकृति की वजह से साल 1999 में कांग्रेस पंजाब में पुनर्जीवित हो पाई. पार्टी सिखों के लिए अछूत हो गई थी लेकिन अमरिंदर, पंजाब में कांग्रेस के दोबारा लौटने की वजह बने. कांग्रेस में वापसी के बाद वह पहली बार 2002 से 2007 तक मुख्यमंत्री रहे थे और इस दौरान उनकी सरकार ने 2004 में पड़ोसी राज्यों से पंजाब के जल बंटवारा समझौते को समाप्त करने वाला राज्य का कानून पारित किया।
अमरिंदर सिंह ने 2014 का लोकसभा चुनाव अमृतसर से लड़ा था और भाजपा के अरुण जेटली को एक लाख से अधिक मतों के अंतर से हराया था। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर समझौते को समाप्त करने वाले पंजाब के 2004 के कानून को असंवैधानिक बताया तो सिंह ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। कुछ दिन बाद उन्हें पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले राज्य इकाई का प्रमुख बनाया गया. इसके बाद उन्होंने साल 2017 के चुनाव में 117 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को जबरदस्त जीत दिलाई. वह फिर दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने और इस तरह उन्होंने दिल्ली से बाहर अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी के सपनों को ध्वस्त कर दिया।