आज फिल्म निर्माताओं को अपनी फिल्म या फाइल आधारित प्रस्तुतियों को डिजिटल माध्यम में सुरक्षित रूप से संग्रहीत करने की लगातार सामने आ रही आवश्यकता का सामना करना पड़ रहा है। इस विषय पर विचार-विमर्श करने के लिए आज 54वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव, गोवा में ‘डिजिटल मोशन पिक्चर प्रिजर्वेशन’ पर एक मास्टरक्लास सत्र आयोजित किया गया। अनुभवी फिल्म रेस्टॉरेशन (पुनर्स्थापन) विशेषज्ञ और फिल्म इतिहासकार थियोडोर ई ग्लक के नेतृत्व में हुई मास्टरक्लास का उद्देश्य मोशन पिक्चर को डिजिटल प्रारूप में संरक्षित करने में ‘अकादमी डिजिटल प्रिजर्वेशन फोरम’ के प्रयासों पर जोर देना था। यह ‘अकादमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज’ के तहत आने वाली विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद की एक पहल है।
अपने संबोधन में थियोडोर ई ग्लक ने मूल रचना के सौंदर्यशास्त्र को नुकसान न पहुंचाने के लिए पुनर्स्थापन पेशेवरों द्वारा अपनाए जाने वाले उत्कृष्ट संतुलन को रखांकित किया। उन्होंने कहा, “मूल काम की कलात्मक प्रामाणिकता और प्रयोजन को संरक्षित करते हुए डिजिटल संरक्षण की मांग को पूरा करना एक बड़ी चुनौती है। प्राथमिक लक्ष्य फिल्म को बदलने के बजाय उसमें सुधार करना होना चाहिए।” उन्होंने किसी भी पुनर्स्थापना परियोजना में फिल्म निर्माताओं के मूल कलात्मक प्रयोजन का सम्मान करने के महत्व को भी रेखांकित किया।
मास्टर क्लास की मुख्य बातों में से एक पुनर्स्थापना और संरक्षण में आने वाली भारी लागत थी। उन्होंने विस्तार से बताते हुए कहा, “खर्च इस बात पर निर्भर करता है कि आप पुनर्स्थापना परियोजना के माध्यम से क्या हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।” थिओडोर ने मानवीय हस्तक्षेप के व्यापक महत्व को रेखांकित करते हुए फिल्म संरक्षण के भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की उभरती भूमिका को भी स्वीकार किया।