अरविंद जयतिलक
गत दिवस पहले शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पालिसी इंस्टीट्यूट (ईपीआईसी) का यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि भारत में बढ़ते प्रदूषण के कारण 40 फीसदी भारतीयों की जीवन प्रत्याशा नौ साल से ज्यादा कम हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 48 करोड़ से ज्यादा लोग मध्य, पूर्वी और उत्तर भारत में वायु प्रदूषण के उच्च स्तर का सामना कर रहे हैं। नतीजतन प्रदूषण अब सिर्फ गंगा घाटी तक ही सीमित नहीं रह गया है। महराष्ट्र और मध्यप्रदेश जैसे में गहराते प्रदूषण के कारण वहां के निवासियों की औसत जीवन प्रत्याशा में वर्ष 2000 के मुकाबले अतिरिक्त 2.5 से 2.9 वर्ष की कमी हो रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरुप प्रदूषण कम किया जाता है तो यहां के निवासियों की औसत जीवन प्रत्याशा 5.4 वर्ष बढ़ सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के दौरान भारत में हवा में प्रदूषणकारी सुक्ष्म कणों की मौजूदगी औसतन 70.3 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर थी, जो दुनिया में सर्वाधिक और डब्ल्यूएचओ के 10 माइक्रोग्राम प्र्रति क्यूबिक मीटर से सात गुना ज्यादा है। गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब किसी संस्था द्वारा प्रदूषण से जिंदगी पर पड़ने वाले भयावह असर का जिक्र हुआ हो। याद होगा अभी गत वर्ष ही हार्वर्ड और येल के अर्थशास्त्रियों ने खुलासा किया था कि भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शुमार है जहां सबसे अधिक वायु प्रदूषण है जिसके कारण यहां के लोगों को समय से तीन साल पहले ही काल के मुख में जाना पड़ रहा है। रिपोर्ट में सावधान करते हुए कहा गया था कि अगर भारत अपने वायु मानकों को पूरा करने के लिए इस आंकड़े को उलट देता है यानी वायु प्रदूषण पर नियंत्रण कर लेता है तो इससे 66 करोड़ लोगों के जीवन के 3.2 वर्ष बढ़ जाएंगे। इस रिपोर्ट में भी कहा गया था कि भारत की आधी आबादी यानी 66 करोड़ लोग उन क्षेत्रों में रहते हैं जहां सूक्ष्म कण पदार्थ (पार्टिकुलेट मैटर) प्रदूषण भारत के सुरक्षित मानकों से उपर है। रिपोर्ट के मुताबिक अगर भारत वायु प्रदूषण पर शीध्र नियंत्रण नहीं लगाया तो 2025 तक अकेले राजधानी दिल्ली में ही वायु प्रदूषण से हर वर्ष 26,600 लोगों की मौत होगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट से भी उद्घाटित हो चुका है कि प्रदूषित हवा के चपेट में भारत में वर्ष 2016 में लगभग एक लाख मासूम बच्चों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। यूनिवर्सिटी आॅफ कैरोलीना के विद्वान जैसन वेस्ट के अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण से सबसे अधिक मौत दक्षिण और पूर्व एशिया में होती है और उसमें भी भारत शीर्ष पर है। आंकड़ें बताते हैं कि हर साल मानव निर्मित वायु प्रदूषण से 4 लाख 70 हजार और औद्योगिक इकाईयों से उत्पन प्रदूषण से 21 लाख लोग दम तोड़ते हैं। अगर जहर फैला रही इन औद्योगिक इकाईयों पर नियंत्रण लग जाए तो हालात सुधर सकते हैं। दुनिया की जानी-मानी पत्रिका ‘नेचर’ द्वारा भी खुलासा किया जा चुका है कि अगर शीध्र ही वायु की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ तो वर्ष 2050 तक प्रत्येक वर्ष 66 लाख लोगों की जानें जा सकती है। यह रिपोर्ट जर्मनी के मैक्स प्लेंक इंस्टीट्यूट आॅफ केमेस्ट्री के प्रोफेसर जोहान लेलिवेल्ड और उनके शोध दल ने तैयार किया था जिसमें प्रदूषण फैलने के दो प्रमुख कारण गिनाए गए। एक, पीएम 2.5एस विषाक्त कण और दूसरा वाहनों से निकलने वाली गैस नाइट्रोजन आक्साइड। रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि भारत और चीन में वायु प्रदूषण की समस्या विशेष तौर पर गहरा सकती है। क्योंकि इन देशोें में खाना पकाने के लिए कच्चे ईंधन का इस्तेमाल होता है जो कि प्रदूषण का महत्वपूर्ण स्रोत है। विशेषज्ञों की मानें तो अगर इससे निपटने की तत्काल वैश्विक रणनीति तैयार नहीं की गयी तो भारत की बड़ी जनसंख्या वायु प्रदूषण की चपेट में आ सकती है। गत वर्ष भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा भी खुलासा किया गया था कि जागरुकता का अभाव और कठोर मानकों की कमी के कारण भारत में हर आठवें व्यक्ति की मौत का कारण वायु प्रदूषण है। अनुसंधान के मुताबिक वर्ष 2017 में ही 12.4 लाख भारतीयों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हुई। इसमें 6.7 लाख लोग सड़कों पर प्रदूषित आबोहवा के शिकार बने। अन्य 4.8 लाख लोगों की मौत का कारण घरों के अंदर की हवा के जानलेवा बन जाने से हुई। अनुसंधान के आंकड़ों के मुताबिक वायु प्रदूषण से देश में औसत जीवनकाल 1.7 वर्ष घट गया है और अधिकतर मौतें प्रदूषण के कारण फेफड़ों में कैंसर, हार्ट अटैक और क्रोनिक रोगों से हो रही है। आंकड़े के मुताबिक प्रति लाख आबादी की मृत्यु में वायु प्रदूषण की हिस्सेदारी 89.9 प्रतिशत है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के वैज्ञानिकों की मानें तो वायु प्रदूषण के कहर का सबसे ज्यादा प्रभावित दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और बिहार है। यहीं वजह है कि वर्ष 2017 में वायु प्रदूषण से सबसे अधिक 2.6 लाख लोगों की मौत उत्तर प्रदेश में हुई। इसी तरह महाराष्ट्र में 1.08 लाख, बिहार में 96967, दिल्ली में 12322, उत्तराखंड में 12 हजार, हिमाचल में 7485 और जम्मू-कश्मीर में 10476 लोग वायु प्रदूषण की भेंट चढ़े। यहां खतरनाक बात यह है कि देश के शहरों के वायुमण्डल में गैसों का अनुपात लगातार बिगड़ता जा रहा है और उसे लेकर किसी तरह की सतर्कता नहीं बरती जा रही है। आंकड़ों पर गौर करें तो हाल के वर्षों में वायुमण्डल में आॅक्सीजन की मात्रा घटी है और दूषित गैसों की मात्रा बढ़ी है। कार्बन डाई आॅक्साइड की मात्रा में तकरीबन 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण बड़े कल-कारखानें और उद्योगधंधों में कोयले एवं खनिज तेल का उपयोग है। गौरतलब है कि इनके जलने से सल्फर डाई आक्साइड निकलती है जो मानव जीवन के लिए बेहद खतरनाक है। शहरों का बढ़ता दायरा, कारखानों से निकलने वाला धुंआ, वाहनों की बढ़ती तादाद एवं मेट्रो का विस्तार तमाम ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से प्रदूषण बढ़ रहा है। वाहनों के धुएं के साथ सीसा, कार्बन मोनोक्साइड तथा नाइट्रोजन आॅक्साइड के कण निकलते हैं। ये दूषित कण मानव शरीर में कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं। मसलन सल्फर डाई आॅक्साइड से फेफड़े के रोग, कैडमियम जैसे घातक पदार्थों से हृदय रोग, और कार्बन मोनोक्साइड से कैंसर और श्वास संबंधी रोग होते हैं। कारखानें और विद्युत गृह की चिमनियों तथा स्वचालित मोटरगाड़ियों में विभिन्न ईंधनों के पूर्ण और अपूर्ण दहन भी प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं। वायु प्रदूषण से न केवल मानव समाज को बल्कि प्रकृति को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है। प्रदूषित वायुमण्डल से जब भी वर्षा होती है प्रदूषक तत्व वर्षा जल के साथ मिलकर नदियों, तालाबों, जलाशयों और मृदा को प्रदुषित कर देते हैं। अम्लीय वर्षा का जलीय तंत्र समष्टि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। नार्वे, स्वीडन, कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका की महान झीलें अम्लीय वर्षा से प्रभावित हैं। अम्लीय वर्षा वनों को भी बड़े पैमाने पर नष्ट कर रहा है। ओजोन गैस की परत, जो पृथ्वी के लिए एक रक्षाकवच का कार्य करती है, में वायुमण्डल के दूषित गैसों के कारण उसे काफी नुकसान पहुंचा है। ध्रुवों पर इस परत में एक बड़ा छिद्र हो गया है जिससे सूर्य की खतरनाक पराबैगनीं किरणें भूपृष्ठ पर पहुंचकर ताप में वृद्धि कर रही है। इससे न केवल कैंसर जैसे असाध्य रोगों में वृद्धि हो रही है बल्कि पेड़ों से कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी हुई है। इससे ओजोन एवं अन्य तत्वों के बनने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। नए शोधों से जानकारी मिली है कि गर्भवती महिलाएं जो वायु प्रदूषण क्षेत्र में रहती है, उनसे जन्म लेने वाले शिशु का वजन सामान्य शिशुओं की तुलना में कम होता है। यह खुलासा एनवायरमेंटल हेल्थ प्राॅस्पेक्टिव द्वारा 9 देशों में 30 लाख से ज्यादा जन्म लेने वाले नवजात शिशुओं के अध्ययन से हुआ है। उचित होगा कि सरकार ठोस कानून बनाकर वायु प्रदूषण की गहराती समस्या पर नियंत्रण लगाए तथा साथ ही जनता को जागरुक करे।