मनीष शुक्ल
वरिष्ठ पत्रकार
देश की आजादी का 75वां साल शुरू हो चुका है। इसी समय हम नई सदी के यौवन वर्ष यानि 21वें साल में हैं। यहाँ से नई मानव विकास की यात्रा नए और अलग तरीके से शुरू हो चुकी है। इसका कारण है वर्ष 2020 और 21 में अब तक की कभी न भूलने वाली यादें और अनुभव जो जीवन के सभी क्षेत्रों को नए रास्ते की ओर ले जा रही हैं। बीते मार्च के महीने में पूरी दुनियाँ अचानक ऐसी महामारी की चपेट में आ गई थी जिसने सभी को अंधकार के गहरे लॉक डाउन में छोड़ दिया था। सब कुछ अनिश्चित काल के लिए थम गया था। लोग घरों में कैद हो चुके थे। भोजन और दूध से लेकर दवाई और बीमारी से प्रभावित लोगों तत्काल मेडिकल सपोर्ट की जानकारी की आवश्यकता जीवन की भूख की तरह हो गई थी। इस दौरान अखबार घरों तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे थे। स्थानीय स्तर पर टीवी चैनलों की पहुँच न के बराबर थी। ऐसे में पारंपरिक मीडिया से हटकर ऐसे माध्यम की तत्काल जरूरत थी जो सही और आधिकारिक सूचना और समाचार प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचा सके।
यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ोले ने स्वीकार भी किया कि युद्ध की तरह कोरोनावायरस महामारी के दौरान सच को ‘पहला पीड़ित’ माना जा सकता है। हालांकि आपदा से निपटने में भारत ने सही तरीके से सूचना और राहत प्रदान की थी, उसकी नींव आपदा के बहुत पहले ही रख दी गई थी। देश के दूरदर्शी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पहले कार्यकाल के दौरान वर्ष 2014 में में स्पष्ट कर दिया था कि ”हम भारत को नवाचार के केन्द्र के रूप में उभरता हुआ देखना चाहते हैं, जहां टेक्नोलॉजी से संचालित नये बड़े विचारों का आविर्भव हो।”
पीएम ने छह वर्ष पहले ही देख लिया था कि ” टैक्नोलॉजी कम सशक्त लोगों को सशक्त करती है। सीमांत लोगों के जीवन में बदलाव लाने में, अगर कोई मजबूत बल है, तो वह है टैक्नोलॉजी।” उन्होने डिजिटल इंडिया की पहल पर कहा था कि ”डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करने में पूरा राष्ट्र एकजुट है। युवा उत्साही हैं, उद्योग जगत सहायक है और सरकार अति सक्रिय है। देश डिजिटल क्रांति के लिए लालायित है।” साथ ही यह भी माना कि “भविष्य सोशल मीडिया का होगा। यह समानाधिकारयुक्त और मिला-जुला है। सोशल मीडिया किसी देश, किसी भाषा, किसी रंग, किसी समुदाय के बारे में नही है, बल्कि यह मानव मूल्यों के बारे में है और यही मानवता को बांधने का मौलिक संधि है।” पीएम ने मोबाइल गवर्नेंस को भी वक्त कि जरूरत बताते हुए छह साल पहले ही कहा था कि ”एम-गवर्नेंस के जरिये विकास को असल में समेकित बनाने और व्यापक जन आंदोलन की संभावना है। इसने शासन को प्रत्येक की पहुंच में ला दिया है। इसने शासन को चौबीस घंटे सातों दिन आपकी पहुंच में ला दिया है।
करोना काल में प्रधानमंत्री का विजन नेतृत्व और समाज दोनों के लिए संजीवनी बन गया। जब कई समाचार पत्रों का प्रकाशन बंद हो गया तो मोबाइल एप के जरिये लोगों के हाथों तक सूचना और समाचार पहुँचने लगे। सोशल मीडिया के वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म पारंपरिक मीडिया से ज्यादा प्रभावी हो गए। देखते ही देखते हालात ये हो गए कि सरकार को ऐसे माध्यमों का दुरुपयोग रोकने के लिए नियम बनाने पड़े। ऑनलाइन संवाद ने पूरी दुनियाँ को नए सिरे से जोड़ने की कवायद शुरू की।
सामान्य मीडिया गतिविधियां बंद हो गईं। अखबार के दफ्तर से लेकर सिनेमा हाल तक ज़्यादातर मीडिया गतिविधियां बंद हो गईं थीं। ऐसे में सूचना और प्रोद्द्योगिकी ने बहु विकल्पीय युग में प्रवेश किया। एक ओर प्रिंट यानि अखबार के समाचारों का ठहराव भरा स्वरूप तो दूसरी ओर न्यूज़ चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज देने की अधीरता के बीच डिजिटल न्यूज के जरिये विभिन्न समाचार एप ने अखबारों की विश्वसनीयता और टीवी चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज एक साथ एक प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराने का कार्य किया। डिजिटल प्लेटफॉर्म ने ठप हो चुके कारोबार को नई साँसे दी। समाचार से लेकर मनोरंजन तक सब कुछ नए सिरे आम जन मानस तक पहुँचने लगा। ओटीटी प्लेटफॉर्म ने घरों में कैद लोगों के लिए संजीवनी का काम किया। इस दौरान खास बात रही परिवर्तन से भागने वाला पारंपरिक मीडिया भी बदलाव की दौड़ में शामिल हुआ। समाचार पत्रों के डिजिटल न्यूज चैनल आ गए। बड़े- बड़े टीवी चैनलों के एप लोग डाउनलोड करने लगे। पारंपरिक मीडिया के फेसबुक, वाट्सएप, यूट्यूब और ट्विटर पेज पर लाखों लाइक और कमेंट आने लगे। पिछले एक वर्ष में मीडिया में डिजिटल विस्फोट सा हो गया।
यह परिवर्तन अचानक जरूर था लेकिन डिजिटल मीडिया की पहुँच और प्रभाव ने नए प्रतिमान गढ़ डाले। नए सिरे से बहस के मुद्दों को जन्म दिया। यह परिवर्तन प्रकृति पर आधारित मौलिक और स्वाभाविक था। कहानी और खबरें दोनों ही कंटेन्ट में बदल चुके थे। जन मानस के समक्ष सूचना और मनोरंजन के कई विकल्प उपलब्ध थे जिसने घर में रहने के शुरुआती उत्साह के बाद आई उदासी और तनाव को दूर करने का काम किया।
कोविड काल में मीडिया का आंकलन किया जाए तो पाएंगे कि शुरुआती दौर में लोगों ने दूरदर्शन जैसे प्लेटफॉर्म को उसके पुराने सदाबहार कंटेन्ट के कारण हाथों हाथ लिया लेकिन जैसे- जैसे ओटीटी पर नया कंटेन्ट आने लगा, बाजार के बड़े- बड़े खिलाड़ी इस प्लेटफॉर्म पर आने लगे। नेटफ्लिस से लेकर बालाजी आल्ट, डिज्नी हॉटस्टार समेत अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिये रचनाशीलता, अच्छी प्रतिभाओं, उत्पादन मूल्यों और कहानियों के रेंज में विविधता नजर आने लगी। इसके साथ ही ये धारणा भी पुरानी साबित होने लगी कि “जो बाजार में दिखता है वो बिकता है।“ अब कंटेन्ट ही असली हीरो साबित हो रहा है जबकि बाजार के नए नए दरवाजे खुल रहे हैं।
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भारत आज न सिर्फ बड़ा बाजार है बल्कि दुनियाँ भर की बड़ी- बड़ी कंपनियों के निवेश का मौका भी है। इस दौरान भारत ने चीन ने एप बैन किए तो इसका प्रभाव उनकी अर्थव्यवस्था पर सीधे तौर पर पड़ा है। ऐसे में अगर इस क्षेत्र में रचनात्मकता और प्रौद्योगिकी के जरिये नौकरियों और धन का सृजन आसानी से किया जा सकता है। खुद पीएम मोदी करोना कल से पहले ही भारत में डिजिटल क्रांति का आह्वान किया था। पीएम के विजन के अनुसार भारत को नवाचार के केन्द्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। जहां टेक्नोलॉजी से संचालित नये बड़े विचारों का आविर्भव हो। डिजिटल इंडिया कई तरीके से जीवन को छूएगी और इसे आसान बनाएगी। उदाहरण के लिए डिजिटल लॉकर और ई-हस्ताक्षर से सभी महत्वपूर्ण दस्तावेजों को आसानी और कुशलता से व्यवस्थित किया जाएगा। एक क्लिक से दस्तावेजों को आसानी से देखा जा सकेगा। स्वास्थ्य सुविधाओं को लें, ई-अस्पताल का मतलब लाइन में खड़े होकर समय व्यर्थ करने की जरूरत नहीं, बल्कि मिलने के समय के लिए ऑन लाइन पंजीकरण, ऑन लाइन भुगतान और आन लाइन रिपोर्ट उपलब्ध होगी। मोदी सरकार ने 2014 से ही इस दिशा में तेजी से कार्य करना शुरू किया। इसके परिणाम स्वरूप पहले नोटबंदी और फिर करोना काल में आम जन मानस का जीवन तमाम चुनौतियों के बावजूद सहज रहा।
हालांकि डिजिटल क्रांति से कई आशंका भी पैदा हुई हैं। क्या गरीब, पिछड़ा और आम आदमी इस प्रक्रिया में पीछे तो नहीं छुट जाएगा। क्या फेक सूचनाओं का मकड़जाल तो नहीं फ़ेल जाएगा। क्या ई और साइबर क्राइम के जरिये जीवन भर कि पूंजी एकबार में ही लूट तो नहीं जाएगी। तकनीकी दुनिया की चुनौतियां और भी हैं जैसे कोविड काल वर्क फ्राम होम की संस्कृति शुरू हुई। तेज़ी से आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और रोबोटिक तकनीकों का चलन भी शुरू हुआ। ऐसे में बेरोजगारी की आशंका भी खड़ी है लेकिन सभी आशंकाओं पर सरकार निरंतर कार्य कर रही है।
मोदी सरकार ने सोशल मीडिया मंचों से लेकर डिजिटल मीडिया और स्ट्रीमिंग मंचों को लिए नियम जारी किए हैं। इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस) नियम 2021 के जरिये सरकार ने डिजिटल क्रांति के लिए व्यवस्था तैयार करने का कार्य किया है। नए नियमों के हिसाब से बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों को किसी उचित सरकारी एजेंसी या अदालत के आदेश/नोटिस पर एक विशिष्ट समय-सीमा के भीतर गैर कानूनी सामग्री हटानी होगी। नियमों में सेक्सुअल कंटेट के लिए अलग श्रेणी बनाई गई है, जहां किसी व्यक्ति के निजी अंगों को दिखाए जाने या ऐसे शो जहां पूर्ण या आंशिक नग्नता हो या किसी की फोटो से छेड़छाड़ कर उसका प्रतिरूप बनने जैसे मामलों में इस माध्यम को चौबीस घंटों के अंदर इस आपत्तिजनक कंटेंट को हटाना होगा।
केंद्र सरकार ने गाइड लाइंस जारी करते हुए कहा कि ‘बिजनेस करने के लिए सोशल मीडिया का भारत में स्वागत है… उनका अच्छा व्यापार है यहां। उनके यहां बड़ी संख्या में यूजर्स हैं और उन्होंने आम भारतीयों को सशक्त किया है लेकिन यूजर्स को सोशल मीडिया के दुरुपयोग के खिलाफ समयबद्ध तरीके से अपनी शिकायतों के समाधान के लिए एक उचित मंच दिया जाना चाहिए। सोशल मीडिया मंचों के बार-बार दुरुपयोग तथा फर्जी खबरों के प्रसार के बारे में चिंताएं व्यक्त की जाती रहीं हैं और सरकार ‘सॉफ्ट टच’ विनियमन ला रही है। ऑनलाइन सामग्री के प्रकाशकों को हर सामग्री या कार्यक्रम के बारे में विवरण देते समय प्रमुखता से उसका वर्गीकरण भी प्रदर्शित करना होगा ताकि उपयोगकर्ता उसकी प्रकृति के बारे में जान पाएं। इससे दर्शक को हर कार्यक्रम के प्रारंभ में ही उसकी सामग्री की प्रकृति का मूल्यांकन करने में और उसे देखने से पूर्व सुविचारित निर्णय लेने में मदद मिलेगी। एक सरकारी बयान के अनुसार डिजिटल मीडिया पर खबरों के प्रकाशकों को भारतीय प्रेस परिषद की पत्रकारीय नियमावली तथा केबल टेलीविजन नेटवर्क नियामकीय अधिनियम की कार्यक्रम संहिता का पालन करना होगा, जिससे ऑफलाइन (प्रिंट, टीवी) और डिजिटल मीडिया के बीच समान अवसर उपलब्ध हो। नियमों के तहत स्वनियमन के अलग अलग स्तरों के साथ त्रिस्तरीय शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित की गयी है। नियमों के अनुसार हर प्रकाशक को भारत के अंदर ही एक शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना होगा जो शिकायतों के निवारण के लिए जिम्मेदार होगा और उसे शिकायत मिलने के 15 दिनों के अंदर उसका निवारण करना होगा। नियमों के मुताबिक प्रकाशकों के एक या एकाधिक स्वनियामक निकाय हो सकते हैं. ऐसे निकाय के अगुवा उच्चतम/उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायधीश या कोई प्रख्यात हस्ती होंगे और उसमें छह से अधिक सदस्य नहीं होंगे। ऐसे निकाय को सूचना एवं प्रसारण मत्रालय में पंजीकरण कराना होगा। बयान के अनुसार यह निकाय प्रकाशकों द्वारा आचार संहिता के अनुपालन तथा शिकायत निवारण पर नजर रखेगा। इसके अलावा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय कोड ऑफ प्रैक्टिसेज समेत स्वनियामक निकायों के लिए वास्ते चार्ट बनाकर जारी करेगा. वह शिकायतों पर सुनवाई के वास्ते अंतर-विभागीय समिति स्थापित करेगा।
केंद्र सरकार की ओर से डिजिटल युग को प्रभावी बनाने के लिए सभी प्रकार की आशंकाओं का हल पूरी तरह से किया जा रहा है। मोदी सरकार पोस्ट कोविड काल को डिजिटल युग में तब्दील करने में जुट गई है। केंद्रीय बजट पूरी तरह से डिजिटल तरीके से जारी किया गय, जिसका अनुपालन उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली समेत देश भर के ज़्यादातर राज्यों ने किया। डिजिटल व्यवस्था के जरिये राजनीतिक और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सुधार की कवायद हो रही है। देश की डिजिटल पहचान व्यवस्था ने महामारी के दौरान कई चुनौतियों से उबरने में मदद की है। डिजिटल आईडी की मदद से ग़रीब तबक़े को नक़द स्थानांतरण और कई ज़रूरी सामान ख़रीदने के लिए डिजिटल भुगतान संभव हुआ। इसके पीछे भी डिजिटल मीडिया की भूमिका को अहम माना जा रहा है। देश के दूर दराज इलाकों में भी मोबाइल के जरिये तत्काल सूचना पहुँच रही है। साथ ही ई मनोरंजन ने लोगों को प्रयोग के प्रति आकर्षित किया है। तकनीकी के कारण आज पालक झपकते छोटी छोटी जानकारियां आपस में साझा हो रही हैं। इसी समय नई तकनीकों और नई खोजों को दूसरे समुदायों और देशों के तत्काल साझा किया जा सकता है। जबकि पहले सूचनाओ के प्रसारण में कई दिन, हफ्ते और महीने तक लग जाते थे जबकि आज कई सूचनाएं पारंपरिक मीडिया से पहले ही सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी होती हैं। पद्मश्री से विभूषित येशे दोर्जी थोंगशी ने एक वेब सेमिनार में कहा कि पहले भी महामारियां विश्वभर में फैली हैं। लेकिन इस महामारी से सबकुछ जब बंद हुआ तो टेलीविजन और ऑन लाइन माध्यमों से से मालूम चला कि क्या करना है और क्यों करना है? मीडिया ने इस दौरान लगातार हमें जागरूक और सशक्त किया है। महामारी के दिनों में हमें जागरूक और सचेत करता है। बीते एक वर्ष के अनुभव अविस्मरणीय हैं। ये काली रात की तरह भयावह भी हैं और सुबह की लालिमा की तरह उम्मीद से भरपूर भी हैं। ये निश्चित रूप से ग्रहण के बाद का सबेरा है जिसमें हम सभी अपनी भूमिका खुद सुनिश्चित करनी है। तभी डिजिटल युग में हमारा ऐतिहासिक आगाज स्वर्णिम अंजाम में बदल सकेगा।