मनीष शुक्ल
दोस्तों, आजादी के इस समारोह के साथ ही हमने स्वतंत्रता के प्लेटिनम जुबली वर्ष में कदम रख दिया है। आजादी के इतने सालों में हम बैलगाड़ी से राफेल युग में फूंच चुके हैं। देश ने खूब तरक्की की। कई उतार चढ़ाव देखे हैं। लेकिन इस तरक्की और उतार चढ़ाव के बीच आम आदमी यानि कॉमन मैन खुद को कहाँ खड़ा महसूस करता है। इस सालों में उसने कितनी तरक्की की है और किन किन समस्याओं का सामना किया है। इस बात 2टूक बात करने के लिए खुद मौजूद है आम आदमी। तो आइए मिलते हैं आम आदमी से।
एंकर : आजादी के 70 सालों बाद आप खुद को कहां खड़ा महसूस करते हैं।
आम आदमी : देखिये अब डिजिटल दुनियाँ है जिसमें जिसके पास जितना ज्यादा डाटा है वही उतना अमीर और खुशहाल है। जियो, एयरटेल, वोडाफोन जैसी कंपनियों की कृपा से जब नेट स्पीड अच्छी होती है तो खुद को ऑन लाइन महसूस करता हूँ। वरना ऑफलाइन वर्ल्ड में रहता हूँ।
एंकर : भारत के अंदर आप एक अलग दुनियाँ की बात कर रहे हैं। आखिर ये ऑन लाइन और ऑफ लाइन वर्ल्ड क्या है।
आम आदमी : देखिए जब डाटा खत्म हो जाता है तो खुद को गरीब समझने लगता हूँ। इसलिए Offline होते ही दाल, रोटी, नौकरी और परिवार की चिंता सताने लगती है। Online होते ही फिर से धर्म, समाज, राजनीती, देश, विश्व और पूरे ब्रह्माण्ड की चिंता होने लगती है…!!!
एंकर : आप पर आरोप है कि आप को फ्री की लत है। सब कुछ मुफ्त चाहते हैं और मेहनत से जी चुराते हैं।
आम आदमी : वाह जी, हम मेहनत करें और हम पर ही मुफ्त की लत का आरोप लगता है। हम कमाते हैं। टैक्स भरते हैं। और हमारे टैक्स पर नेता मौज करते हैं। सुविधाओं का उपयोग करते हैं। उनका पूरा जीवन ही मुफ्त हो जाता है। वो बिना कोई काम किए करोड़पति हो जाते हैं, और आप कहते हैं कि आम आदमी मेहनत से जी चुराता है।
एंकर : आम आदमी के साथ यही दिक्कत है कि वो किसी कि सुनता नहीं है, बस जो मन में आए करते जाओ।
आम आदमी : देखिये मैं आम आदमी हूँ इसीलिए सबकी सुनता हूँ
कोई टीपू भैया तो हूँ नहीं कि अपने ही पिता नेता जी कि बात न सुनूँ। पप्पू भैया भी नहीं हूँ मम्मी कि न सुनूँ। मै कोई मंत्री भी नहीं हूँ जो किसी कि न सुनूँ। आम आदमी को तो सबकी सुननी पड़ती है। वही सुन रहा हूँ।
एंकर : आपका नाम आम आदमी कैसे पड़ा। अमरूद, केला और कुछ और भी हो सकता था।
आम आदमी : सर जी! केला और अमरूद को आप चूस नहीं सकते हैं लेकिन आम के साथ ये सुविधा आपको आसानी से उपलब्ध है। उस पर कोई भी टैक्स लगा दो। पेट्रोल का दाम कभी भी बढ़ा दो। फल सब्जी महंगी बेच दो। जितना मन चाहे आम आदमी को चूसो फिर उसकी गुठली को सड़क पर फेंक दो। बन गया न आम आदमी।
एंकर : यानि देश का सारा बोझ आपकी पीठ पर है ।
आम आदमी : बोझ नहीं ज़िम्मेदारी कहिए। देश को आगे ले जाने कि ज़िम्मेदारी। जब प्रत्येक व्यक्ति देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझेगा तभी देश तरक्की करेगा। देश के शिक्षकों, डाक्टरों, वैज्ञानिकों, अधिकारियों समेत नेताओं ने अपना योगदान दिया तभी भारत आज विकास के पथ पर लगातार आगे बढ़ रहा है।
एंकर : लेकिन आम आदमी का इस तरक्की में क्या योगदान है।
आम आदमी : हम सुबह एक नई ज़िंदगी जीते हैं दुनियाँ भर के तनाव को लेते हुए भी अपने काम में जुट जाते हैं। हमें आज की भी चिंता है और कल की भी। हमें रोटी भी कमानी है। किसान, मजदूरों, गरीबों के रोटी जुटाने में योगदान भी करना है। हमारी मेहनत से विकास का चक्का घूम रहा है। इसी चिंता में आम आदमी को ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़, हार्ट जैसी बीमारियाँ तोहफे में मिल रही हैं। फिर भी आम आदमी रुकता नहीं है। वो चलता जाता है।
एंकर : आम आदमी होते हुए भी आपको इतना ज्ञान कहां से मिलता है।
आम आदमी : आम आदमी को ज्ञान देने वाले पांच महान विश्वविद्यालय हमारे आसपास ही हैं। पान की दूकान हो या नाई की दुकान या फिर ट्रेन का जनरल यानि आम डिब्बा आप वहाँ बैठ जाइए, आपको सारा ज्ञान मिल जाएगा। इसके अलावा दारू पिया हुआ आदमी भी ज्ञान का भंडार होता है। बाकी दुनियाँ भर का ज्ञान आप Whatsapp यूनिवर्सिटी से हासिल कर सकते हैं।
एंकर : आप जैसे आम आदमी से मिलकर मेरा जीवन धन्य हो गया। आप लोगों को क्या संदेश देंगे। आम आदमी : आम आदमी की खास बात यह होती है कि वो किसी भी हालात में हारता नहीं है। हर मुश्किल से लड़ता है और अंत में जीतता है। तो सभी लोग देश के लड़ते रहें चाहे जितनी भी बाधा आए। विकास के लिए अड़े रहें। अंत में हर हाल में खुश रहें फिर चाहे मुंबई रहें या फ़र्रुखाबाद रहें। जय हिन्द