
लेखक : अथर्व राज
कम्युनिकेशन स्पेशलिस्ट, (नमामि गंगे)
जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार मां गंगा को साक्षी मानकर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सन् 2014 में ” नमामि गंगे” परियोजना के माध्यम से पुण्य सलिला सदानीरा माता जाह्नवी की निर्मलता का संकल्प लिया। 11 सालों में नमामि गंगे योजना हजारों वर्ष पहले से चली आ रही हमारे देश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक यात्रा का पुण्य और जीवंत प्रतीक बन चुकी है। देश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक पहचान को नए शिखर पर स्थापित करने में ” नमामि गंगे ” योजना के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। गंगा बेसिन क्षेत्र में नदियों के निर्मलीकरण एवं हरित भूमि के विकास के साथ-साथ विरासत को भी समृद्ध बनाने पर नमामि गंगे ने फोकस किया जिसका सुपरिणाम समूचे भारतवर्ष को सुखद एहसास करा रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने गंगा नदी की सफाई को लेकर चलाई जाने वाली ‘नमामि गंगे’ परियोजना को उन दस अभूतपूर्व प्रयासों में शामिल किया है जिन्होंने प्राकृतिक दुनिया को बहाल करने में अहम भूमिका निभाई है जो दर्शाता है कि भारत में गंगा सहित अन्य नदियों को नवजीवन प्रदान करने में नमामि गंगे परियोजना कितनी कारगर साबित हुई है। स्वच्छता को बढ़ावा देने और सांस्कृतिक गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने के लिए नदी के किनारे घाटों और श्मशान घाटों का विकास हो या फिर गंगा और उनकी सहायक नदियों में सीवेज के प्रवेश को रोकने के लिए सीवेज उपचार क्षमताओं का निर्माण और संवर्द्धन हो नमामि गंगे परियोजना इन 11 सालों में सफल रही है । नदी सतह की सफाई, जैव विविधता संरक्षण, लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण, वनरोपण – नदियों के किनारे हरित आवरण को बढ़ाने, नदी के किनारे आदर्श गांवों का विकास से लेकर औद्योगिक उत्सर्जन से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए नमामि गंगे परियोजना ‘मील का पत्थर’ बन गई है । गंगा में निवास करने वाले जलचरों के संरक्षण की आवश्यकता को देखते हुए नमामि गंगे परियोजना के माध्यम से गंगा में मछली और मत्स्य पालन संरक्षण, जैव विविधता संरक्षण और गंगेय डॉल्फिन संरक्षण शिक्षा कार्यक्रम जैसी कई जैव विविधता संरक्षण परियोजनाएं शुरू की गई हैं जो उल्लेखनीय हैं । गंगा के कायाकल्प में वनीकरण भी एक महत्वपूर्ण घटक है। नमामि गंगे परियोजना के अंतर्गत किए गए वनीकरण से न केवल गंगा के स्वास्थ्य में सुधार हुआ, बल्कि यह स्थानीय समुदायों के लिए भी फायदेमंद रहा , क्योंकि इससे पर्यावरण पर्यटन और आजीविका के अवसर पैदा हुए। नमामि गंगे योजना में जनभागीदारी एवं जागरूकता सुनिश्चित करने की पहल को भी देश की जनता ने खूब सराहा । गंगा को लेकर लोगों का भावनात्मक जुड़ाव है और धार्मिक नजरिये से लोग इस नदी को आस्था के भाव से देखते हैं । ऐसे में नदी की साफ सफाई को लेकर जन जागरूकता फैलाना और जनभागीदारी सुनिश्चित करने के संकल्प को सिद्धि तक पहुंचाने में भी योजना कामयाब रही । नमामि गंगे परियोजना ने जब अपने 11वें वर्ष में प्रवेश किया तब दुनिया ने अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय… प्रयागराज महाकुंभ को आत्मसात किया। महाकुंभ ने दुनिया के सबसे बड़े आयोजन का कीर्तिमान बनाया । 45 दिनों तक चले महाकुंभ में 66 करोड़ से ज्यादा लोगों ने गंगा-यमुना-सरस्वती के पवित्र संगम में स्नान किया । महाकुंभ स्नान के दौरान त्रिवेणी संगम पर गंगा और यमुना का निर्मल और स्वच्छ जल नमामि गंगे परियोजना की उपलब्धि का सूचक है । निष्कर्ष यह निकलता है कि नमामि गंगे कार्यक्रम गंगा नदी को पुनर्जीवित करने और इसके सतत् अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार द्वारा किया गया एक ऐतिहासिक प्रयास है। बुनियादी ढांचे के विकास, पारिस्थितिक संरक्षण, जन भागीदारी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के संयोजन के माध्यम से, यह कार्यक्रम सुनिश्चित करता है कि गंगा आने वाली पीढ़ियों के लिए एक महत्वपूर्ण और स्वच्छ संसाधन बनी रहे। जैसे-जैसे यह कार्यक्रम आगे बढ़ रहा है, सतत प्रथाओं और अनुकूलनशील प्रबंधन पर निरंतर ध्यान देना इसके दीर्घकालिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण होगा।