दिलीप कुमार
स्तंभकार
महबूब खान निर्देशित फिल्म “अंदाज़” 1949 में आई उस दौर की सबसे बड़ी फ़िल्मों में से एक इसमें प्रेम त्रिकोण में दिलीप कुमार, नर्गिस और राज कपूर हैं. दूरदर्शी संगीतकार नौशाद का संगीत है. गीत मजरुह सुल्तानपुरी द्वारा लिखें गए. अपने जारी होने के समय, अंदाज़ सबसे ज्यादा कमाई करने वाली भारतीय फिल्म बनी थी. क्लासिकल फ़िल्मों में इसको कालजयी फिल्म माना जाता है. महबूब खान की यादगार फ़िल्मों में एक मील का पत्थर है.
सिनेमाई समझ रखने वाले लोगों का कहना है कि त्रिकोण प्रेम की फ़िल्में शायद यश चोपड़ा, करण अर्जुन, आदि ट्रेंड लेकर आए हैं. ऐसा बिल्कुल भी नहीं है आजादी के लगभग दो साल बाद दूरदर्शी निर्देशक /निर्माता महबूब खान ने प्रेम त्रिकोण पर सुपरहिट “अंदाज़ ” बनाकर भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी, अंदाज़ फिल्म अपने समय से बहुत पहले की फिल्म मानी जाती है, शायद कहीं न कहीं तब भी भारतीय समाज में प्रेम त्रिकोण रहे होंगे शायद! स्वीकृति नहीं रही है. यही कारण है कि अंदाज़ फिल्म मील का पत्थर साबित हुई. भारतीय जनमानस की सोच एवं सिनेमा का अंतर्संबंध बहुत निकटता से है चाहे बदलाव के रूप में या जागरुकता के रूप में या समाज की विकृति को स्वीकार्य करना हो फ़िल्मों को तब ही साराहा गया है जब कुछ सच्चाई रही हो. अन्यथा नकार दिया गया है. अंदाज़ की सफलता का बड़ा कारण है उसकी सधी हुई कहानी, एवं यथार्थवाद से जोड़ती हुई फिल्म है.
नीना (नर्गिस) एक अमीर व्यापारी (मुराद) की बेटी है,जो अपनी ही हवा में बहती है, अपनी अदाओं से चलती है. एक दिन घुड़सवारी करते हुए, वह अपने घोड़े पर नियंत्रण खो देती है और दिलीप (दिलीप कुमार) उसे बचा लेते हैं.उसे पसंद करने लगते है,अक्सर उसके घर जाने लगते हैं. गायन के साथ मनोरंजन करते हैं. नीना के पिता दिलीप को पसंद नहीं करते एक भारतीय पिता की तरह बेटी के लिए चिंतित रहते हैं. वह उसे यह महसूस कराने की कोशिश करते हैं कि दिलीप के साथ इतना समय बिताना बुद्धिमानी नहीं है, क्योंकि दिलीप उनकी दोस्ती को प्यार के रूप में गलत तरीके से देख सकता है,शीला की जन्मदिन की पार्टी के दिन, दिलीप को पता चलता है कि वह नीना के साथ प्यार में पड़ गया है ,और उसे ये बताने की कोशिश करता है. हालांकि, उसी दिन त्रासदी हो जाती है जब नीना के पिता दिल के दौरे से मर जाते हैं, जिससे नीना बर्बाद हो जाती है. दिलीप उसे सहानुभूति देता है और नीना उसे अपने पिता के व्यवसाय की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी और अपने घर में एक अतिरिक्त कमरे में रहने देती है.
दिलीप कुमार लगभग पूर्णतया अश्वास्त होते हैं कि नरगिस के साथ उनका सम्बंध होगा, विघ्न होता है राजन आता है यानि कि राजकपूर वो नरगिस के मंगेतर हैं. त्रिकोण प्रेम की यह कहानी भारतीयता , स्त्रीत्व को बचाती एक उदारवादी महिला टेन्शन में आ जाती है क्यों कि तब तक नीना एवं राजन पति – पत्नी बन चुके होते हैं. वहीँ दिलीप भी अब तक सच स्वीकार कर लेते हैं कि अब नीना मेरी नहीं राजन की है तब तक राजन को इसका अंदाजा हो जाता है कि नीना शायद दिलीप से मुहब्बत करती है. नीना का व्यवहार अपरिपक्व होता है कोई भी भारतीय आदमी उसको प्यार ही समझेगा दिलीप कुमार की गलती नहीं थी, फिर भी उन्होंने पीछे हट जाना उचित समझा….. कहानी अभी और भी है.
राजकपूर, दिलीप कुमार दोनों अपने – अपने अभिनय ध्रुव के उस्ताद नरगिस अपने इमोशंस की उस्ताद निर्देशक महबूब खान निर्देशन के उस्ताद फिर भी कई बार अपने दौर के दो सुपरस्टारर्स को एक फिल्म में साधना एवं काम लेना मेढक तौलने के बराबर है,लेकिन यह मुश्किल काम महबूब खान जैसे दूरदर्शी लोगों का ही काम हो सकता है, वो भी निर्विवाद फिल्म की कहानी के मूल में दिलीप कुमार नरगिस होते हैं, वहीँ आधी फिल्म गुजर जाने के बाद अचानक राज कपूर आ टपकते हैं. साधारण से प्रेम, ड्रामे वाली कहानी सस्पेंस, थ्रिल, रोमांच से भर जाती है. संजीदा अभिनय के लिहाज से दिलीप कुमार पता नहीं अपने भावनाओं के ज्वार में सब कुछ बहा ले जाने वाला अभिनय करते हैं, वहीँ नरगिस उस ज्वार की भावनाएं एवं उसकी धारा मोड़े बिना अपना किनारा बचा लेना चाहती हैं, वहीँ मासूमियत से भरे राजकपूर कब नकारात्मकता ओढ़ लेते हैं. जो थोड़ी देर के लिए बेचैन करती है कि एक उदारवादी आदमी संकीर्ण कैसे हो सकता है, ख़ैर यथार्थवाद तो यही है. आखिरकार फिल्म हमें बांधे रखती है.
अंदाज़ फिल्म में एक उदारवादी महिला के रोल में नरगिस, उदारवादी पुरुष के रोल में राजकपूर वहीं एक अल्हड उससे भी ज्यादा परिपक्व आदमी यानी दिलीप कुमार तीनों के अभिनय में एक परिपक्वता दिखती है. नरगिस अपरिपक्व लड़की से परिपक्व महिला की यात्रा में अभिनय दो प्रकार का यानी वेरीएसन देखने को मिलता है, अभिनय की बारीकी जानने वाले बताते हैं कि अच्छा थियेटर का अभिनेता वह है जो फौरन मैकबेध, मैकबेध से ऑथेलो, ऑथेलो से हेमलेट बन जाए. अभिनय में कई रूप एक साथ निभाने की कला कलाकार को कालजयी बनाती है. अंदाज़ में एक अपरिपक्व लड़की से परिपक्व भारतीय महिला के रूप में जब फिल्म की कहानी खत्म होती है तब राज कपूर एवं दिलीप कुमार दोनों शानदार अभिनेता फिर भी नरगिस दोनों पर बीस साबित होती हैं.