Latest news : T-20 World Cup: दक्षिण अफ्रीका की फाइनल में भारत से भिड़ंत| अंतर्राष्ट्रीय : रूस को प्रतिबंधित छोटी और मध्यम दूरी की मिसाइलों का उत्पादन करना चाहिए: पुतिन|  बोइंग के कैप्सूल की समस्या का समाधान के लिए स्पेस में रहेंगे दो अंतरिक्ष यात्री: NASA|  ट्रंप के खिलाफ लड़ाई में बहुत कुछ दांव पर लगा है: बराक ओबामा|  रूस से 10 यूक्रेनी नागरिक कैदियों को रिहा कराया गया: राष्ट्रपति जेलेंस्की|  

कहानी : “देहदान”

डॉ. रंजना जायसवाल

बचपन  में  जब खुद को ढूंढना होता तो आस्था बारिश में भीग लेती। पानी की बूंदे सिर्फ तन को ही नहीं मन को भी अंदर तक धुल देती और वो अपने अंदर एक नई आस्था को पाती। आस्था…आस्था यही नाम तो रखा था बाबा ने उसका…क्योंकि उन्हें विश्वास था कि कुछ भी हो जाये आस्था कभी कमजोर नहीं पड़ सकती, कभी टूट नहीं सकती पर न जाने क्यों आस्था इन बीते दिनों में टूट रही थी और अंदर ही अंदर बिखर रही थी। शादी के बाद उसने भीगना भी छोड़ दिया था, पानी की बूंदें उसे हर बार अपनी ओर खींचने की कोशिश करती पर मान-मर्यादा की बेड़ी उसे हमेशा रोक लेती।

“बहू-बेटियों को ये सब शोभा नहीं देता, पानी से कपड़े तन से कैसे चिपक जाते हैं….अच्छा लगता है क्या ये सब?कोई देखेगा तो क्या सोचेगा !”

कल रात की आंधी ने घर में झंझावात ला दिया था और वो झाड़ू लेकर घर को साफ करने में लगी हुई थी। कल रात से ही आस्था का मन शिवम की बात सुनकर बहुत खिन्न था।

“जानती हो आस्था! आज गुड्डू का फोन आया था, चाचा जी का अब-तब लगा हुआ है।भगवान जाने कब बुलावा आया जाए। गुड्डू ने एक बड़ी विचित्र बात बताई। चाचा जी की इच्छा है उनके मरने के बाद उनकी आँखें किसी जरूरतमंद को दान कर दी जाएँ और उनकी मृत देह मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों को शोध के लिए दे दी जाये…”

उस अंधेरे कमरे में भी न जाने क्यों आस्था को ऐसा लगा मानो शिवम का चेहरे गर्व से भर गया हो। आस्था कितनी देर तक सो नहीं पाई थी, जीवन में पत्नी की मृत्यु, जवान बेटी को विधवा होते, बच्चों का बंटवारा …सब कुछ तो देख लिया था उन्होंने, अब कौन सी दुनिया देखनी बाकी थी। दो महीने पहले ही तो मिलकर आई थी उनसे…आस्था को कमरें में अकेला पाकर कितना फूट-फूट कर रोये थे वो…”आस्था मुझे इन बच्चों से एक फूटी कौड़ी भी नहीं चाहिए पर कम से कम ये जमीन-जायदाद के लिए तो न लड़े। मैं तो इनसे अपनी मिट्टी में आग भी नहीं लगवाऊंगा। क्या चाचा जी ने इसीलिए…??”

पूरी रात उसकी आँखों में ही बीत गई। झंझावात से झड़े अशोक के पत्ते न जाने किस शोक में डूबे हुए आस्था के घर के दरवाजे पर न जाने कौन सी आशा के साथ इस तूफान से अपने आप को बचा लेने पनाह लेने की तलाश में दरवाजे के मुहाने पर आकर इकट्ठा हो गए थे। वो हरे-पीले से पत्ते उसे बड़ी आशा से देख रहे थे,वो सोच रही थी कि उन्हें अंदर कैसे बुलाऊं और उन्हें कैसे बताऊँ कि बाहर का तूफ़ान अंदर के तूफान से कही कमतर ही है। हर साल बेटे की चाहत में उन मासूम बच्चियों की निर्ममता से हत्या करवा देने वाले शिवम तब भी उतने ही गौरान्वित महसूस करेंगे जैसे चाचा जी के देहदान करने से हो रहे थे।क्योंकि दान तो वो भी कर ही रही थी अपनी ममता का,अपनी आत्मा का ,अपनी संतान का …देहदान।

परिचय

डॉ. रंजना जायसवाल

दिल्ली एफ एम गोल्ड ,आकाशवाणी वाराणसी और आकाशवाणी मुंबई संवादिता से लेख और कहानियों का नियमित प्रकाशन,

पुरवाई ,लेखनी,सहित्यकी, मोम्स्प्रेसो, अटूट बन्धन, मातृभारती और प्रतिलिपि जैसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ऐप पर कविताओं और कहानियों का प्रकाशन,

साझा उपन्यास-हाशिये का हक

साझा कहानी संग्रह-पथिक,ऑरेंज बार पिघलती रही भाषा स्पंदन(कर्नाटक हिंदी अकादमी ) अट्टाहास,अरुणोदय,अहा जिंदगी,सोच विचार,लोकमंच,मधुराक्षर,ककसाड़, साहित्य कुंज,साहित्य अमृत,सृजन,विश्वगाथा, साहित्य समर्था,नवल,अभिदेशक,संगिनी,सरिता,गृहशोभा, सरस सलिल,दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, अमर उजाला,दैनिक जनप्रिय इत्यादि राष्ट्रीय स्तर की पत्र -पत्रिकाओं से लेख,कविताओं और कहानियों का प्रकाशन

By admin

One thought on “कहानी : “देहदान”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *