— डॉ शिल्पी बक्शी शुक्ला
मां मेरी यह कहती है,
जिन पेड़ों पर फल लगता है,
उनकी शाखें झुक जातीं हैं,
करने प्रणाम अस्ताचल सूर्य को,
बहती नदियां रूक जातीं हैं,
गिरती हैं लहू की बूंदे तो,
बंजर धरती भी सोना हो जाती है,
सहती है बोझ ये धरती,
तभी ये सृष्टि चल पाती है,
मिलते हैं मेहनतकश हाथ,
तो पर्वत भी हिल जाते हैं,
उठ जाएं मिलकर भाल तो,
दुश्मन पीछे हट जाते हैं,
मिलने पर अंगुलियों की ताकत,
मज़बूत एक मुट्ठी बन जाती है,
सच्चा मानव वही धरा में,
परहित में जो मिट जाता है,
मां मेरी यह कहती है,
सच्चा धर्म वही जगती में, प्रेम का पाठ जो सिखलाता है…