अनुकूलन चुनौतियों का समाधान करते हुए विकास को निरंतर बनाए रखना एवं कल्याण में तेजी लाना बहुत महत्वपूर्ण है: श्री सुमन बेरी, उपाध्यक्ष (नीति आयोग)
नई दिल्ली : लक्ष्मी मित्तल एंड फैमिली साउथ एशिया इंस्टीट्यूट और सलाटा इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट एंड सस्टेनेबिलिटी, हार्वर्ड विश्वविद्यालय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी), भारत सरकार के सहयोग से, ‘भारत 2047: जलवायु-लचीले भविष्य का निर्माण’ नामक एक संगोष्ठी का आयोजन कर रहे हैं। इस चार दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन आज 19 मार्च 2025 को भारत मंडपम, नई दिल्ली में शुरू हुआ, जिसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, उद्योग विशेषज्ञों, नागरिक समाज के प्रतिनिधियों और अन्य संबंधित हितधारकों की बैठक हुई, जिसका उद्देश्य भारत की जलवायु अनुकूलन एवं लचीलापन प्राथमिकताओं पर चर्चा करना और देश को 2047 तक विकसित भारत बनाना है।
पहले दिन, उद्घाटन सत्र का आयोजन श्री सुमन बेरी, उपाध्यक्ष, नीति आयोग और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री कीर्ति वर्धन सिंह की अध्यक्षता में किया गया। इस अवसर पर उपस्थित अन्य गणमान्य व्यक्तियों में प्रधानमंत्री के सलाहकार श्री तरुण कपूर, हार्वर्ड विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष श्री जेम्स एच. स्टॉक तथा लक्ष्मी मित्तल एंड फैमिली साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के निदेशक श्री तरुण खन्ना शामिल हुए।
अपने संबोधन में, श्री सुमन बेरी ने भारत-केंद्रित अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने अनुकूलन चुनौतियों का सामना करते हुए विकास की निरंतरता एवं कल्याण में तेजी लाने के महत्व को उजागर किया। उन्होंने कार्यक्रम डिजाइन में लचीलापन की आवश्यकता की बात की, विशेष रूप से शासन में, जहां अब तक बड़े पैमाने पर ध्यान केंद्रीत नहीं किया गया है। उन्होंने लोगों और समुदायों को सशक्त बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। इसके अलावा, उन्होंने दक्षिण एशिया में केस स्टडीज का दस्तावेजीकरण करने और बौद्धिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के महत्व को रेखांकित किया।
श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने सभी क्षेत्रों में मजबूत अनुकूलन की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि “भारत ने वैश्विक दक्षिण के लिए जलवायु आवश्यकता की निरंतर वकालत की है और यह सुनिश्चित किया है कि अंतरराष्ट्रीय जलवायु नीतियां निष्पक्ष एवं समावेशी हों। जैसे-जैसे हम आगे कदम बढ़ा रहे हैं, अनुकूलन प्रयासों को बढ़ावा देना और यह सुनिश्चित करना बहुत महत्वपूर्ण है कि सबसे कमजोर समुदायों को उन संसाधनों एवं प्रौद्योगिकियों तक पहुंच प्राप्त हो जिनके लिए उन्हें लचीलापन की आवश्यकता है। हालांकि भारत ने महत्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों एवं उत्सर्जन तीव्रता में कमी लाने की प्रतिबद्धताओं को पूरा करते हुए शमन में महत्वपूर्ण प्रगति प्राप्त की है।” उन्होंने इस बात पर बल दिया कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से आजीविका, पारिस्थितिकी तंत्र और अवसंरचना सुरक्षा के लिए अनुकूलन एवं लचीलापन आवश्यक है।
मंत्री ने अनुकूलन पहलों का समर्थन करने में जलवायु वित्त की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बल देकर कहा कि वित्तीय संसाधनों को कमजोर समुदायों की आवश्यकताओं को पूरा करने एवं प्रभावी अनुकूलन उपायों को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने अनुकूलन प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक वित्त के पूरक के रूप में मिश्रित वित्त, जोखिम-शेयरिंग संरचना और निजी क्षेत्र की ज्यादा भागीदारी सहित नवीन वित्तपोषण तंत्र की आवश्यकता पर बल दिया। इसके अलावा, मंत्री ने यह भी कहा कि अनुकूलन निवेशों का सीधा लाभ जलवायु परिवर्तन के लिए काम कर रहे किसानों, छोटे व्यवसायों और तटीय समुदायों को होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हरित बांड, जलवायु-प्रतिरोधी अवसंरचना निधि और रियायती वित्तपोषण जैसे वित्तीय उपकरणों को मजबूत करके, भारत एक स्थायी एवं समान जलवायु वित्त पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने का लक्ष्य रखता है। भारत का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई को विश्वास, पारदर्शिता एवं समान विकास पर आधारित होना चाहिए। मंत्री ने निष्कर्ष निकाला कि हमें सभी लोगों के लिए जलवायु लचीलापन सुनिश्चित करने, स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में नवाचार को तेज करने और विकेंद्रीकृत शासन एवं पारिस्थितिकी-आधारित समाधानों के माध्यम से स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने के लिए दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग को बढ़ाना चाहिए।
सभा को संबोधित करते हुए, श्री तरुण कपूर ने व्यावहारिक जलवायु परिवर्तन समाधानों पर बल दिया जो व्यक्तियों के लिए संसाधन प्रवाह एवं सस्ती खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। उन्होंने आवश्यकतानुसार पूर्वानुमान, प्रौद्योगिकी और ज्ञान प्रदान करने के महत्व पर बल दिया। पहले, अपने स्वागत भाषण में, श्री तन्मय कुमार, सचिव पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने संगोष्ठी के लिए रूपरेखा तय करते हुए, अनुकूलन से संबंधित कार्यान्वयन योग्य समाधानों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि “यह संगोष्ठी केवल चुनौतियों की पहचान करने के लिए नहीं है, बल्कि यह विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं, अकादमिक, वैज्ञानिकों, नागरिक समाज और समुदायों का एक साथ लाने के लिए है जिससे अनुकूलन रणनीतियों को विकसित किया जा सके जो अनुसंधान आधारित, स्थानीय आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी, लागत प्रभावी एवं दीर्घकालिक लचीलापन के लिए मापणीय हों।” उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत की अनुकूलन रणनीति वैज्ञानिक साक्ष्य, अंतर-क्षेत्रीय एकीकरण एवं मजबूत संस्थागत संरचना पर बनाई जाएगी।
एक वीडियो संबोधन में, हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अध्यक्ष श्री एलन एम. गार्बर ने हार्वर्ड को भारत से जोड़ने वाले केंद्र के रूप में लक्ष्मी मित्तल एंड फैमिली साउथ एशिया इंस्टीट्यूट की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने जलवायु एवं स्थिरता के लिए सलाटा संस्थान का परिचय दिया, जिसका उद्देश्य सतत एवं प्रभावी जलवायु समाधान विकसित करना है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष श्री जेम्स एच. स्टॉक ने जलवायु समाधानों पर काम करने वाली अंतःविषय टीमों के साथ शिक्षण एवं अनुसंधान के विश्वविद्यालय के मिशन पर प्रकाश डाला। उन्होंने जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिए स्थानीय भागीदारों से सीखने पर बल दिया। श्री तरुण खन्ना, लक्ष्मी मित्तल एंड फैमिली साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के निदेशक, ने पारंपरिक ज्ञान एवं उन्नत ज्ञान प्रणालियों के समन्वय के महत्व की बात की।
संगोष्ठी के चार दिनों में, चार प्रमुख विषयों पर चर्चा होगी जो भारत की अनुकूलन प्राथमिकताओं पर केंद्रीत हैं, जिसमें जलवायु विज्ञान एवं कृषि तथा जल सुरक्षा पर इसके प्रभाव, जलवायु परिवर्तन से संबंधित स्वास्थ्य जोखिम, श्रम उत्पादकता एवं कार्यबल का अनुकूलन, निर्मित वातावरण में लचीलापन शामिल हैं। उच्च स्तरीय पूर्ण सत्रों में विशेषज्ञ गोलमेज बैठकें और तकनीकी सत्रों के माध्यम से क्षेत्र-विशिष्ट चुनौतियों का पता लगाएंगे तथा नीतियों एवं कार्यक्रमों में अनुकूलन को मुख्यधारा में लाने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं की पहचान करेंगे।
इसमें जलवायु लचीलापन एवं शासन का अंतर्संबंध महत्वपूर्ण क्षेत्र बने हुए है, जिसमें यह सुनिश्चित करने पर बल दिया गया है कि अनुकूलन उपायों को सभी स्तरों पर प्रभावी रूप से क्रियान्वित किया जाए। संस्थागत क्षमता को मजबूत करना एवं हितधारकों के बीच समन्वय को बढ़ावा देना नीतियों को ठोस बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा जो समुदायों, अर्थव्यवस्था एवं पारिस्थितिकी तंत्र को जलवायु जोखिमों से सुरक्षित रखते हैं। इस संगोष्ठी से प्राप्त अंतर्दृष्टियां भारत की पहली राष्ट्रीय अनुकूलन योजना (एनएपी) में भी अपना योगदान दे सकती हैं, जो प्रक्रिया के अंतर्गत है, जिसके लिए मंत्रालय द्वारा 18 मार्च, 2025 को राष्ट्रीय स्तर के हितधारक कार्यशाला का आयोजन किया गया था। विचार-विमर्श से साक्ष्य-आधारित नीतिगत अनुशंसाओं को आकार देने में मदद मिलेगी, जो जलवायु अनुकूलन को विकास योजना, आजीविका सुरक्षा, महत्वपूर्ण अवसंरचना एवं आर्थिक स्थिरता में एकीकृत करेगी।