Monday, September 16, 2024
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जीवन के रंग गीतों में उतारने वाले शायर हसरत जयपुरी

लेखक : दिलीप कुमार

हसरत जयपुरी की बेटी अपने पिता से कहती थीं, “मुझे आपके जैसे मुहब्बत के नग्मे लिखना हैं, आपकी तरह ज़िन्दगी का हर एक रंग लिखना चाहती हूं, मुझे भी शायरी लिखने का जुनून है. कैसे लिखूँ क्या करूँ? हसरत जयपुरी साहब अपनी बेटी से कहते थे ” शायरी तुमसे नहीं होगी, तुम्हें बार – बार प्यार करना पड़ेगा. टूटे हुए दिल से दर्द के नग्मे निकलते हैं, फिर तजुर्बे से ज़िन्दगी का हर एक रंग निखर कर आता है. लिहाज़ा तुम खुश रहो छोड़ो शेरो /शायरी.. कालांतर में शायर हसरत जयपुरी साहब ने अपनी प्रेयसी से अपनी मुहब्बत का इज़हार करने के लिए एक कविता लिखी थी. उस कविता के शब्द कुछ इस तरह थे – “ये मेरा प्रेमपत्र पढ़कर, के तुम नाराज़ ना होना…पड़ोस की उस लड़की का ‘राधा’ नाम था. इस पत्र को कभी उसको नहीं दे पाए जिसके लिए उन्होंने लिखा था. हसरत साहब  अपनी प्रेयसी को दिल की बात ही न कह सकें.. अंततः वो अपने गीतों, रचनाओं में अपनी प्रेमिका को ही ढूढ़ने का प्रयास करते रहते थे. उनकी ज़िंदगी का अनुभव तो यही कहता है कि पहले दिल तोड़ना होता है, तब ही दर्द के नग्मे निकलते हैं. ज़िन्दगी की जद्दोजहद में नौकरी की तलाश में सन् 1940 में हसरत साहब मुंबई आए. बेस्ट में बस कंडक्टर बन गए. आठ साल की नौकरी के बाद मुशायरों में उनकी लोकप्रियता ने राज कपूर के दरवाज़े पर दस्तक दी. हसरत ने अपना प्रेम पत्र राज कपूर को सौंप दिया. महान शायर/गीतकार हसरत जयपुरी 15 अप्रैल,1922 राजस्थान के जयपुर में जन्मे थे. उनका मूल नाम हसरत जयपुरी नहीं था, बल्कि उनका जन्म नाम इक़बाल हुसैन था. उनके नाना फ़िदा हुसैन ‘फ़िदा’ मशहूर थे. उन्हीं की वजह से हसरत में शायरी का रुझान बढ़ा. सत्रह साल की उम्र आते-आते वह भी शेर-ओ-शायरी करने लगे थे इस बाली उम्र में उन्होंने जो अपना पहला शेर लिखा था. इन्होंने उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेजी की तालीम पाई. उर्दू, फ़ारसी उन्होंने अपने नाना से सीखा था. इनको शेरो शायरी विरासत में मिली थी, लेकिन उन्होंने खुद इसमे महारत हासिल की. घर पर शायरी की महफ़िलें जमती थीं. इनके नाना फ़िदा हुसैन ‘फ़िदा जयपुरी’ अच्छे शायर थे. जिनसे ये खूब सीखते थे. इनके नाना फ़िदा हुसैन साहब, देहलवी के शागिर्द थे. इस तरह इनका सिलसिला शुरू होता है. चूँकि हसरत जयपुरी मौलाना हसरत मोहानी से बहुत प्रभावित थे. इसलिए उन्होंने अपना नाम हसरत रख लिया. हसरत जयपुरी जब 17 साल के थे तो उन्होंने ग़ज़ल कही. हसरत मोहानी एक बार जयपुर मुशायरे के लिए आए थे, तब युवा इक़बाल हुसैन ने उन्हें अपना नाम हसरत बताया कारण भी बताया क्यों रख लिया, तब हसरत मोहानी ने कहा अपने नाम के पीछे जयपुरी रख लो.. अधिकांश शायर अपने नाम के बाद तखल्लुस के साथ शहर का नाम लगाते हैं.

हिन्दी सिनेमा में गीत- संगीत पर सबसे ज्यादा गहनता के साथ अध्ययन किया जाता था, कि किस ट्यून में कौन सा गीत होगा. पहले के अधिकांश फ़िल्मकार संगीत की गहरी समझ रखते थे, कहानी न भी गहरी हो, लेकिन फिल्म का गीत – संगीत सबसे ज्यादा असरदार होता था. आज भी हम पुराने सदाबहार गीतों को सुनते हैं तो उनके साथ गीतकारों में ‘हसरत जयपुरी’ का नाम शिद्दत से लिया जाता है. हिन्दी सिनेमा में जब भी महान गीतों पर विमर्श होगा, तो हसरत जयपुरी का नाम सबसे ऊपर आएगा. हसरत जयपुरी साहब राजकपूर साहब की संगीत मंडली के अहम सदस्य थे, लिहाज़ा जयपुरी साहब ने अधिकांश गीत राज कपूर साहब के आर के बैनर के लिए ही लिखा है. हसरत जयपुरी साहब ने अपने पाँच दशक के सिनेमाई सफ़र में 350 फ़िल्मों के लिए लगभग दो हज़ार गीत लिखकर जीते जी किंवदन्ती बन गए थे. ‘हसरत जयपुरी साहब’ कविराज शैलेन्द्र जी के साथ एक – एक से बढ़कर एक कालजयी गीतों की रचना की. कविराज शैलेन्द्र जी के साथ उनकी दोस्ती यादगार है.. आम तौर पर एक ही दौर के दो दिग्गज राईवल के तौर पर याद किए जाते हैं, लेकिन कविराज शैलेन्द्र एवं हसरत जयपुरी की दोस्ती अपने आप में इतिहास है. वहीँ आज के लोगों के लिए प्रेरणा कि साथ रहते हुए प्रतिस्पर्धा ज़रूर करिए लेकिन ईर्ष्या नहीं. सभी गीत एक से बढ़कर एक दिल को छू लेने वाले लिखे थे. आज भी उनके नगमों का कोई मुक़ाबला नहीं है. ख़ास तौर से निर्माता-निर्देशक राज कपूर और महान संगीतकार शंकर-जयकिशन के लिए उन्होंने कालजयी गीत लिखे.

मेहरबां लिखूं, हसीना लिखूं या दिलरुबा लिखूं

हैरान हूं के आप को इस ख़त में क्या लिखूं ?

ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर, के तुम नाराज़ ना होना

के तुम मेरी ज़िंदगी हो, के तुम मेरी बंदगी हो’

राज कपूर साहब  को ग्रेट शो मैन इसलिए ही कहा जाता है, इस पत्र को राज कपूर साहब ने लगभग डेढ़ दशक तक अपने पास सम्भाल कर रखा था. इसी तर्ज़ पर जैसे मजरुह सुल्तानपुरी साहब का गीत “एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल” इस गीत को मजरुह सुल्तानपुरी साहब ने जेल में रहते हुए राज कपूर के अनुरोध पर लिखा था.. बाद में राज कपूर साहब ने अपने इस गीत को 26 साल बाद अपनी फिल्म में उपयोग किया था.. ख़ैर इस गीत का किस्सा फिर कभी.. राज कपूर साहब ने फ़िल्म ‘संगम’ (1964) में हसरत जयपुरी के प्रेम पत्र को शामिल करने का फैसला किया.. जैसे राज कपूर साहब ने तब ही सोच रखा था,कि कब इस गीत को कहां उपयोग करना हैं.. फिल्म की नायिका का नाम रख दिया- ‘राधा’ फ़िल्म ‘संगम’ की कहानी सुनने के बाद राधा (वैजयंती माला) चेन्नई चली गई. एक सप्ताह तक उसका जवाब नहीं आया. राज कपूर ने टेलीग्राम भेजा- “बोल राधा बोल, संगम होगा कि नहीं”. वैजयंती माला ने जवाबी टेलीग्राम भेजा- “होगा होगा होगा” ये शब्द एक ख़ूबसूरत गीत के एहसास का हिस्सा बन गए थे. इस नाटकीयता, रोमांटिक ट्यून का अर्थ यह है कि राज कपूर साहब उनको डेट करते थे.

राज कपूर साहब 1949 में फिल्म बरसात बना रहे थे, यहीं से राज कपूर साहब की टोली में महान गीतकार हसरत जयपुरी के साथ कविराज शैलेन्द्र, एवं महान संगीतकार शंकर – जय किशनजी, गायक मुकेश जी जुड़े. यहीं से ये चारो महान कलाकार अपने सिनेमाई सफ़र की शुरुआत कर रहे थे. हालाँकि मुकेश जी पहले से ही गायक थे, लेकिन राज साहब की टोली में यहीं से शुरुआत की थी. राज कपूर साहब ने हिंदी सिनेमा के लिए इन महान कलाकारों के साथ मिलकर एक से बढ़कर एक कालजयी गीतों का सृजन के सूत्रधार बने.

हसरत साहब शायरी तो करते ही थे,दिनभर बस कन्डक्टर की नौकरी करते थे, रात में खूब शेरो /शायरी करते थे. इसलिये वे मुशायरों में भी शामिल होने लगे थे. बहुत सादी भाषा में शायरी करने वाले हसरत को एक मुशायरे में पृथ्वीराज कपूर ने सुना था. उन्होंने हसरत को इप्टा के दफ्तर में बुलाया. राजकपूर अपने निर्देशन में बन रही फिल्म ‘बरसात’ के लिए गीतकार की तलाश में थे. शैलेंद्र को वे इप्टा के समारोहों में सुन चुके थे. राजकपूर ने हसरत से भी उनका कलाम सुना और फिर शंकर, जयकिशन, शैलेंद्र, हसरत और राजकपूर की एक टीम बन गयी. राजकपूर के निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘बरसात’ (1949) से शुरूआत कर इस टीम ने हिंदी सिनेमा को ढेरों यादगार गीत दिये. इस फिल्म में हसरत ने पहला फिल्मी गीत लिखा – ‘जिया बेकरार है छाई बहार है, आजा मोरे बालमा तेरा इन्तज़ार है’.

उस दौर में फ़िल्मों का नाम एवं गाने अर्थपूर्ण होते थे. फिल्मों में फिल्म के शीर्षक पर आधारित गीत शामिल किया जाता था. हसरत साहब शीर्षक गीत लिखने में सबसे ज्यादा ख्याति प्राप्त गीतकार थे. उनके लिखे शीर्षक गीतों पर नजर डालते हैं. रात और दिन दिया जले (रात और दिन), गुमनाम है कोई (गुमनाम), रुख से जरा नकाब उठाओ मेरे हुजूर (मेरे हुजूर), दुनिया की सैर कर लो इंसा के दोस्त बन कर – अराउंड द वर्ल्ड इन एट डॉलर (अराउंड द वर्ल्ड), एन ईवनिंग इन पेरिस (एन ईवनिंग इन पेरिस), कौन है जो सपनों में आया, कौन है जो दिल में समाया, लो झुक गया आसमां भी, इश्क मेरा रंग लाया (झुक गया आसमां), दीवाना मुझकों लोग कहें (दीवाना), तेरे घर के सामने इक घर बनाउंगा (तेरे घर के सामने) जासूस करें महसूस, ये दुनिया बड़ी खराब है (दो जासूस), मैं हूं खुश रंग हिना (हिना) ऐसे ही बहुत सारे शीषर्क गीतों का सृजन किया.

हसरत साहब ने अपनी सिनेमाई यात्रा के दौरान 350 फिल्मों के लिए लगभग 2000 गीत लिखे थे. इस दौरान पुरस्कार और सम्मान उनको खूब मिलते थे. उन्हें दो बार फिल्म फेयर सम्मान भी मिला. फिल्म ‘सूरज’ के गीत – “बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है” के लिए और फिर फिल्म ‘अंदाज’ के गीत – “जिंदगी एक सफर है सुहाना” के लिए फिल्म फेयर अवॉर्ड मिले. हसरत साहब के गीतों की खासियत उनकी साधारण भाषा है. मुकेश के लिए तो हसरत ने कालजयी गीत रच डाले थे. मिसाल के लिये – छोड़ गए बालम मुझे हाय अकेला छोड़ गए. (बरसात), हम तुमसे मोहब्बत करके सनम रोते भी रहे (आवारा), आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें कोई उनसे कह दे (परवरिश), दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समायी (तीसरी कसम), जाने कहां गए वो दिन (मेरा नाम जोकर). हर किसी का एक दौर होता है, मौसम भी बदलता है. शैलेंद्र और जयकिशन की मौत के बाद वे बहुत अकेलापन महसूस करने लगे थे. आखिरकार राज कपूर साहब के चले जाने के बाद तो हसरत साहब गुमनामी ज़िन्दगी जीवन बिताने लगे थे. फिल्म “पगला कहीं का” (1970) में हसरत ने एक गीत लिखा जो हमेशा उनकी याद दिलाता रहेगा. “तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे. इस गीत के साथ हसरत साहब आजीवन याद आते लोगों के जेहन में रहेंगे.

हसरत साहब कविराज शैलेन्द्र जी को याद करते हुए कहते हैं. “एक मेरा अजीज दोस्त शैलेन्द्र एक फिल्म के निर्माण की कीमत चुकाते हुए दुनिया से चला गया. हमारी कितनी गहरी दोस्ती थी, उसकी बानगी यह भी है कि शैलेन्द्र हमसे भी बड़ा गीतकार था, लेकिन उसने मुझसे तीसरी कसम के दो गीत लिखवाए थे, लेकिन दुख होता है कि राज कपूर साहब ने शैलेन्द्र जी का साथ नहीं दिया. जिससे समय ज्यादा लगा, और बजट बढ़ गया, जिसकी कीमत मेरे दोस्त शैलेन्द्र ने चुकाई. देखिए किसी भी कलाकार को सब के लिए दिल में मुहब्बत रखनी पड़ती है. तब ही कुछ रोचक सृजन कर सकता है. राज कपूर साहब जूते में पॉलिश करने वाले से भी मुहब्बत करते थे, उन्होंने न जाने मेरे जैसे कितने लोगों की जिंदगी बना दी है. जो शब्द अब तक कहीं अस्तित्व ही नहीं रखते थे, उन्हें भी गीतों में पिरोकर हसरत जयपुरी ने न सिर्फ उन्हें नए अर्थ दिए बल्कि उनमें मिठास घोल दी. जैसे – रम्मैया वस्तावैया 2013 में रम्मैया वस्तावैया फिल्म का निर्माण भी हुआ है. हसरत साहब आज के दौर के रचनाकारों से थोड़ा नाराज थे. बाद के दौर में गीतकार बेमतलब के प्रयोग करते थे, जिसमें खुद को हसरत साहब फ़िट नहीं कर पाते थे, कहते थे, मैं नौशाद साहब,बर्मन दादा, शंकर – जय किशनजी, मदन मोहन, आदि के दौर का गीतकार हूं. आज के संगीतकारों के साथ फिट नहीं होता, मुझे कहने में गुरेज नहीं है आज के संगीतकार हेर फ़ेर करते हैं थोड़ा बहुत चोरी भी करते हैं. यह निहायत घटिया दौर है, मैं खुद को इस निकृष्टता से दूर रखना चाहता हूं.. आख़िरकार बाद के दौर में हसरत साहब थोड़ा एकाकी हो गए थे. गीतकार के रूप में उनकी आखिरी फिल्म थी- ‘हत्या: द मर्डर’ 2004 थी. आख़िरकार हिन्दी सिनेमा के महान गीतकार, महान शायर 17 सितंबर 1999 को इस नाटकीय दुनिया से रुख़सत हो गए. एवं छोड़ गए, शायरी, एवं गीतों का रूमानी एहसास जो कभी खत्म नहीं होगा. महान शायर /गीतकार रोमांस के राजकुमार हसरत जयपुरी को हमारा सलाम…

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