प्राचीन व्यापारिक हवाओं से लेकर आधुनिक समुद्री सुरक्षा तक: ‘मानसून’ सम्मेलन हिंद महासागर में भारत की विस्तारित भूमिका की पड़ताल करता है
नई दिल्ली : भारत की बढ़ती समुद्री साझेदारी और सुरक्षा संबंधी विभिन्न पहलों की पृष्ठभूमि में, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) एसजीटी विश्वविद्यालय में एडवांस्ड स्टडी इंस्टीट्यूट ऑफ एशिया (एएसआईए) के सहयोग से ‘मानसून: सांस्कृतिक और व्यापारिक प्रभाव का क्षेत्र’ शीर्षक से एक दो-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन कर रहा है। ‘प्रोजेक्ट मौसम’, संस्कृति मंत्रालय के तहत एक भारतीय अंतरराष्ट्रीय पहल है। समुद्री संवाद के माध्यम से हिंद महासागर के देशों के बीच ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंधों की पड़ताल करने वाला यह सम्मेलन हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में व्यापार, परंपराओं और कनेक्टिविटी को आकार देने में भारत की केन्द्रीय भूमिका को रेखांकित करेगा। इस सम्मेलन का उद्घाटन सत्र आज नई दिल्ली स्थित आईजीएनसीए में शुरू हुआ और यह सम्मेलन 13 फरवरी 2025 तक जारी रहेगा। केन्द्रीय संस्कृति तथा पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। डॉ. विनय सहस्रबुद्धे ने मुख्य भाषण दिया और आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने स्वागत भाषण दिया। उद्घाटन सत्र के दौरान प्रोफेसर अमोघ राय, अनुसंधान निदेशक, एएसआईए, एसजीटी विश्वविद्यालय और प्रोजेक्ट मौसम के निदेशक डॉ. अजित कुमार भी उपस्थित थे।
केन्द्रीय संस्कृति तथा पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उद्घाटन सत्र में बोलते हुए, भारत और हिंद महासागर क्षेत्र के बीच गहरे अंतर्संबंधों पर प्रकाश डाला और इस बात पर जोर दिया कि हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का सांस्कृतिक प्रभाव इसकी समृद्ध सांस्कृतिक, बौद्धिक और ज्ञान परंपराओं से उपजा है। उन्होंने कहा कि यह प्रभाव न केवल वाणिज्य एवं व्यापार बल्कि भारत की बौद्धिक शक्ति एवं स्वर्णिम समृद्धि से भी उपजा है। उन्होंने कहा कि भारत के सांस्कृतिक प्रभाव के चिन्ह उन लोगों में दिखाई देते हैं जो छात्रों, भिक्षुओं या यहां तक कि आक्रमणकारियों के रूप में आए थे और जो अपने साथ भारत की सांस्कृतिक प्रगति का सार लेकर आए थे तथा हजारों वर्षों से विविधता एवं एकता को बढ़ावा दे रहे थे। उन्होंने प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत के अंतरराष्ट्रीय मिश्रित मार्ग को प्रदर्शित करने से संबंधित ‘प्रोजेक्ट मौसम’ के अनूठे दृष्टिकोण के बारे में भी बात की और कहा, “दुनिया को इस बात का एहसास है कि संस्कृति ही वह कारक है जो हम सभी को एकजुट करती है।”
यह पहल विशेष रूप से सामयिक है, क्योंकि भारत और फ्रांस ने हाल ही में नई दिल्ली में अपनी समुद्री सहयोग वार्ता संपन्न की है, जिसमें आईओआर में समुद्री सुरक्षा के खतरों का आकलन और उनका मुकाबला करने के लिए संयुक्त उपायों पर सहमति व्यक्त की गई है। इन खतरों में समुद्री डकैती, समुद्री आतंकवाद, तस्करी, अवैध मछली पकड़ना, हाइब्रिड एवं साइबर खतरे और समुद्री प्रदूषण शामिल हैं। ओमान भी 16-17 फरवरी के दौरान हिंद महासागर सम्मेलन के आठवें संस्करण की मेजबानी करेगा, जो ‘’समुद्री साझेदारी के नए क्षितिजों की यात्रा’ पर केन्द्रित होगा। इसके साथ ही, भारतीय नौसेना का 2025 कैपस्टोन थिएटर लेवल ऑपरेशनल एक्सरसाइज (ट्रोपेक्स) भी चल रहा है, जो हिंद महासागर में भारत की तैयारियों को प्रदर्शित करता है।
‘प्रोजेक्ट मौसम’ न केवल भारत के ऐतिहासिक समुद्री प्रभाव पर जोर देता है, बल्कि यह इस क्षेत्र में देश की विकसित भू-राजनैतिक रणनीति के साथ भी मेल खाता है। यह सम्मेलन प्राचीन नौवहन मार्गों, बंदरगाह वाले शहरों के नेटवर्क और तटीय बस्तियों जैसे प्रमुख विषयों पर केन्द्रित होगा। मूर्त व अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को एकीकृत करके, यह परियोजना कनेक्टिविटी एवं समुद्री साझेदारी को बढ़ावा देने और यूनेस्को के समुद्री विरासत अध्ययन में योगदान देने में भारत के निरंतर नेतृत्व को रेखांकित करती है।
अपने संबोधन में, डॉ. विनय सहस्रबुद्धे ने भारत एवं दक्षिण पूर्व एशिया के बीच के संबंधों की सांस्कृतिक बुनियाद पर जोर दिया और दक्षिण पूर्व एशिया को भारत की लोकप्रिय चेतना में एकीकृत करने हेतु बौद्धिक एवं भावनात्मक निवेश का आह्वान किया। सांस्कृतिक बंधनों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता के बारे में बात करते हुए, उन्होंने मानसून को स्थायी संबंधों के प्रतीक के रूप में रेखांकित किया और यूरोकेन्द्रित दृष्टिकोण से आगे बढ़ने का आग्रह किया। उन्होंने सांस्कृतिक, रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करके ‘पूर्व को आकर्षित’ करने के लिए एक्ट ईस्ट नीति के माध्यम से सांस्कृतिक जुड़ाव को गहरा करने की हिमायत की। उन्होंने धर्म-धम्म संबंधों को मजबूत करने, साझा महाकाव्यों को पुनर्जीवित करने, सहयोगात्मक कला एवं शिल्प को बढ़ावा देने, शैक्षिक एवं तकनीकी आदान-प्रदान को आगे बढ़ाने, जलवायु परिवर्तन से निपटने और भाषाई पुलों के निर्माण का भी आह्वान किया।
डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि दक्षिण एवं मध्य एशिया में आईजीएनसीए के क्षेत्र अध्ययन ने सांस्कृतिक मार्गों और संपर्कों की पड़ताल के लिए वृहत्तर भारत के विकास को जन्म दिया, जो शुरू में चिन्हित किए गए 39 देशों से आगे बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि 70 से अधिक देश भारत के साथ सांस्कृतिक विरासत साझा करते हैं। अंतरराष्ट्रीय सहयोग, जैसा कि जी20 शिखर सम्मेलन के आदर्श वाक्य ‘वसुधैव कुटुंबकम’ में परिलक्षित होता है, पर जोर देते हुए उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि आईजीएनसीए के प्रयास जारी हैं और यह सम्मेलन इन अध्ययनों के विस्तार के लिए उत्प्रेरक के रूप में काम कर रहा है।
प्रोफेसर अमोघ राय ने भौतिक और सांस्कृतिक शक्ति दोनों के रूप में मानसून पर अपने विचार व्यक्त किए और एक सांस्कृतिक गुणक के रूप में इसकी भूमिका तथा आगे के शोध के लिए इस सम्मेलन की क्षमता पर प्रकाश डाला। डॉ. अजित कुमार ने औपचारिक रूप से धन्यवाद ज्ञापन कर और भारत एवं दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच सांस्कृतिक एकता पर जोर देकर उद्घाटन सत्र का समापन किया। आईजीएनसीए के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्देश्य शैक्षणिक सहयोग एवं विरासत संरक्षण के साथ भविष्य के नीतिगत संवादों का मार्ग प्रशस्त करने के साथ-साथ घनिष्ठ सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देना है। यह संवाद भारत की विकसित होती समुद्री रणनीतियों और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों के साथ सहजता से मेल खाता है।