Friday, May 9, 2025
Homeपर्यावरणयमुना की सफाई के लिए धन से अधिक सटीक योजना की जरूरत...

यमुना की सफाई के लिए धन से अधिक सटीक योजना की जरूरत : सुनीता नारायण

दिल्ली-एनसीआर में यमुना की सफाई के एजेंडा को रीसेट करें : सीएसई

  • यमुना नदी और उसकी सफाई पर ब्रीफिंग पेपर जारी हुआ

नई दिल्ली: 2017 से 2022 के बीच के चार सालों में दिल्ली सरकार ने यमुना की सफाई पर 6,856 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए। दिल्ली में अब कुल 37 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं जो उत्पन्न सीवेज के 80 प्रतिशत से अधिक हिस्से को उपचारित करने में सक्षम हैं। दिल्ली का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा सीवर लाइनों से जुड़ा हुआ है।

इन सबके बावजूद यमुना  प्रदूषित और अस्वच्छ क्यों बनी हुई है? सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा आज यहां एक प्रेस ब्रीफिंग में जारी एक नए आकलन में इस गुत्थी को सुलझाने और एक कारगर कार्ययोजना पेश करने का प्रयास किया गया है ।

इस आकलन रिपोर्ट का शीर्षक है यमुना: दी एजेंडा फॉर क्लीनिंग द रिवर। रिपोर्ट कहती है: “दिल्ली में पड़ने वाला यमुना का 22 किलोमीटर लंबा हिस्सा यूं तो नदी की कुल लंबाई का बमुश्किल दो प्रतिशत है लेकिन यह पूरी नदी में प्रदूषण के 80 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है। लगभग नौ महीने तक नदी में पानी न के बराबर होता है – नदी में होता है दिल्ली के 22 नालों से निकलने वाला मल और कचरा । वजीराबाद में दिल्ली में प्रवेश करने के बाद यमुना का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।” 

 प्रेस ब्रीफिंग को संबोधित करते हुए सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा: “यमुना की सफाई की समस्या कोई नई नहीं है; पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा में बहुत पैसे खर्च हुए हैं, कई योजनाएं शुरू की गई हैं और उन्हें क्रियान्वित किया गया है। नदी की सफाई का एजेंडा महत्वपूर्ण है क्योंकि ‘मृत यमुना’ न केवल दिल्ली शहर और हमारे लिए शर्म की बात है – बल्कि इससे दिल्ली के साथ-साथ नीचे (डाउनस्ट्रीम) के शहरों को  स्वच्छ जल उपलब्ध कराने का भार भी बढ़ जाता है।” 

नारायण ने आगे कहा: “हमें यह समझना चाहिए कि यमुना की सफाई के लिए केवल पैसे पर्याप्त नहीं हैं । इसके लिए एक ऐसी योजना की आवश्यकता होगी जो हमारा मार्गदर्शन करे और एक अलग तरीके से सोचने और कार्य करने में सक्षम बनाये।

यमुना प्रदूषित क्यों है?

  सीएसई की रिपोर्ट इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कुछ प्रमुख कारणों की पहचान करती है।  

· अपशिष्ट जल उत्पादन से संबंधित डेटा का अभाव: नारायण कहती हैं – “हमें नहीं पता कि दिल्ली में कितना अपशिष्ट जल उत्पन्न होता है” । ऐसा इसलिए क्योंकि नियमित जनगणना न होने के कारण दिल्ली की आबादी या निवासियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले ‘अनौपचारिक’ पानी (भूजल और टैंकरों द्वारा आपूर्ति किया जाने वाला पानी) की मात्रा को लेकर कोई स्पष्ट डेटा नहीं है। अपशिष्ट जल उत्पादन पर विश्वसनीय डेटा के बिना किसी भी हस्तक्षेप की योजना बनाना असंभव है।

शहर का एक बड़ा हिस्सा अपने माल मूत्र की सफाई के लिए डिस्लजिंग टैंकरों पर निर्भर हैं। ये टैंकर इस अपशिष्ट को सीधा नदी या नालों में बहा देते हैं।:

·  मौजूदा योजना में जीपीएस पर विनियमन के माध्यम से टैंकरों से 100% अवरोधन को प्राथमिकता नहीं दी गई है और यह सुनिश्चित नहीं किया गया है कि इस अपशिष्ट को उपचार और पुन: उपयोग के लिए एसटीपी में ले जाया जाए।

· 

· दिल्ली के नालों में उपचारित और अनुपचारित सीवेज का मिश्रण: दिल्ली में 22 ऐसे नाले हैं जिनका काम उपचारित, स्वच्छ पानी को वापस यमुना में ले जाना है  लेकिन अनुपचारित सीवेज भी बिना सीवर वाली कॉलोनियों या मल और अपशिष्ट जल ले जाने वाले टैंकरों के माध्यम से इन्हीं नालों में बहता है ।नतीजतन, अपशिष्ट जल के उपचार का पूरा प्रयास बेकार हो जाता है।

हमने अब तक इसके बारे में क्या किया है?

 केंद्र और दिल्ली सरकार ही नहीं बल्कि अदालत भी इस समस्या का समाधान खोजने पर ध्यान केंद्रित कर रही है जोकि एक अच्छी बात है। आधिकारिक कार्रवाइयों के बारे में जानकारी कुछ इस प्रकार है:

हमने अब तक इस बारे में क्या किया है?

केंद्र और दिल्ली की सरकारों और अदालतों ने इस समस्या का समाधान खोजने पर ध्यान केंद्रित किया है और यह सराहनीय है। आधिकारिक कार्रवाई के बारे में यहाँ जानकारी दी गई है:

· सीवेज उपचार क्षमता और उपयोग में वृद्धि: दिल्ली के 37 एसटीपी उत्पन्न सीवेज के 84 प्रतिशत से अधिक का उपचार कर सकते हैं। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के अनुसार उत्पन्न सीवेज का लगभग 80 प्रतिशत तक उपचार किया जा रहा है। अब मुख्य उद्देश्य मौजूदा एसटीपी की क्षमता में सुधार करने और भविष्य की मांग को पूरा करने के लिए नए संयंत्र बनाना है। दावा है कि जून 2025 तक दिल्ली उत्पन सीवेज का 100 प्रतिशत उपचार करेगी।

· सख्त निर्वहन मानदंड: दिल्ली में एसटीपी के चालू होने के बाद से और अधिक कड़े मानक पेश किए गए हैं: नया मानक 10 मिलीग्राम/लीटर है, जबकि राष्ट्रीय मानक 30 मिलीग्राम/लीटर है।  2024 की डीपीसीसी रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के 37 एसटीपी में से 23 अपशिष्ट जल निकासी मानक को पूरा नहीं करते हैं। इसका मतलब है कि मौजूदा संयंत्रों को अपग्रेड और नवीनीकृत करना होगा जिसमें अलग से खर्च होगा।

· नालियों में प्रवाह को रोकने के लिए इंटरसेप्टर सीवर: दिल्ली सरकार की इंटरसेप्टर सीवर परियोजना का लक्ष्य शहर के नालों से प्रतिदिन 1,000 मिलियन लीटर सीवेज को रोकना और उसे उपचार के लिए भेजना है।

· अनधिकृत कॉलोनियों में सीवेज पाइपलाइन: डीपीसीसी का कहना है कि 1,000 से अधिक सीवरेज लाइनें बिछाई गई हैं और कई जगहों पर काम अभी चालू है।

· औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करना: दिल्ली में 28 “स्वीकृत” औद्योगिक क्षेत्र हैं – इनमें से 17 के अपशिष्टों को सामान्य अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों में उपचारित किया जाता है। लेकिन सीएसई रिपोर्ट कहती है कि उपचार की गुणवत्ता चिंताजनक है। साथ यह भी स्पष्ट नहीं है कि उपचारित अपशिष्ट को कहां छोड़ा जाता है।  

लेकिन इस पूरी  कार्रवाइ के बावजूद यमुना बदस्तूर प्रदूषित होती जा रही है। डीपीसीसी के आंकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली (पल्ला) पहुंचने के कुछ किलोमीटर के भीतर ही नदी मृत हो जाती है। आईएसबीटी पर नदी में बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) शून्य है। इतने सालों और इतनी सारी योजनाओं और निवेश के बाद भी नदी की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हुआ है। सीएसई के अनुसार स्थिति की समीक्षा और योजनाओं के पुनर्निर्धारण की आवश्यकता है।

हम और क्या कर सकते हैं?

सीएसई रिपोर्ट निम्नलिखित पांच-सूत्री कार्य एजेंडा की सिफारिश करती है:

· प्राथमिकता 1:सुनिश्चित करें कि बिना सीवर वाले क्षेत्रों से उत्पन्न मल कीचड़ / फीकल स्लज को एकत्र किया जाए और उसका उपचार किया जाए: ऐसे क्षेत्र जो सीवर लाइनों से नहीं जुड़े हैं उन्हें डिस्लजिंग/अपसाधन टैंकरों द्वारा साफ किया जाता है और यह स्वच्छ यमुना के एजेंडे का हिस्सा होना चाहिए। राज्य को महंगी सीवेज पाइपलाइनों के निर्माण और नवीनीकरण में निवेश करने की आवश्यकता नहीं है । टैंकरों के माध्यम से मल कीचड़ प्रबंधन की रणनीति तेज और  लागत प्रभावी भी है।  मुख्य कदम यह सुनिश्चित करना है कि सभी डिस्लजिंग टैंकर पंजीकृत हों और उनकी आवाजाही पर नजर रखी जा सके ताकि सारे अपशिष्ट को उपचार संयंत्र तक ले जाया जा सके।

·           प्राथमिकता 2: यह सुनिश्चित करें कि उपचारित पानी वैसी नालियों में न बहाया जाए जहां वह अनुपचारित अपशिष्ट जल के साथ मिल जाता हो। चूंकि एसटीपी नदी के पास स्थित नहीं हैं इसलिएइन संयंत्रों द्वारा उपचारित अपशिष्ट जल को उन्हीं नालियों में बहा दिया जाता है जो पहले से ही अनुपचारित अपशिष्ट जल से प्रदूषित हैं। यह ‘मिश्रण’ प्रदूषण नियंत्रण को अप्रभावी करता है और उपचार पर खर्च किया गया पैसा बेकार चला जाता है। प्रत्येक एसटीपी को न केवल जल के उपचार बल्कि उपचारित अपशिष्ट को बहाने तक कि  योजना बनानी चाहिए।

· प्राथमिकता 3: उपचारित अपशिष्ट जल का पूरा उपयोग सुनिश्चित करें ताकि वह प्रदूषण  भार में वृद्धि न करे: वर्तमान में केवल 331-473 एमएलडी का ही पुनः उपयोग किया जाता है। यह उपचारित अपशिष्ट जल का 10-14 प्रतिशत है।  प्रत्येक एसटीपी को न केवल उपचार के लिए बल्कि यह भी योजना बनाने की आवश्यकता है कि वह अपने उपचारित अपशिष्ट जल को किस प्रकार से बहा रहा है। अन्यथा हमारी सारी मेहनत बेकार जाएगी।

· प्राथमिकता 4: उपचारित जल के पुनः उपयोग के आधार पर एसटीपी के उन्नयन की योजना: दिल्ली के अपशिष्ट जल मानक देश के बाकी हिस्सों की तुलना में अधिक कड़े हैं  लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें यमुना जैसी नदी में निर्वहन के लिए बनाया किया गया है जिसके जल की असिमिलेटिव अथवा घोलने की क्षमता शून्य है। मानकों को पूरा करने के लिए मौजूदा एसटीपी को नवीनीकृत करने के लिए भारी निवेश की आवश्यकता है। मानकों को जल के पुनः उपयोग को ध्यान में रखकर बनाया जाना चाहिए।

· प्राथमिकता 5: दो नालों – नजफगढ़ और शाहदरा – के लिए योजना को फिर से तैयार करना।  ये दो नाले नदी में प्रदूषण के भार का 84 प्रतिशत योगदान करते हैं: इंटरसेप्टर ड्रेन योजना इन दो नालों के लिए काम नहीं कर रही है। लगातार  निवेश के बावजूद नदी में प्रदूषण बढ़ रहा है। दिल्ली सरकार को उन कुछ नालों पर फिर से काम करने और ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जो नदी के प्रदूषण के लिए मुख्यतः जिम्मेदार हैं।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments