डॉ सरनजीत सिंह
फिटनेस एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट
आप सभी मेरी इस बात से ज़रूर सहमत होंगे कि किसी भी छोटी-बड़ी समस्या के उचित समाधान के लिए उस विषय पर सटीक जानकारी होना बहुत ज़रूरी होता है. अब अगर समस्या आपके स्वस्थ्य से जुड़ी हो तो ये जानकारी और भी ज़रूरी हो जाती है. आज मोटापा (ओबेसिटी) पूरे विश्व में स्वास्थ से जुड़ी एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है. तमाम मेडिकल रिसर्चेस होने के बावज़ूद आज तक हम इसे किसी दवा से नियंत्रित करने में नाकाम रहे हैं. इस विषय पर सही जानकारी न होने की वज़ह से पिछले कुछ सालों में मोटापे से जुड़ी बीमारियों जैसे हाई ब्लड प्रेशर, टाइप -2 डायबिटीज, स्ट्रोक, कुछ ख़ास तरह के कैंसर, आर्थराइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस, अस्थमा, लिवर और किडनी डिसऑर्डर्स, गॉलस्टोन्स, स्लीप एपनिया, इनफर्टिलिटी, माइग्रेन, डिप्रेशन….के मरीज़ लगातार बढ़ते जा रहे हैं. एक और दुखद बात ये है कि अब बच्चों में भी मोटापे के लक्षण बहुत कम उम्र में दिखने लगे हैं और अगर अभी भी इस पर विशेष ध्यान न दिया गया तो निकट भविष्य में स्थिति बेहद गंभीर हो सकती है।
सही जानकारी न होने के कारण इस समस्या से तुरंत छुटकारा दिलाने के लिए कई तरह के अवैज्ञानिक और अनुचित धंधे भी शुरू हो गए हैं. कोई इसके लिए योग बेच रहा है, कोई जिम या हेल्थ क्लब की सर्विसेज बेच रहा है, कोई ऑनलाइन ट्रेनिंग और डाइट प्लान बेचकर आपसे मोटी रकम वसूल रहा है, कोई वजन कम करने के लिए फ़ूड सप्लीमेंट्स की दुकान लगाए है, कोई आयुर्वेदिक दवाइयों, जड़ी-बूटियों और चमत्कारी तेलों से आपका वजन कम करने का दावा कर रहा है, ब्यूटीपार्लर्स में भी इसकी महंगी-महंगी थेरपीज़ और लोशन्स का व्यापार चल रहा है, कोई एलोपैथिक दवाएं बेच रहा है तो कोई सर्जरी से आपको पतला करने की गारंटी ले रहा है. इन दावों के प्रचार-प्रसार के लिए अखबारों, वेबसाइट्स और तमाम टी वी और यू ट्यूब चैनल्स का प्रयोग हो रहा है जिसके चलते मोटापा अब अरबों-खरबों का व्यापार बन चुका है. पहले और बाद की फोटो दिखाकर लोगों को अपने जाल में फंसाया जाता है और सही जानकारी न होने की वजह से इससे आपके न केवल पैसों का नुक्सान होता है बल्कि इससे आपके स्वस्थ्य के साथ भी खिलवाड़ हो रहा है।
अपने इस लेख में मैं आपको मोटापे के साथ-साथ इसके वैज्ञानिक और उचित उपचारों की भी जानकारी दूंगा. इसको जानने के लिए मोटापे से जुड़ी पहले से चली आ रही कुछ धारणाओं की जानकारी होना बहुत ज़रूरी है. एक धारणा के अनुसार अगर आप पुरुष हैं और आपकी कमर का आकार 40 इंचेस से अधिक है और यदि महिला हैं और आपकी कमर का आकार 35 इंचेस से अधिक है तो आप मोटे की श्रेणी में आते हैं. एक और धारणा के अनुसार यदि आपका वजन आपकी लम्बाई को सेन्टीमीटर में बदलकर उसमे से 100 की संख्या घटाने पर जो संख्या आती है उससे अधिक है तो आप मोटे की श्रेणी में आते हैं. यानि कि यदि आपकी लम्बाई 170 सेन्टीमीटर है और अगर आपका वजन 70 किलो से अधिक है तो आप मोटापे के मरीज हैं. इन दोनों धारणाओं में उम्र और फैट के वितरण सम्बन्धी जानकारी न होने के कारण इन्हें प्रयोग में नहीं लाया जाना चाहिए।
इनमें से सबसे प्रचिलित धारणा जिसे पिछले करीब 150 सालों से दुनिया भर के तमाम डॉक्टर्स, न्यूट्रिशनिस्ट , हेल्थ और फिटनेस एक्सपर्ट्स मानते चले आ रहे हैं और जो वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (डब्लू एच ओ) द्वारा भी स्वीकृत है, उसे ‘बॉडी मास इंडेक्स’ यानि बी.एम.आई. के नाम से जाना जाता है. पिछले कई सालों से हम बी.एम.आई के बारे में टी वी शोज, अख़बारों, हेल्थ और फिटनेस मैगजीन्स में और इंटरनेट पर देखते और पढ़ते आ रहे हैं. इसके अलावा आजकल हेल्थ और फिटनेस से जुड़े जितने भी मोबाइल ऍप्लिकेशन्स का प्रयोग हो रहा है उनमें भी बी.एम.आई. को मोटापे का मापदंड बनाकर अरबों रुपये कमाए जा रहे हैं. बी.एम.आई. की धारणा मोटापे को नापने को नापने में कितनी कारगर है इसे जानने के लिए हमें इसकी तह में जाना होगा. दरअसल बी.एम.आई. की संकल्पना उन्नीसवीं सदी में बेल्जियम के एक वैज्ञानिक अडोल्फ क्वेटेलेट ने की थी, इसीलिए इसे ‘क्वेटेलेट इंडेक्स’ के नाम से भी जाना जाता है. अडोल्फ क्वेटेलेट एक खगोलशास्त्री, गणितज्ञ, सांख्यिकीविद और एक समाजशास्त्री थे. अपने एक अनुसंधान में उन्होंने पाया कि जैसे-जैसे हमारे शरीर की लम्बाई में बढ़ोत्तरी होती है वैसे-वैसे हमारा वजन भी एक ख़ास अनुपात में बढ़ता है और यदि वजन का बढ़ना शरीर की लम्बाई की तुलना में इस अनुपात से अधिक होता है तो आप अधिक वजन या मोटे की श्रेणी में आ जाते हैं और आप में मोटापे से जुड़ी बीमारियों और अन्य समस्याओं के होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. अब यदि एक तरह से देखा जाये तो ये संकल्पना पूरी तरह से त्रुटिरहित जान पड़ती है जबकि ऐसा नहीं है।
इसे ठीक से समझने के लिए हमें मोटापे की सही परिभाषा को जानना होगा. इस परिभाषा के अनुसार हमारे शरीर में जमा फैट (वसा या चर्बी) के एक ख़ास मात्रा से अधिक होने को ही ‘मोटापा’ कहते हैं. फैट हमारे शरीर में पाए जाने वाले कई यौगिकों की तरह एक प्रकार का यौगिक है जो शरीर में मौजूद फैट सेल्स में जमा रहता है. हम सभी में शरीर के अलग-अलग अंगों में इन फैट सेल्स की अलग-अलग संख्या होती है. पुरुषों में ये ज्यादातर उनकी कमर के इर्द-गिर्द और महिलाओं में कमर से निचले भाग में जमा होता है. पुरुषों में इस तरह फैट जमा होने को ‘एंड्राइड टाइप ओबेसिटी’ और महिलाओं में ‘गाईनोएड टाइप ओबेसिटी’ कहते हैं. फैट हमारे शरीर में बहुत महत्वपूर्ण कार्य करता है. ये हमारे लिए कार्बोहड्रेट के बाद दूसरे ऊर्जा स्रोत का काम करता है, ये फैट में घुलनशील विटामिन्स (विटामिन ए, डी, इ और के) की मेटाबोलिज्म में सहायता करता है, ये कुछ तरह के होर्मोनेस बनाने में मदद करता है और शरीर के महत्वपूर्ण अंगों की रक्षा करता है. फैट द्वारा किये जाने वाले इन महत्वपूर्ण कार्यों के लिए हमें एक निश्चित मात्रा में इसे भोजन से प्राप्त करना होता है. हमारे शरीर में एक ख़ास मात्रा से अधिक फैट जमा होने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है जो हमारी धमनियों में रक्त प्रवाह में अवरोध पैदा करता है. इससे शरीर के सभी अंगों तक ऑक्सीजन और दूसरे ज़रूरी तत्त्व नहीं पहुँच पाते और शरीर में विषैले तत्त्वों की मात्रा बढ़ जाने के कारण वो सुचारु रूप से काम करना बंद कर देते हैं।
इस परिभाषा से समझा जाये तो मोटापे नापने का सही मापदंड हमारे शरीर जमा फैट को नापना है. यानि कि यदि आपके शरीर में फैट कि मात्रा आपकी उम्र और लिंग के आधार पर निर्धारित मात्रा से अधिक है सिर्फ़ तभी आप मोटापे की श्रेणी में आते हैं अन्यथा नहीं. अतः इस परिभाषा के अनुसार मोटापे का सम्बन्ध न तो आपकी लम्बाई या वजन से है और न ही आपके आकार से. इस परिभाषा के अनुसार यदि पतले दिखने वाले व्यक्ति में मोटे दिखने वाले व्यक्ति की तुलना में फैट की मात्रा एक खास मात्रा से अधिक है तो पतले दिखने वाले व्यक्ति में मोटापे से जुड़ी बीमारियों की संभावनाएं अधिक होंगी. हालाँकि ऐसे मरीजों की संख्या कम होती है, फिर भी ये देखा गया है कि कुछ पतले दिखने वाले मरीजों की हार्ट अटैक से होने वाली मौत का मुख्य कारण उनके शरीर के अंदरूनी अंगों में फैट का अत्यधिक मात्रा में जमा होना होता है. ये फैट ऊपर से दिखाई न देने के कारण अक्सर ऐसे मरीज़ों को इसकी गंभीरता का अंदाज़ा नहीं हो पता और अक्सर पहले ही हार्ट अटैक में उनकी मौत हो जाती है.
क्वेटेलेट साहेब ने सिर्फ शरीर की लम्बाई और वजन के आधार पर मोटापे की परिभाषा दी थी, उनकी परिभाषा में शरीर में जमा फैट की मात्रा नापने का कोई ज़िक्र ही नहीं था. उनकी इस संकल्पना के कई सालों के बाद वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चला कि अडोल्फ क्वेटेलेट की संकल्पना पूर्णरूप से सही नहीं थी. ये सही है कि करीब 95% लोगों के वजन बढ़ने का मुख्य कारण उनके शरीर में फैट का बढ़ना ही होता है लेकिन जब ऐसे लोग अपना वजन कम करने की कोशिश करते हैं तो ज़्यादातर लोगों की प्रक्रिया में वैज्ञानिक आधार न होने पर उनके वजन का बहुत बड़ा हिस्सा शरीर से पानी, इंटेस्टिनल बल्क (मल) और उनकी मांस-पेशिओं की क्षति के कारण होता है. इस प्रक्रिया में शरीर में जमा फैट पर ज़्यादा असर न होने के कारण उनके स्वाथ्य में सुधार होने की बजाये विपरीत असर पड़ता है. उन्हें मोटापे की सही जानकारी न होने के कारण इस नुक्सान का पता भी नहीं चलता और अंततः वो मोटापे से जुड़ी किसी गंभीर समस्या के शिकार हो जाते हैं. सही जानकारी का नहीं होने की वज़ह से गलत तरह से वज़न कम कराने के तमाम अप्राकृतिक और खतरनाक तरीकों का कारोबार पिछले कई सालों से चलता चला आ रहा है जो अब अरबों-खरबों का खेल हो चुका है. इसका ज़िक्र मैंने अपने पिछले लेख, वॉल्यूम – 8, फिटनेस इंडस्ट्री और ‘फिट इंडिया’: कितना सच कितना झूठ (क्लिक करें) में किया था।
इन तथ्यों के आधार पर मोटापे का सीधा सम्बन्ध शरीर में जमा फैट से है. यानि कि शरीर के वजन से ज़्यादा ज़रूरी हमारा बॉडी कम्पोजीशन (शरीर का संयोजन) जानना है. शरीर में फैट की मात्रा जानने के लिए हमें बॉडी कम्पोजीशन एनालिसिस या बी.सी.ए. कराना होता है. इससे हमारे शरीर में जमा फैट के साथ-साथ हमारे लीन बॉडी मास की भी जानकारी मिलती है. शरीर से फैट की मात्रा को हटा कर जो वजन बचता है उसी को लीन बॉडी मास कहते हैं जिसमें शरीर के आंतरिक अंगों के साथ हमारी मांस-पेशियाँ और हड्डियों का वजन होता है. ख़राब बॉडी कम्पोजीशन यानि कि शरीर में फैट की मात्रा बढ़ने के कुछ जैविक कारण आनुवांशिक (जेनेटिक), हॉर्मोन्स का असंतुलन, कुछ बीमारीओं और दवाओं के दुष्प्रभाव होते हैं. वर्तमान परिदृश्य में देखा जाये तो इसके मुख्य कारण निष्क्रियता, असंतुलित आहार, जंक फूड, शराब का अत्यधिक सेवन, तनाव और डिप्रेशन होते हैं. उम्र और लिंग के आधार पर शरीर में फैट की मात्रा के कुछ निर्धारित मापदंड बनाये गए हैं. 20 से 40 साल के पुरुषों में फैट की मात्रा 20% से अधिक होने पर और इस उम्र की महिलाओं में ये 33% से अधिक होने पर आप मोटे की श्रेणी में आते हैं. 40 से 59 साल के पुरुषों में फैट की मात्रा 22% होने पर और इस उम्र की महिलाओं में ये 34% से अधिक होने पर आप मोटे की श्रेणी में आते हैं. इसी तरह 60 से 79 साल के पुरुषों में फैट की मात्रा 25% और इस उम्र की महिलाओं में ये 36% से अधिक होने पर आप मोटे की श्रेणी में आते हैं.
शरीर में फैट का प्रतिशत अलग-अलग तरह के कई उपकरणों और तकनीकों से जाना जा सकता है. इनमें मुख्य रूप से बॉडी फैट कैलिपर, बायो इलेक्ट्रिकल इम्पिडेन्स, बॉड पॉड, अल्ट्रासाउंड, एम आर आई, अंडर वाटर वेइिंग और डुअल एनर्जी एक्स रे अबसोर्पटिओमेटरी (डेक्सा) का प्रयोग होता है. इन सभी में सबसे उत्तम उपकरण डेक्सा होता है. इससे शरीर में फैट की मात्रा की बहुत सटीक जानकारी मिलती है. ये वही उपकरण है जिससे ऑस्टियोपोरोसिस नामक बीमारी होने पर डॉक्टर्स हड्डियों में मिनरल्स की मात्रा जांचने के लिए बोन मिनरल डेंसिटी या बी.एम.डी. टेस्ट कराने की सलाह देते हैं. शरीर में फैट की अधिक मात्रा या मोटापे का कारण चाहे कुछ भी हो इसे कम करने का एक मात्र प्राकृतिक और सुरक्षित उपाय वैज्ञानिक तरीके से एक्सरसाइज करना, संतुलित आहार लेना, नींद का पूरा होना और एक सकारात्मक सोच होना हैं. अक्सर देखा गया है कि वजन कम करने के लिए लोग भोजन की मात्रा को या तो बहुत कम कर देते हैं या फिर उपवास करने लगते हैं या फिर कुछ ज़रुरत से ज़्यादा एक्सरसाइज करना शुरू कर देते हैं. इन प्रक्रियाओं से शुरू के कुछ दिनों तक पानी की क्षति के कारण वजन तो ज़रूर कम हो जाता है लेकिन ये फैट कम होने की वजह से नहीं होता. इससे शरीर को भोजन की उचित मात्रा और पोषक तत्वों की पुर्ति न होने के कारण उनमे कमज़ोरी, थकान, सर दर्द, मांस-पेशियों में तनाव, जोड़ों में दर्द, बार-बार इंजरी होना, भूख न लगना नींद न आना और चिचिड़ापन जैसी समस्याएं होने लगती हैं. इस तरह की प्रक्रियाओं को लम्बे अर्से तक जारी रखने पर ये समस्याएं गंभीर रूप धारण कर लेती हैं. इनसे हार्ट अटैक, स्ट्रोक, पैरालिसिस, किडनी डिसऑर्डर, गॉलस्टोन्स, आर्थराइटिस, कमर का दर्द, गर्दन का दर्द और डिप्रेशन जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं. इन प्रक्रियाओं के दौरान अनजाने में हम एक और गलती कर बैठते हैं. जल्दी वजन कम करने के चक्कर में हम हमारे शरीर के बहुत महत्वपूर्ण ऊतक, हमारी मांस-पेशियों की क्षति और उन्हें कमज़ोर कर देते हैं. ये वही ऊतक हैं जो हमारे शरीर में जमा फैट को ऊर्जा में बदल कर हमें मोटापे से जुड़ी समस्याओं से बचाने में सहायक होते हैं।
डुअल एनर्जी एक्स रे अबसोर्पटिओमेटरी (डेक्सा)
वजन कम करने की किसी भी प्रक्रिया के दौरान मांस-पेशियों की क्षति होने पर हमारे शरीर में पहले से ज़्यादा फैट जमा होने लगता है और हम इससे जुड़ी गंभीर समस्याओं का शिकार बन जाते हैं. एक्सरसाइज से जुड़ी एक और भ्रान्ति है, अक्सर जिम या पर्सनल ट्रेनर पेट और कमर के इर्द-गिर्द जमा फैट को कम कराने के लिए पेट की मांस-पेशियों (अब्डॉमिनल्स) की कई एक्सरसाइजेज जैसे सिट अप्स, क्रंचेस, लेग रेसेस और कई तरह के साइड बेंड्स कराते हैं जबकि क्सरसाइज फिजियोलॉजी के अनुसार फैट को शरीर के किसी विशेष भाग (स्पॉट रिडक्शन) से कम नहीं किया जा सकता. एक्सरसाइज करने वालों में कमर में होने वाले दर्द का बहुत बड़ा कारण एब्डोमिनल एक्सरसाइजेज का ज़रुरत से ज़्यादा या उन्हें गलत तरीके से करना होता है. वजन कम करने के लिए कोई भी तरीका अपनाने से शुरआती दिनों में हमारे वजन में कमी, शरीर से पानी की और इंटेस्टिनल बल्क (मल) की क्षति की वजह से होती है. शुरुआत के 6 से 8 हफ्ते में 5 से 6 किलो तक का वजन बड़ी आसानी से कम हो जाता है और इस स्थिति के बाद वैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रयोग किये बिना वजन का कम होना मुश्किल होने लगता है. वैज्ञानिक तरीके से हमारे वजन से ‘फैट’ कम करने के लिए सबसे पहले हमें अपना बॉडी कम्पोजीशन टेस्ट कराना होता है. इससे हमारे शरीर में फैट की सही मात्रा का पता चलता है जो फैट कम करने के लिए एक वास्तविक लक्ष्य बनाने में सहायता करता है. इसके बाद हमें कुछ ख़ास तरह के हेल्थ और फिटनेस टेस्ट्स कराने होते हैं जिनका ज़िक्र मैंने अपने पिछले लेख में किया था।
ये करीब 40 से 50 तरह के अलग-अलग टेस्ट्स होते हैं. ये टेस्ट्स किसी पैथोलॉजी लैब में नहीं होते. इनकी सही जानकारी सिर्फ एक योग्य ट्रेनर को ही होती है. इन टेस्ट्स से एक्सरसाइज करने वाले की खूबियों और कमज़ोरियों का पता चलता है. इस प्रक्रिया से एक सटीक और व्यक्तिगत ट्रेनिंग और डाइट प्लान बनाने में मदद मिलती है. इन टेस्ट्स से पता चलता है कि आपको एक हफ्ते में कौन सी एक्सरसाइज यानि कि वज़न उठाने वाली (स्ट्रेंथ ट्रेनिंग), एंडुरेंस बढ़ाने वाली (कार्डियोवैस्कुलर ट्रेनिंग) और फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ाने वाली (योग या स्ट्रेचिंग ट्रेनिंग) कितने दिन करनी चाहिए, एक्सरसाइजेज का सही चयन कैसे होना चाहिए, उनकी क्या इंटेंसिटी होनी चाहिए और उन्हें कितनी देर तक करना चाहिए।
इन टेस्ट्स से ये भी पता चलता है कि आपको दिन भर में अपनी डाइट में कितनी कैलोरीज लेनी चाहिए, उसमें कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन्स, फैट और पानी की कितनी मात्रा होनी चाहिए और ज़रुरत पड़ने पर आपको कौन-कौन से विटामिन्स और मिनरल्स का प्रयोग करना चाहिए. इस तरह से बने फिटनेस और डाइट प्लान का पालन करने के कुछ दिनों के बाद जब आप एक लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं तो इन्ही टेस्ट्स को दोबारा कर आपके फिटनेस और डाइट प्लान में ज़रूरी बदलाव किये जाते हैं. इस प्रक्रिया से न केवल शरीर से फैट कम करने में मदद मिलती है बल्कि इससे आपकी फिटनेस में भी बिना किसी इंजरी के और किसी भी तरह की खतरनाक दवाओं का सेवन किये निरंतर सुधार होता रहता है. इस वैज्ञानिक प्रक्रिया से शरीर के सभी अंगों पर बहुत लाभदायक प्रभाव पड़ता है. इससे मांस-पेशियों की क्षति नहीं होती और उनके पहले से अधिक मजबूत होने से दुबारा फैट जमा होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं. इसके साथ-साथ इस प्रक्रिया से आपके आकार में भी सकारात्मक परिवर्तन होते हैं जिससे आप अधिक आकर्षक दिखने लगते हैं।
दुर्भाग्यवश इस तरह की प्रक्रिया बहुत ही कम जिम्स या हेल्थ सेंटर्स में देखने को मिलती है जिसकी वजह से जिम की मोटी फीस और अनावश्यक फ़ूड सप्लीमेंट्स पर पैसा खर्च करने के बावज़ूद आपको नुक्सान उठाना पड़ता है.
अपने पिछले लेख की तरह अंत में मैं बस यही कहूंगा कि शरीर में फैट की मात्रा बढ़ने में सालों लगते हैं इसे कम करने के लिए आपको बिलकुल जल्द बाज़ी नहीं करनी चाहिए. जल्द से जल्द अपने वजन कम करने और शरीर के अकार में बदलाव के पीछे न भागें. छै हफ़्तों में या तीन महीनों में होने वाले चमत्कारिक बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन के झांसे में न फंसें. फिटनेस के सही मायने समझें. अगर आप वैज्ञानिक तरीके से फिटनेस प्रणाली का पालन करते हैं तो शरीर के आकार में सकारात्मक बदलाव आना निश्चित है. ये एक धीमी प्रक्रिया है लेकिन इसे पाना असंभव भी नहीं है. इसे पाने के लिए अपने गोल्स को छोटे-छोटे चरणों में पूरा करने की कोशिश करें. गलतियों से सीखें और उन्हें दोबारा न करें. एक महीने में दो किलो से ज्यादा वज़न (फैट) कम होना और एक किलो से ज्यादा लीन मास (मांस-पेशियाँ) का बढ़ना आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है। नियमित रूप से एक्सरसाइज करें, संतुलित आहार लें, एक दिन में कम से कम दो से ढाई लीटर तक पानी पियें, सिगरेट, तम्बाकू, शराब से दूर रहें, रात की 7 से 8 घंटों की पूरी नींद लें और एक सकारात्मक सोच रखें. प्राकृतिक और सुरक्षित रहते हुए अपने फिटनेस गोल को प्राप्त करने का इससे बेहतर कोई विकल्प नहीं है. याद रहे हम यहाँ ‘फैट’ कम करने की बात कर रहे हैं यानि कि अगर हमारा वजन कम होता है तो वो ‘फैट’ के कम होने से होना चाहिए न की शरीर के दूसरे अवयवों से, जिनके बारे में हम पहले बात कर चुके हैं. इस प्रक्रिया का सही तरीके से पालन करने पर आपको न तो किसी फैट बर्नर सप्लीमेंट की ज़रुरत पड़ेगी और न ही किसी महंगी थेरेपी या सर्जरी की ज़रुरत पड़ेगी. इससे आप अनुचित तरह से वजन कम करने वाले तरीकों और दवाओं से होने वाले दुष्प्रभावों से भी दूर रहेंगे।