आनन्द अग्निहोत्री
अक्सर कोई विवाद होने पर एक नजीर दी जाती है, वह यह कि पंचों की बात सिरमाथे लेकिन पनाला वहीं गिरेगा यानि पंचों की बात मानने से इनकार नहीं लेकिन हम वही करेंगे जो हमारा मन कहेगा। आप मानें या न मानें, लेकिन लगता है कि सोनिया गांधी पर यह उक्ति बिल्कुल फिट बैठती है। कांग्रेस में अध्यक्ष पद को लेकर लम्बे समय से घमासान चल रहा है। लेटर वार से लेकर और न जाने क्या-क्या हो चुका है। इसे लेकर कई दिग्गज या तो खामोश होकर बैठ गये हैं या फिर उन्होंने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया है, भले ही उन्होंने किसी पार्टी को ज्वाइन न किया हो। देश के मतदाताओं के बीच राहुल गांधी की क्या छवि बन गयी है, इससे सोनिया गांधी भी अपरिचित नहीं लेकिन पुत्रमोह के वशीभूत होकर उनकी जिद है कि चाहे कांग्रेस का सवा सत्यानाश हो जाये लेकिन अध्यक्ष राहुल गांधी ही रहेंगे। जयपुर में रविवार को हुई कांग्रेस रैली इसका एक और सुबूत है। पूरी रैली में सोनिया ने एक शब्द भी नहीं बोला। राहुल बोलते रहे और सोनिया ताली बजाती रहीं। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। जनता यह सोचकर आयी थी कि उन्हें सोनिया गांधी से भी कुछ सुनने को मिलेगा लेकिन मिलीं मात्र तालियां। फिलहाल मौजूदा समय कांग्रेस का कोई अध्यक्ष नहीं है, सोनिया गांधी ही कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में यह पदभार संभाल रही हैं।
कांग्रेस में अंदरखाने राजीव गांधी की बड़ी पुत्री प्रियंका गांधी वाड्रा को भी अध्यक्ष बनाने की मांग उठी थी तब उन्हें रायबरेली और अमेठी तक सीमित कर दिया गया। अब उन्हें स्वतंत्र रूप से उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। इसके क्या परिणाम निकलते हैं यह तो चुनाव के नतीजे ही बतायेंगे। फिलहाल इतना तो है कि प्रियंका ने बेदम कांग्रेस में दम फूंकने का सशक्त प्रयास किया है। इसके विपरीत राहुल गांधी की क्या छवि है यह इसी बात से समझा जा सकता है कि जिन सूबों में कांग्रेस की सरकार है वह वहां के क्षेत्रीय छत्रपों के दम पर है। इसमें राहुल गांधी का कोई योगदान नजर नहीं आता।
जयपुर में रविवार को कांग्रेस पार्टी ने महंगाई के बहाने केंद्र सरकार की घेराबंदी की। हालांकि इस ‘महंगाई हटाओ रैली’ से पार्टी को कितना फायदा होगा यह तो आने वाला समय बताएगा, फिलहाल कांग्रेस ने यह संदेश जरूर दे दिया है कि एक बार फिर पार्टी की बागडोर राहुल गांधी के हाथ में सौंपी जा रही है। मंच पर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी मौजूद जरूर रहीं, लेकिन भारी संख्या में उमड़े पार्टी समर्थकों को उनके मुंह से एक शब्द भी सुनने को नहीं मिला। सबसे लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी की बागडोर संभालने वालीं सोनिया की इस चुप्पी ने ही वह सब कह दिया, जो बताने के लिए संभवत: इस रैली का आयोजन किया गया था।
2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार की वजह से राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था। तब से ही सोनिया अंतिरम अध्यक्ष के तौर पर पार्टी की बागडोर संभाल रही हैं। संगठन चुनाव को लेकर पार्टी में उठती आवाज के बावजूद कांग्रेस ने नए अध्यक्ष के चुनाव को सितंबर 2022 तक टाल दिया है। पार्टी में बागी रुख अपना कुछ नेता दबी जुबान में गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को पार्टी की कमान संभालने की वकालत करते हैं। लेकिन पार्टी का एक धड़ा मानता है कि राहुल गांधी ही पार्टी का भविष्य हैं।
पार्टी के सूत्र कहते हैं कि राहुल भले ही अभी अध्यक्ष न बने हों, लेकिन पार्टी से जुड़ा हर बड़ा फैसला वही ले रहे हैं। वह पिछले दिनों पंजाब में हुए घटनाक्रम की ओर इशारा करते हैं। सोनिया के विश्वासपात्र रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह को जिस तरह साइडलाइन करके राहुल और प्रियंका की पसंद नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस की कमान दी गई थी, उससे साफ हो गया था कि अब राहुल ही कप्तान हैं। जयपुर की रैली में भी इस बात को और पुष्ट किया गया। यहां सोनिया गांधी टीम की कोच और मार्गदर्शक की भूमिका में नजर आईं। राहुल गांधी भी पूरे रंग में दिखे। उन्होंने गैस सिलेंडर से लेकर पेट्रोल-डीजल तक की महंगाई पर केंद्र सरकार को घेरा तो हिंदू और हिंदुत्ववादियों में फर्क बताने के लिए कई दलीलें दीं। इस दौरान सोनिया लगातार तालियां बजाती रहीं। राजनीतिक जानकार इस रैली को राहुल की अघोषित ताजपोशी के रूप में देख रहे हैं।