मनीष शुक्ल
आजादी के अमृत महोत्सव अर्थात देश की आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर इस बार दो विशेष बातें हुईं! हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में लाल किले की प्राचीर से पहली बड़ी बात कही। उन्होने देश को संबोधित करते हुए महिला शक्ति की बात की, उनके अधिकार की बात की… दूसरी खास बात यह हुई कि पीएम ने महिला समानता का दायित्व पुरुषों के कंधे पर डाल दिया!
सौभाग्य से आज पूरी दुनियाँ महिला समानता दिवस मनाया जा रहा है… लेकिन सवाल वही है जो पीएम ने लाल किले की प्राचीर से उठाया… क्या हम अपने दायित्व का पालन नहीं कर रहे हैं! क्या हमने यानि पुरुष प्रधान समाज ने नारी को समानता का अधिकार दिया है ! पूरे देश से एक ही आवाज आएगी… कहीं तो चूक हुई है वरना आजादी के अमृत काल में महिला सम्मान और समानता के विषय पर चर्चा न कर रहे हो।
पुरुष हो या स्त्री दोनों ने साथ मिलकर महिला अधिकारों को रौंदने का काम किया है…. घटनाएँ गवाह हैं कि इस देश देश में नारी की सबसे बड़ी दुश्मन नारी ही है… लालच, ईर्ष्या, नफरत और सबसे बढ़कर धर्मांधता ने नारी को नारी का दुश्मन बनाया है… कन्या भ्रूण हत्या, ऑनर किलिंग बानगी भर हैं। देश अंधकार की जंजीरों में आज भी जकड़ा हुआ है। वरना डिजिटल युग में दहेज उत्पीड़न की समस्या को उठाने वाली रक्षा बंधन जैसी फिल्म न बनती लेकिन दहेज आज भी हमारे देश में भयावह बीमारी है, इसीलिए रक्षाबंधन और टॉइलेट… एक प्रेम कथा जैसी फिल्में बन रही हैं… अगर हम सारे आंकड़ों को भी दरकिनार कर दें लेकिन अपने दिल पर हाथ रखेंगे तो बीमारी का पता चल जाएगा!
यही बीमारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चिंता का कारण है… वो इसी बीमारी के इलाज का वायदा समाज से चाहते हैं! मोदी जी सिर्फ प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि देश के नेता है… खास बात ये है कि इन वर्षों में उन्होने न सिर्फ राजनीतिक फैसले लिए बल्कि समाज को जगाने का भी काम किया है… सबका साथ, सबका विकास अब जुमला नहीं है। ये देश की जनता को जगाने का नारा है… इस नारे को लेकर एक मुस्लिम परिवार से हाल ही में बात हुई। मेरा दो टूक सवाल था… क्या मोदी जी ने तीन तलाक को खत्म करके इस्लाम के रीति रिवाजों का अपमान किया है! वो व्यक्ति ज्यादा पढे लिखे नहीं हैं लेकिन उन्होने कहा कि “आप क्या चाहते हैं, क्या मेरी बेटी आंखे बंद करके तलाक, तलाक सुने और मातम मनाकर एक विधवा की तरह ज़िंदगी बिताना शुरू कर दे। मैं तो हर बेटी के हक के लिए लड़ूँगा… फिर वो मेरी हो फिर किसी और की। इसीलिए डंके की चोट पर कहता हूँ कि तीन तलाक एक शानदार फैसला है।
वो साहब यही नहीं रुके। उन्होने कहा कि आपके यहाँ जैसे सती प्रथा होती थी जिसमें औरत को जिंदा जला दिया जाता था वैसी ही महिला उत्पीड़न की अनेक बुराइयाँ हैं। शुक्र है आपके यहाँ राजा राम मोहन राय हुए। उन्होने एक बुराई का खात्मा किया। इसी प्रकार 2014 में मोदी जी हमारे लिए फरिश्ता बनकर आए और उन्होने तीन तलाक की बुराई का खात्मा किया।
अगर हम स्वधिनता दिवस पर दिए गए पीएम के भाषण पर गौर करें वो उन्होने लोगों से “मानसिकता में बदलाव” की अपील की। इसका मतलब साफ है भले ही हम आधुनिक होने की बड़ी- बड़ी बातें करें लेकिन समाज की कथनी और करनी में बड़ा अंतर है। आज भी वर्कप्लेस हो या घर पुरुषवादी मानसिकता नारी पर हावी होने की है। पीएम मोदी ने इसी मानसिकता पर चोट करते हुए कहा कि ‘किसी न किसी वजह से हमारे अंदर यह सोच आ गई है कि हम अपनी वाणी से, अपने व्यवहार से, अपने कुछ शब्दों से महिलाओं का अनादर करते हैं। उन्होंने लोगों से रोजमर्रा की जिंदगी में महिलाओं को अपमानित करने वाली हर चीज से छुटकारा पाने का संकल्प लेने का आग्रह किया। भले ही ये बात बड़ी ही साधारण लगे लेकिन उनके इस आह्वान के गहरे निहितार्थ हैं।
संस्कृत के इस श्लोक में पीएम मोदी की बातों के निहितार्थ छिपे हैं।
नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया
अर्थात् माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान इस दुनिया में कोई जीवदाता नहीं।
भारत में जो एक स्त्री का दर्जा है। वो विश्व में कही भी देखने को ना मिलता है। ऋग्वेद की अनेक सूक्तों की दर्शनकारी स्त्रियां थी। ब्रह्मवादिनी ‘घोषा’ रचित ऋग्वेद के दशम मण्डल के सूक्तों ( 39वां एवं 40वां ) को कौन नजरअंदाज कर सकता है। यह सच है कि आदिकाल से भारत देश नारी का सम्मान करता आया है। नारी समान यहाँ पर किसी दिवस की तरह नहीं है बल्कि हर दिन नारी पूज्यनीय है। ये देश नारी के दिये संस्कारों के कारण हजारों वर्ष की यात्रा करके इस मुकाम पर पहुंचा है। इसलिए पीएम मोदी और देश के हर शुभ चिंतक की चिंता लाज़मी है। बक़ौल पीएम ‘मैं इस अमृत काल में देश की तरक्की में कई गुना योगदान नारी शक्ति का देख रहा हूं, माताओं, बहनों और बेटियों का देख रहा हूं। हम जितने ज्यादा अवसर हमारी बेटियों को देंगे, जितनी सुविधाएं बेटियों पर केंद्रित करेंगे वे हमें उससे कई गुना लौटा कर देंगी। वो देश को नई ऊंचाई पर ले जाएंगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और साक्षात्कार देने वाले उस मुस्लिम व्यक्ति की सोच को अगर हम अपना सके तो निश्चित रूप में हर दिन महिला सम्मान और समानता का होगा! तभी हम आजादी का अमृत महोत्सव सच्चे हृदय से मना सकेंगे।
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इसलिए मनाया जाता है महिला समानता दिवस
विश्व में आई असमानता को दूर करने के उपलक्ष्य में ही विश्व महिला समानाता दिवस यानी की वुमन इक्वीलिटी-डे, प्रतिवर्ष 26 अगस्त को मनाया जाता है। न्यूजीलैंड विश्व का पहला देश है जिसने 1893 में महिला समानता की शुरुआत की। अमेरिका में 26 अगस्त 1920 को 19वें संविधान संशोधन के माध्यम से पहली बार महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला। इसके पहले वहां महिलाओं को द्वितीय श्रेणी नागरिक का दर्जा प्राप्त था। महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लिए लगातार संघर्ष करने वाली एक महिला वकील बेल्ला अब्ज़ुग के प्रयास से 1971 से 26 अगस्त को ‘महिला समानता दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा। 2020 में महिला समानता दिवस की 100 वीं वर्षगांठ मनाई गई थी। इस वर्ष महिला समानता दिवस 101वीं वर्षगांठ है जिसकी थीम है, ‘Commemorates the struggles of women to be heard, as fierce advocates who gained the statutory right to vote.’ है।