दिव्य मासिक नाट्य श्रंखला की तीसरी प्रस्तुति
लखनऊ। त्रासद स्थितियों में कैसे सहज हास्य उत्पन्न होता है, इसकी एक बानगी दिव्य मासिक नाट्य श्रंखला की तीसरी प्रस्तुति ‘क्रिटिकल बट स्टेबल’ के तौर पर सवेरा फाउंडेशन के कलाकारों ने वाल्मीकि रंगशाला गोमतीनगर लखनऊ में प्रस्तुत किया। जान पियरे मार्टिनेज के लिखे इस नाटक का भारतीयकरण और निर्देशन प्रतिभावान युवा रंगकर्मी अनुराग शुक्ल शिवा ने किया।
गहरे कोमा में पड़े एक व्यक्ति की कहानी के मूल कथा से थोड़े बदले रूप में हास्पिटल में कोमा में चले जाने के बाद उसके दो भाइयों से एक डॉक्टर संपर्क करता है, एक के बाद उसके दो सौतेले भाई आते हैं। उनसे पूछा जाता है कि क्या उन्हें लाइफ स्पोर्ट पर रखा जाये! लेकिन चूंकि उन्होंने लंबे समय से अपने भाई से बात नहीं की है, इसलिए वे निश्चित नहीं हैं कि क्या करें – खासकर जब से वे वास्तव में किसी की परवाह नहीं करते हैं और उनकी अपनी समस्याएं हैं। फिर भाई का जीवनसाथी होने वाली मोनिका आती है और दुर्घटना की परिस्थितियों के बारे में नयी जानकारी देते हुए सूटकेस की बात करती है। ये नए तथ्य दर्शकों के सामने छोटे छोटे हास्य में लिपटे टुकड़ों में सामने आते हैं। वास्तव में यहां जीवन दर्शन भी छुपा हुआ है कि किस तरह एक तरफ सामाजिक दबाव हमें मृत्यु का सम्मान करने, यहां तक कि उसे पवित्र मानने के लिए मजबूर करता है। दूसरी ओर यह उकेरने का प्रयास है कि जीवन एक मजाक है, और जब कोई मर जाता है या मरने वाला होता है तो यह एक दुखद हास्य बन जाता है जिसके घटकों को सामाजिक पाखंड द्वारा परिभाषित किया जाता है जो ऐसी गंभीर परिस्थितियों में हमारे व्यवहार को कहीं उजागर तो कहीं नियंत्रित करता है। और जब कोमा में गये व्यक्ति द्वारा लूट की जानकारी मोनिका के मुंह से सामने आती है तो सम्बन्ध सौदे, लालच, धोखे और षड्यंत्र में बदलकर सामने आते हैं। नाटक में मंच को अस्पताल के कक्ष का वातावरण तैयार करने में निर्देशक ने कड़ी मेहनत की, पर पूर्वाभ्यास की कमी लग रही थी। डाक्टर, नर्स, विवेक, अजय और इंस्पेक्टर का चरित्र निभाने वाले कलाकारों के लिए अपने चरित्र को उभारने की अपार संभावनाएं थीं, पर वे ज्यादातर संवाद कहने तक सीमित रहे। उनके मुकाबले काव्या ने थोड़ा असर छोड़ा।
नाटक में डाक्टर- अभिषेक सिंह, नर्स- शिवानी गुप्ता, अजय- अनुराग शुक्ल शिवा, विवेक- तरुण यादव, मोनिका- काव्या मिश्रा, इंस्पेक्टर राकेश- शशांक मिश्र और कोमा में गये राजकुमार की भूमिका में संजय त्रिपाठी मंच पर उतरे। मंच पार्श्व में प्रकाश सञ्चालन- संतोष कुमार समायर व सत्यम पाठक ने, संगीत सञ्चालन- विकास दुबे, वेशभूषा- काव्या मिश्रा के साथ नेपथ्य में ओमकार, अक्षत, युआंग, संतोष, गिरिराज, प्रणव का सहयोग रहा।