Wednesday, April 2, 2025
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आसान नहीं है अंतरिक्ष यात्री बनना

नौ महीने चौदह दिन बाद सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष से वापसी

लेखक : पीयूष त्रिपाठी

भारत की बेटी सुनीता विलियम्स आखिरकार नौ महिने चौदह दिन बाद बुधवार 19 मार्च 2025 को अंतरिक्ष से धरती पर वापस लौट आईं। अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स का यह तीसरा अंतरिक्ष दौरा था । 19 सितंबर 1965 में अमेरिका के ओहायो के यूक्लिड में रहने वाले गुजराती मूल के चिकित्सक दीपक पंड्या और स्लोवेनियाई मूल की बोनी पांड्या के घर जन्मी  सुनीता पांड्या ने 1987 में यू-एस नेवल एकेडमी से फिजिकल सांईंस  में बीएससी की डिग्री हासिल की । इसके बाद सुनीता ने 1995 में फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी से इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की । उनकी शादी माइकल जे. विलियम्स से हुई है जो एक अमेरिकी नौसेना अधिकारी और पायलट हैं । सुनीता विलियम्स ने अपने करियर की शुरुआत अमेरिकी नौसेना में एक अधिकारी के रूप में की । वह एक कुशल हेलीकॉप्टर पायलट हैं और बाद में नासा में अंतरिक्ष यात्री के रूप में चुनी गईं। 1998 में उन्हें नासा के अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए चुना गया और पहली बार वह 9 दिसंबर 2006 को अंतरिक्ष शटल डिस्कवरी (STS-116) के जरिए ISS यानी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचीं और वहां 195 दिन तक रहीं जो कि उस समय एक महिला के लिए सबसे लम्बे समय तक अंतरिक्ष में रहने का रिकार्ड था।

 इस दौरान सुनीता विलियम्स ने चार स्पेसवॉक किए, जो उस समय किसी महिला द्वारा सबसे अधिक बार किया गया अंतरिक्ष भ्रमण था ।

दूसरी बार वह 14 जुलाई, 2012 को सोयूज TMA-05M से ISS गईं। इस मिशन में वह ISS की कमांडर थीं जो उनके करियर की एक बड़ी उपलब्धि थी। इस बार उन्होंने कुल  127 दिन अंतरिक्ष में बिताए और तीन अतिरिक्त स्पेसवॉक किए। यह सुनीता विलियम्स की तीसरी अंतरिक्ष यात्रा थी जो 5 जून 2024 को बोइंग स्टारलाइनर मिशन के जरिए शुरू हुई थी । इस बार सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में गई तो केवल आठ दिन के लिए थीं  लेकिन  स्टारलाईनर में खराबी आने के कारण वह और उनके सहयोगी बुच लगभग साढ़े नौ महिने तक ISS पर ही फंसे रहे और भारतीय समय अनुसार 19 मार्च 2025 को तड़के साढ़े तीन बजे  सुनीता विलियम्स , बुच विल्मोर सहित चार अंतरिक्ष यात्री एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स के ड्रैगन क्रू अंतरिक्ष यान के जरिए फ्लोरिडा के समुद्र में उतरे । सबसे पहले सुनीता सहित सभी अंतरिक्ष यात्रियों को रिकवरी शिप पर ले जाया गया जहां उनके स्वास्थ्य की जांच की गई ।

अंतरिक्ष में रहने के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों की जीवन शैली पर बहुत प्रभाव पड़ता है और उनका स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। अंतरिक्ष यात्री की जीवनशैली स्पेस क्राफ्ट में धरती की जीवनशैली से बहुत अलग होती है। अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण की कमी , सीमित स्थान और विशेष पर्यावरण के कारण उनकी दिनचर्या और सेहत पर कई प्रभाव पड़ते हैं। अंतरिक्ष स्टेशन जैसे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर अंतरिक्ष यात्री आमतौर पर 24 घंटे के चक्र का ही पालन करते हैं, जो पृथ्वी के समय पर आधारित होता है। हालांकि अंतरिक्ष में सूर्योदय और सूर्यास्त हर 90 मिनट में होते हैं । यानी अंतरिक्ष में चौबीस घंटे में 16 बार दिन और सोलह बार रात होती है। इससे अंतरिक्ष में जाने वालों की नींद का पैटर्न प्रभावित होता है। यहां धरती की तरह सोने के लिए बिस्तर नहीं होता है और वह एक विशेष स्लीपिंग बैग में सोते हैं, जो उन्हें दीवार से बांधे रखता है ताकि वह हवा में तैरने न लग जाएं।

जैसे हम लोग धरती पर थाली में रखकर गर्मागर्म भोजन करते हैं  अंतरिक्ष यात्रियों का भोजन उससे अलग होता है । यह भोजन ज्यादातर डिहाइड्रेटेड यानी कम पानी वाला या वैक्यूम-पैक होता है। अंतरिक्ष में धरती की तुलना में ग्रैविटी यानी गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण पानी बूंदों में तैर सकता है इसलिए इसे विशेष पाउच से पिया जाता है। अंतरिक्ष यात्री संतुलित आहार लेते हैं जिसमें  प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन शामिल होते हैं लेकिन  ताजा फल-सब्जियां सीमित ही होती हैं।

माइक्रोग्रैविटी यानी गुरुत्वाकर्षण में कमी के कारण अंतरिक्ष यात्रियों की मांसपेशियां और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं । इससे बचने के लिए अंतरिक्ष यात्री रोजाना दो से ढाई घंटे व्यायाम करते हैं। इसके लिए ट्रेडमिल, साइकिल और रेसिस्टेंस मशीनें होती हैं, जो उन्हें बांधकर रखती हैं। सुनीता विलियम्स को भी अंतरिक्ष में रहने के दौरान ट्रेडमिल पर वॉक करते हुए देखा गया था। अंतरिक्ष यात्री नहाने के लिए पानी का प्रयोग नहीं करते बल्कि वह गीले तौलिये और नो-रिंस शैम्पू का उपयोग करते हैं। स्पेस स्टेशन के शौचालय भी विशेष रूप से डिज़ाइन किए जाते हैं जो हवा के दबाव से अपशिष्ट को खींचते हैं।

अंतरिक्ष यात्री कम से कम दो वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ही अंतरिक्ष में भेजे जाते हैं । यह वहां वैज्ञानिक प्रयोग, उपकरणों की मरम्मत और अंतरिक्ष स्टेशन के रखरखाव जैसे कार्यों में व्यस्त रहते हैं। वह लगातार पृथ्वी पर स्थित मिशन कंट्रोल के संपर्क में रहते हैं और मिशन कंट्रोल के समन्वय से ही अंतरिक्ष में कार्य करते हैं।

गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण सबसे ज्यादा प्रभाव अंतरिक्ष यात्रियों की हड्डियों और मांसपेशियों पर पड़ता है । माइक्रोग्रैविटी के कारण हड्डियों का घनत्व 1-2% प्रति माह कम हो सकता है, और मांसपेशियां भी कमजोर होती हैं। इससे बचने के लिए ही अंतरिक्ष यात्रियों को नियमित रूप से व्यायाम करना पड़ता है हालाँकि इससे हड्डियों का घनत्व कम होना पूरी तरह से रुक नहीं पाता है। गुरुत्वाकर्षण की कमी से अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर में रक्त का प्रवाह भी बदल जाता है, जिससे हृदय को कम मेहनत करनी पड़ती है। इससे हृदय की मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं। पृथ्वी पर लौटने पर अंतरिक्ष यात्रियों को चक्कर या कमजोरी महसूस हो सकती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक जब अंतरिक्ष यात्री वापस धरती पर लौटते हैं तो उनकी स्थिति एक नवजात बच्चे जैसी होती है और उन्हें सामान्य होने में कुछ समय लगता है । धरती पर लौटने के बाद उनके लिए तुरंत अपने पैरों पर चलना कठिन होता है । इसे बेबी फीट कहा जाता है । हृदय के साथ-साथ अंतरिक्ष यात्रियों के गुर्दे और और आँखें भी प्रभावित होती हैं। कुछ अंतरिक्ष यात्रियों में “स्पेसफ्लाइट-एसोसिएटेड न्यूरो-ऑकुलर सिंड्रोम” देखा गया है, जिसमें सिर के ऊपरी हिस्से में तरल पदार्थ जमा होने से आंखों पर दबाव पड़ता है और दृष्टि प्रभावित होती है।

धरती की तुलना में अंतरिक्ष में रेडिएशन का स्तर भी ऊंचा होता है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित कर सकता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि किसी व्यक्ति के शरीर में  जितना रेडियशन पांच हजार एक्सरे करने के बाद पहुंचेगा उतनी ही मात्रा का

 रेडियशन अंतरिक्ष में एक ऐस्ट्रोनॉट को प्रभावित करता है।  इससे बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है ।

सीमित स्थान, अकेलापन, और पृथ्वी से दूरी के कारण अंतरिक्ष यात्री तनाव, चिंता या अवसाद से प्रभावित हो सकते हैं। अंतरिक्ष यात्री इसके लिए मनोवैज्ञानिक सहायता और मनोरंजन साधनों जैसे फिल्में, किताबों आदि का सहारा लेते हैं। अंतरिक्ष यात्रियों की जीवनशैली अत्यधिक अनुशासित और तकनीक-निर्भर होती है। सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों को कम करने के लिए वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं, जैसे बेहतर व्यायाम उपकरण और रेडिएशन से सुरक्षा। पृथ्वी पर लौटने के बाद भी उनकी सेहत की निगरानी की जाती है ताकि वे सामान्य जीवन में वापस ढल सकें।

शायद इसीलिए अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए उम्मीदवारों का चयन बहुत सख्त मापदंडों पर किया जाता है। सर्वप्रथम उम्मीदवार के पास आमतौर पर विज्ञान, इंजीनियरिंग, गणित या चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में स्नातक या उच्च डिग्री होनी चाहिए। नासा जैसी एजेंसियां सेना के ऐसे पायलटों को प्राथमिकता देती हैं जिनके पास उड़ान का अनुभव हो।

तकनीकी या विशेष शिक्षा के साथ-साथ उम्मीदवार का शारीरिक स्वास्थ्य भी उच्च स्तर का होना चाहिए । जैसे उसका विजन यानी दृष्टि अच्छी होनी चाहिए । रक्तचाप यानी ब्लड प्रेशर सामान्य होने के साथ-साथ ऊंचाई और वजन का भी संतुलन होना चाहिए। जैसा कि पहले भी बताया गया है कि अंतरिक्ष यात्री का मानसिक रूप से मजबूत होना जरूरी है, क्योंकि अंतरिक्ष में तनाव और अकेलेपन का सामना करना पड़ता है। हजारों आवेदकों में से कुछ ही इन मापदंडों पर खरे उतरते हैं । इन्हीं मापदंडों के आधार पर अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा हर कुछ साल में 10से 20 अंतरिक्ष यात्रियों का चयन करती है। चयन के बाद अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए लंबा और गहन प्रशिक्षण दिया जाता है। यह आमतौर पर 2-3 साल तक चलता है और इसमें कई पहलू शामिल होते हैं जैसे अंतरिक्ष विज्ञान, अंतरिक्ष यान के सिस्टम, और मिशन के उद्देश्यों की जानकारी दी जाती है। 

भाषा प्रशिक्षण भी होता है जैसे अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में जाने वालों को रूसी भाषा का भी प्रशिक्षण दिया जाता है ।

भारहीनता  यानी जीरो ग्रैविटी का अनुभव विशेष विमानों जैसे “वॉमिट कॉमेट”  और पानी के अंदर प्रशिक्षण न्यूट्रल बॉयेंसी लैब  के जरिए दिया जाता है । स्कूबा डाइविंग  के साथ साथ ठंडे इलाकों में कैसे जीवित रहें इस बात का भी प्रशिक्षण भी दिया जाता है ताकि अंतरिक्ष यात्री आपात स्थिति के लिए तैयार रहें । 

अंतरिक्ष यात्रियों को तकनीकी प्रशिक्षण के अंतर्गत अंतरिक्ष यान और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के उपकरणों को चलाने और ठीक करने की ट्रेनिंग भी दी जाती है ।

प्रशिक्षण का एक महत्वपूर्ण अंग है सिमुलेशन की ट्रेनिंग यानी अंतरिक्ष जैसी स्थितियों और वहां की संभावित परिस्थितियों का प्रशिक्षण ।

मिशन के हर पहलू का सिमुलेशन किया जाता है, जैसे लॉन्च, अंतरिक्ष में रहना, और पृथ्वी पर वापसी।  आपातकालीन स्थिति जैसे आग या दबाव में कमी से  निपटने की ट्रेनिंग भी होती है। गौरतलब है कि फरवरी 2003 में

 भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला जब कोलम्बिया यान से धरती पर वापस आ रही थीं तो उनके यान में आग लग गई थी जिसमें सभी अंतरिक्ष यात्रियों की मृत्यु हो गई थी । अंतरिक्ष यात्री एक टीम के रूप में काम करते हैं, इसलिए सहयोग और संचार कौशल पर विशेष बल दिया जाता है। इस तरह से देखा जाए तो अंतरिक्ष में रहना धरती की अपेक्षा बहुत ही चुनौतीपूर्ण है इसीलिए चयन प्रक्रिया भी इतनी जटिल होती है । कल्पना चावला के बाद सुनीता भारत की दूसरी बेटी हैं जो अंतरिक्ष में गईं। नौ माह का लंबा अंतराल बीतने के कारण भारत में जगह -जगह धरती पर उनकी सकुशल वापसी के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जा रही थी । जब सुनीता विलियम्स सकुशल वापस लौट आईं तो सभी ने चैन की सांस ली । अंतरिक्ष में तमाम शोध करने के साथ ही सुनीता अपने साथ अंतरिक्ष से खींची गई महाकुम्भ-2025 की तस्वीरें भी लाई हैं जो कि दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन था । धरती से चार सौ किलोमीटर दूर अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन से वापस लौटने में सुनीता विलियम्स और उनके साथियों को सत्रह घंटे का समय लगा। भारत को अपनी इस बेटी पर हमेशा गर्व रहेगा।

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