लेखक : दिलीप कुमार
आज देश की अधिकांश नई पीढ़ी को पता भी नहीं होगा, कि देश के नौवें प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या क्यों हुई! कैसे हुई? पता भी कैसे हो आज तो इतिहास बदलने का चलन शुरू हो गया है. आज लोगों को पता भी नहीं कि राजीव गांधी देश के लिए क्यों शहीद हुए ! दरअसल हम सब बेशर्म समाज में रहते हैं, जहां धूर्तता की पराकाष्ठा है. संसद से लेकर सड़क तक हम ऐसे विचित्र लोकतांत्रिक देश में देखते हैं, देश के लिए जान देने वाले इंसान को देशद्रोही कहकर ठहाके लगाए जाते हैं. राजीव गांधी चाहते तो मारे नहीं जाते, लेकिन आज कुछ जाहिल राष्ट्रवाद की बातेँ करते हैं, उन्हें पता भी नहीं होगा शायद वो तो विचारधारा के नाम पर बस गरियाना, कोसना ही सीख पाए हैं. वे राजीव गांधी ही थे, जिन्होंने तमिल नहीं टूटने दिया… तमिल के साथ साथ श्रीलंका को भी संकट से उबारा. राजीव गांधी कैसे आराम से सत्ता भोग सकते थे, उनकी माँ ने भी तो देश के लिए जान दे दी… इन्दिरा गांधी चाहतीं तो सत्ता भोग सकती थीं, लेकिन उन्होंने जान का जोखिम उठाया और वही हुआ, इन्दिरा गांधी की निर्मम हत्या.. राजीव गांधी भी तो इन्हीं इन्दिरा के बेटे थे, जान का जोखिम उठाया, और शहीद हुए. आज राष्ट्रवाद की चाशनी में डुबोकर नफ़रत के भाषण पिलाए जाते हैं, किसी भी बात पर नेहरू जिम्मेदार के अलावा कोई दूसरा जवाब नहीं है.
राजीव गांधी होना आसान नहीं था, कोई व्यक्ति मानसिक रूप से कितना मजबूत हो सकता है. इसकी मिसाल राजीव गाँधी को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता है. पहले छोटे भाई की मृत्यु और कुछ ही सालों बाद मॉं इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या, इस सब के बाद भी उनके कदम डगमगाए नहीं. राजीव गांधी शक्ति के साथ भारत निर्माण की मंजिल की ओर बढ़ते गए. आज राहुल गांधी में जो यायावरी, फक्कड़पना है, वो भी राजीव गांधी में थी. राजीव गांधी देश के सबसे ताकतवर परिवार के बेटे होते हुए भी उनमे राजनीति से रत्ती भर आकर्षण नहीं था. जब तक उनके छोटे भाई संजय गांधी राजनीति में रहे तब तक राजीव गांधी ने राजनीति को छुआ भी नहीं..संजय गांधी पेशेवर राजनीतिक व्यक्तित्व के धनी थे. संजय की 23 जून, 1980 को एक वायुयान दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राजीव को राजनीति में उतार दिया. जून 1981 में वह लोकसभा उपचुनाव में निर्वाचित हुए और इसी महीने युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बन गए. न न करते राजीव गांधी माँ के कहने पर राजनीति में आए तो शिखर तक पहुंचे.
मजबूरी में राजनीति में आए राजीव गांधी को उस दौर के नेताओं ने उस समय नया नवेला भी कहा, लेकिन जिस तरह से उन्होंने यह जिम्मेदारी निभाई. उससे उनके विरोधियों को घोर निराशा हुई. राजीव गांधी को सौम्य शालीन, शिक्षित, शिष्ट राजनेता कहा जाता था. आज के पीएम मोदी को राजीव गांधी से सीखना चाहिए कि पार्टी, परिवार कैसे चलाते हैं. राजीव गांधी पार्टी के अन्य नेताओं से विचार-विमर्श करने के लिए जाने जाते थे. जल्दबाज़ी में निर्णय नहीं लेते थे,सोच समझकर फैसला करते थे. आज राजनीतिक धौंस ज़माने के लिए अपनी शक्ति का प्रदर्शन के लिए तुगलकी फ़रमान जारी कर दिए जाते हैं.. बाद में पता चलता है देश में कानून लागू हो गया है. जब उनकी माँ की हत्या हुई, तो राजीव को उसी दिन प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई और उन्हें कुछ दिन बाद कांग्रेस पार्टी का नेता चुन लिया गया. बोफोर्स घोटाला राजीव गांधी के गले की फांस ज़रूर बना रहा. इसके अलावा उन पर कोई ऐसा दाग़ नहीं था जिससे उनकी निंदा की जाए. मिस्टर क्लीन की छवि के कारण राजीव गांधी लोकप्रिय भी थे.
आज सत्ता न छोड़ने, कुर्सी से चिपकने वालों को राजीव गांधी जी से सीखना चाहिए. कि आदर्शों की राजनीति कैसे करते हैं. पीएम इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद लोकसभा में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत होते हुए भी राजीव गांधी लोकसभा के सांसद थे, फिर भी शुद्ध राजनीति का परिचय देते हुए, उन्होंने पुनः लोकसभा में चुनाव समय पूर्व कराया. ताकि कोई यह संदेश जाए कि राजीव गांधी ने इन्दिरा गांधी के बहुमत के आधार पर पीएम बन जाना नहीं चुना. यह भी इतिहास है, राजीव गांधी के नेतृत्व में भारत के लोकतंत्र में इतिहास में कांग्रेस ने 542 में से 411 सीटें जीतकर एक नया रिकार्ड बनाया था. आज देश में पूर्ण बहुमत की सरकार होने का मतलब सर्वशक्तिमान हो जाना साझा जाता है. आज शीर्ष पर बैठा व्यक्ति धर्मवाद की बातेँ करने वाला इंसान जो व्यापरियों की के लिए ब्रोकरों का काम कर रहा है, ऐसे-ऐसे आरोप लगे मजाल है कि मुँह खुल जाए. हालाँकि उनका अतीत किसी से छिपा नहीं है. हिम्मत चाहिए राजीव गांधी बनने के बाद जान देना पड़ता है, कुछ भी करें समर्पण चाहिए होता है.
कितना दुःखद है आज डिजिटल इन्डिया का झंडा बुलन्द करने वाली भाजपा ने राजीव गांधी के द्वारा लाई गई सूचना क्रांति पर भारत बंद का आह्वान किया था. कितनी बेशर्मी है. राजीव गांधी की हत्या का मामला भी लोगों को पता नहीं है, कितना दुःखद है कि राजीव गांधी कितने लविंग पर्सन थे. आज सबसे ज्यादा इस बात का दुख होता है कि जिन धूर्तों के लिए राजीव गांधी लड़ते रहे, उन्हीं धूर्तों ने उनकी जान ले ली. श्रीलंका में चल रहे लिट्टे और सिंघलियों के बीच युद्ध को शांत करने के लिए राजीव गांधी ने भारतीय सेना को श्रीलंका भेज दिया था. जो समूह लिट्टे खत्म हो गया था, भारत में वीपी सिंह सरकार बनी, उसने सेना ही वापस बुला लिया, जिससे लिट्टे समूह फिर से ताकतवर हो गया. राजीव गांधी अपनी यात्राओं के जरिए ख़ासे लोकप्रिय हो रहे थे. सत्ता में वापसी करने ही वाले थे, लिट्टे समूह को अंदाजा था कि राजीव गांधी की सरकार बनी तो हमारा खात्मा हो जाएगा, जिससे तमिलनाडु, श्री लंका सहित अखंड तमिल राष्ट्र नहीं बन पाएगा.आखिरकार लिट्टे ने तमिलनाडु में चुनावी प्रचार के दौरान राजीव गांधी पर आत्मघाती हमला करवा कर दिया. 21 मई, 1991 को सुबह 10 बजे के क़रीब एक महिला राजीव गांधी से मिलने के लिए स्टेज तक गई और उनके पांव छूने के लिए जैसे ही झुकी उसके शरीर में लगा आरडीएक्स फट गया. इस हमले में राजीव गांधी की मौत हो गई. सब साफ समझा जा सकता है कि राष्ट्र से प्रेम किसको है किस को नहीं… राजीव गांधी ने जान दे दी कि तमिलनाडु देश से अलग न हो. राजीव गांधी देश के पीएम थे, देश के लिए जान दे दी आज उनके बच्चों, पत्नी को देशद्रोही, कहने वाला व्यक्ति शीर्ष पर बैठा हुआ है. आज हम इतने बेशर्म हो रहे हैं कि हमारी संवेदनाएं भी मरती जा रही हैं. हर रोज़ शहीद पीएम के बच्चों से देश प्रेम का सर्टिफिकेट माँगा जाता है. अफ़सोस उस दिन राजीव गांधी शहीद न हुए होते तो देश के पीएम फिर से बने होते. उस दौर में सूचना क्रांति लाने वाले, भाइचारे का झंडा बुलन्द करते. लोगों को कपडों से बिल्कुल न पहिचानते. राजीव गांधी के रूप में देश के क्षति की भरपाई कभी हो नहीं सकती . आज राहुल गांधी में राजीव गांधी की छवि देख सकते हैं, राजीव की तरह यायावर, घुमक्कड़, राहुल को सत्ता से रत्ती भर मोह नहीं है…. राहुल नफ़रत के दौर में मुहब्बत की बातेँ करते हैं, तो उम्मीद जगती नमस्ते है. आज राहुल को ठेठ राजनेता न होने पर आलोचना सहनी पड़ती है. राजीव गांधी जी भी तो ठेठ राजनेता नहीं थे, उससे क्या फर्क़ पड़ता है. राजीव गांधी की महान विरासत राहुल ही बढ़ाएंगे… मिस्टर क्लीन लविंग पर्सन राजीव गांधी जी की पुण्यतिथि पर सादर प्रणाम….