Sunday, September 8, 2024
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कहानी गीत की : खोया खोया चाँद…

खोया हुआ चाँद, कविराज शैलेन्द्र ढूंढकर लाए थे, जिसको मशहूर संगीतकार बर्मन दादा ढूढ़ रहे थे. फिल्म काला बाजार के लिए विजय आनन्द ने एस डी बर्मन और शैलेंद्र की जोड़ी को मौका दिया गया था. साहिर लुधियानवी से अलग होने के बाद मजरुह सुल्तानपुरी के साथ बर्मन दादा की जोड़ी जमती थी, लेकिन मजरुह सुल्तानपुरी अत्यंत व्यस्त होने के कारण बर्मन दादा ने कविराज को चुन लिया.

शैलेंद्र जी को गाना लिखने का समय नहीं मिल पा रहा था, शैलेन्द्र जी अत्यंत व्यस्त थे. बर्मन दादा की संगीत को लेकर दीवानगी देखने लायक होती थी. बर्मन दादा ने  अपने बेटे ‘पंचम दा ‘को शैलेंद्र के पास ये कहकर भेजा कि जब तक वो गाना न दे, घर वापस मत आना. कविराज को बोल देना आज ही गीत चाहिए, शैलेन्द्र जी के लिए एक गीत लिखना कोई मुश्किल कार्य नहीं था. कविराज ने वो गीत मिनटों में लिख दिया था. जिसके लिए वो जाने जाते थे.

महान संगीतकार  बर्मन दादा जितना बेहतरीन म्यूजिक बनाते थे उतने ही गुस्सैल तो थे, ही लेकिन अपने दौर में थोड़ा बुजुर्ग मिजाज़ के थे. धोती – कुर्ता पहनावे के साथ पान खाते हुए जब कुछ बोलते तो उनकी बात काटना किसी के बस की बात नहीं थी. सभी गीतकार, अभिनेता, फ़िल्मकार उनका बड़ा मान करते थे. ऐसे में उनके गुस्से का शिकार अक्सर उनके बेटे पंजम (राहुल देव बर्मन) को होना पड़ता है. बर्मन दादा कभी – कभार सीनियर की तरह डांटते, तो कभी – कभार बच्चों की तरह रूठ जाते थे. एक साक्षात्कार में ‘पंचमी दा’ ने बताया ” यूँ तो मेरे बाबा के साथ कई रोचक किस्से हैं, लेकिन बाबा को अपने ऊपर इतना विश्वास था कि वो किसी से कुछ भी कह देते थे. उनकी जुबां का हर कोई मान रखता था, लेकिन मुझे बाबा के लिए काम करना पड़ता था. एक बार बाबा के कारण आधी रात तक घर से बाहर गीतकार शैलेंद्र के साथ एक गाने के लिए घूमना पड़ा था”.

विजय (गोल्डी) आंनद, बर्मन दादा से पूछते दादा फिल्म के गीतों पर काम क्यों नहीं हो रहा. बर्मन दादा देव साहब की फ़िल्मों के प्रति जुनून को समझते थे,लेकिन शैलेंद्र थे कि गाना लिख ही नहीं रहे थे, उन दिनों शैलेंद्र दूसरी फिल्मों में व्यस्त चल रहे थे. बर्मन दादा परेशान थे कि कब शैलेंद्र गीत लिखकर देगा और कब गाना रिकॉर्ड होगा. हालाँकि गोल्डी, एवं देव साहब से व्यपारिक लहजे में नहीं कहा. बर्मन दादा ने ऑटोट्यून पहले ही बना ली थी, लेकिन गीत का अब तक कोई पता नहीं था. एक दिन गुस्से में सचिन दा ने पंचम को बुलाकर कहा कि ‘जा अभी शैलेन्द्र के घर और जब तक वो गाना लिख के न दे, तब तक वापस घर मत आना, अगर तुम खाली हाथ वापिस आए तो तुम्हें घर नहीं घुसने दूँगा”. पंचम दा’ अपने पिता बर्मन दादा के ऐसे गुस्से का कई बार शिकार होना पड़ता था.’ पंचम दा’  अपने बाबा की बात टाल नहीं सकते थे. अंततः वो कविराज शैलेंद्र जी के पास पहुंचे. शैलेन्द्र जी को पूरी बात बताई. शैलेंद्र जी हंसे बोले” पंचम अब दादा के लिए गीत लिखना ही पड़ेगा. तुम चिंता मत करो तुम्हें घर से निकाले जाने का कारण मैं नहीं बनना चाहता”.’ ‘पंचम दा’ को गाड़ी में बैठाया और कहा कि ‘चिंता मत करो मैं आज गाना दे दूंगा”.

गीतकार कविराज शैलेंद्र जी ने चंद मिनटों में लिखा ‘काला बाजार’ का चर्चित गाना ‘दोनों गाड़ी में बैठकर जयकिशन के स्टूडियो पहुंच गए. जयकिशन ने पंचम को देखकर छेड़ते हुए हुए कहा कि ‘क्या तुम्हारे पिताजी ने तुम्हें यहां धुन उठाने के लिए भेजा है. ’ तब शैलेंद्र ने उन्हें पूरी बात बताई. शंकर – जय किशनजी दोनों हंसकर बोले ‘शैलेंद्र जी भाई अब आपको लिखना ही पड़ेगा. शैलेन्द्र जी वहां अपना काम खत्म कर शाम में शंकर-जयकिशन के स्टूडियो से निकलकर पंचम के साथ फिर से गाड़ी में बैठ गए. इस दौरान शैलेंद्र लगातार सिगरेट पी रहे थे. शैलेंद्र ने ड्राइवर से नेशनल पार्क जाने को कहा. वहां घूमने हुए रात हो गई. फिर शैलेंद्र ने ड्राइवर से जुहू बीच चलने को कहा. गाड़ी में बैठे पंचम परेशान हो रहे थे.

जुहू बीच सुनसान पड़ा था. शैलेंद्र नंगे पैर टहलने लगे. शैलेंद्र ने इतनी सिगरेट पी ली थी कि उनकी माचिस ही खत्म हो गई थी. उन्होंने पंचम से माचिस मांगी तो वो घबरा गए, उन्हें लगा कि शैलेंद्र को पता है कि मैं सिगरेट पीता हूं. कहीं उन्होंने पिताजी को बता दिया तो बहुत डांट पड़ेगी. उसी समय शैलेंद्र ने कहा कि पंचम, बर्मन दादा की ट्यून क्या है? जरा बताओ तो ’ पंचम ने माचिस की डिब्बी पर ट्यून बजाते हुए गुनगुनाने लगे. शैलेंद्र ट्यून सुनते हुए कभी आसमान तो कभी समुद्र को देखते फिर उन्होंने सिगरेट फेंकते हुए कहा कि दादा को बोलना मैं सुबह पूरा गाना लेकर आउंगा. आख़िरकार ‘पंचम दा’ ने राहत की साँस ली. फिर शैलेंद्र उस ट्यून पर गुनगुनाने लगे- ‘खोया खोया चांद, खुला आसमान, आंखों में सारी रात जाएगी, तुमको भी कैसे नींद आयेगी’ पंचम ने तुरंत सिगरेट की मुड़ी हुई डिब्बी पर ये लाइन लिखा. और घर चले गए. जब वो घर पहुंचे तो बर्मन दादा सो गए थे. सुबह उन्होंने पंचम को उठाते हुए पूछा कि ‘ऐ पंचम, गाना किधर है’ पंचम ने वो लाइन दादा को सुनाई बर्मन दादा को को लाइन पसंद आई. बर्मन दादा बोले ” मुझे यकीन था कि शैलेन्द्र के लिए एक गीत लिखना कोई बड़ा कार्य नहीं है. पूरा गीत सुबह लेकर कविराज शैलेन्द्र जी बर्मन दादा के घर पहुंचे. फिल्म काला बाजार में देव साहब और वहीदा रहमान पर फ़िल्माया गया था. फिल्म और इसके गाने सुपरडुबर हिट रहे थे. इस सुपरहिट गीत को महान गायक मुहम्मद रफ़ी साहब ने अपनी आवाज से नवाजा था.

इसके बाद बर्मन दादा शैलेन्द्र जी के साथ भी खूब काम करने लगे थे. इस टीम ने कुछ सालों बाद फिल्म गाइड के लिए साथ काम किया था. गाइड फिल्म में एक एतिहासिक गीत “वहाँ कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा जहां’ लिखा था,कि वो एक ऐतिहासिक फिल्म गाइड का वो गीत बर्मन दादा के लिए याद किया जाता है.

शैलेन्द्र जी का लिखा एक यादगार नगमा

खोया-खोया चांद, खुला आसमां

आँखों में सारी रात जाएगी

तुमको भी कैसे नींद आएगी, हो

खोया-खोया …

मस्ती भरी, हवा जो चली

खिल-खिल गई, ये दिल की कली

मन की गली में है खलबली

कि उनको तो बुलाओ, ओ हो …

खोया-खोया चांद …

तारे चले, नज़ारे चले

संग-संग मेरे वो सारे चले

चारों तरफ़ इशारे चले

किसी के तो हो जाओ, ओ हो …

खोया-खोया चांद …

ऐसी ही रात, भीगी सी रात

हाथों में हाथ, होते वो साथ

कह लेते उनसे दिल की ये बात

अब तो ना सताओ, ओ हो …

खोया-खोया चांद …

हम मिट चले, जिनके लिये

बिन कुछ कहे, वो चुप-चुप रहे

कोई ज़रा ये उनसे कहे

न ऐसे आजमाओ, ओ हो …

खोया-खोया चांद …

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