- विद्या वही जो जीभ पर नर्तन करें: श्रीधर
लखनऊ । साहित्यकार के लेखन का पाठक तक पहुंच कर क्या परिणाम आ रहा है, यह देखना भी साहित्य रचने वालों का काम है। उक्त विचार गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद महानगर लखनऊ द्वारा आयोजित समारोह में श्रीधर पराड़कर ने गुरु शब्द की विशद विवेचना करते हुए सृजनविहार गोमतीनगर में व्यक्त किए।
संचालन कर रही डा.ममता पंकज की वाणी वंदना और राजीव वत्सल के द्वारा परिषद गीत से प्रारम्भ कार्यक्रम में श्री पराड़कर ने कहा कि वेदव्यास की स्मृति में गुरु पूर्णिमा पूर्व मनाते हैं। गुरु के सामने समर्पण ही करना पड़ता है। शब्द ब्रह्म है। शब्द का प्रयोग ब्रह्म की तरह ही होना चाहिए। गुरु शब्द हर किसी के लिये प्रयोग नहीं करना चाहिए। गुरु शब्द शिक्षक से सर्वथा अलग है। गुरु का शाब्दिक अर्थ ‘भारी भी’ है। आपका गुरु आपको वांछित केन्द्र तक पहुंचाता है। सनातन में जीवन जन्म और मृत्यु तक सीमित नहीं, पूर्वजन्म, पुनर्जन्म और प्रारब्ध तक विस्तार लिये हुए है। साहित्यकारों को शब्द साधना पर ध्यान देने का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि वीर सावरकर ने शहीद के समतुल्य बलिदान को न रखते हुए हुतात्मा शब्द दिया। उन्होंने कहा कि हम इस तरह ज्ञान अर्जित करें कि विद्या जीभ पर नर्तन करती रहनी चाहिए।
इससे पूर्व विशिष्ट अतिथि पवन पुत्र बादल और प्रांतीय अध्यक्ष विजय त्रिपाठी व इकाई अध्यक्ष निर्भय नारायण गुप्त ने गुरु महिमा का बखान किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष सुशील चन्द्र त्रिवेदी मधुपेश ने कहा कि स्वयं को गुरु मान कर लिखना चाहिए।
यहां राजवीर रतन को मीडिया प्रमुख बनाने की घोषणा की गयी। साथ ही पुस्तक घुमंतुओं की लेखनी और प्रचारक परम्परा पर श्रीधर पराड़कर के लिखे उपन्यास तत्वमसि के अंशों का पाठ भी हुआ। इस अवसर पर हरिनाथ शिदे, संजीव श्रीवास्तव, मनमोहन बाराकोटी, कुँवर वीर सिहँ मार्तण्ड, रविन्द्रनाथ तिवारी, विजय प्रसाद, डा.बलजीत कुमार श्रीवास्तव, ज्योति किरन रतन आदि भी उपस्थित रहे।