Thursday, November 21, 2024
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छोटे किसान, बड़ी समस्याएं… सिस्टम का इंतजार, खुद तलाशा समाधान

एमपी की राजधानी भोपाल से सटे गांवों में किसानों के जज्बे की कहानी

मनीष शुक्ल

वरिष्ठ पत्रकार

ये काहनी मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से सटे दो गांवों की है। दोनों अपने- अपने तरीके से जलवायु परिवर्तन से लेकर फसल चक्र में हो रहे बदलाव से लड़ रहे हैं। वो अपने तरीके से कृषि कैलेंडर बनाकर इन  चुनौतियों से निपटने का रास्ता बना रहे हैं। हालांकि एक गाँव को फिलहाल सिस्टम के पटरी पर आने का इंतजार है तो दूसरे गाँव के लोगों ने अपनी मजबूरी को अपना हथियार बनाकर सिस्टम को मजबूत बनाने में अपना योगदान दिया है। सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (सीएसई) की कार्यशाला में देशभर के पत्रकारों को यह नजारा देखने को मिला।

पहला किस्सा मनख्याई गाँव का है। यहाँ अभी चंद रोज पहले किशोरी लाल अहिरवार सरपंच बने हैं। वो बताते हैं। यहाँ पर मुख्य रूप से धान और गेंहूँ की फसल ही किसानों की आजीविका है। धान की फसल में इस बार लगभग 15 दिनों की देरी हो गई है। ऐसे में उत्पादन और आय में कमी होने की आशंका है। वो कहते हैं कि मौसम की मार के अतिरिक्त बिजली की कटौती और खाद की अनुपलब्धता किसानों के लिए बड़ी समस्या है। सरकारी केन्द्रों में खाद मुश्किल से मिलती है। ब्लैक में लेने के लिए दुगने रुपए देने पड़ते हैं। अन्यथा फसलों में माहुं जैसे रोग लग जाते हैं। फिर पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। यहाँ के पूर्व सरपंच अमानुल्ला लंबे समय तक इस क्षेत्र से चुने जाते रहे हैं लेकिन वो मौजूदा हालात के लिए के सिस्टम को दोष देते हैं। वो कहते हैं कि आप पूरे गाँव में घूम लीजिये। आज भी किसान कच्चे घरों में बीसियों साल पहले वाले हालात में जी रहे हैं।

तभी किसान उनको टोंकते हैं। वो कहते हैं कि सिस्टम तो है लेकिन सिर्फ अपनों के लिए है। प्रधानमंत्री योजना के पक्के मकान भी खास लोगों को ही मिलते हैं। वो इशारा करते हैं कि सामने दलित मोहल्ला है लेकिन आज तक वहाँ जल निकासी के लिए नाली तक नहीं है। “आप देखिये, पूरा तलब बन गया है।“ मौजूदा सरपंच वादा करते हैं कि वो किसानों की समस्याएँ दूर करेंगे। सभी जरूरतमंदों को पक्के घर दिलाएँगे। नाली भी बनवा देंगे। यहाँ लोगों को उम्मीद है कि सिस्टम ठीक हो जाएगा। तब आधारभूत समस्याएँ दूर हो जाएंगी। फिर वो जलवायु और फसल चक्र में हो रहे बदलाव से लड़ने के लिए नया कृषि कैलेंडर पूरी तरह से लागू कर पाएंगे।

अब चलते हैं यहाँ से लगभग 20 किलोमीटर दूर ललरिया गाँव। ये गाँव पिछली शताब्दी के 70वें दशक से जयवायु परिवर्तन से जूझ रहा है। जमीन और पानी कि कमी ने यहाँ के किसानों को गरीबी के निचली पादन पर लाकर खड़ा कर दिया था। लोगों के सामने जमीन बचाने या पेट पालने का संकट उत्पन्न हो गया। ऐसे में लोगों ने यहाँ पर चारा उगाना शुरू कर दिया। जिसके बाद इस गाँव के हालात धीरे- धीरे बदलने लगे। आज इस गाँव में आसपास के 40 गांवों के किसान अपना भूसा लाते हैं और यहाँ से लगभग 400 गाड़ियों से भूसे कि सप्लाई देश भर में की जाती है। यहाँ के किसानों के सामने अब रोंजी रोटी के गंभीर संकट नहीं है। साथ ही सब मिलकर चारे के संकट को भी समाप्त करने की दिशा में जुटे हैं। यहाँ के नव निर्वाचित सरपंच मोहम्मद शाहिद खान बबलू कहते हैं कि हम लोगों को मजबूरी ने सिस्टम बनाने पर मजबूर किया। बचपन में हर वस्तु का अभाव देखा लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। वो बताते हैं कि यहाँ पर लोग किसानी भी करते हैं। मजदूर भी हैं। प्रति मजदूर 500 प्रति गाड़ी की आमदनी होती है। सालाना लगभग 40 लाख का कारोबार होता है जिससे आसपास के गांवों के किसान मजदूरों की रोजी- रोटी चलती है। बाकी समस्याएँ तो बनी ही रहती हैं लेकिन सभी संकट में साथ खड़े हो जाते हैं। वो बताते हैं कि अभी हाल में पास के बैरसिया गाँव की गौशाला में भूसे की कमी से कई गाएँ दम तोड़ गईं। फिर सबने मिलकर आठ कुंतल चारा गौशाला को दिया। ये हमने सेवा के तौर पर किया है।

दोनो गांवों की कहानी देखकर साफ हो जाता है कि अन्नदाता का जीवन बेहद चुनौतियों से भरा है। पानी, बिजली, खाद की समस्याएँ अनवरत रूप से बनी हुई हैं। सरकार के सामने भी किसानों की आय दुगनी करने से लेकर सभी को पक्का घर देने की चुनौती है। उससे से बड़ी समस्या मौसम की मार और बदलते फसल चक्र की है। ग्लोबल से लेकर लोकल स्तर पर मौसम की बदमिजाजी के कारण फसल चक्र दस के 15 दिन तक इधर- उधर हो रहा है। जिसका सीधा असर उत्पादन और किसानों की आमदनी पर पड़ रहा है। रही सही कसर मंहगाई पूरी कर देती है। लेकिन खेती- किसानी का जज्बा इन सब कारणों के बावजूद किसान को खेत से दूर नहीं होने देता है। अन्नदाता आज भी अपना सिस्टम बनाकर सरकार से लेकर आम आदमी का सिस्टम व्यवस्थित करने में जुटा है।

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