Sunday, September 8, 2024
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देवानंद- सुरैया : प्रेम जो अधूरा होकर भी मुकम्मल हो गया

लेखक : दिलीप कुमार

इस निरंकुश दुनिया में अगर रोमियो – जूलिएट, हीर – रांझा थे, तो हमारे प्रिय देव साहब एवं सुरैय्या जी भी थे. वैसे भी इस निरंकुश दुनिया में प्रेम करना सबसे ज्यादा ख़तरनाक रहा ख़ासकर भारतीय परिवेश में जहां इंसानो से ज्यादा ग़ुरूर को तरजीह दी जाती हो. देव साहब एवं उनकी प्रेयसी सुरैय्या जी की अमर प्रेम कहानी का जिक्र आज भी बड़ी अदब के साथ किया जाता है. यूँ तो देवानंद साहब को खुशमिजाज, उदासी में भी खुशी ढूंढ लाने वाले महबूब थे, लेकिन अपनी प्रियतमा सुरैय्या जी के लिए देव साहब ने बेशुमार आंसू बहाए हैं, जिससे उनका रूहानी प्रेम और पवित्र हो गया… आज भी समर्पित प्रेमिकाओं में सुरैय्या जी सबसे पहले याद की जाती हैं. देव साहब ने अपनी प्रिय महबूबा के लिए अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ़’ में बड़े प्यार सम्मान के साथ उनको याद करते हुए लिखा है –

हमारी पहली मुलाकात फिल्म विद्या की शूटिंग के दौरान हुई थी.उस समय सुरैया एक बड़ी अभिनेत्री थीं और मैं अपने करियर की शुरुआत कर रहा था, लेकिन इसके बावजूद दोनों एक दूसरे के प्यार में डूबने लगे थे.सुरैय्या एवं मैं शुरुआत में एक – दूसरे से बहुत जुदा थे, वो बहुत बड़ी स्टार थीं, उनकी अपनी एक कामयाब शख्सियत थी, फिर भी प्रेम कामयाबी एवं असफ़लता से परे होता है. सुरैय्या बड़ी – बड़ी गाडियों में आती थीं, और मैं मुंबई लोकल ट्रेन में खाक छानता था. मैंने अपना परिचय देते हुए कहा था, ”सब लोग मुझे देव कहते हैं, आप मुझे किस नाम से पुकारना पसंद करेंगी? सुरैय्या ने कहा ‘”आप बहुत सुन्दर हैं, हॉलीवुड सुपरस्टार ग्रेगरी पेक की तरह ही जचते हैं”. मैं भी बहुत आत्मविश्वास से लबरेज़ था, मैंने कहा “मैं देवानंद हूं उनसे भी ज्यादा अपनी तरह जचता हूं “. सुरैय्या बहुत इम्प्रेस हुईं. उनकी नाक बहुत सुन्दर थी मैं आख़िरकार उनको’ नोजी’ कहकर पुकारने लगा था.

एक दिन भी ऐसा होता था, कि हम एक-दूसरे न मिलें. रोज़ हमारी बातें टेलीफोन पर लंबी खिंच जाया करती थीं. हाँ मैं उससे बेइंतिहा प्यार करने लगा था. ऐसा भी नहीं है कि इससे पहले मैं किसी पर आशक्त नहीं हुआ. पहले भी किसी से शारीरिक, भावात्मक रूप से मेरा मिलन नहीं हुआ था, लेकिन एक दो बार सबकुछ शादीशुदा औरतों के साथ हुआ था. अब यह मेरा पहला कोरा पवित्र प्रेम सुरैय्या थीं. इस बार हर बार की तरह उम्र का फ़ेर नहीं था, उमंग और किसी को पाने की उत्सुकता और तडफ थी. इसी तड़प के कारण मैं सुरैय्या जी के घर खूब जाने लगा था. हम दोनों घर के किसी कोने में अपने दिल के तार मिलाते रहते तमाम दावे करते रहते.

इश्क़ कब छुपा है जो अब छिपता उसके घर वालों की पैनी नज़रों से हमारा पवित्र प्रेम ज़्यादा दिन छुप नहीं सका सका. हमारे ऊपर कड़ी नज़र रखी जाने लगी, तमाम तरह की पाबंदियों से गुज़र रहे थे. अफ़सोस सिर्फ़ अफ़सोस कुछ धर्म के पैरोकारों ने हमारे प्रेम को धर्म का रंग दे दिया. कुछ नफ़रत के पैरोकारों ने सुरैय्या जी की नानीजी के दिमाग़ में धर्म का उन्माद भरना शुरू कर दिया था. हमें शक की नजरों से देखा जाने लगा था, जैसे हम कोई अपराधी हों, जल्दी ही मुझे अंदेशा हो गया था, कि उस घर में मैं अनचाहा मेहमान बन गया हूँ, जिसके पीछे पूरा ज़माना दुश्मन बना हुआ है. अंततः मजबूरन मैंने भी सुरैय्या जी के घर में आना-जाना छोड़ दिया था. मेरा सुरैय्या जी के घर जाना बन्द हो गया था. दुःखद अब हम शूटिंग के सेट पर ही मिल पाते थे. धर्म के ठेकेदारों ने सुरैय्या जी की नानी जी के अन्दर मेरे धर्म को लेकर ऐसा ज़हर घोल दिया था, कि शूटिंग के सेट पर भी उनकी पैनी नज़र बनी रहती थी. यहाँ तक कि उन्होंने हमारे सीन पर भी दख़लंदाज़ी शुरू कर दिया था. एक बार एक सीन में मुझे सुरैय्या जी के की आँखों पर चुम्बन करना था, लेकिन सुरैय्या जी की नानी जी को जब यह पता चली तो उन्होंने सेट पर बवाल मचा दिया. फ़िल्म के लिए वो सीन बहुत आवश्यक था. अपने स्टाफ़ की मदद से कुछ देर के लिए नानीजी को सेट से बाहर भेजा एवं शॉट पूरा कर लिया था. इस घटना से मेरे को एक बात स्पष्ट हो गई की सुरैय्या जी के पास अपनी ज़िंदगी को अपने आप जीने का अधिकार नहीं था और उसकी जीवन की बागडोर उनकी नानी जी के हाथ में थी. मुझे जितना सुरैय्या जी से मिलने से रोका जाने लगा था. उनसे मिलने की भूख मेरे अंदर और तीव्र होती गई और यह भूख पागलपन की हद से गुजरने लगी थी.

अब मेरे हालात खराब होते जा रहे थे, मैं भी भावुक प्रेमी मजनूँ या रोमियो की तरह अपनी लैला या जयूलियट को हरदम उसके आग़ोश में रहना चाहता था. मेरे आपार दुःख का अंदाजा लगाकर खुद को बहुत लाचार समझ रहा है था.  सुरैय्या से मेरा सामना केवल सेट पर होता था और वो भी उनकी नानी जी और अकंल की शक से भरी हुई निगाहों के सामने…. उन दोनों के सामने हम कोई भी व्यक्तिगत बात नहीं कर पाते थे. यह बात मुझे अन्दर ही अन्दर खोखला कर रही थी, मैं बहुत दुखी रहने लगा था. मैंने पहली बार महसूस किया कि प्यार करने वालों को जब मिलने नहीं दिया जाता तो उन्हें कैसा लगता है. क्यों प्रेम करने वाले आत्महत्या कर लेते हैं. पर मैं भी अलग मिट्टी का बना हुआ था. मैंने भी तय कर लिया कि मैं हार नहीं मानूँगा और सुरैय्या से मिलूँगा और सीना ठोक कर मिलूँगा पर कैसे ? यह अब मुझे तय करना था, खुद ही कोई युक्ति निकालना चाहता था.

हम दोनों को कुछ बात करने की इजाज़त नहीं थी. अपने-अपने संवाद बोलकर अलग हो जाते थे. सुरैय्या जा कर अपनी नानी जी और अंकल के पास जा कर ऐसे बेठ जाती थी जैसे कोई मेमना दो कसाइयों के बीच में बैठा हो. एक बार हमारा कैमरामैन देवीचा हमारे लिए मसीहा बन कर आए वह सुरैय्या के परिवार के नज़दीकी थे. उन्होंने मुझ से कहा “मैं आप दोनों के लिए संदेश वाहक का काम करूंगा और इस प्रकार हम दोनों अपने संदेश एक दूसरे को पहुंचाने लगे. सुरैय्या बार बार संदेशों के माध्यम से मुझे जताती थी वो मुझे बेहद प्यार करती थी पर उसकी अपनी नानी जी और अकंल के आगे बिलकुल नहीं चलती थी. मुझे पता चलता कि सुरैय्या हमेशा रोती रहती हैं. हालाँकि की सुरैय्या की माँ को हम से लगाव था, लेकिन उनकी घर में सुनता कौन था. एक दिन जब मैं बार बार टेलीफोन से सुरैय्या से बात करने की कोशिश में था तो उन्होंने ने फ़ोन उठाया और मुझे बताया, “सुरैय्या सुबह से ही रो रही हैं”. सुनकर मैं भी बहुत रोया कुछ समझ नहीं आ रहा था.

मैंने उनकी माँ से पूछा “क्या मैं सुरैय्या से बात कर सकता हूँ”? तो उन्होंने ने कहा कि नहीं! क्योंकि इस वक़्त सुरैय्या के साथ उनकी नानी जी हैं. फिर उन्होंने फुसफुसाहट में कहा “तुम चाहो कल रात को साढ़े ग्यारह बजे छत पर मैं तुम्हारी मुलाक़ात सुरैय्या से करवा सकती हूँ.तुम बाहर वाली सीढ़ियों से छत पर आ सकते हो”? मैंने अपनी सहमति उनको दे दी. मैंने सोचा कि कहीं मुझे फँसाने के लिए जाल तो नहीं बुना जा रहा. अगर मैं सुरैय्या के घर में पकड़ा गया तो सारे मीडिया में यह बात फैल जाएगी. साथ ही स्कैंडल बनेगा,ज़ैल भी जाना पड़ सकता है. यह सोच कर मुझे सिरहन होने लगी. मेरा एक दोस्त ‘तारा’ नामक पुलिस इन्सपेक्टर था.. मैंने उस को सब कुछ बताया और वह मेरी मदद करने को तैयार था. अगले दिन हम रात को सुरैय्या के घर पहुंच गए थे. तारा ने मुझे एक टॉर्च थमा दी और कहा “तुम कोई ख़तरा देखना तो टॉर्च से इशारा करना”. तारा के पास पिस्टल थी, मैं खुद को सुरक्षित महसूस कर रहा था.जब मैं छत पर पहुँचा तो मुझे पानी की टंकी के पास एक साया नज़र आया जी हाँ वो मेरी सुरैय्या ही थी. मुझे देख कर उसने बाँहें फैला दी और मै दौड़ कर उसकी बाँहों से लिपट गया. मैं सुरैय्या के आलिंगन में कुछ ऐसे समा गया था, कि हवा जाने की साँस भी नहीं थी. फिर कुछ ऐसा हुआ कि हम दोनों एक लम्बे चुंबन की ओर चले गए, चुंबन इतना लम्बा हो गया कि हमें समय का पता ही न चला. जब हम अलग हुए तो दोनों की धड़कने बढ़ी हुई थीं, मैंने हाँफते हुए सुरैय्या से पूछा ‘ मुझ से शादी करोगी ? ‘ सुरैय्या ने भी हाँफते कहा ‘ मैं तुम से बेइंतिहा प्रेम करती हूँ….. 3’ मैंने सुरैय्या को बाहों में भरकर उसकी बात की पुष्टि कर दी. उस मुलाक़ात के बाद दूसरे दिन मैं जावेरी बाज़ार गया एवं एक हीरे की अंगूठी ख़रीद लाया. अब समस्या यह थी कि यह अंगूठी सुरैय्या तक कैसे पहुँचे!! फिर हमारी मदद के लिए हमारा केमरामैन आया और मेरी अंगूठी सुरैय्या तक पहुँचा दी. सुरैय्या ने वो अंगूठी खुशी से स्वीकार कर ली. मैं खुश था पर इस दरम्यान हमारी शूटिंग ख़त्म हो चुकी थी. अब हमारा मिलना लगभग बन्द हो गया था. मुझे अब सुरैय्या के बारे में सूचना मिलनी भी बन्द हो गई और सब से बुरी बात यह हुई कि सुरैय्या के घर वालों दीवचा के लिए भी घर के दरवाज़े बन्द कर दिए थे. समय बीतने लगा पहले दिन फिर हफ़्ते फिर महीने पर मुझे सुरैय्या के बारे में कोई खबर न मिली. फिर एक दिन दीवचा आया और उस ने मुझे बताया कि सुरैय्या के ऊपर दबाव डाला गया कि मेरा और सुरैय्या का रिश्ता नहीं चल सकता. सुरैय्या की माँ को छोड़ कर कोई भी इस रिश्ते को मान्यता देने को तैयार नहीं था. बात यहाँ तक बड़ गई कि किसी न किसी को मौत के घाट उतारने तक की नौबत आ गई. तब सुरैय्या ने एक फ़ैसला लिया और मेरी दी हुई अंगूठी सागर में फेंक दी. सुरैय्या ने मेरी जान बचाने के ख़ातिर हमारे प्रेम को अपने अंदर दफ़्न कर लिया था. मुझे लगा मेरा सबकुछ खत्म हो गया था. एक बार तो मैंने सुसाइड करने का फ़ैसला किया  मेरे बड़े भाई चेतन  आनन्द ने मुझे समझाया. मुझे कहा “यह घटना तुझे और मज़बूत करेगी और दुनिया में हर तरह के हालात से लड़ना सीखाएँगी”. इस प्रकार देव साहब प्रेम कहानी अमर हो कर रह गई. सुरैय्या जी देव साहब के प्रेम को अपने अंदर समेटे हुए थीं. उम्र भर कुँवारी रही और उन्होंने शादी नहीं की. बाद में दोनों एक – दूसरे से आजीवन मिलते रहे, लेकिन दोनों ने कभी सामाजिक मर्यादाओं को नहीं लांघा. देव साहब ने हज़ारों बार जिक्र किया है, कि मेरी ज़िन्दगी का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय सुरैय्या थीं, मैं उसके बिना अधूरा हूं. ज़िन्दगी के आख़िरी दिनों में सुरैय्या हस्पताल में भर्ती हुईं, आख़िरकार आज ही के दिन 31 जनवरी 2004 को देव साहब की अमर प्रेमिका सुरैय्या अपने प्रेमी को छोड़कर इस दुनिया से रुख़सत कर गईं. पूरी दुनिया को उम्मीद थी, कि देव साहब अपनी प्रेमिका को को अंतिम विदाई देने ज़रूर जाएंगे, लेकिन देव साहब नहीं गए, उनका कहना था कि मेरे लिए आसान नहीं था उसकी लाश देखना जिसको मैंने अपनी ज़िन्दगी में सबसे ज्यादा प्रेम किया… अगर मैं जाता तो सारी मर्यादाएं टूट जातीं…. ख़ैर अगर इस दुनिया में अगर पुर्नजन्म होते हों तो हमारे देव साहब एवं उनकी अमर प्रेयसी सुरैय्या जी का मिलना जरूर कराना… हिन्दी सिनेमा में एवं इस अवसरवादी दुनिया में सुरैय्या जी जैसी प्रेमिका मिलना सात जन्म सफल करना है… देव साहब तो ठीक है, लेकिन सुरैय्या जी के जिक्र के साथ मेरा अंतर्मन भीग जाता है… दुनिया कुछ भी कहे… सुरैय्या जी केवल और केवल हमारे प्रिय देव साहब की थीं… और रहेंगी.. देव साहब की अंतरात्मा महान सुरैय्या जी को मेरा सादर प्रणाम… आप हमेशा अपने देव साहब के साथ अमर रहेंगी..

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