हिंदू आस्था का कत्लगाह बनता पाकिस्तान

अरविंद जयतिलक
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हिंदू मंदिर पर हजारों मुसलमानों का हमला यह रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि पाकिस्तान कोई देश नहीं बल्कि हिंदू आस्था को लहूलुहान करने वाला क्रूरता का सबसे बड़ा केंद्र है। जिस तरह कट्टरपंथियों ने भव्य गणेश मंदिर को विध्वंस कर सैकड़ों हिंदू परिवारों को निशाने पर लिया उससे साफ जाहिर होता है कि इस कारस्तानी के पीछे सिर्फ कट्टरपंथियों और उन्मादियों का ही हाथ नहीं बल्कि पाकिस्तान सरकार की मिलीभगत भी है। हिंदू प्रत्यक्षदर्शियों का स्पष्ट कहना है कि जिस समय गणेश मंदिर पर हमला हुआ उस समय पुलिस नदारद रही और ज्यों ही मंदिर पूरी तरह नष्ट हो गया तब दिखाने के लिए सेना तैनात कर दी गयी। यही नहीं घंटो चली मंदिर विध्वंस की इस हिंसा के असली गुनाहगारों के खिलाफ अभी तक कार्रवाई भी नहीं हुई है। गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान में किसी हिंदू आस्था केंद्र को मजहबी दहशतगर्दों ने निशाना बनाया हो। सच तो यह है कि आए दिन हिंदू आस्था केंद्रों को निशाना बनाया जाता है। हाल ही में पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत द्वारा देश के धर्मस्थलों की जानकारी के लिए नियुक्त एक सदस्यीय आयोग की रिपोर्ट से भी खुलासा हुआ है कि हिंदू समुदाय के अधिकांश धर्मस्थल खस्ताहालत में हैं। उनकी सुरक्षा और रखरखाव का समुचित प्रबंध नहीं है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन धर्मस्थलों के लिए जिम्मेदार ‘इवैक्यू ट्रस्ट प्राॅपर्टी बोर्ड’ अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकांश प्राचीन और पवित्र स्थलों के रखरखाव में विफल रहा है। उल्लेखनीय है कि आयोग ने चकवाल के कटास मंदिर और मुल्तान के प्रहलाद मंदिर समेत कई अन्य महत्वपूर्ण मंदिरों का दौरा किया और पाया कि ये मंदिर पूरी तरह क्षत-विक्षत अवस्था में हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो 1947 में पाकिस्तान में 428 हिंदू मंदिर थे। इनमें से कुछ मंदिर बहुत बड़े और सुविख्यात थे। लेकिन इन मंदिरों को पाकिस्तान के हुक्मरानों ने साजिश के तहत ध्वस्त कर इस्लामिक इमारतों और मस्जिदों में तब्दील कर दिया। आज की तारीख में सिर्फ 26 हिंदू मंदिर बचे हैं और वह भी बेहद जर्जर हालत में हैं। अभी हाल ही में अमेरिका द्वारा प्रकाशित धार्मिक आजादी पर बने अंतर्राष्ट्रीय आयोग (यूएससीआईआरएफ) की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि पाकिस्तान धार्मिक आजादी के लिए एक खतरनाक देश है। वह अपने यहां अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न और उनके साथ होने वाले भेदभाव को रोकने में नाकाम है। रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में सबसे अधिक भेदभाव हिंदू अल्पसंख्यकों के साथ होता है। आंकड़ों पर गौर करें तो भारत विभाजन के समय पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं की आबादी तकरीबन 15 प्रतिशत थी जो आज घटकर 1.6 प्रतिशत रह गयी है। विचार करें तो हिंदू अल्पसंख्यकों से भेदभाव और उनके आस्था केंद्रों पर होने वालेे हमले के लिए सिर्फ कट्टरपंथी ताकतें ही जिम्मेदार नहीं हैं। पाकिस्तान सरकार की अल्पसंख्यक विरोधी नीति विशेष रुप से ईश निंदा कानून और नफरती मजहबी शिक्षा भी जिम्मेदार हैं। अमेरिकी आयोग की एक रिपोर्ट से उद्घाटित हो चुका है कि पाकिस्तानी स्कूलों की किताबें अल्पसंख्यकों विशेषकर हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत और असहिष्णुता से अटी पड़ी हैं । मजहबी शिक्षक हिंदू अल्पसंख्यकों को इस्लाम के शत्रु की तरह पेश करते हैं। उन्हें काफिर बता मुस्लिम बच्चों के मन में जहर घोलते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में सामाजिक अध्ययन की पाठ्य पुस्तकें भारत के संबंध में नकारात्मक टिप्पणियों से भरी पड़ी हैं। यहां जानना आवश्यक है कि पाठ्य पुस्तकों के इस्लामीकरण की शुरुआत अमेरिका समर्थित तानाशाह जिया-उल-हक के काल में हुई। बाद की सरकारों ने पाठ्यक्रमों में सुधार की बात तो की लेकिन उसमें बदलाव की हिम्मत नहीं दिखायी। इसका मूल कारण है कि वे कट्टरपंथियों और आतंकियों से डरती हैं। गत वर्ष पहले अमेरिकी संगठन प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण से उद्घाटित हुआ था कि पाकिस्तान में हर चार में से तीन नागरिक भारत के बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। इसका मुख्य कारण स्कूलों में परोसी जा रही जहरीली मजहबी शिक्षा है। एक अन्य सर्वेक्षण के मुताबिक 57 प्रतिशत पाकिस्तानी नागरिक भारत को अलकायदा और तालिबान से भी खतरनाक मानते हैं। यही वजह है कि पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों की आवाज बुलंद करने वाले मार दिए जाते हैं। याद होगा गत वर्ष पाकिस्तान के 42 वर्षीय मंत्री शहबाज भट्टी की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गयी कि उन्होंने अल्पसंख्यक हितों की आवाज बुलंद की थी। अल्पसंख्यकों के हक़ में उनकी पहल कट्टरपंथियों को रास नहीं आयी और उन्होंने उन्हें मौत की नींद सुला दिया । कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठाने वाले पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर को भी कट्टरपंथियों ने मार डाला। अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुकात रखने वाली आसिया बीबी को भी कट्टरपंथियों ने नहीं बख्शा। आज की तारीख में कट्टरपंथियों का हौसला इस कदर बुलंद है वे हर उदारवादी को निशाना बना रहे हैं। भला ऐसे में हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय के लोग और उनके आस्था केंद्र किस तरह सुरक्षित रहेंगे। विचार करें तो कट्टरपंथी ताकतें हिंदू अल्पसंख्यकों को खत्म करने के लिए दो रास्ते अपना रही हैं। एक उनकी हत्या और दूसरा धर्मांतरण। यहीं वजह है कि पाकिस्तान से हिंदू अल्पसंख्यक पलायन कर रहे हैं। गौर करें तो पिछले आधे दशक में ही पाकिस्तान से 25000 से अधिक हिंदुओं का पलायन हुआ है। हिंदू अल्पसंख्यकों की मानें तो उनके धर्मस्थलों को नष्ट कर दिया गया है। कट्टरपंथी ताकतें सिंध, खैबर -पख्तूनख़्वाह और ब्लूचिस्तान में हिंदुओं को डरा-धमका और हत्याकर पाकिस्तान छोड़ने पर मजबूर कर रही हैं। पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों का जीना किस कदर मुहाल है, इसी से समझा जा सकता है कि पाकिस्तान से धार्मिक वीजा पर भारत आए हिंदू परिवार अब वापस पाकिस्तान लौटना नहीं चाहते हैं। उन्हें डर है कि लौटने पर उन्हें मुसलमान बना दिया जाएगा। पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत और ब्लूचिस्तान में स्थिति कुछ ज्यादा ही भयावह है। यहां अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से जबरन जजिया वसूला जा रहा है। जजिया न चुकाने वाले हिंदुओं की हत्या कर उनकी संपत्ति लूट ली जा रही है। मंदिरों को जलाया जा रहा है। अभी गत वर्ष ही पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) की रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि देश में हिंदू समुदाय के लोगों की स्थिति बेहद भयावह है। वे गरीबी-भूखमरी के दंश से जूझ रहे हैं। आर्थिक रुप से विपन्न व बदहाल हैं। वे आतंक, आशंका और डर के साए में जी रहे हैं। एचआरसीपी की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हिंदू लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। धर्म परिवर्तन का ढंग भी बेहद खौफनाक, अमानवीय व बर्बरतापूर्ण है। हिंदू लड़कियों का पहले अपहरण कर उनके साथ बलात्कार किया जाता है और फिर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया जाता है। उपर से त्रासदी यह कि जब मामला पुलिस के पास पहुंचता है तो पुलिस भी बलात्कारियों पर कार्रवाई के बजाए हिंदू अभिभावकों को ही प्रताड़ित करती है। उन्हें मानसिक संताप देने के लिए बलात्कार पीड़ित नाबालिग लड़की को उनके संरक्षण में देने के बजाए अपने संरक्षण में रखती है। पुलिस संरक्षण में एक अल्पसंख्यक लड़की के साथ क्या होता होगा उसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। गौर करें तो पाकिस्तान का अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय एक अरसे से अपनी सुरक्षा और मान-सम्मान की रक्षा की गुहार लगा रहा है। यदा-कदा कुछ सामाजिक संगठन भी अल्पसंख्यकों के पक्ष में आवाज बुलंद करते रहते हैं। लेकिन पाकिस्तान की इमरान सरकार व कट्टरपंथी संगठन उन्हें डरा धमकाकर चुप करा देते हैं। पाकिस्तानी सीनेट की स्थायी समिति बहुत पहले ही हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की घटनाएं रोकने के लिए सरकार को ताकीद कर चुकी है। लेकिन अब तक पाकिस्तान की किसी भी सरकार ने इस दिशा में ठोस पहल नहीं की। इमरान सरकार भी हाथ पर हाथ धरी बैठी है। जाहिर है कि हिंदू अल्पसंख्यकों के प्रति उसकी नीयत में खोट है। दरअसल सरकार को डर है कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने पर कट्टरपंथी ताकतें नाराज हो जाएंगी। यही वजह है कि आज पाकिस्तान हिंदू अल्पसंख्यकों और उनके आस्था केंद्रों के लिए खतरनाक देश के रुप में तब्दील हो चुका है।
बेन जानसन : दुनियाँ का सबसे तेज धावक क्यों बन गया रिले रेस पर काला धब्बा

डॉ. सरनजीत सिंह
फिटनेस एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट
दिन शुक्रवार, 23 सितम्बर, 1988 सिओल, साउथ कोरिया, ओलिंपिक का वो दिन जिसे कोई खेल प्रेमी कभी नहीं भूल सकता. ये वो दिन था जब सभी की आँखे दुनिया के सबसे तेज दौड़ने वाले इंसान को देखने के लिए बेकरार थीं. इसमें मुकाबला नौ बार ओलिंपिक गोल्ड मेडल जीतने वाले, अमेरिका के स्प्रिंटर कार्ल लेविस, 1984 लॉस एंजेल्स में दो ब्रॉन्ज़ मेडल जीतने वाले, जमैका में पैदा हुए, कैनेडियन स्प्रिंटर, बेन जॉनसन, 1986 यूरोपियन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले, जमैका में पैदा हुए ब्रिटिश स्प्रिंटर लिंफ़ोर्ड क्रिस्टी और 1984 ओलंपिक्स की 4×100 मीटर रिले रेस के गोल्ड मेडल विजेता कैल्विन स्मिथ के बीच था. रेस शुरू हुई और देखते ही देखते बेन जॉनसन ने 9.79 सेकेंड्स का नया विश्व रिकॉर्ड बनाते हुए सब को पीछे छोड़ दिया. उसके बाद जो हुआ उसकी वज़ह से 23 सितम्बर 1988 को आज भी ओलिंपिक का ‘काला दिवस’ माना जाता है. बेन जॉनसन डोपिंग में पकड़ा गया, उसका गोल्ड मैडल छीन लिया गया और उसके बनाये रिकॉर्ड को निरस्त कर दिया गया. ये ओलिंपिक में आज तक का सबसे चर्चित डोपिंग केस है, हालाँकि इससे पहले, इससे भी बड़े काले दिवस ओलिंपिक देख चुका था लेकिन उन दिनों को बहुत ज़ल्द भुला दिया गया, जिनका ज़िक्र मैं अपने आने वाले लेखों में करूँगा.
फिलहाल हम जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर बेन जॉनसन क्यों पकड़ा गया? उससे कहाँ चूक हुई? क्या वो बच सकता था? जबकि उसके द्वारा प्रयोग की गयी शक्तिवर्धक प्रतिबंधित दवा, ‘स्टेरॉइड्स’ का प्रयोग खिलाड़ी पिछले करीब 30 सालों से कर रहे थे. इसके अलावा हम ये भी जानने की कोशिश करेंगे कि इस घटना के बाद बेन जॉनसन का क्या हुआ?
दरअसल, ‘स्टेरॉइड्स’ (मुख्यतः टेस्टोस्टेरोन), ख़ास तरह के हॉर्मोन्स होते हैं जो प्राकृतिक रूप से हमारे शरीर में गोनेड्स (जननांग – नरों में अंडकोष व मादाओं में अंडाशय) और एड्रेनल ग्लैंड्स (अधिवृक्क ग्रंथिओं) में बनता है. इनका मुख्य कार्य यौन लक्ष्णों के विकास, रक्त संचरण और मांसपेशियों का विकास करना होता है. मांसपेशियों पर इसके प्रभाव के कारण स्पोर्ट्स से जुड़े सभी देशों के वैज्ञानिक कई सालों से इसे कृत्रिम रूप से बनाने की कोशिश कर रहे थे. और 1935 में सबसे पहले इसकी सफलता जर्मनी के वैज्ञानिकों को मिली. जिसके बाद चूंहों पर इसका सफल परीक्षण करने के बाद इसका प्रयोग सैनिकों और खिलाड़ियों पर किया जाने लगा. जिससे उन्हें अधिक आक्रामक और शक्तिवर्धक बनाया जा सके. जर्मनी के बाद रूस और दुनिया कई विकसित देशों ने भी ज़ल्द ही इसमें कामयाबी हासिल कर ली, और इनका जमकर प्रयोग ओलिंपिक के साथ साथ सभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेलों में होने लगा.
यहाँ ये जानना बहुत ज़रूरी है कि 1968 में अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक कमेटी (आई ओ सी) ने जब डोपिंग पर बैन लगाया, और प्रतिबंधित दवाओं की पहली लिस्ट जारी की, तो उसमें ‘स्टेरॉइड्स’ नहीं शामिल थे. ‘स्टेरॉइड्स’ को पहली बार 1976 में प्रतिबंधित दवाओं की लिस्ट में शामिल किया गया, जबकि इन्हें पकड़ने का सही तरीका 1983 में जर्मनी ने तैयार किया, और तब तक इनके इस्तेमाल से तमाम विश्व और ओलिंपिक रिकार्ड्स बन चुके थे, ‘स्टेरॉइड्स’ को पकड़ने की इस तकनीक को ‘गैस क्रोमैटोग्राफी मास स्पेक्ट्रोमेट्र्री’ कहते हैं. इस तकनीक के आते ही सभी छोटे-बड़े खिलाड़ियों में हड़कंप मच गया, क्योंकि इस तकनीक से उस समय प्रयोग किये जाने वाले लगभग सभी ‘स्टेरॉड्स’ को पकड़ना आसान हो गया था. इन ‘स्टेरॉइड्स’ में एक ‘स्टेरॉयड’ था, ‘स्टेनाज़ोलोल’. इस ‘स्टेरॉयड’ को 1962 में बनाया गया था, और इसके मांसपेशियों पर एनाबोलिक प्रभाव की वजह से ये बहुत जल्द खिलाड़ियों में लोकप्रिय हो गया था. ये वही ‘स्टेरॉयड’ था जिसका प्रयोग बेन जॉनसन लम्बे अरसे से करता चला आ रहा था. ‘गैस क्रोमैटोग्राफी मास स्पेक्ट्रोमेट्र्री’ तकनीक आने के बाद 1986 में प्रतिबंधित दवाओं की लिस्ट में ‘स्टेनाज़ोलोल’ को भी शामिल किया गया. इसकी जानकारी बेन जॉनसन के कोच चार्ली फ्रांसिस को भी थी, इसके बावज़ूद बेन जॉनसन ‘स्टेनाज़ोलोल’ का प्रयोग करता रहा, उसे लगा कि रेस के दिन तक ये उसके शरीर से निकल (वाश आउट) जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, और में वो पकड़ा गया. उस पर दो सालों का प्रतिबन्ध लगा दिया गया. हालाँकि इसके बाद बेन जॉनसन की जांच प्रक्रिया पर भी कई सवाल उठते रहे.
अब अगर उस समय बेन जॉनसन ‘स्टेनाज़ोलोल’ का प्रयोग न कर रहा होता या उसके शरीर से ‘स्टेनाज़ोलोल’ रेस के पहले ‘वाश आउट’ हो चुका होता, और या फिर उस समय तक ‘गैस क्रोमैटोग्राफी मास स्पेक्ट्रोमेट्र्री’ की खोज न हुई होती तो आज उसका भी नाम कई नामचीन और प्रतिष्ठित खिलाड़ियों में शामिल होता. अब यहाँ हैरान करने वाली बात ये है कि बहुत ज़ल्द खिलाड़ी ‘गैस क्रोमैटोग्राफी मास स्पेक्ट्रोमेट्र्री’ की खामियों को भी भांप गए, और उसके बाद ‘डिज़ाइनर स्टेरॉइड्स’ की खोज की गयी और अनुचित तरीके से रिकार्ड्स बनाने और मेडल्स जीतने का सिलसिला चलता रहा. 1991 में निलंबन समाप्त होने के बाद बेन जॉनसन ने फिर से खेलों में वापसी की, और 1993 में मॉन्ट्रियल, कनाडा में होने वाली एक रेस के दौरान उसे एक बार फिर प्रतिबंधित दवाओं के सेवन का दोषी पाया गया और उस आजीवन प्रतिबन्ध लगा दिया गया. कनाडा के तत्कालीन खेल मंत्री पियररे कौडियूक्स ने बेन जॉनसन को ‘राष्ट्रीय अपमान’ घोषित किया और उसे जमैका वापिस जाने के लिए कहा, 1999 में एक अधिनिर्णायक ने जॉनसन के आजीवन प्रतिबन्ध में प्रक्रियात्मक त्रुटि होने की बात कही जिससे उस पर लगा आजीवन प्रतिबन्ध तो हट गया लेकिन किसी भी खिलाड़ी उसके साथ किसी भी रेस में हिस्सा न लेने की सख्त हिदायत दी गयी. 1999 का अंत आते आते एक बार फिर उसका डोप टेस्ट हुआ, और वो फिर से दोषी पाया गया. इस तरह बेन जॉनसन का नाम खेल के इतिहास में एक कलंक बन कर रह गया.
20 साल बाद फिर अफगानिस्तान में तालिबानी राज, दुनियाँ में दहशत, अमेरिका में विरोध प्रदर्शन
अफगानिस्तान की सत्ता पर एकबार फिर तालिबान की सरकार विराजमान हो गई है। 1996 के बाद तालिबान ने फिर राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया है। राष्ट्रपति अशरफ गनी समेत ज़्यादातर बड़े नेताओं ने देश छोड़ दिया है। तालिबान के अनुसार ‘युद्ध अब खत्म हो चुका है। उसका कहना है कि अफगानिस्तान में अब ‘समावेशी इस्लामिक सरकार’ बनेगी। तालिबान ने मुल्ला शिरीन को काबुल का गवर्नर बनाया है। उधर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प ने तालिबान के कब्जे को देश की सबसे बड़ी हार बताया। वहीं रूस ने भी अमेरिका पर विफलता का दोष मढ़ा। अफगानिस्तान पर कब्जे के विरोध में अमेरिका में प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया है।
तालिबान के पॉलिटिकल ऑफिस के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने अल जजीरा से कहा, “अफगान लोगों और मुजाहिदीनों के लिए 15 अगस्त का दिन महान है। देश में युद्ध अब खत्म हो गया है।” मोहम्मद नईम का कहना है कि अफगानिस्तान में नई सरकार का ‘प्रकार और स्वरुप’ क्या होगा, ये जल्दी साफ किया जाएगा. नईम ने कहा, “तालिबान पूरी दुनिया से कटा हुआ नहीं रहना चाहता है और हम शांतिपूर्ण अंतरराष्ट्रीय रिश्ते चाहते हैं।”
दूसरी ओर काबुल में अमेरिकी दूतावास के पास दो बड़े धमाके की खबर है। इस धमाके में किसी के घायल होने या मारे जाने के बारे में अभी तक जानकारी नहीं मिल पाई है। अमेरिका ने अपना दूतावास एयरपोर्ट पर शिफ्ट कर दिया और अपने नागरिकों से सुरक्षित स्थानों पर छिपने के लिए कहा है। इसके साथ ही काबुल एयरपोर्ट पर भी गोलीबारी हुई है, जिसके कारण काबुल एयरपोर्ट पर आग लग गई। उधर अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अपने देश छोड़ने की वजह बताई है। उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि वह इसलिए अफगानिस्तान से भागे ताकि लोगों को ज्यादा खून-खराबा न देखना पड़े। मुश्किल वक्त में मुल्क छोड़कर भागने के लिए अशरफ गनी की आलोचना हो रही है।
कविता : नैतिकता
कवि- जी. पी.वर्मा
नबाबों के शहर-
लखनऊ में-
एक लड़की ने-
कैब ड्राइवर पर हाँथ-
क्या उठाया-
गूँगी नैतिकता –
चीख उठी!
कार्यवाही की-
कांव कांव हुई!
ट्वीट मिमियाने लगे!!
पर नैतिकता तब-
निरीह -मौन-
शरमाई रहती
जब मर्द-
किसी औरत को –
सड़को पर-
दौड़ा दौड़ा डंडों से-
पीटता,
वो गिड़गिड़ाती
मदद मांगती!!
शायद,पिटना
औरत का कर्तव्य,
पीटना अपराध है?
दोमुंही नैतिकता आखिर शर्मसार कब होगी?
तुम उठो, तिरंगा लहरा दो : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
75वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पीएम मोदी ने लालकिले की प्राचीर से तिरंगा फहराया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8वीं बार लाल क़िला पर तिरंगा झंडा फहराया। इसके बाद पीएम मोदी ने लाल क़िला की प्राचीर से देश को संबोधित किया. कोरोना के मद्देनजर लाल क़िला पर आजादी के कार्यक्रम में इस बार 1,500 मेहमान शामिल हुए। इस बार कोरोना महामारी के बीच पीएम का संबोधन बहुत ही खास था, जिसमें उन्होंने 100 प्रतिशत भारत की वकालत की। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि अगर 21वीं सदी में देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है, तो देश की क्षमताओं को पूरी तरह से उपयोग करना होगा। इस मौके पीआर पीएम ने कविता पढ़ी तुम उठो तिरंगा लहरा दो।
उन्होने कहा कि हमारी ताकत हमारी जीवटता का। ये समय है सपनों को पूरा करने का। प्रधानमंत्री ने कहा कि बड़े बदलाव और सुधार के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत होती है. आज दुनिया देख रही है कि भारत की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कोई कमी नहीं है. सुधार लाने के लिए गुड और स्मार्ट गवर्नेंस की जरूरत है. दुनिया देखेगी कि भारत एक नया अध्याय लिखेगा।
पीएम मोदी ने पहले मंत्र दिया था- सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास जिसमें अब उन्होंने ‘सबका प्रयास’ जोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि अब हमें शत-प्रतिशत प्रयास करने की ओर बढ़ना है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि 100 प्रतिशत गांवों में सड़कें हों, 100 प्रतिशत घरों में बैंक खाता हो, 100 प्रतिशत लाभार्थियों के पास आयुष्मान भारत कार्ड हों और 100 प्रतिशत पात्र लोगों के पास उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन हो। देश के सभी सैनिक स्कूल बेटियों के लिए खुलेंगे. हमारी बेटियां हर क्षेत्र में अद्भुत प्रदर्शन कर रही हैं।
पीएम मोदी ने कहा कि महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां, रानी लक्ष्मीबाई, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, बाबा साहेब अंबेडकर समेत अन्य सभी को आज देश याद कर रहा है. पीएम मोदी ने कहा कि जय-पराजय आते रहे, लेकिन मन में बसी हुई आजादी की आकांक्षा कभी खत्म नहीं होनी चाहिए।
पीएम मोदी ने कहा हम आजादी का जश्न मनाते हैं, लेकिन बंटवारे का दर्द आज भी हिंदुस्तान के सीने को छलनी करता है. यह पिछली शताब्दी की सबसे बड़ी त्रासदी में से एक है. कल ही देश ने भावुक निर्णय लिया है. अब से 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में याद किया जाएगा.
‘पदकवीरों का सम्मान’
पीएम ने अपने भाषण में कहा कि ओलंपिक में जिन एथलीटों ने हमें गौरवान्वित किया है, वे आज यहां हमारे बीच हैं. मैं राष्ट्र से आज उनकी उपलब्धि की सराहना करने का आग्रह करता हूं. उन्होंने न केवल हमारा दिल जीता है बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित किया है.
‘कोरोना योद्धाओं का वंदन’
पीएम ने अपने भाषण में कोरोना वैश्विक महामारी का जिक्र करते हुए देश के फ्रंटलाइन वर्कर्स की भूमिका की तारीफ की. उन्होंने कहा, ‘हमारे डॉक्टर, हमारे नर्सेस, हमारे पैरामेडिकल स्टाफ, सफाईकर्मी, वैक्सीन बनाने मे जुटे वैज्ञानिक हों, सेवा में जुटे नागरिक हों, वे सब भी वंदन के अधिकारी हैं।’
भारत की सेनाएँ देश का गौरव : राजनाथ सिंह
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का सम्बोधन
देश के रक्षा मंत्री ने स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित किया। उन्होने कहा कि राष्ट्र आज मध्य रात्रि से स्वतंत्रता के एक महत्वपूर्ण पड़ाव, यानि इसके 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। इस अवसर पर देश में चहुंओर उत्सव का वातावरण है।
सेना के सूबेदार नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक में ट्रैक एवं फील्ड इवेंट की भाला फेंक प्रतियोगिता में देश के लिए सर्वप्रथम स्वर्ण पदक अर्जित कर इस वर्ष के स्वतंत्रता दिवस को और भी आनंददायी बना दिया है। सूबेदार नीरज के साथ–साथ अन्य ओलंपिक पदक विजेता भारतीय खिलाड़ी कल लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह में विशेष रूप से आमंत्रित किए गए हैं।
यह वर्ष इसलिए भी कुछ खास है क्योंकि पचास वर्ष पूर्व 1971 में आपने अपनी वीरता के झंडे गाड़े थे। इस उपलब्धि को भी राष्ट्र आज गर्व से याद करता है। आज का यह अवसर वीरगति प्राप्त उन सूरमाओं को भी स्मरण करने का है जिन्होंने राष्ट्र की सेवा में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है। मैं उनके परिवारजनों को आश्वासन देता हूं कि हम सब भारतवासी न केवल आपके साथ हैं बल्कि कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें सदा याद करता रहेगा। सरकार ने इस वर्ष जनवरी में वीरगति प्राप्त सैनिकों को सदा के लिए अमर करने के लिए गैलंट्री अवार्ड पोर्टल शुरू किया। अनुरोध है कि आप भी इससे जुड़कर माँ भारती के उन महान वीर सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित करें।
आज़ादी के इस पावन पर्व के अवसर पर मैं पिछले वर्ष की कुछ प्रमुख घटनाओं एवं निर्णयों को साझा करना चाहता हूँ जो हमारे देश की स्वतन्त्रता को और भी सुदृढ़ करने वाले हैं।
हमारी सजगता एवं अदम्य पराक्रम के कारण गत एक वर्ष में जम्मू एवं काश्मीर में नियंत्रण रेखा पर परिस्थितियां नियंत्रण में रहीं हैं। फरवरी 2021 के बाद युद्ध विराम उल्लंघन भी कम हुआ है। सीमा पार से घुसपैठ पर सेना और सैन्य सुरक्षा बलों की सतर्कता के कारण रोक लगी है।
पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन के साथ आपसी बातचीत के द्वारा मतभेदों को सुलझाने का प्रयास जारी है। मतभेद वाले कुछ स्थानों पर disengagement की प्रक्रिया सफलता पूर्वक पूरी की जा चुकी है।
भारत सरकार आपकी परिचालन संबंधी आवश्यकताओं (Operational Requirements) की पूर्ति के लिए सदैव सजग है। रक्षा क्षेत्र के आधुनिकीकरण के लिए वित्तीय वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में ऐतिहासिक प्रयास करते हुए रक्षा पूंजी परिव्यय (Defence Capital Outlay) 1.13 लाख करोड़ से बढ़ाकर 1.35 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है जो पिछले वित्तीय वर्ष से 18.75 प्रतिशत अधिक है। मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूँ देश की सुरक्षा के लिए सरकार कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
आपको स्मरण होगा कि वायु सेना के तीक्ष्ण परिचालन (Operational Edge) को बनाए रखने के लिए भारत सरकार ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए फ्रांस की सरकार के साथ समझौता किया था। अब तक 26 विमान भारत आ चुके हैं। बीते 28 जुलाई को पूर्वी वायु कमान के हाशिमारा वायु सेना स्टेशन में राफेल को 101 स्क्वाड्रन में औपचारिक रूप से शामिल किया गया है। अब तक, वायु सेना स्टेशन अंबाला, 17 स्क्वाड्रन द गोल्डन एरो के बाद केवल 101 स्क्वाड्रन को ही राफेल से लैस होने का गौरव प्राप्त हुआ है। शीघ्र ही शेष राफेल विमान भी भारत आ जाएंगे जिससे हमारी वायु सेना की रक्षा क्षमता में गुणात्मक वृद्धि होगी।
केंद्रीय मंत्रीमंडल ने 13 जनवरी 2021 को वायु सेना के लिए लगभग 46 हजार करोड़ रुपये की लागत से 83 एलसीए तेजस एमके-वन ए देसी लड़ाकू विमानों की खरीद का निर्णय लिया है। हल्के लड़ाकू विमान एमके-वन ए अपने ही देश में डिज़ाइन और विकसित किये गये चौथी पीढ़ी के अत्याधुनिक लड़ाकू विमान हैं। भारत में ही हिंदुस्तान ऐरोनौटिक्स लिमिटेड इन विमानों का निर्माण करेगा। यह रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत के ध्येय को मजबूत करने का एक उल्लेखनीय उदाहरण है।
स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएसी विक्रांत ने 08 अगस्त 2021 को अपनी पहली चार दिवसीय समुद्री यात्रा पूरी की है। नौसेना डिज़ाइन महानिदेशालय के द्वारा इसकी रूपरेखा तैयार की गई एवं निर्माण कार्य कोचीन शिपयार्ड द्वारा किया गया है। छिहत्तर प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामग्री के साथ निर्मित यह पोत ‘आत्मनिर्भर भारत’ और भारतीय नौसेना की ‘मेक इन इंडिया’ की एक प्रमुख उपलब्धि है।
मेक इन इंडिया’ की एक और महत्वपूर्ण पहल में रक्षा मंत्रालय ने प्रोजेक्ट 75 (इंडिया) के अंतर्गत 20 जुलाई को छः पारंपरिक पनडुब्बियों के निर्माण के लिए 40,000 करोड़ रुपए से अधिक लागत की परियोजना प्रारम्भ की है। परियोजना के लिए चयनित साझेदारों को रणनीतिक साझेदारी मॉडल के तहत अधिग्रहण कार्यक्रम के लिए आरएफपी जारी किया है। ये पनडुब्बियां भारत के सामरिक हितों की रक्षा में काफी कारगर सिद्ध होंगी।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने हाल ही में हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमोस्ट्रेशन व्हीकल (एचएसटीडीवी) के परीक्षण के साथ हाइपरसोनिक स्क्रैमजेट प्रौद्योगिकी का सफल प्रदर्शन किया। साथ ही, परमाणु क्षमता वाली नई पीढ़ी की बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि पी और अन्य कई मिसाइलों का सफल परीक्षण भी किया।
इसी बीच डीआरडीओ ने मैन पोर्टेबल लांचर के माध्यम से एंटीटैंक गाइडेड मिसाइल (एमपीएटीजीएम) भी लांच किया। नई पीढ़ी आकाश (आकाश-एनजी) मिसाइल का भी सफल परीक्षण इस बीच किया गया है। इस उड़ान परीक्षण से स्वदेश में विकसित आरएफ सीकर, लांचर, मल्टी-फंक्शन रडार और कमांड के साथ साथ मिसाइल से नियंत्रण और संचार प्रणाली के तारतम्य के आधार पर सम्पूर्ण आयुध प्रणाली का परीक्षण सफल हुआ है।
सुदूर उत्तर और पूर्वी भारत के दुर्गम क्षेत्रों में सड़क सम्पर्क सुनिश्चित करने के लिए सीमा सड़क संगठन के कार्मिक सदा प्रयत्नशील रहे हैं किंतु पिछले कुछ समय से उन्होंने भागीरथ योगदान किया है। इसका सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण हिमाचल प्रदेश के पीर पंजाल पर्वतमाला के दुर्गम क्षेत्र में अटल सुरंग का निर्माण है। इस सुरंग का उद्घाटन आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 03 अक्तूबर 2020 को किया था। 9.2 किलोमीटर लंबी यह सुरंग 10 हज़ार फीट से अधिक ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी सुरंग है।
सीमा सड़क संगठन ने इसी महीने 19 हजार 300 फीट ऊंचाई पर उर्मलिंगला दर्रे के पास पूर्वी लद्दाख में तारकोल की 52 किलोमीटर लंबी सड़क बनायी है जो एक विश्व कीर्तिमान है। इस क्षेत्र में तापमान प्राय: शून्य से 50 डिग्री कम रहता है और शरीर में ऑक्सीजन का स्तर 50 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। मैं इस उपलब्धि के लिए सीमा सड़क संगठन के सभी साथियों को हार्दिक बधाई देता हूं।
प्रतिभाशाली वीर योद्धाओं की भावी पीढी तैयार करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने 100 नये सैनिक स्कूल स्थापित करने का निर्णय लिया है। ये सारे स्कूल सह-शिक्षा वाले होंगे जिससे हमारे देश की बेटियों को भी लाभ होगा और राष्ट्र की रक्षा में उनकी तत्पर भागीदारी बढ़ेगी।
भारतीय सेना की सभी शाखाओं में महिलाओं की भागीदारी बढाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में महिला सैन्य पुलिस के पहले बैच को भारतीय सेना में शामिल किया गया है। मई 2021 में 61 सप्ताह के कड़े प्रशिक्षण के पश्चात उत्तीर्ण हुई 83 महिला सैनिकों को मैं इस अवसर पर विशेष शुभकामनाएं देता हूं।
आदरणीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आलोक में महिला अधिकारियों के स्थायी कमीशन के लिए सरकार ने सितम्बर 2020 में स्पेशल नम्बर 05 सेलेक्शन बोर्ड गठित किया था। बोर्ड की अनुशंसा पर नवंबर 2020 में कुछ अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान किया गया। आदरणीय सर्वोच्च न्यायालय ने मार्च 2021 में एक और आदेश देकर उन महिला अधिकारियों को भी स्थायी सेवा बहाल करने को कहा था जिन्हें पुनरीक्षित मानकों के कारण स्थायी कमीशन दिया नहीं जा सका था। तत्पश्चात बोर्ड की अनुशंसा पर गत माह 147 और महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिया गया। अब तक 615 में 424 महिला अधिकारी यह लाभ प्राप्त कर चुकी हैं।
भारतीय तटरक्षक बल भी महिला सशक्तीकरण की दिशा में लगातार प्रगति कर रहा है और सभी क्षेत्रों में महिला अधिकारियों को समान अवसर प्रदान करता है। वे पुरुष अधिकारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं, जिसमें पायलटों, पर्यवेक्षकों और एयर कुशन व्हीकल (होवरक्राफ्ट) ऑपरेटरों के रूप में लड़ाकू भूमिका शामिल है।
सेना के अल्पकालिक सेवा कमीशन के अधिकारियों की दशकों से यह मांग थी कि सेवानिवृत्त होने पर उन्हें भी अपने रैंक के प्रयोग का अधिकार हो। रक्षा मंत्रालय ने इस विषय पर सकारात्मक निर्णय लिया। आशा है कि इससे न केवल उन अधिकारियों की शिकायतें दूर होंगी वरन् नए अभ्यर्थियों को अल्प सेवा कमीशन में आने की प्रेरणा प्राप्त होगी।
फरवरी 2021 में ई-छावनी पोर्टल का भी आरम्भ किया गया है। इससे 62 छावनी बोर्डों के 20 लाख निवासियों को ऑनलाइन नागरिक सेवाएं प्राप्त हो रही हैं। प्राकृतिक आपदाओं के समय भारतीय सेनाएं सदैव सेवा के लिए तत्पर रही हैं। गत वर्ष निवार, बुरेवी, तौकाते और यास जैसे चक्रवातों तथा मानसूनी बाढ़ के दौरान हमारी सेनाओं और तटरक्षक बल ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल के साथ दिन-रात एक कर जान-माल के नुकसान को टालने में अहम भूमिका निभायी।
हमारी सेनाओं का मुख्य कार्य शत्रुओं से देश की रक्षा करना है। परंतु, जब कोई अदृश्य जैविक शत्रु राष्ट्र पर संकट बनकर आए तो हमारे सेनानी शांति से बैठे कैसे रह सकते हैं! कहा भी जाता है कि संकट के समय सामर्थ्य आगे आकर समाज की रक्षा करते हैं। यही हमारी सेनाओं ने किया। हमारी सेनाओं ने, चाहे थलसेना हो या जलसेना, वायुसेना या फिर तटरक्षक, सबने कोरोना के विरुद्ध हमारे वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, चिकित्साकर्मियों एवं समाज के अन्य कर्मयोगियों के साथ मिलकर राहत एवं बचाव कार्य, कोरोना टीकाकरण, रोगियों की सेवा, एवं ऑक्सीजन आपूर्ति जैसे कार्यों को कुशलता से पूरा किया है।
सशस्त्र सेना चिकित्सा सेवा ने अपने अधिकारियों और कार्मिकों की सुरक्षा की परवाह न करते हुए कोराना प्रभावित देशों से भारतीयों को वापस लाने के लिए सबसे पहले क्वारंटीन सेंटर स्थापित किए। महामारी के प्रसार के बावजूद, सशस्त्र बलों ने महामारी नियंत्रक उपायों का दृढ़ता से पालन किया है और सैन्य बलों में महामारी से लड़ने की क्षमता उच्च स्तर पर बनाए रखा है। जिस दौरान गलवान घाटी राष्ट्रीय मीडिया सुर्खियों में था, उस समय सेनाओं ने शांतिपूर्वक नागरिकों की ओर सहायता का हाथ बढ़ाया और कोविड-19 के विरुद्ध केंद्र सरकार की लड़ाई में एकजुटता दिखाई। देश की सुदूरवर्ती सीमाओं पर अग्रिम चौकी पर तैनात सैनिकों का टीकाकरण किया गया, ताकि वे किसी भी समय शत्रु से निपटने के लिए तैयार रहें।
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान, रक्षा मंत्रालय के सभी अंगों ने मिलकर देश में विभिन्न स्थानों पर कोविड केयर अस्पतालों को खड़ा किया। चिकित्सा तंत्र में ऑक्सीजन की कमी दूर करने के लिए भारतीय वायुसेना ने ऑक्सीजन सिलिंडरों एवं टैंकरों का परिवहन किया। पीएम केयर द्वारा वित्त पोषित व डीआरडीओ की प्रौद्योगिकी पर आधारित 935 मेडिकल ऑक्सीजन संयंत्रों की स्थापना की जा रही है।
डीआरडीओ को एक बड़ी सफलता कोविड उपचार के लिए दवा खोजने में मिली। डीआरडीओ की प्रयोगशाला इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज ने कोविड-19 के रोगियों के उपचार के लिए डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज, हैदराबाद के सहयोग से टू-डिऑक्सी-डी-ग्लूकोज (2-डीजी) नामक दवा का चिकित्सकीय अनुप्रयोग विकसित किया जो काफी प्रभावी रही है। आज हम कोरोना से लड़ाई में निर्णायक मोड़ पर हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि कोरोना से युद्ध में अंततः जीत हमारी होगी।
हम चाहते हैं कि अगली पीढ़ी हमारे सैनिकों की वीरता से परिचित हो। युवाओं में अनुशासन सहित मूल्य आधारित चरित्र निर्माण में नेशनल कैडेट कोर (एनसीसी) का बड़ा योगदान रहा है। अतः हमने प्रयास किया है कि एनसीसी को देश के कोने-कोने तक पहुंचाया जाए। पिछले डेढ़ वर्ष में तीन लाख एनसीसी वेकेंसी रीलीज की गयी हैं जिनमें एक-एक लाख वेकेंसी सीमावर्ती व तटीय क्षेत्रों, सीनियर और जूनियर डिवीजन के लिए हैं। एनसीसी के पाठ्यक्रम को और भी आधुनिक बनाकर सूचना प्रौद्योगिकी को ट्रेनिंग शैली का अंग बनाया गया है जिससे हमारे युवा अधिक से अधिक लाभान्वित हो सकें।
प्यारे सैनिकों, बदलते परिवेश में सुरक्षा के आयाम बदल रहे हैं। अतः आपसे अनुरोध है कि आने वाले किसी भी चुनौती के लिए स्वयं को तैयार रखें। मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि सरकार आपकी और आपके परिजनों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए सदैव तत्पर है और आगे भी रहेगी। अंत में, इन्हीं शब्दों के साथ मैं आपसे अनुरोध करुंगा कि हम सब मिलकर करें राष्ट्र का अभिनंदन!
भारत माता की जय!
वंदे मातरम्!
आजादी के प्लेटिनम जुबली साल में आम आदमी
मनीष शुक्ल
दोस्तों, आजादी के इस समारोह के साथ ही हमने स्वतंत्रता के प्लेटिनम जुबली वर्ष में कदम रख दिया है। आजादी के इतने सालों में हम बैलगाड़ी से राफेल युग में फूंच चुके हैं। देश ने खूब तरक्की की। कई उतार चढ़ाव देखे हैं। लेकिन इस तरक्की और उतार चढ़ाव के बीच आम आदमी यानि कॉमन मैन खुद को कहाँ खड़ा महसूस करता है। इस सालों में उसने कितनी तरक्की की है और किन किन समस्याओं का सामना किया है। इस बात 2टूक बात करने के लिए खुद मौजूद है आम आदमी। तो आइए मिलते हैं आम आदमी से।
एंकर : आजादी के 70 सालों बाद आप खुद को कहां खड़ा महसूस करते हैं।
आम आदमी : देखिये अब डिजिटल दुनियाँ है जिसमें जिसके पास जितना ज्यादा डाटा है वही उतना अमीर और खुशहाल है। जियो, एयरटेल, वोडाफोन जैसी कंपनियों की कृपा से जब नेट स्पीड अच्छी होती है तो खुद को ऑन लाइन महसूस करता हूँ। वरना ऑफलाइन वर्ल्ड में रहता हूँ।
एंकर : भारत के अंदर आप एक अलग दुनियाँ की बात कर रहे हैं। आखिर ये ऑन लाइन और ऑफ लाइन वर्ल्ड क्या है।
आम आदमी : देखिए जब डाटा खत्म हो जाता है तो खुद को गरीब समझने लगता हूँ। इसलिए Offline होते ही दाल, रोटी, नौकरी और परिवार की चिंता सताने लगती है। Online होते ही फिर से धर्म, समाज, राजनीती, देश, विश्व और पूरे ब्रह्माण्ड की चिंता होने लगती है…!!!
एंकर : आप पर आरोप है कि आप को फ्री की लत है। सब कुछ मुफ्त चाहते हैं और मेहनत से जी चुराते हैं।
आम आदमी : वाह जी, हम मेहनत करें और हम पर ही मुफ्त की लत का आरोप लगता है। हम कमाते हैं। टैक्स भरते हैं। और हमारे टैक्स पर नेता मौज करते हैं। सुविधाओं का उपयोग करते हैं। उनका पूरा जीवन ही मुफ्त हो जाता है। वो बिना कोई काम किए करोड़पति हो जाते हैं, और आप कहते हैं कि आम आदमी मेहनत से जी चुराता है।
एंकर : आम आदमी के साथ यही दिक्कत है कि वो किसी कि सुनता नहीं है, बस जो मन में आए करते जाओ।
आम आदमी : देखिये मैं आम आदमी हूँ इसीलिए सबकी सुनता हूँ
कोई टीपू भैया तो हूँ नहीं कि अपने ही पिता नेता जी कि बात न सुनूँ। पप्पू भैया भी नहीं हूँ मम्मी कि न सुनूँ। मै कोई मंत्री भी नहीं हूँ जो किसी कि न सुनूँ। आम आदमी को तो सबकी सुननी पड़ती है। वही सुन रहा हूँ।
एंकर : आपका नाम आम आदमी कैसे पड़ा। अमरूद, केला और कुछ और भी हो सकता था।
आम आदमी : सर जी! केला और अमरूद को आप चूस नहीं सकते हैं लेकिन आम के साथ ये सुविधा आपको आसानी से उपलब्ध है। उस पर कोई भी टैक्स लगा दो। पेट्रोल का दाम कभी भी बढ़ा दो। फल सब्जी महंगी बेच दो। जितना मन चाहे आम आदमी को चूसो फिर उसकी गुठली को सड़क पर फेंक दो। बन गया न आम आदमी।
एंकर : यानि देश का सारा बोझ आपकी पीठ पर है ।
आम आदमी : बोझ नहीं ज़िम्मेदारी कहिए। देश को आगे ले जाने कि ज़िम्मेदारी। जब प्रत्येक व्यक्ति देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझेगा तभी देश तरक्की करेगा। देश के शिक्षकों, डाक्टरों, वैज्ञानिकों, अधिकारियों समेत नेताओं ने अपना योगदान दिया तभी भारत आज विकास के पथ पर लगातार आगे बढ़ रहा है।
एंकर : लेकिन आम आदमी का इस तरक्की में क्या योगदान है।
आम आदमी : हम सुबह एक नई ज़िंदगी जीते हैं दुनियाँ भर के तनाव को लेते हुए भी अपने काम में जुट जाते हैं। हमें आज की भी चिंता है और कल की भी। हमें रोटी भी कमानी है। किसान, मजदूरों, गरीबों के रोटी जुटाने में योगदान भी करना है। हमारी मेहनत से विकास का चक्का घूम रहा है। इसी चिंता में आम आदमी को ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़, हार्ट जैसी बीमारियाँ तोहफे में मिल रही हैं। फिर भी आम आदमी रुकता नहीं है। वो चलता जाता है।
एंकर : आम आदमी होते हुए भी आपको इतना ज्ञान कहां से मिलता है।
आम आदमी : आम आदमी को ज्ञान देने वाले पांच महान विश्वविद्यालय हमारे आसपास ही हैं। पान की दूकान हो या नाई की दुकान या फिर ट्रेन का जनरल यानि आम डिब्बा आप वहाँ बैठ जाइए, आपको सारा ज्ञान मिल जाएगा। इसके अलावा दारू पिया हुआ आदमी भी ज्ञान का भंडार होता है। बाकी दुनियाँ भर का ज्ञान आप Whatsapp यूनिवर्सिटी से हासिल कर सकते हैं।
एंकर : आप जैसे आम आदमी से मिलकर मेरा जीवन धन्य हो गया। आप लोगों को क्या संदेश देंगे। आम आदमी : आम आदमी की खास बात यह होती है कि वो किसी भी हालात में हारता नहीं है। हर मुश्किल से लड़ता है और अंत में जीतता है। तो सभी लोग देश के लड़ते रहें चाहे जितनी भी बाधा आए। विकास के लिए अड़े रहें। अंत में हर हाल में खुश रहें फिर चाहे मुंबई रहें या फ़र्रुखाबाद रहें। जय हिन्द
आजादी के 75 साल : अमृत महोत्सव में याद किए जाएंगे 146 गुमनाम नायक
देश अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। इस अवसर पर सरकार अपने गुमनाम नायकों को याद करने की योजना बना रही है। सरकार उन नायकों और घटनाओं को याद करेगी जिसका अब तक प्रमुखता से जिक्र नहीं किया गया है।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने 146 नामों की सूची तैयार की है और ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के बैनर तले 75 क्षेत्रीय, 6 राष्ट्रीय और 2 अंतरराष्ट्रीय सेमिनार की योजना बनाई है। ये नाम सरकारी विभागों और इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च की तरफ से अलग-अलग तैयार किए गए हैं। 146 नामों को उनके राज्य के आधार पर बांटा गया है, जिसमें कुछ छोटी जनजातियां और जातियां भी शामिल हैं. सूची में घेलूभाई नाइक, मोहनलाल लल्लूभाई दांतवाला, नानाजी देशमुख और वामपंथी नेता रवि नारायण रेड्डी का नाम शामिल है। ओडिशा से लक्ष्मण नायक, झारखंड से तेलंगा खारिया और तेलंगाना से कोमराम भीम समेत कई जनजातीय नेताओं का नाम सूची में है. समूहों की सूची में हिंदु महासभा, आंध्र प्रदेश लाइब्रेरी एसोसिएशन, कर्नाटक साहित्य परिषद और बंगाल की अनुशीलन समिति के अलावा कई नाम शामिल हैं. अधिकारियों ने बताया कि सूची में आंध्र के कवि गरिमेला सत्यनारायण, गुजरात के वकील भुलाभाई देसाई, महाराष्ट्र से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सेनापति बापट, पंजाब से कैप्टन मोहम्मद अकरम, हरियाणा से राव तुला राम और दिल्ली से मिर्जा मुगल समेत कई नाम हैं।