Sunday, June 8, 2025
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लॉक डाउन में रिकार्ड आत्महत्या ‘रिकार्ड’

करोना महामारी ने इंसान को शारीरिक ही नहीं मानसिक रूप से भी तोड़ कर रख दिया है। इस दौरान अवसाद के मामलों ने आत्मघाती रूप भी लिया है। ऐसे संकेत राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट से मिल रहे हैं। एनसीआरबी की 2020 रिपोर्ट से पता चलता है कि देश में आत्‍महत्‍या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछले एक साल में देश में 153,052 आत्‍महत्‍या के मामले सामने आए हैं। यह संख्या साल 2019 से दस फीसद बढ़ी है।  ऐसे में सवाल किया जाना लाजमी है कि क्‍या लॉकडाउन के तनाव ने आत्‍महत्‍या के मामलों में वृद्धि की है। जब रिपोर्ट में छात्रों और पेशेवरों के आंकड़ों को देखा जाता है तो कहा जा सकता है कि मौतों के लिए लॉकडाउन का तनाव जिम्‍मेदार है।  

कोरोना महामारी के दौरान 68 दिनों के लंबे लॉकडाउन की वजह से लोगों का काफी नुकसान उठाना पड़ा था। इस दौरान न तो स्‍कूल-कॉलेज खोले गए और न ही दुकान खोलने की इजाजत दी गई। जिसके कारण 2020 के दौरान हुई आत्‍महत्‍याएं वर्ष 1967 के बाद से सबसे ज्यादा दर्ज की गई हैं। हालांकि लॉक डाउन का एक दूसरा पहलू भी सामने आया है जिसमें सड़क हादसों में काफी कमी आई है।

देश में लंबे लॉकडाउन के दौरान शहर की सुनसान सड़कों की काफी तस्वीरें वायरल हुईं थी।  इससे सड़क हादसों की संख्या में भारी गिरावट देखने को मिली है. ADSI की रिपोर्ट के मुताबिक सड़क हादसों में होने वाले मौतों में 11 प्रतिशत की कमी आई है. साल 2020 में 374,397 आकस्मिक मौतें हुई थीं. 2009 के बाद से यह सबसे कम संख्या है जब ऐसी मौतों की संख्या 357,021 थी. 2019 की तुलना में इस तरह की मौतों में 11.1% की गिरावट आई है।

रिपोर्ट के अनुसार आत्‍महत्‍या करने वालों में छात्रों और छोटे उद्यमियों की संख्‍या काफी ज्‍यादा दिखाई पड़ती है। हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स द्वारा रिपोर्ट की गई शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट में पाया गया है कि भारत में अभी भी 29 मिलियन छात्रों के पास डिजिटल उपकरणों की पहुंच नहीं है। ऑनलाइन शिक्षा जारी रखने के लिए संसाधनों का उपयोग करने में असमर्थता के कारण छात्रों के आत्महत्या करने की कई रिपोर्टें आई हैं। हर साल आत्‍महत्‍या करने वाले छात्रों की संख्‍या कुल आंकड़ों का 7 से 8 प्रतिशत होता था जो साल 2020 में बढ़कर 21.2% हो गया है. इसके बाद प्रोफेशनल लोगों की संख्‍या 16.5 प्रतिशत, दैनिक वेतन पाने वाले 15.67 प्रतिशत और बेरोजगार 11.65 प्रतिशत के आसपास थे। रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि वेतनभोगी पेशेवरों की तुलना में छोटे व्यवसायियों को अधिक नुकसान हुआ।  महामारी के कारण वित्तीय नुकसान की वजह से भारत में भारी कीमत चुकानी पड़ी है।

मार्शल आर्ट की जननी भारत, जूडो को जन्म देने वाले जापानी जिगोरो कानो

जब भी मार्शल आर्ट अक जिक्र होता है तो एक जापानी स्कूली शिक्षक जिगोरो कानो का नाम सामने आता है। कानो ने आज के दिन 1882 में जूडो का आविष्कार किया। कुश्ती और जिउ-जित्सु के संयोजन से यह खेल अपनी मार्शल आर्ट बन गया। जिगोरो कानो ने अपना जीवन दुनिया भर में जूडो की उन्नति और प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। मार्शल आर्ट मुख्य रूप से आत्म रक्षा की कला है जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी।

हमारे देश में मार्शल आर्ट्स का इतिहास बहुत पुराना है। कलरीपयट्टु भारतीय मार्शल आर्ट है, जिसकी उत्पत्ति केरल में हुई थी। यह कला दुनिया के सबसे पुराने मार्शल आर्ट्स में से मानी जाती है। इसके अलावा इंबुआन रेसलिंग मिजोरम की पारंपरिक कला है। इस मार्शल आर्ट में किक करने, सर्कल से बाहर जाने और यहां तक कि घुटनों को मोड़ने की मनाही होती है। इसमें विजेता वो बनता है, जो कि अपने हाथों और पैरों की ताकत के दम पर विरोधी को जमीन से ऊपर उठाने में कामयाब हो जाए।

उत्तर भारत की मार्शल आर्ट में शुमार मुष्टि युद्ध की उत्पत्ति वाराणसी में हुई थी। संस्कृत भाषा में मुष्टि का मतलब मुट्ठी होता है। इस मार्शल आर्ट में पंच, किक, एल्बो, नी के अलावा विरोधी को पकड़ने का नियम शामिल है। इसके अलावा वरमा कलाई दक्षिण भारत खासकर की तमिलनाडु में काफी प्रसिद्ध है। इसमें मसाज, योग और मार्शल आर्ट्स हिस्सा होते हैं। मल्लयुद्ध यानि कुश्ती का इतिहास भी भारत में हजारों साल पुराना है। कई धार्मिक गंथ्रों में भी इसका जिक्र है।

हालांकि जूडो के रूप में मार्शल आर्ट को आधुनिक और लोकप्रिय रूप देने के लिए जापान के प्रोफेसर जिगोरो कानो का ही जिक्र होता है। जापान की टोकियो इंपीरियल यूनिवर्सिटी में अध्ययन करते समय उन्होंने जूजित्सु कला में निपुण होने का निश्चय किया। फिर एक नई कला जूडो को जन्म दिया। उन्होंने 22 वर्ष की उम्र में अपना जूडो विद्यालय भी खोला और विद्यार्थियों की शारीरिक व मानसिक क्षमता को मजबूत किया।। वह अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) के सदस्य थे। जूडो को विश्वव्यापी खेल के रूप में स्थापित करने के उनके प्रयासों ने 1964 में ओलंपिक खेलों में शामिल किया। जूडो एक मार्शल आर्ट है जो एक मुकाबला खेल के रूप में अभ्यास किया जाता है और व्यक्तिगत रक्षा के लिए सेवा करने के उद्देश्य से बनाया गया था, कुछ छोटे मार्शल आर्ट्स जैसे कि ज्यू-जित्सू में शामिल होने और एक मजबूत मार्शल आर्ट बनाने के उद्देश्य से बनाया गया था। जूडो, जो जापानी में “कोमल विधि” का अनुवाद करता है। यह दुनिया में सबसे अधिक प्रचलित मार्शल आर्ट है, साथ ही फुटबॉल के बाद दुनिया का दूसरा सबसे लोकप्रिय खेल है।

जिंदगी इतनी आसान नहीं…

डॉ शिल्पी शुक्ला बक्शी

जि़दगी इतनी आसन नहीं,

जितनी नज़र आती है,

घना कोहरा हो,

या आँधी,

रोज़ी-रोटी की तलाश,

घर से बाहर ले आती है,

तपती है, गलती है देह,

सभी मौसमों में,

तभी गरीब के पेट की,

आग बुझ पाती है,

बेबस चेहरों पर फिर भी ,

सुंदर मुस्‍कान नज़र आती है,

मिट्टी में लिपटी बच्चों की नंगी देह,

चिथडों में लिपटी जिंदगी,

कितनी मासूम नज़र आती है,

साधन नहीं, पर हौंसले हैं,

आराम नहीं, सुखों से फासलें हैं,

पर जैसी भी है तंगहाल ये जिंदगी,

फटेहाल और घिसे कपड़े की,

रंगत सी जि़ंदगी,

बस कल की उम्‍मीद पर,

कायम है ये जि़ंदगी,

अपने बच्‍चों के,

चेहरे पर मुस्‍कान,

देखने की जद्दोजहद में,

खुद से ही हर रोज़ लड़ती, बेमिसाल ये जि़ंदगी।

देश के पहले लोकसभा चुनाव : चार महीने में 17 करोड़ मतदाताओं ने किया अधिकार का प्रयोग

हमारे देश को भले ही 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ लेकिन पहले लोकसभा चुनाव करने में चार सालों का वक्त लग गया। पच्चीस अक्टूबर, 1951 को आज के दिन ही पहले लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई। तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने 21 फरवरी 1952 तक चुनाव प्रक्रिया पूरी करने की अधिसूचना जारी की। जिसके बाद समूची दुनियाँ की निगाहें सबसे बड़े लोकतन्त्र की ओर लग गई। चुनाव में 17 करोड़ से अधिक भारतीय मतदाताओं ने भाग लिया और उन्होंने अंग्रेजों के इस अनुमान को गलत साबित कर दिया कि भारतीय समाज लोकतंत्र का दायित्व नहीं निभा पाएगा।

पहले चुनाव में 21 साल या उससे ऊपर के महिला-पुरुषों को मताधिकार दिया गया।  राजनीतिक दलों और स्वतंत्र उम्मीदवारों के चुनाव चिह्न वितरित किया गया। पोलिंग बूथों पर दो करोड़ से ज्यादा अलग-अलग बैलट बॉक्स रखे गए। साथ ही 62 करोड़ बैलट पेपर छापे गए थे।

चुनाव प्रक्रिया चार महीनों में और 68 चरणों में संपन्न हुई । उस समय लोकसभा की कुल 489 सीटें थीं। इसमें मल्टी सीट सिस्टम लागू किया गया था। हालांकि संसदीय क्षेत्र 401 ही थे। 314 संसदीय क्षेत्र ऐसे थे, जहां से सिर्फ एक-एक प्रतिनिधि चुने जाने थे। 86 संसदीय क्षेत्र ऐसे थे जहां एक साथ 2 लोगों को सांसद चुना जाना था। इनमें से एक सामान्य वर्ग से और दूसरा सांसद एससी/एसटी समुदाय से चुना गया। एक संसदीय क्षेत्र नॉर्थ बंगाल तो ऐसा भी रहा, जहां से 3 सांसद चुने गए। बाद में आरक्षण व्यवस्था लागू करके एक संसदीय क्षेत्र से एक सांसद चुनने की प्रक्रिया लागू की गई। पहले आम चुनाव में कुल 1874 उम्मीदवारों ने अपना दम दिखाया। मतदाता के लिए तब न्यूनतम उम्र 21 वर्ष थी और कुल 36 करोड़ आबादी में करीब 17.3 करोड़ मतदाता थे। जवाहर लाल नेहरू की अगुआई में कांग्रेस के अलावा श्रीपाद अमृत डांगे के नेतृत्व में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, श्यामा प्रसाद मुखर्जी का भारतीय जन संघ (जो बाद में बीजेपी बना), आचार्य नरेंद्र देव, जेपी और लोहिया की अगुआई वाली सोशलिस्ट पार्टी, आचार्य कृपलानी के नेतृत्व में किसान मजदूर प्रजा पार्टी समेत कुल 53 छोटे-बड़े दल मैदान में थे। इस पहले आम चुनाव में कुल 45.7 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की अगुआई में कांग्रेस ने इन चुनावों में एकतरफा जीत हासिल की। फूलपुर लोकसभा सीट से जवाहर लाल नेहरू ने विशाल अंतर से जीत हासिल की। साधारण बहुमत के लिए 245 सीटों की जरूरत थी, लेकिन कांग्रेस ने कुल 489 सीटों में से 364 पर अपना परचम लहराया। दूसरे नंबर पर सीपीआई रही, जिसके खाते में 16 सीटें आईं। 12 सीटों के साथ सोशलिस्ट पार्टी तीसरे स्थान पर रही।

संयुक्त राष्ट्र को विश्व शांति के लिए अपनी ताकत झोंकनी चाहिए

बुद्धा पीस फाउंडेशन के द्वारा सयुक्त राष्ट्र दिवस के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

संयुक्त राष्ट्र को युद्ध से पूर्व शांति के लिए अपनी ताकत लगानी चाहिए बल्कि इसे सामाजिक क्षेत्र में भी बढ़ावा देना चाहिए । संयुक्त राष्ट्र दिवस के अवसर पर यह विचार डोम कंसल्टिंग और सैन जोस , कैलिफ़ोर्निया ने बुद्ध शांति फाउंडेशन के दूसरे अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी- वेबिनार में प्रकट किए। सरस्वती विद्या मंदिर, कमला नगर, आगरा में आयोजित द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी- वेबिनार में उन्होने कहा कि विश्व शांति के लिए यह न केवल महत्वपूर्ण है बल्कि मानवीय आवश्यकता है। इसमें दस देशों के प्रतिनिधियों के अतिरिक्त देश के विभिन्न क्षेत्रों से लोगों ने भाग लिया । सयुक्त तौर पर वक्ताओं द्वारा संयुक्त राष्ट्र संगठन के  द्वारा वर्तमान विश्व परिदृश्य में शांति बहाली के लिए तत्काल सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया अन्यथा यह  विश्व संगठन अपनी प्रासंगिकता खो देगा ।
श्रीमती भावना श्रीवास्तव, समाजसेविका और वॉर्सेस्टर , यूएसए  से यूएनडीपी कार्यकर्ता के रूप में अपना अनुभव साझा किया, उन्होंने कहा कि शिक्षा द्वारा विश्व शांति को बढ़ावा देने के लिए दुनिया में शिक्षा को बढ़ावा देना बहुत महत्वपूर्ण है। पता चल जाता है कि क्या सही है और क्या गलत। उन्होंने स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया।
देहरादून की मानवाधिकार कार्यकर्ता श्रीमती शेवता राय तलवार ने संयुक्त राष्ट्र की बहुआयामी भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि अगर गांधी और उनके अहिंसा प्रेम और स्नेह के सिद्धांत को सदस्य देशों के बीच बढ़ावा दिया जाए, तो विश्व शांति स्पष्ट रूप से महसूस की जा सकती है।
रवांडा के ट्रस्ट इंडस्ट्रीज के महाप्रबंधक हर्बर्ट बरसा काजय ने कुछ गृहयुद्ध संचालित अफ्रीकी देशों की स्थितियों की समीक्षा करते हुए जोर देकर कहा कि संयुक्त राष्ट्र को अशांत और अस्थिर देशों में अपनी शांति सेना को तैनात करने में संकोच नहीं करना चाहिए, और तब तक इंतजार नहीं करना चाहिए जब तक कि स्थिति  और खराब न हो जाए। वर्तमान मे विश्व शांति के लिए ठोस सुधार की आवशकता है।

श्री री – बलूच बिलाल, यूरोपीय संघ में मान्यता प्राप्त पत्रकार और स्तंभकार, फ्रांस से संयुक्त राष्ट्र में चीन की भूमिका का वर्णन करने में बहुत साहसी थे, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि चीन अपनी धन शक्ति से संयुक्त राष्ट्र को दृढ़ता से प्रभावित कर रहा है। और संयुक्त राष्ट्र चीन की कठपुतली मात्र है।
मुंबई से आर्ट ऑफ लिविंग के फैकल्टी एमएस जिग्नासा पांडे ने कहा कि व्यक्तिगत शांति और शांति विश्व शांति के लिए काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यदि हम वेदों जैसे प्राचीन भारतीय शास्त्रों को पढ़ें, तो हम विश्व शांति में स्वयं सहायक होंगे।
डॉ. वीरेंद्र प्रकाश, पूर्व संयुक्त आयुक्त जीएसटी ने जोर देकर कहा कि विश्व शांति के लिए गरीबी, अभाव और निरक्षरता का उन्मूलन बहुत महत्वपूर्ण है, उन्होंने विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, आईडीए, आईएफसी, यूएनडीपी जैसे विभिन्न अंगों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को बरकरार रखा। यूनिसेफ आदि ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र कुछ मामलों में विफल रहा है लेकिन साथ ही कुछ अन्य मामलों में काफी सफल रहा है।
प्रोफेसर पी के चौबे ने जोर देकर कहा कि संयुक्त राष्ट्र में एक लोकतंत्र होना चाहिए, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में प्रचलित वीटो प्रणाली की निंदा की क्योंकि यह लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है।
संगोष्ठी के अंत में संयोजक डॉ रजनीश त्यागी ने दिन के महत्व का वर्णन किया, और इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र की थीम बिल्डिंग बैक टूगेदर फॉर पीस एंड प्रॉस्पेरिटी का वर्णन किया।
डॉ. राजीव उपाध्याय ने संयुक्त राष्ट्र दिवस पर बोलते हुए कहा कि यह अवसर जनता को चिंता के मुद्दों पर शिक्षित करने, वैश्विक समस्याओं को दूर करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और संसाधनों को जुटाने और मानवता की उपलब्धियों का जश्न मनाने और सुदृढ़ करने के लिए है।
डॉ. डीएस तोमर ने विभिन्न राष्ट्रों के नागरिकों से शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्य के लिए संगठित होने की अपील करते हुए सभी का आभार व्यक्त किया। डॉ वेद प्रकाश त्रिपाठी ने अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी / वेबिनार के लिए एक मॉडरेटर के रूप में काम किया। बुद्ध पीस फाउंडेशन के श्री  रतीश शर्मा ने दूसरे अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी / वेबिनार  तथा मृगांग त्यागी ने तकनीकी व्यवस्था का समन्वय किया।
आयोजन मे सर्व डा. बीर बल सिह , डा रेडुगा डंग, स्का. लीडर ए.के सिह , अयूब खान, आशीष गौतम, विकास शर्मा, संजना सिंह, मृगांग त्यागी, राहुल चौधरी, रोहित ट्विक्ले, डॉ नेहा, डॉ बीबीएस परिहार, डॉ टीआर चौहान, डॉ पुनीत मंगला, सचिन गोयल डॉ दीपक छोकर, डॉ श्रम वीर सिंह , योगेंद्र त्यागी , पलक आहूजा  आदि अन्य प्रतिभागियों के रूप में वहां मौजूद थे।

लेखक- एक्टर चंद्रभूषण बने रक्षा मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य

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लेखक निर्देशक व अभिनेता  चंद्रभूषण सिंह के हिन्दी प्रेम पर अब केंद्र सरकार ने भी मुहर लगा दी है। भारत सरकार,रक्षा मंत्रालय, रक्षा उत्पादन विभाग,की हिंदी सलाहकार समिति में माननीय रक्षा मंत्री द्वारा श्री चंद्रभूषण सिंह को सदस्य नामित किया गया है। समिति के अध्यक्ष स्वयं रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह है। चंद्रभूषण सिंह,लेखक निर्देशक व अभिनेता है। हिंदी साहित्य व सिनेमा में विगत 14 वर्षों से चंद्रभूषण सिंह कार्य कर रहे है। मूलतः उन्नाव उतर प्रदेश से है।

सलाहकार समिति में देश भर से 4 सदस्यों को माननीय रक्षा मंत्री जी ने नामित किया है। समिति का कार्यकाल 3 वर्षों के लिए होता है। जिस में एक नाम उन्नाव से चंद्रभूषण सिंह है। निर्देशक व लेखक के तौर पर आप ने पंडित दीनदयाल जी के एकात्म मानव दर्शन पर नाटक,व भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी पर मेरी यात्रा अटल यात्रा का देश व प्रदेश में मंचन कर चुके है।  रक्षा मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति में मनोनयन होने से जिले के साहित्य व कला से जुड़े प्रबुद्ध व्यक्तियों ने हर्ष व्यक्त किया है। सभी ने चंद्रभूषण सिंह के मनोनयन से खुशी जाहिर की है। उतर प्रदेश से भाजपा से राज्यसभा संसद डॉ अशोक बाजपेयी ने भी चंद्रभूषण सिंह को बधाई एवं शुभकामनाएं दी व उज्ज्वल भविष्य की कामना की है। उन्होंने ने कहा है कि चंद्रभूषण सिंह का मनोनयन उन्नाव की साहित्यिक पहचान को देश के शीर्ष संस्थानो की आवाज़ बनेगा। जिस प्रकार चंद्रभूषण सिंह को नामित किया गया है उस के लिए भाजपा पार्टी नेतृत्व व देश के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह का बहुत बहुत धन्यवाद आभार। भाजपा जिला अध्यक्ष श्री अवधेश कटियार व उनकी पूरी टीम ने चंद्रभूषण सिंह को बधाई व शुभकामनाएं प्रेषित की है।

मौका- मौका : एक बार फिर पाक के खिलाफ टीम इंडिया की जीत का मौका!

एकबार मौका आ गया है, मौका- मौका गाने का! इस बार टी- 20 विश्व कप का पहला मैच है लेकिन भारत पाकिस्तान जैसे चीर परिचित प्रतिद्वंदी टीमों के कारण ये मुक़ाबला फाइनल से भी ज्यादा रोमांचक माना जा रहा है। अगर इतिहास पर नजर डालें तो भारत और पाकिस्तान का वर्ल्ड कप में पहली बार सामना हुआ था 1992 में। उसके बाद से अब तक टी20 वर्ल्ड कप जोड़कर कुल 12 बार दोनों टीमों का आमना-सामना हो चुका है। जिसमें भारत की जीत का रिकार्ड 100 फीसद है। इस 12 में 5 हार टी20 वर्ल्ड कप की शामिल हैं। यानी 7 बार वनडे वर्ल्ड कप में भारत ने पाकिस्तान को हराया है। आखिरी बार दोनों टीमों ने 2019 वर्ल्ड कप में एक दूसरे के खिलाफ खेला था। अब रविवार यानि 24 अक्तूबर 2021 को एकबार फिर दोनों टीमें आमने- सामने हैं और दोनों टीमों के प्रशंसकों का जोश हाई है।

आज टीम इंडिया टी20 वर्ल्ड कप के अपने पहले मुकाबले में सबसे बड़े दुश्मन पाकिस्तान का सामना करने वाली है. भारत और पाकिस्तान के बीच T20 वर्ल्ड कप में 5 मुकाबले हुए हैं, जिसमें आज तक पाकिस्तान भारत से नहीं जीता है और आज के मुकाबले में भी वो अपनी इस बढ़त को बरकरार रखना चाहेगी. लेकिन कहीं अगर भारतीय टीम उलटफेर का शिकार हो जाती है तो पाकिस्तान भारत के खिलाफ टी20 वर्ल्ड कप में पहली जीत दर्ज करेगा और इतिहास बदल जाएगा। अगर भारत जीत दर्ज करता है तो वह पाकिस्तान का यूएई में विजयी अभियान रोक देगा। आज का मैच कोई भी टीम जीते इतिहास तो बदलना तय है।

गौरतलब है विश्व कप 1975 में वनडे फॉर्मेट के तौर पर खेला गया था। हालांकि भारत और पाकिस्तान का वर्ल्ड कप में पहली बार सामना हुआ था 1992 में। इस वर्ल्ड कप का विजेता पाकिस्तान जरूर रहा था लेकिन यहां भी उसे भारत से हार झेलनी पड़ी थी। 1992 से शुरू हुआ वो हार का सिलसिला 2019 तक पहुंचा और 12 बार पाकिस्तान को भारत से हार मिली। इस बार टी20 विश्व कप में छठी बार दोनों टीमें आमने सामने होंगी। इससे पहले 2007 में फाइनल सहित दो बार दोनों टीमों का आमना-सामना हुआ था। दोनों बार भारत ने पाकिस्तान को मात दी थी। इसके बाद साल 2012 में सुपर आठ में फिर भारत और पाक की भिड़ंत हुई थी। जहां एक बार फिर पाकिस्तान को हार मिली। फिर दोनों टीमें 2014 और 2016 टी20 वर्ल्ड कप के ग्रुप स्टेज में। यहां भी परिणाम वही था, इन दोनों टूर्नामेंट भी पाकिस्तान को भारत से हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा 2009 और 2010 टी20 वर्ल्ड कप में दोनों टीमों का आमना-सामना नहीं हुआ था। अब आज में  मुक़ाबले में एकबार फिर दोनों टीमें इतिहास रचने की कोशिश करेंगी।

गोण्डवी की आवाज : दिल पे रखके हाथ कहिए देश क्या आजाद है…

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सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है,

दिल पे रखके हाथ कहिए देश क्या आजाद है

एक जन कवि जिसकी ऐसी पंक्तियाँ सत्ता और शासन को हिला देती थी। उनको पूरी दुनियाँ अदम गोंडवी के नाम से जानती है। वो जब लिखते थे तो उसमें आम जनता की आवाज सुनाई देती थी। उन्होने लिखा….

काजू भुने पलेट में, ह्विस्की गिलास में,

उतरा है रामराज विधायक निवास में

या फिर

तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम बहुत गुलाबी है,

मगर ये आंकड़े झूठे ये दावा किताबी है…

इन पंक्तियों का असर आज भी नजर आता है। इसलिए गोण्डवी को लोग दुष्यंत कुमार की धारा का कवि कहते हैं। गोण्डवी का वास्तविक नाम राम नाथ सिंह था। उनका जन्म  22 अक्टूबर 1947 को अट्टा परसपुर, गोंडा , उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी कविताएं हाशिए की जातियों, दलितों, गरीब लोगों की दुर्दशा को उजागर करती है। गरीब किसान परिवार में जन्मे गोण्डवी ने व्यवस्था में छिपी बुराइयों को कविता के जरिये उजागर किया। 1998 में, मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें दुष्यंत कुमार पुरस्कार से सम्मानित किया। उनके काव्य संग्रह धरती की सता पार (पृथ्वी की सतह) और सामे से मुथबेड़े (समय के साथ मुठभेड़) काफी लोकप्रिय हैं। गोण्डवी के जन्मदिन पर विशेष।

अदम गोंडवी बहुत ही प्रासंगिक और आधुनिक रचनाकार के तौर पर हमेशा याद रहेंगे। यही वजह है कि उनकी कुछ रचनाओं ने तो नारों की शक्ल अख्तियार कर ली।  बात चाहे प्लेट में भुने काजुओं की हो या फिर फाइलों में झूठे आंकडों की. अदम की रचना सीधे नश्तर सी लगती हैं। फैजाबाद से लगे गोंडा के रामनाथ सिंह ने अदम गोंडवी बनकर जन- जन की आवाज उठाई। इसी वजह से उन्होंने “… फटे कपड़ों से तन ढांपे जहां कोई गुजरता हो, समझ लेना वो पगडंडी अदम के गांव जाती है.” जैसी पंक्तियाँ लिखकर हालात बयान किए।

उन्होंने लिखा….

“खुदी सुकरात की हो या रूदाद गांधी की सदाकत जिंदगी के मोरचे पर हार जाती है… ”

वो मजलूमों की आवाज बने…

है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी

आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी

चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा

मैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसा.

इसी कारण उनका जीवन तंघाली में बीता। अंत में अपनी कविताओं के जरिये वो मरकर भी अमर हो गए।  

समूचे बौद्ध सर्किट में बिछाया जाए हवाई पट्टियों का जाल

आनन्द अग्निहोत्री

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुशीनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन करते समय यह स्वीकार किया है कि उत्तर प्रदेश में पग-पग पर तीर्थ हैं और कण-कण में ऊर्जा है। कुशीनगर हवाई अड्डा निश्चित रूप से जहां पूर्वांचल के लोगों के हित में है, वहीं देश-विदेश के उन लोगों के लिए भी सुविधाजनक साबित होगा जो इस बौद्ध तीर्थस्थल का भ्रमण करना चाहते हैं। यह तो साफ है कि मोदी सरकार ने राज्य के धार्मिक स्थलों को आवागमन के साधनों से जोड़ा है और जन सुविधाएं बढ़ायी हैं लेकिन क्या उसे उस बौद्ध परिपथ का ध्यान है जिसकी कल्पना कुछ दशक पहले की गयी थी। अगर इस बौद्ध परिपथ को तैयार कर दिया जाये तो निश्चित रूप से हिन्दू धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म के अनुयाइयों और पर्यटकों की इस क्षेत्र में आवागमन की संभावनाएं और बढ़ जायेंगी। सैलानियों की आमद बेरोजगारी दूर करने में कारगर साबित होगी।

याद करें समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह ने करीब तीन दशक पहले  अपनी सरकार के समय तीन हवाई पट्टियों का निर्माण कराया था। ये श्रावस्ती, लखीमपुर (पलिया साइड) और पिथौरागढ़ (अब उत्तराखंड) में बनायी गयीं थीं। हवाई पट्टियां तो अब भी तैयार हैं लेकिन इन्हें चालू होने की दरकार है। अगर धार्मिक पर्यटन बढ़ाना है तो इस ओर गम्भीरता के साथ ध्यान देना होगा।

बौद्ध परिपथ की बात करें तो चार नाम तेजी से उभरकर सामने आते हैं। श्रावस्ती, सारनाथ, कौशांबी और कुशीनगर। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध का कुशीनगर परिनिर्वाण स्थल है जहां बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का लोकार्पण किया। श्रावस्ती वह महत्वपूर्ण स्थान है जहां गौतम बुद्ध ने 34 चातुर्मास व्यतीत किये थे। सारनाथ में उन्होंने पहला प्रवचन दिया था। कौशांबी की हालांकि ज्यादा चर्चा नहीं होती लेकिन प्रयागराज से कानपुर जाते समय यमुना किनारे स्थित इस स्थान पर भी गौतम बुद्ध ने प्रवचन किये थे। यह स्थान पुरातात्विक महत्व का भी है।

जैन धर्म के तीर्थंकरों की जन्म स्थली भी उत्तर प्रदेश रही है। इसके अलावा स्वामी नारायण सम्प्रदाय के प्रवर्तक की जन्म स्थली भी गोंडा जिले के छपिया में है। धार्मिक रूप से देखा जाये तो शाकंबरी, विंध्याचल, ललिता (नैमिष) में देवी के शक्ति पीठ हैं। दतिया में भी मां पीताम्बरा का शक्ति पीठ है। हालांकि यह मध्य प्रदेश में है लेकिन यह जिला उत्तर प्रदेश के झांसी जिले से जुड़ा हुआ है। काशी, प्रयागराज, नैमिषारण्य, मथुरा, अयोध्या, चित्रकूट आदि सनातन धर्म के प्रमुख स्थल हैं। काशी में तो अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है और अयोध्या में बन रहा है। आगरा में चार्टर्ड प्लेन उतरने की सुविधा है। अगर जेवर में हवाई अड्डा बन जाये तो मथुरा को लाभ हो सकता है। उड़ान योजना के तहत गाजियाबाद के हिंडन तथा त्रिशूल एयरपोर्ट का सीमित उपयोग तो हो रहा है मगर पश्चिमी और मध्य उत्तर प्रदेश को कैटर करने के लिए इन्हें भी अपग्रेड करना होगा। उधर उत्तराखंड सरकार पंतनगर हवाई अड्डे को सक्रिय करने के प्रयास में लगी है। इससे रामपुर तथा मुरादाबाद को भी लाभ होगा।

झांसी के पास ओरछा में रामराजा का ऐतिहासिक मंदिर है। इसकी सबसे खास बात यह है कि यहां राम को राजा माना जाता है। अयोध्या समेत अन्य जगहों में राम की कल्पना भगवान के रूप में की गयी है। बेतवा नदी के किनारे स्थित ओरछा ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां राम को भगवान न मानकर सिर्फ राजा माना जाता है। झांसी अथवा चित्रकूट में हवाई अड्डा बने तो इस पूरे सर्किल को धार्मिक पर्यटन से जोड़ा जा सकता है। बहराइच, गोंडा, बलरामपुर, बाराबंकी के तमाम लोग नेपाल और खाड़ी देशों में काम करते हैं। श्रावस्ती का हवाई अड्डा विकसित कर इन सभी के लिए जहां सहूलियत उपलब्ध करायी जा सकती है, वहीं पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। सवाल यह है कि क्या मौजूदा सरकार अपने इस कार्यकाल में इस ओर ध्यान देगी और गम्भीरता के साथ इस परिपथ को जोड़ने की योजना बनायेगी।

इक प्रेम कहानी

डॉ. शिल्पी बक्शी शुक्ला

अंबर से बरसता ये पानी,

कहता है, अजब कहानी ।

हमने न सुनी थी,

पर अंबर ने अपने आंसुओं से बुनी थी ।

तुमने न कही थी,

पर इसकी पीड़ा हर पल धरा ने सही थी ।

सदियों से चलती,

इक प्रेम कहानी, किसी फकीर की ज़बानी । 

कुछ जानी-कुछ अनजानी,

लगती है कुछ-कुछ नईं,

तो कुछ-कुछ पुरानी।

हर विरही ने इसे जिया है,

यही विष-प्‍याला मीरा ने भी तो पिया है ।

होता है बेचैन ये अंबर जब-जब,

बरसता है आँखों से पानी तब-तब ।

झुक कर ये धरा से मिलने आता है,

दूर कहीं क्षितिज पर शायद मिल पाता है ।

जब-जब धरती के सीने में हूक उठेगी,

अंबर की बेचैनी यूँ ही बढ़ेगी ।

ये प्रेम कहानी,

यूँ ही चलेगी, चलती रहेगी,

सिमट जाता है धरा में,

अंबर का अस्तित्‍व, दोनों हो जाते हैं एक ही तत्‍व ,

अमिट है इनकी कहानी,

सृष्टि में प्रेम की अमिट निशानी।

बढ़ेगी अंबर की बेचैनी,

और धरा पर बूँदें बरसती रहेंगी।