Sunday, June 8, 2025
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सामयिक-एस-400 से मजबूत होगी भारत की रक्षापंक्ति

अरविंद जयतिलक

अमेरिका की लाख मनाही के बावजूद भी रुस ने भारत को एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की आपूर्ति कर रेखांकित कर दिया है कि दोनों देश सदाबहार साथी हैं और वे किसी के दबाव में झुकने वाले नहीं हैं। अमेरिका की कोशिश थी कि रुस पर दबाव डालकर भारत को एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम दिए जाने से रोक दिया जाए। लेकिन उसकी रणनीति-कुटनीति काम नहीं आयी। ऐसा इसलिए कि भारत ने पहले ही एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की खरीद को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की जरुरत बताकर स्पष्ट कर दिया था कि उसके लिए देश की सुरक्षा सर्वोपरि है और वह किसी के अर्दब में आने वाला नहीं है। याद होगा अमेरिकी समकक्ष माइक पोम्पियों के साथ द्विपक्षीय वार्ता के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दो टूक कहा था कि भारत वही करेगा, जो उसके हित में होगा। उन्होंने एस-400 को लेकर काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थू्र सैंक्शंस एक्ट यानी काटसा के तहत प्रतिबंधों के सवाल पर भी अपना नजरिया स्पष्ट करते हुए कहा था कि भारत का रुस के साथ संबंधों का लंबा इतिहास रहा है जिसकी वह अनदेखी नहीं कर सकता। उल्लेखनीय है कि अमेरिका एस-400 रक्षा समझौते के खिलाफ है और वह रुस पर काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरिज थ्रू सैंक्शन एक्ट लगा रखा है जिसके जरिए वह रुस के रक्षा क्षेत्र में बाहरी मुद्रा को आने से रोकना चाहता है। लेकिन भारत और रुस दोनों देशों ने इसकी परवाह किए बिना ही समझौते को अमलीजामा पहनाकर दोस्ती के रंग को पहले से भी अधिक गाढ़ा और चटक कर दिया है। यहां जानना आवश्यक है कि एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की खासियत यह है कि यह एक बार में 72 मिसाइल दाग सकता है और 36 परमाणु क्षमता वाली मिसाइलों को एक साथ नष्ट कर सकता है। यह सिस्टम अमेरिका के सबसे आधुनिक फाइटर जेट एफ-35 को भी मार गिरा सकता है। गौर करें तो यह सिस्टम एस-300 का अपडेटेड वर्जन है जो 400 किमी के दायरे में लड़ाकू विमानों और मिसाइलों को खत्म कर देगा। सच कहें तो इस समझौते से भारत की रक्षा पंक्ति मजबूत हुई है और इस सिस्टम को खरीद चुके चीन के बराबर खड़ा हो गया है। वैसे भी रुस भारत का परंपरागत भरोसेमंद मित्र है और रुस भी मौके दर मौके भारत के साथ कंधा जोड़ने में हिचकिचाहट नहीं दिखायी है। रक्षा समझौतों के अलावा दोनों देश रेलवे, फर्टिलाइजर, अतंर्राष्ट्रीय संस्थानों में सहयोग, आतंकवाद व नशीली पदार्थों के खिलाफ साझा जंग और सौर व नाभिकीय उर्जा का शांतिपूर्वक उपयोग जैसे अन्य मसलों पर साथ-साथ हैं। दोनों देशों के बीच इसरो व रुसी संघीय अंतरिक्ष संगठनों के बीच गगनयान को लेकर भी समझौता हो चुका है। रिश्तों की प्रगाढ़ता और मोदी-पुतिन केमेस्ट्री की चमक का ही असर है कि दोनों देश एकस्वर में आतंकवाद के विरुद्ध मिलकर लड़ने की प्रतिबद्धता पर कायम हंै। रुसी राष्ट्रपति पुतिन पहले ही कह चुके हैं कि आतंकवाद से निपटने के लिए जो भी ताकत हो उसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मतलब साफ है कि पाकिस्तान संरक्षित व पोषित आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में रुस भारत के साथ है। याद होगा नवंबर 2001 में दोनों देशों ने मास्को घोषणा पत्र में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से निपटने का संकल्प व्यक्त किया और दिसंबर 2002 में भारत की यात्रा पर आए रुसी राष्ट्रपति पुतिन ने हस्ताक्षरित दस्तावेजों में विशेषकर सीमा पर आतंकवाद पर भारत के दृष्टिकोण और पाकिस्तान में आतंकवाद की अवसंरचना को ध्वस्त करने का समर्थन किया। इसके अलावा रुस ‘संयुक्त राष्ट्र संघ में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद एवं व्यापक कन्वेंशन’ पर भारत के मसौदे का समर्थन कर चुका है। निःसंदेह आतंकवाद पर दोनों देशों के समान दृष्टिकोण से दक्षिण एशिया में शांति, सहयोग और आर्थिक विकास का वातावरण निर्मित करने के साथ आतंकवाद से लड़ने में मदद मिलेगी। ऐसे में आवश्यक है कि अमेरिका एस-400 समझौते पर आंखे तरेरने के बजाए भारत की सुरक्षा को ध्यान में रखकर अपने नजरिए में बदलाव लाए। अगर अमेरिका की रणनीति काटसा के तहत रुस के रक्षा क्षेत्र में बाहरी मुद्रा को आने से रोकना है तो यह उसकी समस्या है, भारत की नहीं। भारत चीन और पाकिस्तान जैसे शत्रु देशों से घिरा हुआ है और अगर रुस भारत की रक्षा जरुरतों को पूरा करने में समर्थ है तो अमेरिका को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। उचित होगा कि अमेरिका भारत की बांह मरोड़ने के बजाए रुस के साथ उसके दशकों पुराने संबंधों का सम्मान करे। वैसे भी रुस इस समय आर्थिक मोर्चे पर भयावह स्थिति का सामना कर रहा है। मित्र होने के नाते भारत की जिम्मेदारी बनती है कि वह रुस का साथ दे। रुस से निकटता बढ़ाने से भारत को भी यूरोप और पश्चिम एशिया में द्विपक्षीय कारोबार और निवेश की भरपायी करने में मदद मिलेगी। मौजुदा समय में रुस के समक्ष नियंत्रित अर्थव्यवस्था को बाजार अर्थव्यवस्था में बदलने की चुनौती के साथ वैश्विक और सामरिक मोर्चे पर नैतिक समर्थन की भी दरकार है। रुस यूक्रेन और सीरिया मसले पर अमेरिका और यूरोपिय देशों के निशाने पर है। ऐसे में वह सामरिक व कारोबारी समझौते के बरक्स अगर भारत के साथ अपनी विदेशनीति और व्यापारनीति को पुनर्परिभाषित कर रहा है तो यह भारत की सफल कुटनीति का नतीजा है। वैसे भी भारत और रुस दोनों देश ऐतिहासिक संबंधों के डोर से बंधे हुए हैं। संबंधों के अतीत में जाएं तो 1954 में जब अमेरिका ने एशिया को शीतयुद्ध में लपेटने और सोवियत संघ के प्रभाव को सीमित करने हेतु दक्षिण पूर्व एशिया संधि संगठन (सीएटो) और मध्य एशिया संधि संगठन (सेन्टो) का गठन किया तो सोवियत संघ और भारत दोनों ने इसका कड़ा विरोध किया। लेकिन भारत ने बड़ी सहजता से बे्रजनेव के एशिया की सामूहिक सुरक्षा के उस प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया कि वह किसी तीसरे देश के विरोध स्वरुप किसी भी सैन्य संगठन और संधि को स्वीकार करेगा। बावजूद इसके दोनों देशों के बीच खटास पैदा नहीं हुआ। सोवियत संघ ने हिंद-चीन क्षेत्र में शांति, भारत-चीन के मध्य पंचशील सिद्धांत और एशिया व अफ्रीकी देशों के साथ भारत के बढ़ते सशक्त संबंधों का समर्थन किया और कारगिल मसले पर पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी भी दी। 1974 में जब भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया तो अमेरिका ने भारत को दी जाने वाली उर्जा संयंत्रों के परमाणु ईंधन की खेप पर रोक लगा दी लेकिन सोवियत संघ ने अमेरिका जैसी तल्खी नहीं दिखायी। भारत भी अंतर्राष्ट्रीय व क्षेत्रीय मसलों पर रुस का समर्थन कर दोस्ती की कसौटी पर खरा रहा है। दिसंबर 1955 में खुश्चेव और बुलगानिन ने भारत की यात्रा के दौरान कश्मीर की धरती से भारत के दृष्टिकोण का समर्थन किया। रुपया और रुबल की कीमतों के विवाद को भी आपसी सहमति से निपटा लिया गया। इसके अलावा भारतीय गेंहू की वापसी को लेकर भी विवाद उठा लेकिन भारत के कडे़ विरोध के बाद उसे वापस लेना पड़ा। खुश्चेव के पतन के उपरांत सोवियत संघ की विदेश नीति में परिवर्तन आया और वह भारत व पाकिस्तान के मध्य समानता के आधार पर संबंध गढ़ने शुरु कर दिए। लेकिन 9 अगस्त, 1971 को भारत व सोवियत संघ के मध्य 20 वर्षीय मैत्री व सहयोग की संधि ने दोनों देशों की दूरियां कम कर दी। नवंबर 1973 में ब्रेजनेव की भारत यात्रा के दौरान तीन महत्वपूर्ण समझौते हुए जिसके तहत बोकारो एवं भिलाई इस्पात कारखानों की क्षमता बढ़ाने, मथुरा तेलशोधक कारखाना लगाने, कलकत्ता भूगर्भ रेलवे विकसित करने तथा मलाजखंड तांबा परियोजना की स्थापना हेतु दीर्घ अवधि की आसान शर्तों पर कर्ज देने की व्यवस्था थी। भारत को सोवियत संघ से पारंपरिक रिश्ते बनाए रखने की चुनौती तब उभरी जब 27 दिसंबर, 1991 को 11 गणराज्यों द्वारा स्वतंत्र देशों का राष्ट्रकुल (सीआइएस) अस्तित्व में आया और मास्को में सोवियत संघ की जगह रुस का झंडा लहराने लगा। लेकिन भारत इस अग्निपरीक्षा में भी खरा उतरा। 1992 में रुस के विदेश राज्य सचिव गेनादी बुर्बलिस की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने एकदूसरे को ‘अति विशिष्ट राष्ट्र’ (एमएफएन) का दर्जा प्रदान कर रिश्तों में जान फूंक दी।

मुनाल उत्तरांचल- पूर्वांचल कला उत्सव में बिखरे कला के सतरंग

लखनऊ एक्सपो में आयोजित मुनाल उत्तरांचल पूर्वांचल कला उत्सव के तहत आज की संध्या सुप्रसिद्ध पत्रकार श्यामाचरण काला जी को समर्पित की गई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय प्रवक्ता किसान नेता ठाकुर तारा सिंह बिष्ट व डॉक्टर विकास श्रीवास्तव ने दीप प्रज्वलन कर सांस्कृतिक संध्या का उद्घाटन किया। मेला संयोजक मुनालश्री विक्रम बिष्ट ने दोनों का स्वागत आभार करते हुए प्रसिद्ध पत्रकार स्वर्गीय श्यामाचरण काला जी के साथ के क्षणों को याद किया। उन्होने कहा कि काला जी ने पत्रकारिता के विशिष्ट मानदंड स्थापित किए। पत्रकारिता के उस दौर में पत्रकारों का विशेष सम्मान था। आज भी पत्रकारीय मूल्यों को सम्मानित करने कि जरूरत है।

कार्यक्रम का शुभारंभ ब्रांड एंबेसडर वर्ल्ड रिकॉर्डस्ट अंकिता बाजपेई ने गणेश वंदना के साथ किया। कार्यक्रम में शिव स्तुति भरतनाट्यम शैली में सिद्धि टंडन द्वारा बहुत ही सुंदर रूप से प्रस्तुत की गई। अंकिता बाजपेई के संयोजन व निर्देशन में शिव शक्ति शैक्षिक व सांस्कृतिक कला समिति के कलाकारों ने प्रस्तुति दी। मेरा ढोलना पर यशस्वी पोरवाल, बावन गज का दामन तेजस्वी पोरवाल, बिरहा नृत्य कथक पर आधारित अभिसी भारद्वाज ने प्रस्तुति दी।  राधा कैसे न जले पर दिव्यांशी, अंखियों के झरोखे से अंकिता सिंह, साकी समिति सबीना फातिमा वारसी, मैया यशोदा अहाना, राजस्थान का घूमर आकांक्षा, कहां सो जा पलक वर्मा व अक्षिता सिंह हर्ष ग्रुप डी एच डी एकेडमी के कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से लोगों का मन मोह लिया।

फिल्मी भूल भुलैया के संगीत पर असद सिंह, चाहिए रीमिक्स सॉन्ग पर सोनिया रैदास व राकेश शुक्ला द्वारा एकल नृत्य प्रस्तुत किया गया। लोक संस्कृति की धरोहर मुनाल के बाल कलाकारों ने आपकी आंखों में वह मुझे रात दिन अनुग्रह अग्निहोत्री, बावन गज का हरियाणवी  शिवांगी सिंह द्वारा नृत्य प्रस्तुत किया गया। मंच संचालन दिविषा बोरा ने किया। इस अवसर पर उत्तराखंड के समाजसेवी अनुपम भंडारी श्री अतुल मालकोटी सुखदेव थपलियाल आदि ने अपने विचार रखते हुए धन्यवाद व आभार व्यक्त किया।

मेला संयोजक जोया सिद्धकी ने बताया 18 नवंबर को अवध के सुप्रसिद्ध कलाकार डॉक्टर अनिल त्रिपाठी लोक गायिका यशभारती ऋचा जोशी श्रृंगारिका कुकरेती के साथ हास्य कलाकार राजेंद्र विश्वकर्मा का कार्यक्रम होगा मुख्य अतिथि पूर्व अध्यक्ष उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी व पूर्व कुलपति भातखंडे संगीत संस्थान डॉक्टर पूर्णिमा पांडे जी मेले के सभी स्टालों पर अपार भीड़ आ रही है बच्चों के झूले व विभिन्न सामग्रियों के स्टाल लगे हुए हैं।

गजल संध्या का आयोजन

चतुर्थ दिवस पर लखनऊ एक्सपो में मुनाल उत्तरांचल पूर्वांचल कला दिवस पर सांस्कृतिक संध्या गजल गायक इकबाल सिद्दीकी जी  की स्मृति में समर्पित की गई कार्यक्रम मैं भारतीय और पाश्चात्य संगीत का समावेश रहा। मुख्य अतिथि डॉ हरीश अग्रवाल, प्रबंधक निर्माण हॉस्पिटल व समाजसेवी श्री कुलदीप रावत, पूर्व अध्यक्ष उत्तराखंड प्रदेश समाजवादी द्वारा दीप प्रज्वलन से कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया।  मुनालश्री विक्रम बिष्ट ने मुख्य अतिथि का  आभार व्यक्त किया। इकबाल सिद्दीकी साहब को याद करते हुए वक्ताओं ने  तमाम यादों को मंच पर साझा किया। कार्यक्रम का शुभारंभ बांसुरी वादन के माध्यम से अविरल मिश्रा ने ‘मधुर धुन श्याम तेरी बांसुरी पुकारे राधा नाम’ से किया। गायक यश भारती, ऋचा जोशी ने हम तो हैं परदेस में देश में निकला होगा चांद ,आज जाने की जिद ना करो ,यह दौलत भी ले लो शोहरत भी ले लो ,जैसी मधुर गजल सुनाई। टैलेंट हंट की प्रतिभागी हर्षिता चतुर्वेदी ने छाप तिलक, नदिया किनारे शाम हुई, सुना कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अग्रिम मिश्रा ने भी अपनी सुंदर आवाज में भजन राम राम का नाम है सुनाया।

गुरुनानक देव जी के पहले उपदेश का गवाह करतारपुर साहिब गुरुद्वारा

अतनु दास

पूर्व समाचार संपादक, पीटीआई (भाषा)

पाकिस्तान स्थित करतारपुर साहिब गुरुद्वारा भारत के लिए आस्था का प्रतीक है। क्योंकि यहीं पर सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने अपने जीवन के आखिरी 18 साल बिताए थे. ऐसी मान्यता है कि सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक 1522 में करतारपुर आए थे। सबसे बड़ी बात यह है कि गुरुनानक देव जी के साथ उनका पूरा परिवार करतारपुर में ही बस गया था। मान्यता है कि यहीं पर उन्होंने पहली बार सिख धर्म की स्थापना की थी।  उन्होंने पहली बार इसी जगह ‘नाम जपो, किरत करो और वंड छको’ (नाम जपें, मेहनत करें और बांटकर खाएं) का उपदेश दिया था। भारत सरकार ने इसी आस्था को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय सीमा में 4.5 किलोमीटर का कॉरीडोर बनाया जिससे सिख श्रद्धालु यहाँ आकर दर्शन कर सकें।  

गौतलब है कि ये कॉरीडोर नौ नवंबर 2019 में श्रद्धालुओं के लिए खोला गया था। इससे पहले लोग दूरबीन से करतारपुर साहिब के दर्शन किया करते थे और ये काम बीएसएफ की देखरेख में होता था। कॉरीडोर खुलने के बाद यहाँ पर भरी संख्या में श्रद्धालु आने लगे। हालांकि करोना के कारण मार्च 2020 में कॉरीडोर को बंद कर दिया गया था। अब गुरुपर्व से पहले मोदी सरकार ने करतारपुर कॉरिडोर को खोल दिया है। इस फैसले के ऐलान खुद गृह मंत्री अमित शाह ने किया था। बुधवार को सिखों का जत्था गुरुद्वारे के दर्शन के लिए रवाना हुआ। फैसले से सिखों में हर्ष की लहर दौड़ गई।  

मोदी सरकार के फैसले को सत्ता और विपक्ष सभी ने सराहा। गृहमंत्री शाह ने कहा कि यह फैसला गुरु नानक देव जी और सिख समुदाय के प्रति मोदी सरकार की अपार श्रद्धा को दर्शाता है। यह कदम ‘देश भर में खुशी और उत्साह को और बढ़ा देगा।’ पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने फैसले को सराहा।

गौरतलब है कि करतारपुर कॉरिडोर के बनने से पहले लोगों को वीजा लेकर लाहौर के रास्ते दरबार साहिब गुरुद्वारा तक जाना पड़ता था, ये एक जटिल और लंबा रास्ता था। लेकिन करतारपुर कॉरिडोर के बन जाने से यहां तक जाना आसान हो गया।  इसके बाद पंजाब स्थित डेरा बाबा नानक को करतारपुर स्थित दरबार साहिब गुरुद्वारा से जोड़ दिया गया। भारतीयों के लिए करतारपुर साहिब गुरुद्वारे तक जाने जाने का रास्ता पंजाब के गुरुदासपुर स्थित डेरा बाबा नानक से ही है। यहीं से कॉरिडोर के जरिए लोग वहां तक पहुंच पाते हैं। इस कॉरिडोर की कुल लंबाई 4.1 किलोमीटर है।

अमृत महोत्सव में युग परिवर्तन की तैयारी

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करोना काल के बाद डिजिटल युग का श्री गणेश

ऐतिहासिक आगाज को स्वर्णिम अंजाम में बदलने की चुनौती

अतनु दास

वरिष्ठ पत्रकार (पीटीआई, पूर्व समाचार संपादक  )

देश आज आजादी का 75वां साल मना रहा है। यानि देश का अमृत महोत्सव शुरू हो चुका है। इसी समय हम नई सदी के यौवन वर्ष यानि 21वें साल से गुजर कर 22वें में जा रहे हैं। यहाँ से नई मानव विकास की यात्रा नए और अलग तरीके से शुरू हो चुकी है। इसका कारण है वर्ष 2020 की कभी न भूलने वाली यादें और अनुभव जो जीवन के सभी क्षेत्रों को नए रास्ते की ओर ले जा रही हैं। बीते मार्च के महीने में पूरी दुनियाँ अचानक ऐसी महामारी की चपेट में आ गई थी जिसने सभी को अंधकार के गहरे लॉक डाउन में छोड़ दिया था। सब कुछ अनिश्चित काल के लिए थम गया था। लोग घरों में कैद हो चुके थे। भोजन और दूध से लेकर दवाई और बीमारी से प्रभावित लोगों तत्काल मेडिकल सपोर्ट की जानकारी की आवश्यकता जीवन की भूख की तरह हो गई थी। इस दौरान अखबार घरों तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे थे। स्थानीय स्तर पर टीवी चैनलों की पहुँच न के बराबर थी। ऐसे में पारंपरिक मीडिया से हटकर ऐसे माध्यम की तत्काल जरूरत थी जो सही और आधिकारिक सूचना और समाचार प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचा सके।  

आज जब हम बुरे दौर से उबरकर अमृत महोत्सव मना रहे हैं। तो यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ोले ने स्वीकार भी किया कि युद्ध की तरह कोरोनावायरस महामारी के दौरान सच को ‘पहला पीड़ित’ माना जा सकता है। हालांकि आपदा से निपटने में भारत ने सही तरीके से सूचना और राहत प्रदान की थी, उसकी नींव आपदा के बहुत पहले ही रख दी गई थी। देश के दूरदर्शी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पहले कार्यकाल के दौरान वर्ष 2014 में में स्पष्ट कर दिया था कि ”हम भारत को नवाचार के केन्‍द्र के रूप में उभरता हुआ देखना चाहते हैं, जहां टेक्‍नोलॉजी से संचालित नये बड़े विचारों का आविर्भव हो।”

पीएम ने छ वर्ष पहले ही देख लिया था कि ” टैक्‍नोलॉजी कम सशक्‍त लोगों को सशक्‍त करती है। सीमांत लोगों के जीवन में बदलाव लाने में, अगर कोई मजबूत बल है, तो वह है टैक्‍नोलॉजी।” उन्होने डिजिटल इंडिया की पहल पर कहा था कि ”डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करने में पूरा राष्‍ट्र एकजुट है। युवा उत्‍साही हैं, उद्योग जगत सहायक है और सरकार अति सक्रिय है। देश डिजिटल क्रांति के लिए लालायित है।” साथ ही यह भी माना कि “भविष्‍य सोशल मीडिया का होगा। य‍ह समानाधिकारयुक्‍त और मिला-जुला है। सोशल मीडिया किसी देश, किसी भाषा, किसी रंग, किसी समुदाय के बारे में नही है, बल्कि यह मानव मूल्‍यों के बारे में है और यही मानवता को बांधने का मौलिक संधि है।” पीएम ने मोबाइल गवर्नेंस को भी वक्त कि जरूरत बताते हुए छह साल पहले ही कहा था कि ”एम-गवर्नेंस के जरिये विकास को असल में समेकित बनाने और व्‍यापक जन आंदोलन की संभावना है। इसने शासन को प्रत्‍येक की पहुंच में ला दिया है। इसने शासन को चौबीस घंटे सातों दिन आपकी पहुंच में ला दिया है।

करोना काल में प्रधानमंत्री का विजन नेतृत्व और समाज दोनों के लिए संजीवनी बन गया। जब कई समाचार पत्रों का प्रकाशन बंद हो गया तो मोबाइल एप के जरिये लोगों के हाथों तक सूचना और समाचार पहुँचने लगे। सोशल मीडिया के वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, ट्‍विटर जैसे प्लेटफॉर्म पारंपरिक मीडिया से ज्यादा प्रभावी हो गए। देखते ही देखते हालात ये हो गए कि सरकार को ऐसे माध्यमों का दुरुपयोग रोकने के लिए नियम बनाने पड़े।  ऑनलाइन संवाद ने पूरी दुनियाँ को नए सिरे से जोड़ने की कवायद शुरू की।

2020 मार्च में सामान्य मीडिया गतिविधियां बंद हो गईं। अखबार के दफ्तर से लेकर सिनेमा हाल तक ज़्यादातर मीडिया गतिविधियां बंद हो गईं थीं। ऐसे में सूचना और प्रोद्द्योगिकी ने बहु विकल्पीय युग में प्रवेश किया। एक ओर प्रिंट यानि अखबार  के समाचारों का ठहराव भरा स्वरूप तो दूसरी ओर न्यूज़ चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज देने की अधीरता के बीच डिजिटल न्यूज के जरिये विभिन्न समाचार एप ने अखबारों की विश्वसनीयता और टीवी चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज एक साथ एक प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराने का कार्य किया। डिजिटल प्लेटफॉर्म ने ठप हो चुके कारोबार को नई साँसे दी। समाचार से लेकर मनोरंजन तक सब कुछ नए सिरे आम जन मानस तक पहुँचने लगा। ओटीटी प्लेटफॉर्म ने घरों में कैद लोगों के लिए संजीवनी का काम किया। इस दौरान खास बात रही परिवर्तन से भागने वाला पारंपरिक मीडिया भी बदलाव की दौड़ में शामिल हुआ। समाचार पत्रों के डिजिटल न्यूज चैनल आ गए। बड़े- बड़े टीवी चैनलों के एप लोग डाउनलोड करने लगे। पारंपरिक मीडिया के फेसबुक, वाट्सएप, यूट्यूब और ट्विटर पेज पर लाखों लाइक और कमेंट आने लगे। पिछले एक वर्ष में मीडिया में डिजिटल विस्फोट सा हो गया।

यह परिवर्तन अचानक जरूर था लेकिन डिजिटल मीडिया की पहुँच और प्रभाव ने नए प्रतिमान गढ़ डाले। नए सिरे से बहस के मुद्दों को जन्म दिया। यह परिवर्तन प्रकृति पर आधारित मौलिक और स्वाभाविक था। कहानी और खबरें दोनों ही कंटेन्ट में बदल चुके थे। जन मानस के समक्ष सूचना और मनोरंजन के कई विकल्प उपलब्ध थे जिसने घर में रहने के शुरुआती उत्साह के बाद आई उदासी और तनाव को दूर करने का काम किया।

कोविड काल में मीडिया का आंकलन किया जाए तो पाएंगे कि शुरुआती दौर में लोगों ने दूरदर्शन जैसे प्लेटफॉर्म को उसके पुराने सदाबहार कंटेन्ट के कारण हाथों हाथ लिया लेकिन जैसे- जैसे ओटीटी पर नया कंटेन्ट आने लगा, बाजार के बड़े- बड़े खिलाड़ी इस प्लेटफॉर्म पर आने लगे। नेटफ्लिस से लेकर बालाजी आल्ट, डिज्नी हॉटस्टार समेत अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिये रचनाशीलता, अच्छी प्रतिभाओं, उत्पादन मूल्यों और कहानियों के रेंज में विविधता नजर आने लगी। इसके साथ ही ये धारणा भी पुरानी साबित होने लगी कि “जो बाजार में दिखता है वो बिकता है।“ अब कंटेन्ट ही असली हीरो साबित हो रहा है जबकि बाजार के नए नए दरवाजे खुल रहे हैं।

डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भारत आज न सिर्फ बड़ा बाजार है बल्कि दुनियाँ भर की बड़ी- बड़ी कंपनियों के निवेश का मौका भी है। इस दौरान भारत ने चीन ने एप बैन किए तो इसका प्रभाव उनकी अर्थव्यवस्था पर सीधे तौर पर पड़ा है। ऐसे में अगर इस क्षेत्र में  रचनात्मकता और प्रौद्योगिकी के जरिये नौकरियों और धन का सृजन आसानी से किया जा सकता है। खुद पीएम मोदी करोना कल से पहले ही भारत में डिजिटल क्रांति का आह्वान किया था। पीएम के विजन के अनुसार भारत को नवाचार के केन्‍द्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। जहां टेक्‍नोलॉजी से संचालित नये बड़े विचारों का आविर्भव हो। डिजिटल इं‍डिया कई तरीके से जीवन को छूएगी और इसे आसान बनाएगी। उदाहरण के लिए डिजिटल लॉकर और ई-हस्‍ताक्षर से सभी महत्‍वपूर्ण दस्‍तावेजों को आसानी और कुशलता से व्‍यवस्थित किया जाएगा। एक क्लिक से दस्‍तावेजों को आसानी से देखा जा सकेगा। स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं को लें, ई-अस्‍पताल का मतलब लाइन में खड़े होकर समय व्‍यर्थ करने की जरूरत नहीं, बल्कि मिलने के समय के लिए ऑन लाइन पंजीकरण, ऑन लाइन भुगतान और आन लाइन रिपोर्ट उपलब्‍ध होगी। मोदी सरकार ने 2014 से ही इस दिशा में तेजी से कार्य करना शुरू किया। इसके परिणाम स्वरूप पहले नोटबंदी और फिर करोना काल में आम जन मानस का जीवन तमाम चुनौतियों के बावजूद सहज रहा।

हालांकि डिजिटल क्रांति से कई आशंका भी पैदा हुई हैं। क्या गरीब, पिछड़ा और आम आदमी इस प्रक्रिया में पीछे तो नहीं छुट जाएगा। क्या फेक सूचनाओं का मकड़जाल तो नहीं फ़ेल जाएगा। क्या ई और साइबर क्राइम के जरिये जीवन भर कि पूंजी एकबार में ही लूट तो नहीं जाएगी। तकनीकी दुनिया की चुनौतियां और भी हैं जैसे कोविड काल वर्क फ्राम होम की संस्कृति शुरू हुई। तेज़ी से आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और रोबोटिक तकनीकों का चलन भी शुरू हुआ। ऐसे में बेरोजगारी की आशंका भी खड़ी है लेकिन सभी आशंकाओं पर सरकार निरंतर कार्य कर रही है।

मोदी सरकार ने सोशल मीडिया मंचों से लेकर डिजिटल मीडिया और स्ट्रीमिंग मंचों को लिए नियम जारी किए हैं। इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस) नियम 2021 के जरिये सरकार ने डिजिटल क्रांति के लिए व्यवस्था तैयार करने का कार्य किया है। नए नियमों के हिसाब से बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों को किसी उचित सरकारी एजेंसी या अदालत के आदेश/नोटिस पर एक विशिष्ट समय-सीमा के भीतर गैर कानूनी सामग्री हटानी होगी। नियमों में सेक्सुअल कंटेट के लिए अलग श्रेणी बनाई गई है, जहां किसी व्यक्ति के निजी अंगों को दिखाए जाने या ऐसे शो जहां पूर्ण या आंशिक नग्नता हो या किसी की फोटो से छेड़छाड़ कर उसका प्रतिरूप बनने जैसे मामलों में इस माध्यम को चौबीस घंटों के अंदर इस आपत्तिजनक कंटेंट को हटाना होगा।

सूचना प्रोद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने गाइड लाइंस जारी करते हुए कहा कि ‘बिजनेस करने के लिए सोशल मीडिया का भारत में स्वागत है… उनका अच्छा व्यापार है यहां। उनके यहां बड़ी संख्या में यूजर्स हैं और उन्होंने आम भारतीयों को सशक्त किया है लेकिन यूजर्स को सोशल मीडिया के दुरुपयोग के खिलाफ समयबद्ध तरीके से अपनी शिकायतों के समाधान के लिए एक उचित मंच दिया जाना चाहिए। प्रसाद के अनुसार सोशल मीडिया मंचों के बार-बार दुरुपयोग तथा फर्जी खबरों के प्रसार के बारे में चिंताएं व्यक्त की जाती रहीं हैं और सरकार ‘सॉफ्ट टच’ विनियमन ला रही है। उन्होंने बताया कि ऑनलाइन सामग्री के प्रकाशकों को हर सामग्री या कार्यक्रम के बारे में विवरण देते समय प्रमुखता से उसका वर्गीकरण भी प्रदर्शित करना होगा ताकि उपयोगकर्ता उसकी प्रकृति के बारे में जान पाएं. इससे दर्शक को हर कार्यक्रम के प्रारंभ में ही उसकी सामग्री की प्रकृति का मूल्यांकन करने में और उसे देखने से पूर्व सुविचारित निर्णय लेने में मदद मिलेगी। एक सरकारी बयान के अनुसार डिजिटल मीडिया पर खबरों के प्रकाशकों को भारतीय प्रेस परिषद की पत्रकारीय नियमावली तथा केबल टेलीविजन नेटवर्क नियामकीय अधिनियम की कार्यक्रम संहिता का पालन करना होगा, जिससे ऑफलाइन (प्रिंट, टीवी) और डिजिटल मीडिया के बीच समान अवसर उपलब्ध हो। नियमों के तहत स्वनियमन के अलग अलग स्तरों के साथ त्रिस्तरीय शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित की गयी है। नियमों के अनुसार हर प्रकाशक को भारत के अंदर ही एक शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना होगा जो शिकायतों के निवारण के लिए जिम्मेदार होगा और उसे शिकायत मिलने के 15 दिनों के अंदर उसका निवारण करना होगा। नियमों के मुताबिक प्रकाशकों के एक या एकाधिक स्वनियामक निकाय हो सकते हैं. ऐसे निकाय के अगुवा उच्चतम/उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायधीश या कोई प्रख्यात हस्ती होंगे और उसमें छह से अधिक सदस्य नहीं होंगे। ऐसे निकाय को सूचना एवं प्रसारण मत्रालय में पंजीकरण कराना होगा. बयान के अनुसार यह निकाय प्रकाशकों द्वारा आचार संहिता के अनुपालन तथा शिकायत निवारण पर नजर रखेगा। इसके अलावा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय कोड ऑफ प्रैक्टिसेज समेत स्वनियामक निकायों के लिए वास्ते चार्ट बनाकर जारी करेगा. वह शिकायतों पर सुनवाई के वास्ते अंतर-विभागीय समिति स्थापित करेगा।

केंद्र सरकार की ओर से डिजिटल युग को प्रभावी बनाने के लिए सभी प्रकार की आशंकाओं का हल पूरी तरह से किया जा रहा है। मोदी सरकार पोस्ट कोविड काल को डिजिटल युग में तब्दील करने में जुट गई है। 2021 का केंद्रीय बजट पूरी तरह से डिजिटल तरीके से जारी किया गय, जिसका अनुपालन उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली समेत देश भर के ज़्यादातर राज्यों ने किया। डिजिटल व्यवस्था के जरिये राजनीतिक और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सुधार की कवायद हो रही है। देश की डिजिटल पहचान व्यवस्था ने महामारी के दौरान कई चुनौतियों से उबरने में मदद की है। डिजिटल आईडी की मदद से ग़रीब तबक़े को नक़द स्थानांतरण और कई ज़रूरी सामान ख़रीदने के लिए डिजिटल भुगतान संभव हुआ। इसके पीछे भी डिजिटल मीडिया की भूमिका को अहम माना जा रहा है। देश के दूर दराज इलाकों में भी मोबाइल के जरिये तत्काल सूचना पहुँच रही है। साथ ही ई मनोरंजन ने लोगों को प्रयोग के प्रति आकर्षित किया है। तकनीकी के कारण आज पालक झपकते छोटी छोटी जानकारियां आपस में साझा हो रही हैं। इसी समय नई तकनीकों और नई खोजों को दूसरे समुदायों और देशों के तत्काल साझा किया जा सकता है। जबकि पहले सूचनाओ के प्रसारण में कई दिन, हफ्ते और महीने तक लग जाते थे जबकि आज कई सूचनाएं पारंपरिक मीडिया से पहले ही सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी होती हैं।

पद्मश्री से विभूषित येशे दोर्जी थोंगशी ने एक वेब सेमिनार में कहा कि पहले भी महामारियां विश्वभर में फैली हैं। लेकिन इस महामारी से सबकुछ जब बंद हुआ तो टेलीविजन और ऑन लाइन माध्यमों से से मालूम चला कि क्या करना है और क्यों करना है? मीडिया ने इस दौरान लगातार हमें जागरूक और सशक्त किया है। महामारी के दिनों में हमें जागरूक और सचेत करता है। बीते एक वर्ष के अनुभव अविस्मरणीय हैं। ये काली रात की तरह भयावह भी हैं और सुबह की लालिमा की तरह उम्मीद से भरपूर भी हैं। ये निश्चित रूप से ग्रहण के बाद का सबेरा है जिसमें हम सभी अपनी भूमिका खुद सुनिश्चित करनी है। तभी डिजिटल युग में हमारा ऐतिहासिक आगाज स्वर्णिम अंजाम में बदल सकेगा।

आगमन संगोष्ठी : ‘हमारी आँख का पानी कहीं पत्थर न हो‌ जाये…’

लखनऊ एक्सपो 2021 में रेखा रावत बोरा के संयोजन में आगमन की संगोष्ठी

लखनऊ एक्सपो 2021 में मुनाल उत्तरांचल पूर्वांचल कला उत्सव के तहत आयोजित गोष्ठी में कवियों ने शब्दों के रंग बिखेरे। आगमन संस्था की  राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रेखा रावत बोरा के संयोजन में आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि रूहेलखंड व आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो मोहम्मद मुज़म्मिल ने कविताओं को जीवन में उम्मीद का संचार करने वाला बताया। विशिष्ट अतिथि मुनालश्री विक्रम बिष्ट की उपस्थिति में जाने- माने कवियों ने पाठ किया गया। कार्यक्रम का आग़ाज़ डॉ अर्चना श्रीवास्तव जी के उद्बोधन व वाणी वन्दना  “हंसारूढ शारदे मां तम में प्रकाश भर से किया गया। आगमन ने लखनऊ चैपटर के अध्यक्ष मनोज शुक्ल’मनुज’ -ज़ीवन जीने का मंत्र राम सुनाकर सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रेखा बोरा ने आज क्यों प्रिय मुझसे यह अनुबंध पर जमकर तालियाँ बटोरी।

कवियत्री मंजूषा श्रीवास्तव- इश्क कीजे तो छुपाने की जरूरत क्या है व चर्चित कवि विक्रम मिश्र ‘अनगढ़’- ख़ाक में मिल जाने पर तू दुनिया से क्या चाहे समेत नीरजा नीरू- छोटू बनता बड़ा तभी जब ज़िम्मेदारी पड़ती है पंक्तियाँ सुनाईं। डॉ शिल्पी बक्शी- चलो कहीं दूर चलते हैं, रुबीना हमीद – मौत जब तुझको पुकारेगी तुम्हें जाना पड़ेगा, वर्षा श्रीवास्तव- हमारी आँख का पानी कहीं पत्थर न हो‌ जाये, डॉ रूबी राज सिन्हा-नारी तू शक्ति है, भावना मौर्य- सिवा दर्द के है तो कुछ भी नहीं यह, रश्मि लहर- डुबो दो ख़ुशी में लिखो न उदासी, उपमा आर्य- दुनिया में कोई जात बराबर न आपके, कनक वर्मा- दो दो घरों को स्वर्ग बनाती हैं बेंटियाँ, अंजलि सारस्वत शर्मा- मेरी ज़िन्दगी  वजूद है, इं श्रीकांत तैलंग- जीवन है संघर्ष सभी का जीवन रहा नहीं संयोग। कार्यक्रम का समापन प्रो मोहम्मद मुज़म्मिल, मुनालश्री विक्रम बिष्ट, मनोज शुक्ल व रेखा बोरा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। कार्यक्रम का संचालन मंजूषा श्रीवास्तव ने किया।

मौलाना आजाद और आज के दौर की नई शिक्षा नीति

भारत में पहली शिक्षा नीति लागू करने की पहला मौलाना अबुल कलाम आजाद ने की थी। उनका जन्म आज यानि 11 नवंबर को हुआ था। इसी सम्मान के लिए आज के दिन को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने तकनीकी और वैज्ञानिक शिक्षा की पढ़ाई के लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) जैसे संस्थानों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तब से लेकर अब तक शिक्षा  नीति में कई बदलाव हुए हैं। मौजूदा मोदी सरकार एकबार फिर नई प्रणाली लाई है। आइये मौलाना आजाद के दौर के बाद अब नई शिक्षा प्रणाली पर नजर डालते हैं।

नई शिक्षा प्रणाली के अनुसार विद्यार्थी शुरूआती कक्षाओं में ही आत्म निर्भर बनकर भविष्यह की राह चुन सकेंगे। ‘एक भारत- श्रेष्ठ  भारत’ जैसे विषयों के प्रोजेक्टव बनाकर राष्ट्रन निर्माण में अपनी भूमिका निभा सकेंगे। देवभाषा संस्कृसत और मातृभाषा से लेकर अंग्रेजी समेत अन्य् विदेशी भाषाओं में महारथ हासिल कर सकेंगे। वो भी तनाव और किताबों के बोझ से मुक्तअ होकर खुले वातावरण में पढ़ाई करके। विद्यार्थियों को हुनरमंद बनाकर आत्म निर्भर बनाने की प्रक्रिया कक्षा छह से ही शुरू हो जाएगी। कक्षा छह से आठ तक के विद्यार्थियों को सीमित अवधि का बस्ताा रहित कोर्स पढ़ाया जाएगा। न्यू नतम 10 दिनों के अभ्याधस आधारित कोर्स में विद्यार्थी व्यबवसायिक विशेषज्ञों से हुनर सीखेंगे। इस कोर्स को आगे कक्षा 12 तक बढ़ाया जाएगा। त्रिभाषा फार्मूले में छात्र अपनी अभिरूचि के अनुसार भाषा का चयन कर पढाई कर सकेंगे। जिसमें दो भारतीय भाषाओ में शिक्षा अनिवार्य होगी। साथ ही विज्ञान समेत अन्यक पाठ़यक्रम मातृभाषा में भी उपलब्ध  होंगे। भारतीय साइन लैंग्वे ज लैंग्वेतज – आईएसएल- को मानकीकृत करके राष्ट्री य और राज्यं पाठ़य सामग्री तैयार की जाएगी। एनसीएफएसई और एनसीईआरटी स्था–नीय स्तरर पर व्यषवसायों की मैपिंग कर अगले सत्र तक कोर्स डिजाइन कर लागू करेगा। राष्ट्री य पाठ़यक्रम रूपरेखा एनसीएफनसीएफएसई राष्ट्री य और राज्य  स्तरर पर स्लेयबस को अगले पांच वर्षों के लिए विद्यार्थियों के लिए उपलब्धई कराएगा। इसके बाद नए सिरे से कोर्स की समीक्षा की जाएगी। 

प्राथमिक कक्षाओं से लेकर इंटरमीडियट तक त्रिभाषा फार्मूला जारी रहेगा। भारतीय साइन लैंग्वे ज लैंग्वेकज – आईएसएल के अनुसार दो से आठ आयु वर्ग के बच्चेभ बहुत तेजी से सीखते हैं। ऐसे में कक्षा तीन तक मातृभाषा में पढ़ाई होगी। इसके बाद विद्यार्थी अन्यव भाषा सीख सकेंगे। किसी भी राज्यव पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी। छात्र अपनी अभिरूचि के अनुसार भाषा का चयन कर सकेंगे। खासतौर दो भारतीय भाषाओ में शिक्षा अनिवार्य होगी। विशेष रूप से जो छात्र तीन में से एक भाषा को बदलना चा‍हते हैं वो ग्रेड- कक्षा सात तक ऐसा कर सकेंगे। ऐसे छात्रों को तीन भाषाओं में किसी एक भाषा में माध्यभमिक कक्षाओं तक साहित्यिक स्तषर पर दक्षता हासिल करनी होगी। छात्रों को अपनी चु‍निंदा भाषा में दक्षता हासिल करने के लिए कम से कम दो वर्षों का समय मिलेगा। इनमें वे भाषा की नवीन विधियां और प्रौद्योगिकी सीखेंगे। माध्य मिक यानि कक्षा छह से लेकर 12वीं तक विद्यार्थियों को तीनों भाषाएं सीखने का मौका मिलेगा। जिसमें से एक भाषा में विशेषज्ञता हासिल करना अनिवार्य होगा। अगर विद्यार्थी चाहेंगे तो उच्चे शिक्षा में भी उन भाषाओं को सीख सकेंगे। उच्च  स्तभर की कक्षाओं में गणित और विज्ञान का पाठ़यक्रम दो भाषाओें में मातृभाषा और अंग्रेजी में उपलब्धन कराया जाएगा।

कक्षा छह से बच्चोंा में कौशल विकास विकसित कर आत्मओनिर्भर बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। कक्षा आठ तक बस्तां रहित शिक्षा के तहत विद्यार्थी 10 दिनों का प्रोजेक्ट  करेंगे जिसमें स्थाअनीय स्तषर पर  बढई, कुम्हायर, कलाकार, गायकों, हस्तस कलाकारों आदि से हुनर सीखेंगे। वे खुद प्रशिक्षु के तौर पर कार्य करेंगे। ये कोर्स आन लाइन भी उपलब्धन होगा। कोर्स का विस्ताेर से 12वीं कक्षा तक किया जाएगा जिसमें  छात्र छुटि़टयों के दौरान भी प्रैक्टिकल का मौका मिलेगा । साथ ही प्रैक्टिकल नालेज के लिए प्रत्येगक विद्यार्थी पढ़ाई के दौरान ‘ द लैंग्वेमजेज आफ इंडिया’ पर प्रोजेक्ट् बनाएंगे। कक्षा छ से लेकर आठ तक के विद्यार्थी ‘एक भारत श्रेष्ठप भारत’ जैसे प्रोजेक्टथ को इसमें शामिल करेंगे। इसी प्रकार विद्यार्थी अन्या विषयों के भी प्रोजेक्टठ तैयार कर सकेंगे। खास बात ये हैं कि यह सबकुछ पूरी तरह से तनावरहित और व्यदवहारिक होगा।

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12वीं कक्षा तक संस्कृऔत महत्ववपूर्ण विषय

संस्कृ-त संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल एक महत्व पूर्ण भाषा है। यह भाषा प्राचीनतम होते हुए भी अति आधुनिक महत्व  की भाषा है। इसका शास्ी्रके य साहित्या इतना विशाल है कि सारे लैटिन और ग्रीक भाषा मिलाकर भी इसकी तुलना नहीं की जा सकती है। संस्कृत साहित्य में गणित, दर्शन, व्या्करण,संगीत, राजनीति, चिकित्सा्, वास्तुइकला, धातु विज्ञान, नाटक, कहानी समेत विभिन्न  ज्ञान प्रणालियों का खजाना है। ऐसे में संस्कृंत को त्रिभाषा फार्मूले में महत्वतपूर्ण विकल्पु के रूप में शामिल किया जाएगा। संस्कृात को 12वीं कक्षाओं के साथ ही उच्चे शिक्षा में भी महत्वुपूर्ण विषय बनाया जाएगा।। फाउंडेशन और माध्यृमिक कक्षाओं में संस्कृत की पाठ्यपुस्तकों को संस्कृत के माध्यम से संस्कृत पढाने (एसटीएस) और इसके अध्ययन को आनंददायी बनाने के शिए सरल और रोचक बनाया जाएगा। ऑडियो और वीडियो स्लेीबस तैयार किया जाएगा।

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क्षेत्रीय और विदेशी भाषाएं सीखने का मौका

संस्कृरत के अलावा तमिल, तेलगू, कन्न ड़, उड़ीया, पाली, फारसी और प्राकृत भाषाओं को भी शास्त्री्य भाषा माना गया है। इन भाषाओं का साहित्यक भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित किया जाएगा। जबकि इन भाषाओं के अध्यहयन के लिए आन लाइन माडयूल तैयार किया जाएगा। जिससे देश के प्रत्ये।क हिस्सेल में रहने वाले विद्यार्थी इन भाषाओं को सीख सकें। विशेषज्ञ शिक्षक आन लाइन ही क्लारस लेकर भारतीय भाषाओं को पढ़ा सकें। भारतीय और अंग्रेजी भाषा के अलावा कोरियाई, फ्रेंच, जापानी, थाई, पुर्तगाली,स्पेानिश, रूसी आदि भाषाएं भी माध्यीमिक कक्षाओं से सीखी जा सकेंगी। 

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गणितीय सोच तैयार करेगी ग्लोबल नेतृत्व

प्रारम्भि-क कक्षाओं से ही बच्चोंत में गणित और तकनीकी के प्रति रूचि विकसित की जाएगी। आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस, डिजाइन थिंकिंग, होलेस्टिक हेल्‍थ, आर्गेनिक लिविंग, पर्यावरण शिक्षा, वैश्विक नागरिकता शिक्षा –जीसीईडी जैसे सम सामयिक विषयों को शुरूआती चरण में शामिल किया जाएगा। विशेषज्ञों के अनुसार छात्रों में गणित और गणितीय सोच नेतृत्वा तैयार कर सकती है। ऐसे में शुरूआती कक्षाओं में ही गणित और कम्यूईडी टेशनल सोच को विकसित करने के लिए क्विज, गेम, मशीन लर्निंग, डेटा साइंस और आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस सिखाई जाएगी। माध्यकमिक कक्षाओं तक कोडि़ग को कोर्स में सिखाना शुरू कर दिया जाएगा।

प्रदूषण का जहर रोक रहा ज़िंदगी का सफर

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अरविंद जयतिलक  

गत दिवस पहले शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पालिसी इंस्टीट्यूट (ईपीआईसी) का यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि भारत में बढ़ते प्रदूषण के कारण 40 फीसदी भारतीयों की जीवन प्रत्याशा नौ साल से ज्यादा कम हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 48 करोड़ से ज्यादा लोग मध्य, पूर्वी और उत्तर भारत में वायु प्रदूषण के उच्च स्तर का सामना कर रहे हैं। नतीजतन प्रदूषण अब सिर्फ गंगा घाटी  तक ही सीमित नहीं रह गया है। महराष्ट्र और मध्यप्रदेश जैसे में गहराते प्रदूषण के कारण वहां के निवासियों की औसत जीवन प्रत्याशा में वर्ष 2000 के मुकाबले अतिरिक्त 2.5 से 2.9 वर्ष की कमी हो रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरुप प्रदूषण कम किया जाता है तो यहां के निवासियों की औसत जीवन प्रत्याशा 5.4 वर्ष बढ़ सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के दौरान भारत में हवा में प्रदूषणकारी सुक्ष्म कणों की मौजूदगी औसतन 70.3 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर थी, जो दुनिया में सर्वाधिक और डब्ल्यूएचओ के 10 माइक्रोग्राम प्र्रति क्यूबिक मीटर से सात गुना ज्यादा है। गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब किसी संस्था द्वारा प्रदूषण से जिंदगी पर पड़ने वाले भयावह असर का जिक्र हुआ हो। याद होगा अभी गत वर्ष ही हार्वर्ड और येल के अर्थशास्त्रियों ने खुलासा किया था कि भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शुमार है जहां सबसे अधिक वायु प्रदूषण है जिसके कारण यहां के लोगों को समय से तीन साल पहले ही काल के मुख में जाना पड़ रहा है। रिपोर्ट में सावधान करते हुए कहा गया था कि अगर भारत अपने वायु मानकों को पूरा करने के लिए इस आंकड़े को उलट देता है यानी वायु प्रदूषण पर नियंत्रण कर लेता है तो इससे 66 करोड़ लोगों के जीवन के 3.2 वर्ष बढ़ जाएंगे। इस रिपोर्ट में भी कहा गया था कि भारत की आधी आबादी यानी 66 करोड़ लोग उन क्षेत्रों में रहते हैं जहां सूक्ष्म कण पदार्थ (पार्टिकुलेट मैटर) प्रदूषण भारत के सुरक्षित मानकों से उपर है। रिपोर्ट के मुताबिक अगर भारत वायु प्रदूषण पर शीध्र नियंत्रण नहीं लगाया तो 2025 तक अकेले राजधानी दिल्ली में ही वायु प्रदूषण से हर वर्ष 26,600 लोगों की मौत होगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट से भी उद्घाटित हो चुका है कि प्रदूषित हवा के चपेट में भारत में वर्ष 2016 में लगभग एक लाख मासूम बच्चों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। यूनिवर्सिटी आॅफ कैरोलीना के विद्वान जैसन वेस्ट के अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण से सबसे अधिक मौत दक्षिण और पूर्व एशिया में होती है और उसमें भी भारत शीर्ष पर है। आंकड़ें बताते हैं कि हर साल मानव निर्मित वायु प्रदूषण से 4 लाख 70 हजार और औद्योगिक इकाईयों से उत्पन प्रदूषण से 21 लाख लोग दम तोड़ते हैं। अगर जहर फैला रही इन औद्योगिक इकाईयों पर नियंत्रण लग जाए तो हालात सुधर सकते हैं। दुनिया की जानी-मानी पत्रिका ‘नेचर’ द्वारा भी खुलासा किया जा चुका है कि अगर शीध्र ही वायु की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ तो वर्ष 2050 तक प्रत्येक वर्ष 66 लाख लोगों की जानें जा सकती है। यह रिपोर्ट जर्मनी के मैक्स प्लेंक इंस्टीट्यूट आॅफ केमेस्ट्री के प्रोफेसर जोहान लेलिवेल्ड और उनके शोध दल ने तैयार किया था जिसमें प्रदूषण फैलने के दो प्रमुख कारण गिनाए गए। एक, पीएम 2.5एस विषाक्त कण और दूसरा वाहनों से निकलने वाली गैस नाइट्रोजन आक्साइड। रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि भारत और चीन में वायु प्रदूषण की समस्या विशेष तौर पर गहरा सकती है। क्योंकि इन देशोें में खाना पकाने के लिए कच्चे ईंधन का इस्तेमाल होता है जो कि प्रदूषण का महत्वपूर्ण स्रोत है। विशेषज्ञों की मानें तो अगर इससे निपटने की तत्काल वैश्विक रणनीति तैयार नहीं की गयी तो भारत की बड़ी जनसंख्या वायु प्रदूषण की चपेट में आ सकती है। गत वर्ष भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा भी खुलासा किया गया था कि जागरुकता का अभाव और कठोर मानकों की कमी के कारण भारत में हर आठवें व्यक्ति की मौत का कारण वायु प्रदूषण है। अनुसंधान के मुताबिक वर्ष 2017 में ही 12.4 लाख भारतीयों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हुई। इसमें 6.7 लाख लोग सड़कों पर प्रदूषित आबोहवा के शिकार बने। अन्य 4.8 लाख लोगों की मौत का कारण घरों के अंदर की हवा के जानलेवा बन जाने से हुई। अनुसंधान के आंकड़ों के मुताबिक वायु प्रदूषण से देश में औसत जीवनकाल 1.7 वर्ष घट गया है और अधिकतर मौतें प्रदूषण के कारण फेफड़ों में कैंसर, हार्ट अटैक और क्रोनिक रोगों से हो रही है। आंकड़े के मुताबिक प्रति लाख आबादी की मृत्यु में वायु प्रदूषण की हिस्सेदारी 89.9 प्रतिशत है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के वैज्ञानिकों की मानें तो वायु प्रदूषण के कहर का सबसे ज्यादा प्रभावित दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और बिहार है। यहीं वजह है कि वर्ष 2017 में वायु प्रदूषण से सबसे अधिक 2.6 लाख लोगों की मौत उत्तर प्रदेश में हुई। इसी तरह महाराष्ट्र में 1.08 लाख, बिहार में 96967, दिल्ली में 12322, उत्तराखंड में 12 हजार, हिमाचल में 7485 और जम्मू-कश्मीर में 10476 लोग वायु प्रदूषण की भेंट चढ़े। यहां खतरनाक बात यह है कि देश के शहरों के वायुमण्डल में गैसों का अनुपात लगातार बिगड़ता जा रहा है और उसे लेकर किसी तरह की सतर्कता नहीं बरती जा रही है। आंकड़ों पर गौर करें तो हाल के वर्षों में वायुमण्डल में आॅक्सीजन की मात्रा घटी है और दूषित गैसों की मात्रा बढ़ी है। कार्बन डाई आॅक्साइड की मात्रा में तकरीबन 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण बड़े कल-कारखानें और उद्योगधंधों में कोयले एवं खनिज तेल का उपयोग है। गौरतलब है कि इनके जलने से सल्फर डाई आक्साइड निकलती है जो मानव जीवन के लिए बेहद खतरनाक है। शहरों का बढ़ता दायरा, कारखानों से निकलने वाला धुंआ, वाहनों की बढ़ती तादाद एवं मेट्रो का विस्तार तमाम ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से प्रदूषण बढ़ रहा है। वाहनों के धुएं के साथ सीसा, कार्बन मोनोक्साइड तथा नाइट्रोजन आॅक्साइड के कण निकलते हैं। ये दूषित कण मानव शरीर में कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं। मसलन सल्फर डाई आॅक्साइड से फेफड़े के रोग, कैडमियम जैसे घातक पदार्थों से हृदय रोग, और कार्बन मोनोक्साइड से कैंसर और श्वास संबंधी रोग होते हैं। कारखानें और विद्युत गृह की चिमनियों तथा स्वचालित मोटरगाड़ियों में विभिन्न ईंधनों के पूर्ण और अपूर्ण दहन भी प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं। वायु प्रदूषण से न केवल मानव समाज को बल्कि प्रकृति को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है। प्रदूषित वायुमण्डल से जब भी वर्षा होती है प्रदूषक तत्व वर्षा जल के साथ मिलकर नदियों, तालाबों, जलाशयों और मृदा को प्रदुषित कर देते हैं। अम्लीय वर्षा का जलीय तंत्र समष्टि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। नार्वे, स्वीडन, कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका की महान झीलें अम्लीय वर्षा से प्रभावित हैं। अम्लीय वर्षा वनों को भी बड़े पैमाने पर नष्ट कर रहा है। ओजोन गैस की परत, जो पृथ्वी के लिए एक रक्षाकवच का कार्य करती है, में वायुमण्डल के दूषित गैसों के कारण उसे काफी नुकसान पहुंचा है। ध्रुवों पर इस परत में एक बड़ा छिद्र हो गया है जिससे सूर्य की खतरनाक पराबैगनीं किरणें भूपृष्ठ पर पहुंचकर ताप में वृद्धि कर रही है। इससे न केवल कैंसर जैसे असाध्य रोगों में वृद्धि हो रही है बल्कि पेड़ों से कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी हुई है। इससे ओजोन एवं अन्य तत्वों के बनने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। नए शोधों से जानकारी मिली है कि गर्भवती महिलाएं जो वायु प्रदूषण क्षेत्र में रहती है, उनसे जन्म लेने वाले शिशु का वजन सामान्य शिशुओं की तुलना में कम होता है। यह खुलासा एनवायरमेंटल हेल्थ प्राॅस्पेक्टिव द्वारा 9 देशों में 30 लाख से ज्यादा जन्म लेने वाले नवजात शिशुओं के अध्ययन से हुआ है। उचित होगा कि सरकार ठोस कानून बनाकर वायु प्रदूषण की गहराती समस्या पर नियंत्रण लगाए तथा साथ ही जनता को जागरुक करे।     

कहानी : वैशाली ने बदल दी तकदीर

लेखक : मनीष शुक्ल

रात भर वो इधर से उधर करवट बदलती रही। आने वाली सुबह उसके संघर्ष से भरे जीवन का अंत कर सकती थी। उसके जीवन में खुशियाँ भर सकती थीं। एक ओर संघर्ष से घिरी अंधेरी ज़िंदगी दूसरी ओर रोशनी से भरा भविष्य, लेकिन फैसला लेना आसान नहीं था… बस एक फासले पर था उसका फैसला और उसकी दुनियाँ बदल सकती थी। दौलत- शौहरत, सुकून और ऐशो- आराम से भरपूर एग्रीकल्चर साइंटिस्ट की जॉब। दूसरी तरफ वैशाली के सिर पर थी माता- पिता के संघर्षों की पोटली। उनके खोये सम्मान को लौटाने का दायित्व… अपनी दो छोटी बहनों को गर्व से जीने की आजादी दिलाना, खुद को बेटे से बढ़कर साबित करने की चुनौती। अपने बंजर खेतों को नया जीवन देने का संकल्प। लड़की के रूप में जन्म लेने के बाद बचपन से ही अपने नाते- रिशतेदारों से खूब ताने सुने थे। अब वक्त आ गया था कि वो उन तानों का जवाब दे लेकिन अपने काम से।

रात भर उसके कानों में बार- बार यही शब्द गूंज रहे थे।

“तोहरी अम्मा कुल हंता है। अब पूरे खानदान पर कालिख पोत कर छोरियों को पराए शहर पढ़ें भेज रही है। लिख के रख लेओ सत्तू, खानदान की नाक कटा के न लउटे तो अपनी अम्मा का नाम बदल देहो। ”

सत्तू और कुसुमा ने अपनी अम्मा की पुरुष सत्ता को चुनौती देकर तीनों बेटियों की परवरिश की थी। जिस दिन वैशाली पैदा हुई थी उस दिन कुसुमा की सास ने चूल्हा नहीं जलाया था। पूरे परिवार में अम्मा की सत्ता ही चलती थी लेकिन अम्मा थीं जिनको वंश आगे बढ़ाने के लिए कुसुमा से एक लड़का पैदा होने की उम्मीद थी। वैशाली के बाद भैरवी का जन्म हुआ तो अम्मा बिलकुल टूट गईं लेकिन सत्तू को हौसला देते हुए बोलीं कि

“एक बार और कोशिश करो, अपने खेत- खलिहान जमीन- जायजाद संभालें के लए एक लल्ला होने जरूरी है।“

सत्तू ने लाख मना किया। वो बोला “माँ आजकल छोरी- छोरों से कम नहीं होवे हैं। वंश आगे बढ़ना होगा तो छोरियाँ ही वंश का नाम रोशन कर देंगी “ लेकिन माँ की जिद के आगे सत्तू और कुसुमा की एक न चली। कुसुमा फिर गर्भवती हुई, अम्मा ने साफ कह दिया कि इस बार लल्ला ही होएगा, वरना तुम लोग अपने बोरिया- बिस्तर का इंतजाम कर लेना।

नियति को अम्मा का फैसला मंजूर नहीं था। इस बार भी हुआ वही जिसका डर सबको था। कुसुमा ने फिर बेटी जनी। अब अम्मा के सब्र का बांध टूट गया था। कुसुमा की गोदी में शिप्रा थी। वो आँगन में खड़ी कमरे में जाने का इंतजार कर रही थी लेकिन अम्मा ने कुसुमा को कमरे के अंदर जाने नहीं दिया। वो कुसुमा के हाथ में लड़की देखते ही भड़क कर चिल्ला उठीं… “न तो मायके से बर्तन भाड़ा लाई, न ही कऊनों गहना… तबहौं संतोष कर लीन्ह, कोऊ बात नाहीं, बहू अब लल्ला जनेगी तो सबका दुख दर्द दूर हो जाई। अपन कुल का नाम आगे बढ़ी… पर यो तो छोरी पैदा करें वाली मशीन बन गई… सत्तू बस अब और न चली… एखा लई जाओ और अलग रहें की व्यवस्था कर लो…”

पूरा घर- परिवार इकठ्ठा हुआ। सारे भाई बैठे, अम्मा- बापू और भाइयों की रजामंदी से तय हुआ कि बगीचे के ऊसर वाली जमीन सत्तू को दे दी जाए। वहीं वो अपना परिवार लेकर रहे और तीज- त्योहार और जरूरत पड़ने पर घर आता रहे। सत्तू के हिस्से का राशन वहीं भिजवा दिया जाएगा। फैसला हो चुका था। सत्तू के सारे भाइयों के बेटे थे, इसलिए उन सबको उपजाऊ जमीन मिली थी जबकि कुलहंता करार दिये गए सत्तू और उसकी बीबी कुसुमा को घर दे दूर खेतों में रहने का वनवास मिल चुका था। सत्तू और कुसुमा अपनी तीनों बेटियों के साथ अपने ही घर से दूर चले गए थे।

सत्तू को ईश्वर के निर्णय और अपनी बेटियों के भाग्य पर भरोसा था। उसने बेटियों के अधिकारों के लिए अपने घर से लेकर बाहर तक संघर्ष का निर्णय लिया। बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने का फैसला लिया और अपनी बेटियों को पढ़ाने का फैसला लिया। जमीन भले ही बंजर थी लेकिन थी एकड़ों के हिसाब से। सत्तू ठहरा जमींदार बाप की औलाद तो कुछ जमीन को उपजाऊ बनाने की कोशिश में लग गया। बाकी जमीन बटाई में दे दी, बस इस तरह से उसका गुजर बसर चलने लगा।

सत्तू और कुसुमा का दोतरफा संघर्ष बाकी था। वो दोनों जब भी अपनी बेटियों को लेकर माँ के पास जाते तो उसकी माँ तीनों बेटियों को ताना मारती कि “सत्तू के तीन छोरे होते तो तुझे जमीन को किराए पर न देना पड़ता। हम लोग जमींदार हैं, लोगों से अपने खेतों पर काम करवाते हैं लेकिन तेरी छोरियों ने तुझे मुनीम बनाकर छोड़ दिया। बहू ने एक के बाद एक बेटियाँ जनकर तेरा ये लोक और पर लोक दोनों बिगाड़ दिये। “ माँ की बातें तीर से भी ज्यादा जुभती थीं। अब तो वैशाली भी बड़ी होने लगी थी। वो दादी के ताने समझने लगी थी। वो जब भी जाती तो दादी की जली- कटी बातें सुनती और फिर अकेले में जी भर के रोती। उसको लगता कि क्या माँ ने उसको पैदा करके कोई अपराध कर दिया है। क्या माँ को उस परिवार में रहने का हक नहीं था, जो माँ- बापू दोनों को पैतृक घर से बाहर निकाल दिया। उनके हिस्से में जमीन का वो हिस्सा आया जिसमें कुछ उगता ही नहीं था।

वैशाली ने गाँव के पास के इंटर कालेज से 12वीं पास करने के बाद पिता से शहर जाकर पढ़ाई करने की जिद की। उसने बताया कि वो एग्री कल्चर इंजीनियरिंग में दाखिला लेगी। पढ़ाई के बाद गाँव लौटेगी और नई तकनीकी से अपने खेतों की दशा बदल देगी। सत्तू और कुसुमा ने सारा संघर्ष अपनी बेटियों के अधिकारों के लिए ही किया था। दोनों ने अम्मा और अन्य घर वालों की विरोध के वावजूद वैशाली को शहर भेजने का फैसला किया। अब बारी वैशाली के फैसले की थी। कृषि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद उसका वैज्ञानिक पद पर चयन हो चुका था। अपनी सात पीढ़ियों में वो पहली वैज्ञानिक थी। माता- पिता दोनों ही इस उपलब्धि से गर्व महसूस कर रहे थे लेकिन वैशाली का अन्तर्मन उसे गाँव वापस जाकर अपने बंजर खेतों को उपजाऊ बनाने के लिए कह रहा था।

आखिरकार उसने अपने दिल की बात सुनी और वैज्ञानिक बनने की जगह किसान बनकर मिट्टी की सेवा का निर्णय लिया। बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए गोबर को उर्वरक के रूप में खेतों में इस्तेमाल करना शुरू किया। नई तकनीकी का इस्तेमाल करके खेतों को उर्वर बनाया। जल संचयन कर पानी की कमी का निपटारा किया। आसपास के लोगों को जैविक खेती के लिए प्रशिक्षित किया। अपनी जमीन को छोटे- छोटे हिस्सों में बांटकर खेती शुरू की। फिर एक एकड़ जमीन पर रोजमर्रा के जीवन में उपयोग होने वाली करीब 100 फसलें उगाईं। खेतों के अलग- अलग भाग करके जमीन पर दलहन, अनाज और हरी सब्जियां उगानी शुरू कर दीं। अंगूर और सोयाबीन की भी खेती करनी शुरू की। फिर अगले साल भी इन्हीं फसलों को दोहराया। इस बार मौसम ने फिर साथ नहीं दिया लेकिन जल संचयन का तरीका काम आया। जहां गाँव के ज़्यादातर लोगों की फसलें बर्बाद हो गईं वहीं वैशाली के वैज्ञानिक तरीके ने बंजर खेतों को उपजाऊ बनाकर नई मिसाल पेश की। वैशाली ने लगभग 5000 किलो फसल उपजाई, जिसमें 15 फीसदी का इस्तेमाल स्वयं कर बाकी बची हुई फसल का व्यापार किया। जैविक खेती में उसने प्रति एकड़ 11000 रूपये की लागत लगा कर दो फसली मौसम में करीब एक लाख रुपए तक का मुनाफा कमाया। खेतों में उपयोग करने के लिए खाद की जगह अपनी गाय के गोबर का प्रयोग कर खाद का पैसा भी बचाया।

वैशाली की ये सफलता किसी चमत्कार से कम नहीं थी। राज्य के शीर्ष कृषि विज्ञान केंद्र ने वैशाली के खेतों का सर्वे किया। तो बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने का नायाब फार्मूला हासिल हुआ। कृषि वैज्ञानिकों ने वैशाली को देश का सर्वश्रेष्ठ किसान घोषित करने की सरकार से सिफ़ारिश की। केंद्र सरकार ने वैशाली का अद्भुत काम देखकर कृषि क्षेत्र का ब्रांड अम्बेस्ड़र बनाने का फैसला लिया साथ ही प्रधानमंत्री के हाथों से पुरस्कार देने की घोषणा की गई। यह सुनकर पूरे गाँव में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। सबने आकर सत्तू, कुसुमा और वैशाली के दादा- दादी को बधाई दी। आखिरकार वो दिन भी आ गया जब वैशाली को सपरिवार देश के प्रधानमंत्री के हाथों पुरस्कृत होने का न्योता मिला। सत्तू और कुसुमा के लिए ये दिन उनकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा दिन था। वो दोनों वैशाली को लेकर दादा- दादी के घर गए। कुसुमा बोली.. अम्मा, परधानमंत्री ने आपको और बापू को हमारे साथ दिल्ली बुलाया है। वहाँ पर वो खुद वैशाली को सम्मानित करेंगे। ये देखो सबके लिए जहाज की टिकटें भी भेजी हैं। इतना सुनते ही अम्मा ने वैशाली को गले लगा लिया… “मेरी पोती… जो काम कोई न कर पाया वो इस छोरी ने कर दिया। पूरे कुल को ‘तार’ दिया। सातों पीढ़ियों का नाम रोशन कर दिया। अपनी अम्मा का जीवन धन्य कर दिया। हमें तो जीवन भर सत्तू और इसकी छोरियों की चिंता जताए रहती थी। अब हम और सत्तू के बापू निश्चिंत होकर अपनी आंखे बंद कर सकेंगे।“ यह सुनते ही वैशाली, सत्तू और कुसुमा एक दूसरे को देखकर मुस्कराने लगे।

गोवर्धन के साथ पीएम मोदी ने केदारनाथ में की भोले बाबा की पूजा

गोवर्धन के साथ पीएम मोदी ने केदारनाथ में की भोले बाबा की पूजा

दीपावली के दूसरे दिन यानि आज पूरे देश में गोवर्धन पूजा हो रही है तो साथ ही साथ ॐ नमः शिवाय भी गुंजायमान हो रहा है। केदारनाथ से उज्जैन महाकाल तक भोले बाबा की जयकार है। इसकी पहल खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ने जयकार लगाकर की है। पीएम पहली बार अस्सी के दशक में केदारनाथ जी आए थे। तब उन्होने यहीं पर ध्यान योग किया था। आज भी उन्होने नव निर्मित शंक्राचार्य जी की प्रतिमा के समक्ष ध्यान किया। मोदी की शिव भक्ति इसी से समझी जा सकती है है कि वो प्रधानमंत्री के सैट वर्ष के कार्यकाल में पाँच बाद यहाँ आकर पूजा कर चुके हैं। पीएम के साथ ही सभी मठों, 12 ज्योतिर्लिंगों, अनेक शिवालयों, शक्ति धाम,अनेक तीर्थ क्षेत्रों पर ऋषि, मनीषी और अनेक श्रद्धालु ने भी भोले बाबा कि पूजा की। इस मौके पर पीएम मोदी ने शंकर शब्द का अर्थ भी समझाया।

पीएम मोदी ने कहा कि हमारे उपनिषदों में, आदि शंकराचार्य जी की रचनाओं में कई जगह नेति-नेति कहकर एक भाव विश्व का विस्तार दिया गया है. रामचरित मानस को भी हम देखें तो इसमें में अलग तरीके से ये भाव दोहराया गया है. रामचरित मानस में कहा गया है- ‘अबिगत अकथ अपार, नेति-नेति नित निगम कह’ अर्थात्, कुछ अनुभव इतने अलौकिक, इतने अनंत होते हैं कि उन्हें शब्दों से व्यक्त नहीं किया जा सकता. बाबा केदारनाथ की शरण में आकर मेरी अनुभूति ऐसी ही होती है.

प्रधानमंत्री ने ये भी कहा कि बरसों पहले जो नुकसान यहां हुआ था, वो अकल्पनीय था. जो लोग यहां आते थे, वो सोचते थे कि क्या ये हमारा केदार धाम फिर से उठ खड़ा होगा? लेकिन मेरे भीतर की आवाज कह रही थी की ये पहले से अधिक आन-बान-शान के साथ खड़ा होगा. इस आदि भूमि पर शाश्वत के साथ आधुनिकता का ये मेल, विकास के ये काम भगवान शंकर की सहज कृपा का ही परिणाम हैं. मैं इन पुनीत प्रयासों के लिए उत्तराखंड सरकार का, मुख्यमंत्री धामी जी का, और इन कामों की ज़िम्मेदारी उठाने वाले सभी लोगों का भी धन्यवाद करता हूं.

पीएम मोदी ने कहा कि शंकर का संस्कृत में अर्थ है- “शं करोति सः शंकरः” यानी, जो कल्याण करे, वही शंकर है. इस व्याकरण को भी आचार्य शंकर ने प्रत्यक्ष प्रमाणित कर दिया. उनका पूरा जीवन जितना असाधारण था, उतना ही वो जन-साधारण के कल्याण के लिए समर्पित थे. एक समय था जब आध्यात्म को, धर्म को केवल रूढ़ियों से जोड़कर देखा जाने लगा था. लेकिन, भारतीय दर्शन तो मानव कल्याण की बात करता है, जीवन को पूर्णता के साथ देखता है. आदि शंकराचार्य जी ने समाज को इस सत्य से परिचित कराने का काम किया।

मां मेरी यह कहती है…

—- डॉ शिल्पी बक्शी शुक्ला

मां मेरी यह कहती है,

जिन पेड़ों पर फल लगता है,

उनकी शाखें झुक जातीं हैं,

करने प्रणाम अस्‍ताचल सूर्य को,

बहती नदियां रूक जातीं हैं,

गिरती हैं लहू की बूंदे तो,

बंजर धरती भी सोना हो जाती है,

सहती है बोझ ये धरती,

तभी ये सृष्टि चल पाती है,

मिलते हैं मेहनतकश हाथ,

तो पर्वत भी हिल जाते हैं,

उठ जाएं मिलकर भाल तो,

दुश्‍मन पीछे हट जाते हैं,

मिलने पर अंगुलियों की ताकत,

मज़बूत एक मुट्ठी बन जाती है,

सच्‍चा मानव वही धरा में,

परहित में जो मिट जाता है,

मां मेरी यह कहती है,

सच्‍चा धर्म वही जगती में,

प्रेम का पाठ जो सिखलाता है…