- शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी ने चीन के साथ परस्पर विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता को बढ़ाने का आह्वान किया
डॉ. मनीष शुक्ल
भारत और चीन के शीर्ष नेताओं की मुलाक़ात पर दुनियाँ भर की नजरें हैं| खासतौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ वार के ऐलान के बाद! टैरिफ का शिकार भारत और चीन दोनों ही राष्ट्र हुए हैं| भारत टैरिफ वार से निपटने के लिए नए बाज़ारों को तलाश रहा है| पीएम मोदी की चीन यात्रा से ठीक पहले जापान से हुआ व्यापार समझौता इसी की बानगी है| चीन ने भी भारत के स्वागत में रेड कार्पेट बिछाकर गतिरोध समाप्त करने का संकेत दिया है| प्रधानमंत्री मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग से वार्ता में परस्पर विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता को बढ़ाने का आह्वान किया| अगर चीन खुले दिल से इस आह्वान को स्वीकार किया तो जल्द ही विश्व का आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य परिवर्तित हो सकता है|
मोदी को भरोसेमंद मित्र बताने वाला अमेरिका आज भारत पर रूस- यूक्रेन युद्ध को फंड करने का अनर्गल आरोप लगा रहा है| राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उनके समर्थक भारत के प्रति आक्रामक है लेकिन यूएस रणनीतिकार जानते हैं कि भारत- अमेरिका के संबंध लगातार तार- तार हो रहे हैं| ऐसे में चीन और भारत के सम्बन्धों में विश्वास बहाली का खामियाजा अमेरिका को भुगतना पड़ेगा| भारत ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि ये युद्ध का नहीं बुद्ध और शांति का काल है| हमारी विश्व के सभी देशों के साथ स्वतंत्र और आत्मनिर्भर नीति रही है| इसीलिए तमाम दबाव के बावजूद भारत अडिग खड़ा है| भारत का विश्व शांति के लिए किस हद तक प्रयासरत है, इसका उदाहरण है प्रधानमंत्री ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन से बातचीत से पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को फोन कर शांति प्रयासों से अवगत कराया|
अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत को‘डेड इकॉनामी’कहा हो लेकिन हम विश्व की चौथी बड़ी आर्थिक महाशक्ति है| वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक घटनाक्रम में भारत की उपस्थिति शक्ति संतुलन का प्रतीक है| यही कारण है कि चीन ने बिना समय गवाए भारत की ओर तेजी से दोस्ती का हाथ बढ़ाया है| बीते दस महीनों में पीएम मोदी की राष्ट्रपति शी जिनफिंग से दूसरी मुलाक़ात ने आपसी संबंधों को बेहतर बनाने का प्रयास किया है| हालांकि ये महज शुरुआत है| अमेरिका और चीन दो ऐसे देश हैं जो समूचे विश्व पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहते हैं| दोनों ही देशों पर आँख बंद करके विश्वास करना नुकसान दायक साबित होता है| भारत दोनों ही देशों का भुक्त भोगी है| हालांकि अब बीती घटनाओं से सबक लेकर आगे बढ़ने का समय है|
अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने हाल ही में कहा था कि भारत पर उच्च टैरिफ रूसी तेल की खरीद के साथ व्यापार समझौते की वार्ता की लंबी अवधि के कारण भी है| ट्रम्प के सलाहकार लगातार अनर्गल टिप्पढी कर रहे हैं| भारत ने भी अमेरिकी दबाव का डटकर सामना करने का ऐलान कर दिया है| दूसरी ओर अमेरिका में ही ट्रम्प की इस नीति को लोग देश के लिए नुकसानदायक बता रहे हैं| डेमोक्रेटिक पार्टी कैलिफोर्निया के नेता अजय जैन भुटोरिया का कहना है राष्ट्रपति ट्रम्प यूक्रेन- रूस युद्ध को खत्म कराने के नाम पर सत्ता में आए थे लेकिन वो इसमें विफल रहे इसलिए उन्होने इस युद्ध से अमेरिका जनता का ध्यान बंटाने के लिए टैरिफ वार छेड़ दिया| अभी यहाँ मिड टर्म चुनाव होने वाले हैं जिसमें रिपब्लिकन को नुकसान उठाना पड़ेगा|
अमेरिका ने जहां दशकों की मेहनत पर पानी फेर भारत से संबंध खराब कर लिए हैं तो भारत के पास आज अवसर है कि हम आत्मनिर्भर होकर अपनी शर्तों पर आर्थिक और राजनीतिक संबंध स्थापित करें| चीन के साथ भी भारत के रिश्ते नए सिरे से परिभाषित करने कि जरूरत है| इसमें सीमा पर शांति और विवाद का समाधान अनिवार्य है| पीएम मोदी ने अपने सम्बोधन में सीमा पर शांति का मुद्दा उठाया| इसके साथ ही कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू होने के साथ दोनों देशों के बीच सीधी उड़ान शुरू होने की जानकारी दी| शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन से पहले द्विपक्षीय वार्ता में अधिकांश मुद्दों पर सहमति शुभ संकेत है|
चीन में दो दिवसीय सम्मेलन से पहले ही पीएम ने साफ कर दिया था कि विश्व की आर्थिक व्यवस्था में स्थिरता लाने के लिए भारत और चीन का मिलकर काम करना महत्वपूर्ण है| शिखर सम्मेलन में ही पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाक़ात पर समूचे विश्व की नजरें हैं| भारत और रूस दोनों पारंपरिक और विश्वसनीय साझेदार हैं| रूस और चीन आपस में करीबी दोस्त हैं| ऐसे में भारत- रूस और चीन का संभावित गठबंधन नया ‘वर्ल्ड आर्डर’ बना सकता है| इस वैश्विक परिदृश्य में न सिर्फ दुनियाँ की निर्भरता डॉलर पर कम करेगा बल्कि विकासशील देशों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अग्रसर करेगा|