Friday, July 11, 2025
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पांडुलिपि विरासत के जरिये सँजोई जाएगी भारतीय संस्कृति

संस्कृति मंत्रालय द्वारा पहले वैश्विक सम्मेलन की घोषणा

  • पांडुलिपि विरासत से ज्ञान विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए होगा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन

नई दिल्ली : भारत सरकार पांडुलिपि विरासत के माध्यम से देश की संस्कृति को सँजोने का काम कर रही है| इसी पहल के तहत भारतीय ज्ञान की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन 11 से 13 सितंबर 2025 तक भारत मंडपम, नई दिल्ली में आयोजित किया जाएगा। तीन दिन तक हाइब्रिड मोड में चलने वाला पांडुलिपि विरासत पर यह पहला सम्मेलन 11 सितंबर 1893 को विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक भाषण के सम्मान में आयोजित किया जा रहा है। यह अवसर ज्ञान, शांति और सार्वभौमिक सद्भाव के प्रति भारत की अटूट प्रतिबद्धता को प्रेरित करता है और इसकी स्थायी बौद्धिक और आध्यात्मिक दृष्टि की पुष्टि करता है। इस सम्मेलन में भारत के प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्ति भाग लेंगे और इसमें दुनिया भर के प्रसिद्ध विद्वानों, विचारकों और सांस्कृतिक संरक्षकों के मुख्य भाषण और भागीदारी शामिल होगी। हाइब्रिड प्रारूप में डिजाइन किया गया यह सम्मेलन व्यक्तिगत और आभासी, दोनों तरह से जुड़ाव को सुगम बनाएगा, जिससे व्यापक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी सुनिश्चित होगी।

भारत में दर्शन, विज्ञान, चिकित्सा, गणित, साहित्य, कर्मकांड और कलाओं से संबंधित 1 करोड़ से ज्यादा पांडुलिपियों का एक अद्वितीय भंडार है। ये पांडुलिपियां ऐतिहासिक अभिलेखों से कहीं बढ़कर हैं; ये भारतीय ज्ञान परंपरा के जीवंत सार का प्रतिनिधित्व करती हैं और भारत की बौद्धिक एवं सांस्कृतिक विरासत के समृद्ध एवं सतत प्रवाह को संरक्षित करने में एक महत्वपूर्ण कड़ी का काम करती हैं। तीन दिनों तक चलने वाले इस सम्मेलन में भारत और विदेश के 75 प्रख्यात विद्वान और सांस्कृतिक संरक्षकों सहित 500 से ज्यादा प्रतिनिधि शामिल होंगे। विषय केंद्रित सत्रों में संरक्षण, डिजिटलीकरण और मेटाडेटा मानकों से लेकर पुरालेखीय अध्ययन, आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस (एआई)-एकीकृत अभिलेखीय तौर-तरीकों, नैतिक संरक्षण और पांडुलिपि ज्ञान के पाठ्यक्रम एकीकरण तक, विविध विषयों पर चर्चा की जाएगी। दुर्लभ पांडुलिपियों (कुछ यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में अंकित) की प्रदर्शनियां, संरक्षण तकनीकों का लाइव प्रदर्शन, कार्यशालाएं, सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और पांडुलिपि-केंद्रित स्टार्टअप्स के लिए समर्पित स्थान सहित कई अतिरिक्त कार्यक्रम इस अनुभव को और समृद्ध करेंगे।

इसके अनुमानित प्रमुख परिणामों में पांडुलिपि विरासत पर नई दिल्ली घोषणापत्र को अपनाना, पठन, संरक्षण, अनुवाद और डिजिटल अभिलेखीकरण के लिए विशेषज्ञ कार्य समूहों का गठन और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए दीर्घकालिक संस्थागत संबंध शामिल हैं। व्यावहारिक प्रशिक्षण, लिपि प्रयोगशालाओं और डिजिटल सामग्री विकास के माध्यम से युवा विद्वानों को जोड़ने के लिए पांडुलिपि अनुसंधान भागीदार (एमआरपी) कार्यक्रम भी शुरू किया जाएगा।

संरक्षण, कोडिकोलॉजी, कानूनी ढांचे, शिक्षा, सांस्कृतिक कूटनीति और पांडुलिपि अध्ययन में तकनीकी नवाचार जैसे विषयों पर हिंदी या अंग्रेजी में मूल शोध पत्र और केस स्टडी आमंत्रित हैं। सारांश 10 अगस्त 2025 तक सम्मेलन की आधिकारिक वेबसाइट: https://gbm-moc.in के माध्यम से प्रस्तुत किए जाने चाहिए। पूर्ण शोध पत्र और संबंधित प्रश्न सम्मेलन के ईमेल: gbmconference[at]gmail[dot]com पर भेजे जा सकते हैं।

यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन न केवल भारत की पांडुलिपि विरासत को पुनर्जीवित करेगा, बल्कि एक व्यापक सभ्यतागत आंदोलन को भी गति देगा जो पीढ़ियों को प्राचीन ग्रंथों में निहित ज्ञान से जोड़ेगा और भारत को एक बार फिर ज्ञान परंपराओं में एक वैश्विक विचारक के रूप में स्थापित करेगा।

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