Thursday, May 15, 2025
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शिलांग में होगा देशभर के साहित्यकारों का सम्मान

  • तीन वर्षों के बाद शिलांग में 19वें अखिल भारतीय लेखक मिलन शिविर का आयोजन

शिलांग (एक संवाददाता)। पूर्वोत्तर भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए सक्रिय संस्था पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी विगत 35 वर्षों से लगातार लेखक मिलन शिविर के साथ-साथ सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं के सहयोग एवं समर्थन से विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करती आ रही है। इसी क्रम में इस अकादमी ने शिलांग के अतिरिक्त पूर्वोत्तर राज्यों मिजोरम, नागालैण्ड, असम, सिक्किम, त्रिपुरा के साथ-साथ नेपाल, भूटान और गोवा में भी राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार के अतिरिक्त हिंदी साहित्य का भी प्रचार किया है। इस बार 3 वर्षों के बाद आगामी 30 मई से 1 जून तक एक बार फिर शिलांग में अखिल भारतीय लेखक एवं पर्यटक मिलन शिविर का आयोजन किया जा रहा है और इसकी तैयारियाँ अभी से शुरू कर दी गई है।

इस शिविर के संयोजक डॉ. अकेलाभाइ ने बताया कि इस बार 101 से लेखक एवं पर्यटक इस शिविर में सम्मिलित होने वाले हैं। पंजीकरण की प्रक्रिया संपन्न हो चुकी है। इस शिविर में 18 राज्यों की प्रतिनिधियों की उपस्थिति का अनुमान है। उल्लेखनीय है कि यह शिविर डॉ. महाराज कृष्ण जैन के 89वीं जयंती के अवसर पर प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है और प्रति वर्ष 100 से अधिक प्रतिनिधि हिस्सा लेते हैं। इस शिविर में कवि गोष्ठी, विचार गोष्ठी, सांस्कृतिक कार्यक्रम, पर्यटन और सम्मान समारोह का आयोजन किया जाता है। इस अकादमी के अध्यक्ष श्री बिमल बजाज एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनके सहयोग और समर्थन से मेघालय की राजधानी शिलांग स्थित श्री राजस्थान विश्राम भवन में यह शिविर आयोजित किया जाता है।   

पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी के बारे में चर्चा करते हुए अध्यक्ष श्री बिमल बजाज ने बताया, पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी भारत के मेघालय में सामाजिक विकास के मुद्दों पर काम करने वाला एक गैर-सरकारी संगठन है। इसका संचालन मेघालय राज्य के दो जिलों अर्थात् जैंतिया हिल्स और पूर्वी खासी हिल्स जिले को कवर करता है।

पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी एक गैर-लाभकारी संगठन है जो उत्तर-पूर्वी राज्यों में हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के उत्थान के लिए समर्पित है। अकादमी में कोई वेतनभोगी कर्मचारी नहीं है। इसलिए हम प्रशासनिक व्यय के लिए न्यूनतम ओवरहेड रखने में सक्षम हैं। यह न्यूनतम ओवरहेड आम तौर पर स्वयंसेवकों और शुभचिंतकों के योगदान के माध्यम से कवर किया जाता है।

पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी का गठन सितंबर 1990 को शिलांग, मेघालय में एक शैक्षिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक संगठन के रूप में किया गया था, और यह विभिन्न सरकारों की रचनात्मक सलाह और वित्तीय सहायता के तहत कार्य कर रही गैर सरकारी संगठन है । सामाजिक कार्यकर्ता श्री बिमल बजाज इसके अध्यक्ष हैं, सचिव (मानद) डॉ. अकेलाभाइ हैं और इसकी गतिविधियों में मार्गदर्शन के लिए वरिष्ठ विद्वानों और विभिन्न विभागों के प्रतिनिधियों का एक नामांकित निकाय है। अकादमी का मूल उद्देश्य विभिन्न सामाजिक-शैक्षणिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से भारतीय भाषाओं और साहित्य का प्रचार-प्रसार करना है।

पिछले 35 वर्षों के दौरान इस अकादमी ने नॉर्थ ईस्टर्न काउंसिल के सहयोग से पूरे भारत के छात्रों, लेखकों और कवियों के लिए 200 से अधिक सेमिनार, संगोष्ठी, हिंदी प्रशिक्षण, वाद-विवाद, प्रश्नोत्तरी, नृत्य, निबंध और ड्राइंग प्रतियोगिता, एक्सटेम्पोर और साहित्यिक बैठकें आयोजित की हैं। गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति, नई दिल्ली, तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, शिलांग, गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली, नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली, सीआईआईएल, मैसूर, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली, यूनिसेफ, दिल्ली, कहानी लेखन महाविद्यालय, अंबाला कैंट, सीमा सुरक्षा बल, शिलांग, केंद्रीय हिंदी संस्थान, शिलांग आदि के सहयोग से यह अकादमी कार्यक्रमों का आयोजन करती रही है। यह अकादमी सभी साहित्यिक आलोचकों, कवियों, व्याख्याताओं, छात्रों और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं को बढ़ावा देती है। एक स्वस्थ और समान समाज का निर्माण करना जहां राज्य का प्रत्येक व्यक्ति किसी भी आयु वर्ग, लिंग, जाति, पंथ और धर्म का भेदभाव किए बिना हिंदी भाषा बोल और लिख सके। उन्हें सुनिश्चित करें कि हिंदी बोलते समय उनमें आत्मविश्वास हो। स्वयं सोचने और अपने अनुभवों, ज्ञान और कल्पना का उपयोग करके अपने विचार व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करें।

इस अकादमी के लक्ष्य और उद्देश्य हैं,  पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों, विशेषकर मेघालय में हिंदी भाषा, साहित्य और नागरी लिपि को बढ़ावा देना। हिंदीतर भाषी लोगों के कल्याण के लिए विशिष्ट गतिविधियां शुरू करना और उन्हें हिंदी भाषा के माध्यम से आधुनिक भारतीय भाषाओं, साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में शिक्षित करना। मेघालय में हिंदी भाषा, साहित्य, कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए गैर-हिंदी भाषी लोगों की सहज भावना को बढ़ावा देना। पुस्तकों, पत्रिकाओं का प्रकाशन, अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य से हिन्दी में अनुवाद। (अर्थात खासी, गारो, असमिया, बोरो, मणिपुरी, बंगाली आदि), अपने बहुभाषी साहित्यिक कार्यों और अन्य गतिविधियों के साथ भारतीय राष्ट्रीय के सभी लोगों को एक मंच पर लाना।, लोगों के मन में भाईचारे और समानता की भावना विकसित करना।, समान लक्ष्य और उद्देश्य वाले अन्य संगठन (गैर-राजनीतिक) से संबद्ध होना। हिन्दी भाषा, कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में नई प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना। हिन्दी भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में कार्य करने वाले वरिष्ठ नागरिकों को उनकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित करना।

पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी के विषय में बताते हुए श्री बिमल बजाज ने कहा, शिलांग की मनोरम पहाड़ियों में, जिसे “पूर्व का स्कॉटलैंड” कहा जाता है, इस शिविर में सभी का हार्दिक स्वागत है। यह मेरे लिए सम्मान की बात है कि भारत के 18 से 20 राज्यों से विविध और रचनात्मक व्यक्तित्वों के साथ हमारा मिलना होगा। यह शिविर केवल लेखकों का जमावड़ा नहीं है; यह हमारी साझा मानवता का उत्सव है, जो शब्दों की शक्ति के माध्यम से अभिव्यक्त होता है।

भारत कहानियों की भूमि है। वेदों की प्राचीन ऋचाओं से लेकर रामायण और महाभारत की कालजयी गाथाओं तक, कबीर और मीराबाई की भक्ति भरी कविताओं से लेकर प्रेमचंद और टैगोर की आधुनिक रचनाओं तक, हमें एक ऐसी विरासत मिली है जो विविधता और गहराई से समृद्ध है। रचनाकारों में से प्रत्येक इस शिविर में उस विरासत का एक हिस्सा लेकर आते हैं—एक ऐसी आवाज़ जो इनकी मिट्टी, इनके आकाश और संघर्षों से गढ़ी गई है। अगले कुछ दिनों में हमारे पास यह अवसर है कि इन आवाज़ों को एक जीवंत चित्रपट में पिरोया जाए, जो हमारे राष्ट्र की आत्मा को प्रतिबिंबित करे।

इस शिविर का विषय—”भारत की आवाज़ें: कहानियाँ बुनें, आत्माएँ जोड़ें”—हमें आज के समय में लेखक की भूमिका पर विचार करने के लिए आमंत्रित करता है। एक ऐसे युग में, जहाँ तकनीक तेज़ी से बदल रही है और सीमाएँ धुँधली पड़ रही हैं, लेखनी में वह शक्ति है जो मूल्यवान को संरक्षित करे, अन्याय पर सवाल उठाए और संभव की कल्पना करे। चाहे आप हिंदी में लिखें, तमिल में, बंगाली में, असमिया में या हमारी भूमि की अनगिनत भाषाओं में, आपके शब्द सेतु हैं—जो अतीत को भविष्य से, गाँव को शहर से, और एक दिल को दूसरे से जोड़ते हैं।

शिलांग की शांत सुंदरता और सांस्कृतिक संगम इस आदान-प्रदान के लिए एक आदर्श पृष्ठभूमि है। यहाँ की सरसराती चीड़ें और झरनों की कल-कल आपको प्रेरित करें। सह लेखकों से संवाद—प्रत्येक अपनी अनूठी दृष्टि के साथ—नए विचारों को जन्म दें। इस शिविर के दौरान, हम लेखकों से आग्रह करते हैं कि जितना बोलें उतना सुनें, जितना सिखाएँ उतना सीखें, और साहस व संवेदना के साथ सृजन करें।

हम इस शिविर में क्या हासिल कर सकते हैं? शायद एक ऐसी कहानी जो केरल के बच्चे के सपनों को समेटे, एक कविता जो पंजाब के किसान की दृढ़ता को गूँजाए, या एक संवाद जो परंपरा और आधुनिकता के बीच की खाई को पाटे। शायद बस एक नवीकृत उद्देश्य की भावना—लेखकों के रूप में जो न केवल दुनिया का वर्णन करते हैं, बल्कि उसे आकार भी देते हैं। इस संयुक्त यात्रा की शुरुआत है, “गलत और सही के विचारों से परे एक मैदान है। मैं तुम्हें वहाँ मिलूँगा।” यह शिविर वह मैदान है—सीमाओं से परे एक स्थान, जहाँ आपकी रचनात्मकता स्वतंत्र रूप से विचरण कर सकती है। आइए, हम वहाँ खुले मन और नन्हे दिलों के साथ मिलें। रचनाकारों का यहाँ समय प्रेरणा, जुड़ाव और सृजन के आनंद से भरा होता है। कहानियाँ शुरू होती हैं! लेखन के लिए मन बनता और साधारण लोग भी यहां आकर प्रेरित होकर लिखना शुरू करते हैं।

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