लेखक : दिलीप कुमार
घर में सबसे छोटे किशोर कुमार सभी का बेशुमार प्यार पाते थे, हमेशा खुश रहना उनका स्वभाव था. यहीं से जिन्दादिली आजीवन उनके साथ रही.. आज भारत के सबसे लोकप्रिय गायक के रूप में याद किए जाते हैं. शायद ही कोई पीढ़ी किशोर दा कि सदाबहार आवाज़ से परिचित न हो ! भारत के सबसे लोकप्रिय गायक किशोर दा ने संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नही ली थी, फिर भी उनकी आवाज़ की रेंज कमाल की थी, किशोर दा राग, धुन पर ज्यादा विमर्श नहीं करते थे, लेकिन संगीतकार को विश्वास होता था, कि जो भी गाएंगे उम्दा गाएंगे, वहीँ किशोर जो गा देंगे फिर उनसे अच्छा कोई भी नहीं गा सकता. मुकेश जी, रफी साहब, मन्ना दा, सहगल साहब, सभी की अपनी गायिकी का एक अंदाज़ था, वहीँ किशोर दा की गायन शैली को सदाबहार ही कह सकते हैं… उनकी आवाज़ की विविधता अनोखी थी अपने से दो दशक बड़े अभिनेता अशोक कुमार को भी आवाज़ देते थे, वहीँ अपने से 35 साल छोटे अभिनेता गोविंदा को भी आवाज़ देते थे.. आज भी होते तो शायद गा रहे होते..बिना तुक, लय खोए हुए. किशोर दा में अपनी आवाज की गुणवत्ता और टोन को मध्यम स्वर से धीमी आवाज में बदलने की अद्वितीय क्षमता थी..
तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं’ जैसा संजीदा गीत, तो दूसरी ओर ‘जाते थे जापान पहुंच गए चीन’ जैसे खिलंदड़ अंदाज़ का गाना, कभी ‘चिंगारी कोई भड़के’ जैसा दर्द भरा नगमा तो कभी ‘ओ मेरे दिल के चैन’ जैसा प्रेम गीत, किशोर कुमार के कंठ ने जिन गीतों को छुआ, वो आम जुबान पर चढ़ गए. हमेशा गुनगुनाए, गाए और याद किए जाने वाले ऐसे अमर गीत, जो आज के दौर में सिर्फ रीमेक, रीक्रिएट या दोहराए जा सकते हैं, लेकिन रचे नहीं जा सकते.. किशोर ने जब-जब स्टेज-शो किए, हमेशा हाथ जोड़कर सबसे पहले संबोधन करते थे- ‘मेरे दादा-दादियों’ मेरे नाना-नानियों .. मेरे भाई-बहनों, तुम सबको खंडवे वाले किशोर कुमार का राम-राम..नमस्कार.. यह अंदाज उन्हे मंच को जीने वाले सच्चे कलाकार बनाता है…आज भी सड़कों पर तमाशा दिखाने वाले कलाकार भी उन्हें कॉपी करते हैं.. आज के दौर में इतने सारे रिएलिटी शोज हैं, इतने सारे सिंगर्स की खेप साल दर साल आ रही है, फिर भी अरिजीत सिंह, विशाल मिश्रा, जैसे एकाध अपवादों को छोड़ दें, तो ना उनके नाम याद रहते हैं, ना उनके गाए गाने, वो तिलिस्म ही पैदा नहीं होता.. सवाल उठता है ऐसा क्यों? क्यों कभी इतनी समृद्ध रही संगीत की सिनेमाई दुनिया लगातार अपनी धार खोती जा रही है? वजहें कई हैं.. लेकिन किशोर, लता या रफी जैसे महान कलाकार रोज-रोज पैदा नहीं होते..
संजीदगी किशोर की ज़िन्दगी में कभी भी आई ही नहीं. हिन्दी सिनेमा में आजतक कोई ऐसा संस्मरण नहीं हैं, जहां किशोर दा शरारती न रहे हों. बचपन से ही सहगल साहब, बर्मन दादा के फैन थे.. बर्मन दादा एक दिन अचानक दादामुनि के घर पहुँचे, उन्होंने गाने की आवाज़ सुनी तो दादा मुनि से पूछा, ‘कौन गा रहा है?’ अशोक कुमार ने जवाब दिया- ‘मेरा छोटा भाई है’ जब तक गाना नहीं गाता, उसका नहाना पूरा नहीं होता, हमेशा गाता, गुनगुनाता रहता है”… एक दिन किशोर दा ने अपने बड़े भाई दादामुनि से कहा “दादा मुझे सहगल साहब, बर्मन दादा से मिलाओ”. तब किशोर कुमार अपने भाई के साथ सहगल साहब के पास पहुंचे. किशोर कुमार ने सहगल साहब को गीत सुनाया, “सहगल साहब ने दादामुनि से कहा तुम्हारा भाई गाता बहुत अच्छा है, लय, तुक ठीक है, लेकिन थोड़ा असभ्य है. गाना गाते हुए हिलता बहुत है, गायक को अपनी शालीनता कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए”. वहीँ किशोर कुमार आजीवन बेपरवाह रहे. बर्मन दादा को उन्हीं का गाना नाक के बल गाते हुए उनकी नकल करते हुए सुनाया, अव्वल कोई भी बुरा मान जाता, लेकिन किशोर दा, बर्मन दादा का दिल जीत चुके थे..
शुरुआत में अशोक कुमार चाहते थे, कि किशोर हीरो बनें, वहीँ कभी भी संजीदा न होने वाले किशोर दा संगीतकार बनना चाहते थे, लेकिन जुनून गायिकी के प्रति कुछ ज्यादा ही था. कहते थे, दादा मैं संगीतकार बनना चाहता हूं, लेकिन मैं बढ़िया गायक बनकर रहूँगा “.. एकदम बच्चों जैसे शरारती थे, किशोर दा… वही उनकी बातों में भी दिखता था.
हमेशा एक्टिंग से बचने के लिए नए – नए पैंतरे आज़माते थे. एक फिल्म में दादामुनि और देव साहब साथ काम कर रहे थे. फिल्म के एक सीन के लिए कोई एक्टर चाहिए था, अशोक ने किशोर से कहा कि ये सीन तुम कर दो. अशोक कुमार ने उन्हें सीन भी समझा दिया कि जैसे देव अन्दर आएगा, तुझे उसे खरी-खोटी सुनानी है. किशोर ने हां तो कह दिया, फिर सोचने लगे कि, देव साहब को गाली देना है, थोड़ा असहज महसूस कर रहे थे, देव साहब ने किशोर कुमार को काम दिया था. किशोर दा देव साहब का बहुत सम्मान करते थे. तब शरारती, किशोर दा ने सोच लिया कि गाली देकर भाग जाऊँगा.. जैसे ही सीन शुरू हुआ और देव साहब अंदर आए, किशोर कुमार ने उन्हें सच में गंदी गाली दे दी और भाग गए. निर्देशक कट भी नहीं बोल पाया, सब चिल्लाते रहे कि सीन अभी पूरा नहीं हुआ है. लेकिन किशोर नौ दो ग्यारह हो गए.
किशोर ज़िंदगी भर क़स्बाई भोले – भाले इंसान बने रहे बंबई की भीड़-भाड़, पार्टियाँ और ग्लैमर से दूर रहते थे, एक बार साक्षात्कार में किशोर से पूछा गया – “आप किसी भी पार्टी में नहीं जाते, ना ही आपके बंगले पर कोई आता है. तो आपको अकेलापन महसूस नहीं होता? इस पर किशोर ने जो जवाब दिया, उसके लिए उन्हें पागल कहा जाने लगा. किशोर कुमार ने कहा, ‘नहीं, मुझे बिल्कुल अकेला नहीं लगता. मैंने अपने घर में लगे इन पेड़-पौधों से दोस्ती कर ली है. उनके नाम रखे हैं. मैं इनसे ही बातें करता हूं.’ इंटरव्यू के बाद उस मैगज़ीन ने उन्हें ‘मैड मैन’ नाम दे दिया. इस पर किशोर ने कहा था, ‘दुनिया कहती है मैं पागल और मैं कहता हूं, दुनिया पागल है. उनकी आख़िरी इच्छा थी कि खंडवा में ही उनका अंतिम संस्कार किया जाए, किशोर कहते थे – ‘फ़िल्मों से सन्यास लेने के बाद खंडवा में रहूँगा और रोज दूध जलेबी खाऊँगा “. बड़ी-बड़ी बातेँ हल्के – फुल्के अंदाज़ में बोलने के लिए जाने जाते थे.
किशोर ने अपने घर के बाहर एक साइन बोर्ड लगाया हुआ था, जिस पर लिखा था “बिवेयर ऑफ किशोर” इससे जुड़ा एक किस्सा भी चर्चित है, कि जब निर्माता-निर्देशक एचएस रवैल उनके घर में उनसे मिलकर बाहर निकल रहे थे तभी किशोर ने उनका हाथ काट लिया, जब रवैल ने पूछा तो किशोर ने जवाब दिया कि मेरे घर में घुसने से पहले आपको बोर्ड देखना चाहिए था. रवैल साहब आजीवन समझ नहीं पाए किशोर क्या चीज़ हैं. किशोर बहुत ही मूडी किस्म के इंसान थे. जब उनका मन होता वह एक बार में गाना रिकॉर्ड कर लिया करते थे, लेकिन मन न होने पर कितने भी पैसे दिए जाएं वह नहीं गाया करते थे. सामाजिक सरोकार, सहयोग की भावना अगर नहीं है तो आप कितनी भी अकूत सम्पति कमा लें, लोग आपको क्यों याद करेंगे? वो आपकी सहयोग भावना को याद करते हुए आपको याद करेंगे. महमूद साहब कहते थे कि मैं हिन्दी सिनेमा के सारे उस्तादों को जानता हूँ.. कौन कितने पानी में है, दूसरे शब्दों में कहें तो वो सभी कलाकारों के अभिनय कौशल की सीमा जानते थे. कहते थे, किशोर कुमार को समझना बड़ा मुश्किल है. वो कब क्या बोल जाएं और अभिनय की कौन सी लकीर स्थापित कर दें कहना – समझना बहुत मुश्किल है.
महमूद एवं किशोर दोनों की दोस्ती की कसमें ज़माना खाता था, दोनों में एक अन्तर ग़ज़ब की सीख देते हुए अंतर्विरोध को समझाता है. किशोर दा कभी भी पैसे बिना कुछ करते नहीं थे, वहीँ बहुत मूडी किस्म के इंसान थे. या ये कह सकते हैं, कि अत्यंत प्रतिभाशाली आदमी कम समझ आता है, हो सकता है, यही बात किशोर दा में रही हो क्योंकि दुनिया उनको मूडी पागल इंसान कहती थी. वहीँ किशोर दा इस बात पर खूब मज़ा लेते थे, और कहते थे “मैं इस पागल दुनिया की परवाह कम करता हूँ. महमूद पूछते हैं, कि यार किशोर इतने पैसे का क्या करोगे कभी तो पैसे से हटकर सोचो”, किशोर दा ने हंसते हुए कहा यार एक बात सुनो मैं अपनी पूरी सम्पति अपने छाती में बांधकर मरूंगा, मैं अपनी मेहनत क्यों छोड़ दूँ. वहीँ महमूद साहब कहते हैं कि यार हमेशा पैसे के लिए नहीं भागना चाहिए. यह अन्तरविरोध किशोर दा एवं महमूद में था. किशोर दा अपनी बेजोड़ गायन प्रतिभा एवं कालजयी अभिनय के लिए जाने जाते हैं. वही एक कलाकार समाज के लिए सब कुछ तज देता है. तब मुकाम मिलता है. किशोर दा की सिनेमाई यात्रा भी एक पूरा पाठ्यक्रम है. इसलिए भी याद किए जाते हैं, लेकिन महमूद के तर्क का ज़वाब उनके पास नहीं था.
निर्देशक जीपी सिप्पी को किशोर दा से गाना रिकॉर्ड करवाना था. डेट तय हो गई. तय वक़्त पर किशोर कुमार नहीं पहुंचे, सभी उनकी शरारतों एवं सनक से परिचित थे. सिप्पी साहब को लगा किशोर कुमार फिर से कोई शरारत कर रहे हैं, उन्हें लगा कि किशोर अपने घर में ही छिपे हैं. सिप्पी उनके घर गए तो देखा किशोर अपनी गाड़ी में कहीं जा रहे हैं, सिप्पी ने उनका पीछा किया तो उन्होंने अपनी गाड़ी की स्पीड बढ़ा दिया, कुछ दूरी पर सिप्पी ने उनको पकड़ लिया, तो किशोर कुमार ने उनको पहचानने से इंकार कर दिया, सिप्पी सोच रहे थे, कि यह कैसा मज़ाक है! किशोर ने कहा कि तुम मेरा पीछा करोगे तो पुलिस बुला लूँगा. सिप्पी मौके की नजाकत को समझते हुए निकल लिए दूसरे दिन किशोर कुमार सेट पर मौजूद थे, सिप्पी ने पूछा कल मेरे साथ मजाक क्यों किया उन्होंने कहा कोई हमशक्ल होगा. सिप्पी सोचते रहे. सोच में पड़ गए….ज़िन्दगी में कभी भी संजीदा नहीं हुए, कहते थे, मैं क्यों संजीदा होऊं मुझे कौन सा इस दुनिया में कयामत तक रहना है, जब तक रहूँगा, ऐसे ही बेफ़िक्र जीना पसंद करूंगा.
किशोर दा ने हिंदी, बंगाली, मराठी, असमिया, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम, उड़िया और उर्दू सहित कई भाषाओ में गीत गाए हैं. किशोर कुमार ने अपने पूरे जीवनकाल में 110 अलग-अलग संगीत निर्देशकों के साथ केवल हिंदी में कुल 2678 गाने गाए, जिनमें संगीतकार के रूप में वे खुद भी शामिल थे.. सभी के साथ उनकी गायिकी यादगार है, लेकिन बर्मन दादा, पंचम दा, के साथ तो उन्होंने अपनी गायिकी को सर्वोत्तम स्तर पर पहुंचा दिया था.. गोल्डन एरा, योडेलिंग, फन, रोमांस, दुखद, प्रेरक, रोमियो गीत, युगल, कव्वाली, बच्चों, बुजुर्गों, के लिए यहां तक कि दार्शनिक गीतों को भी अपनी सदाबहार आवाज़ दी…. किशोर दा की जिंदगी में विविध, रूप है, कभी एक बच्चे जैसे दिल, कभी भावुक प्रेमी, कभी महान गायक, कभी महान अदाकार… किशोर दा गायक के रूप में एक पूरा का पूरा सिलेबस हैं.. किशोर दा के विविध रूपों को एक पोस्ट पर समझना मुश्किल है, हालांकि किशोर दा के लिए बहुत कुछ लिखा गया है, लेकिन अगली पोस्ट उनकी विविधतापूर्ण अदाकारी पर लिखने की कोशिश करूंगा.