Thursday, November 21, 2024
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महावीर जयंती और वर्तमान में प्रासंगिकता

लेखक : डॉ आलोक चांटिया

अखिल भारतीय अधिकार संगठन

जिन लोगों ने अपनी इंद्रियों पर वश कर लिया वही जिन से जैन के रूप में प्रतिष्ठित हो गए और ऐसे 23 तीर्थंकर पृथ्वी पर अवतरित हुए जिनमें सबसे पहले ऋषभदेव थे लेकिन 24वें तीर्थंकर वर्धमान नाम से इस दुनिया में आए और कालांतर में वही महावीर स्वामी के रूप में प्रतिष्ठित हुए या माना जाता है कि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को उनका जन्म हुआ था इसीलिए हर साल इसी दिन उनका जन्मदिन मनाया जाता है ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म ईसा पूर्व 599 में हुआ था धर्म और इतिहास की परंपराओं को यदि छोड़ दिया जाए तो वर्तमान में जैन धर्म की दोनों शाखाओं उसमें श्वेतांबर और दिगंबर को प्रतिबिंबित कर रहे हैं

यदि जैन धर्म की शिक्षाओं को वर्तमान के प्रवेश में देखा जाए तो निचोड़ के रूप में या यही संदेश देता है कि न्यूनतम आवश्यकताओं में व्यक्ति को अपनी चेतना की महत्तम स्थिति के साथ इस जीवन को जीना चाहिए और वह जगत को देख कर उसके लिए दौड़ने के बजाय व्यक्ति को अपने अंदर झांक कर अपनी आत्मा को शोधित करना चाहिए ताकि उसमें पूर्णता का एहसास हो सके और इसको यदि हम सरल भाषा में समझने का प्रयास करें तो जैसा कि रहीम दास ने कहा है कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे बन माहि जैसे घट घट राम है दुनिया देखे नाही और इसी सिद्धांत को आज की आधुनिक दुनिया में ज्यादा समझने की आवश्यकता है

महावीर स्वामी द्वारा जैन 3 तथ्यों को सबसे ज्यादा उतरने का प्रयास किया गया वह था सम्यक दर्शन जिसे आप सम्यक  विश्वास कह सकते हैं क्योंकि व्यक्ति आज जिस स्थिति में पहुंच गया है वहां पर उसके जीवन में सम्यक विश्वास की कमी हो गई है वह एक भी भ्रम की स्थिति में रहते हुए यह समझ ही नहीं पा रहा है कि वास्तविकता में विश्वास क्या है और जब उसमें सम्यक विश्वास उत्पन्न हो जाता है तब व स्थिरता की ओर बढ़ जाता है उसे सब कुछ स्पष्ट दिखाई देने लगता है

सम्यक ज्ञान आज इस तथ्य का भी समाज में बहुत प्रासंगिक दृष्टिकोण हो चुका है क्योंकि व्यक्ति को जानकारी तो बहुत हो चुकी है वह हर मामले पर अपनी विद्वता को स्थापित करने में लग गया है लेकिन वास्तव में उसमें ज्ञान नहीं है वह यही नहीं समझ पा रहा है ज्ञान और जानकारी में क्या अंतर है ज्ञान सदैव आंतरिक चेतना को विकसित करता है ज्ञान सदैव अस्तित्व की वास्तविकता का बोध कराता है ज्ञान सदैव व्यक्ति को उसके मूल तत्व की ओर प्रेरित करता है जहां पर वह इस पृथ्वी पर आपने उस अर्थ को ढूंढने में सफल हो जाता है जिसके कारण उसका जन्म हुआ

सम्यक चरित्र- चरित्र शब्द वर्तमान में सिर्फ और सिर्फ मानव ने अपने जननांग तक संदर्भित कर दिया है जबकि चरित्र एक विस्तृत और बहुत बड़ा दृष्टिकोण रखने वाला शब्द है इसमें व्यक्ति के व्यवहार व्यक्ति के आदर्श व्यक्ति के कार्य उसका संपूर्ण जीवन समाहित होता है जिसके माध्यम से वह अपने चरित्र की प्रस्तुति करता है लेकिन वर्तमान में इसे चरित्र की उच्च परिभाषा तक ले जाकर देखा जाने लगा है जहां पर सिर्फ जैविक आधार पर यदि व्यक्ति में संयम है तो वह चरित्रवान है यही कारण है कि आज झूठ बोलने मारकाट करने धोखा देने आदि के बढ़ते हुए क्रम में यह समझने की आवश्यकता है कि इन सब का दमन अपने अंदर करना भी चरित्र की विशेषता है

महावीर स्वामी के जन्म के दिन उन पांच तत्वों को भी समझने की आवश्यकता है जो उन्होंने स्थापित करने का प्रयास किया वह मुख्य रूप से अहिंसा जिसके बारे में ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि दूसरों के प्रति हिंसा ना करना ही अहिंसा है जबकि अहिंसा इससे भी विस्तृत शब्द है सक्षम होते हुए भी हम किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध उन कार्यों को ना करें जिसको करने के बाद हम दोबारा उस स्थिति में किसी भी व्यक्ति को लाने में सक्षम ना हो पाए क्योंकि अहिंसा के बारे में गीता में भी कहा गया है अहिंसा परमो धर्मा हिंसा धर्म तथैव च और यह स्वार्थ में किसी के विरुद्ध सामान्य स्थिति में हिंसा करने को निश्चित किया गया लेकिन यदि धर्म की स्थापना के लिए हिंसा की गई है तो वह गलत कार्य नहीं माना गया है और यह महाभारत के अनुशासन पर्व में उल्लेखित किया गया है लेकिन जैन धर्म में अहिंसा को उच्च स्तर पर ले जाकर देखा गया है जहां पर इस बात को भी अनुभव किया गया है कि सूर्यास्त के बाद वातावरण में सूक्ष्म जीव जंतु बढ़ जाते हैं और ऐसे में यदि उसके बाद भोजन किया जाए तो वह उनके लिए एक हत्या की तरह होगा क्योंकि मुंह में वह ज्यादा मारे जाएंगे इसलिए सूर्यास्त के पहले ही जैन धर्म में भोजन करने तक का प्रावधान किया गया है

सत्य- व्यक्ति को हमेशा सत्य के रास्ते पर ही चलना चाहिए लेकिन सत्य है क्या यह समझने की आवश्यकता है क्योंकि सत्य सापेक्षिक होता है कभी यह सत्य था कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है बाद में या सत्य बदल गया और दुनिया ने आ जाना कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है इसके अतिरिक्त आंखों से सदैव हुई आसमान नीला दिखाई देता है लेकिन सत्य है कि आसमान नीला नहीं होता है यही कारण है कि महावीर स्वामी के संदेश में हमें उस सत्य की ओर जाने के लिए कहा गया है जो यथार्थ है जो वास्तविक है जो सामान्यतया व्यक्ति अपनी दृष्टि से नहीं देख पाता है

अस्तेय- हर व्यक्ति की एक क्षमता होती है सीमा होती है लेकिन जब वह अपनी उस क्षमता और सीमा में अपने चारों ओर के भौतिक जगत को अपने जैविक जीवन को चलाने में असमर्थ पाता है तो सभी जीव जंतुओं में यह प्रवृत्ति देखी गई है कि वह दूसरों द्वारा आयोजित किए गए भोज्य पदार्थों को चोरी करके खा लेते हैं लेकिन मानव ने संस्कृति बनाई है इसलिए यह लक्षण भौतिक संस्कृति में भी दिखाई देता है कि लोग या प्रयास करते हैं कि वह जिन चीजों को पाने में सक्षम नहीं हो पाए हैं उनको चोरी कर ले लेकिन जैन धर्म में इंद्रियों को अपने वश में रखने का संदेश इसी आधार पर रखा गया है कि जो भी तुम्हें अपने चारों ओर दिखाई दे रहा है यदि वह तुम अपने श्रम अपने कौशल से प्राप्त नहीं कर सके हो तो उससे अनाधिकृत रूप में पाने की चेष्टा ना करो क्योंकि यह छोरी है और चोरी करना ठीक नहीं है

ब्रह्मचर्य- चौकी सबसे बड़ी शिक्षा जो भारतीय दर्शन भारतीय धर्म सनातन धर्म सहित हर जगह समय-समय पर दी गई है कि व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए हिंदू धर्म में जो चार आश्रम बताए गए हैं उसमें पहला आश्रम ही ब्रह्मचर्य है और इस समय में व्यक्ति को अपने शोधन और अपने आंतरिक के विकास का समय माना गया है यह बहुत ही विडंबना है कि ब्रह्मचर्य का अर्थ मान लिया गया है विवाह ना करना बल्कि ब्रम्हचर्य का तात्पर्य है कि हम उस परम तत्व को जानने के लिए अपने को साधक के रूप में प्रस्तुत करें जहां पर इस नश्वर दुनिया में हम अपने अंदर के  विषयों को समझने के लिए सक्षम हो सके क्योंकि जैसे-जैसे अज्ञानता का जाला समाप्त होता जाता है व्यक्ति सहज हो जाता है सरल हो जाता है जैसे पानी मिले आटे की बनी पूरी जब भी में डाली जाती है तो जब तक उसमें भी रहता है वह कड़ा हमें इधर-उधर नाचती रहती है लेकिन जैसे ही वह पक जाती है वह स्थिर हो जाती है ठीक उसी तरह से व्यक्ति के जीवन में भी जब ब्रम्हचर्य के माध्यम से अपने होने का बोध स्पष्ट हो जाता है तो व्यक्ति स्थिर हो जाता है पर यही ब्रम्हचर्य का सार

अपरिग्रह- वर्तमान में विषमताओं की दुनिया में अमीरी गरीबी भुखमरी के परिपेक्ष में यह शब्द सबसे ज्यादा प्रासंगिक हो चुका है हमारे पास जितना है उसके अलावा कल की चिंता में ज्यादा से ज्यादा इकट्ठा करने की प्रवृत्ति ने एक ऐसा असंतुलन दुनिया भर में पैदा कर दिया है कि किसी को कई दिनों तक रोटी नहीं मिलती है और किसी के घर में रोटी रोज सड़क पर फेंक दी जाती है इसका सिर्फ एक कारण है कि हमने जितनी आवश्यकता नहीं थी उससे ज्यादा एकत्र करने की प्रवृत्ति पाल ली है यदि व्यक्ति सिर्फ उतना ही एकत्र करें जितना उसकी आवश्यकता है यदि महावीर स्वामी की बैठी हुई मुद्रा में प्रतिमा के नीचे बने सिंह के जीवन से भी प्रेरणा ली जाए तो वह सिर्फ अपने शरीर को चलाने की आवश्यकता भर ही शिकार करता है वह कल की चिंता में अपने सामने के सारे जानवरों को नहीं मार डालता है और जंगल का यही कानून यही संस्कृति सभी निरीह प्राणियों को भी जीने का अवसर प्रदान करती हैं इसीलिए यदि आज दुनिया में वसुधैव कुटुंबकम की स्थापना करनी है यदि समानता के आधार पर सबके मानवाधिकार को सुनिश्चित करना है सभी मानव में भाई ईश्वर तत्व को देखना है तो हमें महावीर स्वामी के इन 5 शिक्षाओं को वास्तविकता में अंगीकार करना होगा इसे सिर्फ जैन धर्म तक सीमित करना एक अच्छी शिक्षा को संकुचित करके उसे अंधेरे की तरफ ले जाने जैसा होगा और इसी को समझ लेना महावीर स्वामी की जयंती का निष्कर्ष है और धर्म में मानवाधिकार को देखने की पूर्ण संभावना और चेतना है।  (लेखक विगत दो दशक से मानवाधिकार विषय पर चेतना कार्यक्रम चला रहे हैं)

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