लेखक : दिलीप कुमार
आज फ़िर जीने की तमन्ना है, आज फ़िर मरने का इरादा है. गाइड में झूमती हुई. प्रेम पुजारी के गीत ‘रंगीला रे’ गीत में देवानंद साहब पर कुपित प्रेमिका, हों या फिर राज कपूर साहब के साथ तीसरी कसम फिल्म में अपनी अदाकारी का जलवा दिखाने वाली दिलकश अदाकारा ‘वहीदा रहमान’ जिन्होंने सीआईडी फिल्म में निगेटिव किरदार निभाने के बावज़ूद भी अपनी खूबसूरती एवं मासूमियत के साथ दर्शकों के जेहन में उतर गईं थीं. ‘वहीदा रहमान’ की अदाकारी एवं उनकी खूबसूरती के साथ उनकी मासूमियत भी उनका अपना एक अंदाज़ है, जो आज भी सिने प्रेमियों के मानस पटल पर अंकित हैं.
‘गोल्डन एरा’ की फ़िल्मों में खूबसूरती एवं अदाकारी से हिन्दी सिनेमा में अपना खास मुकाम हासिल करने वाली ‘वहीदा रहमान’ की शख्सियत को शब्दों में बयां करने के लिए एक गीत ही सबसे ज्यादा मुफ़ीद है. “चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो” रफी साहब की रूहानी आवाज़ अप्रतिम सौंदर्य और उत्कृष्ट अभिनय की पर्याय ‘वहीदा रहमान’ हिंदी सिनेमा में पचास, साठ और सत्तर के दशक के बेहतरीन अभिनेत्रियों में शुमार है.उन्हें एकाधिक मीडिया आउटलेट ने ”सबसे खूबसूरत अभिनेत्री” का खिताब भी दिया हैं. यह ‘वहीदा जी’ की बेमिसाल खूबसूरती का तिलिस्मी पाश ही तो है, जिसे महान गीतकार, शायर ‘शकील बदायूंनी’ ने कुछ इस तरह से बयान किया हैं- “चौदहवीं का चांद हो, या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो”, रफी साहब का गाया गीत, जिसमें सोती हुई ‘वहीदा रहमान’ को निहारते हुए, महान ‘गुरुदत्त साहब’ ने अपनी आँखों की बोलती हुई अदाकारी से इस फिल्म एवं इस नायिका की अदाकारी एवं खूबसूरती को सिल्वर स्क्रीन की कसौटी पर खरा उतारने वाले शिल्पकार थे. इस फिल्म का नाम ‘चौदहवीं का चांद’ का है. ‘वहीदा रहमान’ इसी फिल्म से मशहूर हुई थीं. संयोगवश वहीदा का मतलब भी ‘लाजवाब’ होता है.
हर कोई अपना नाम अपनी मेहनत एवं प्रतिभा के साथ लिखता है, लेकिन प्रारब्ध में लिखा कौन मिटा सकता है. हस्सास, अतिसंवेदनशील लड़की ‘वहीदा रहमान’ बचपन में डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन उनकी नियति में तो कुछ और ही लिखा था. उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई शुरू भी की, लेकिन फेफड़ों में इन्फेक्शन की वजह से यह कोर्स वह पूरा नहीं कर सकीं. इसीलिए नियति का रोल अहम हो जाता है!! ‘वहीदा जी’ अगर डॉ. बन जाती तो सिने जगत को ‘चौदहवीं के चांद’ का दीदार कैसे होता! ‘वहीदा जी’ भरतनाट्यम सीखने लगीं, 13 वर्ष की उम्र में ही ‘वहीदा रहमान’ डांस में पारंगत हो गईं और स्टेज शो करने लगीं. जिम्मेदारी जब कांधे पर होती हैं तो बचपना खत्म कर देती हैं, लिहाज़ा कला से जिसमें आप पारंगत हैं, उससे अर्निंग होने लगे, तो वह केवल कला नहीं वो खुदा की दी हुई एक नेमत बन जाती है. पिता की मृत्यु के बाद घर में आये आर्थिक संकट से निपटने के लिए ‘वहीदा रहमान’ ने सिल्वर स्क्रीन का रुख किया. पिता के एक मित्र की मदद से वहीदा को अपनी पहली तेलुगू फिल्म में काम मिला, वह फिल्म सुपरहिट हुई.
‘वहीदा रहमान’ एक ऐसा हीरा हैं, जिन्हें एक अनोखे जौहरी महान ‘गुरुदत्त साहब’ ने तराशा था. ‘गुरुदत्त साहब’ अपनी करिश्माई सिनेमा रचने वाले सृजनकर्ता के रूप में याद किया जाता है. ‘गुरुदत्त साहब’ अपने नए प्रयोगों के लिए भी याद किए जाते हैं. हैदराबाद में फिल्म के प्रीमियर के दौरान गुरुदत्त साहब के एक फिल्म वितरक ‘वहीदा जी’ के अभिनय को देखकर काफी प्रभावित हुए. उन्होंने गुरूदत्त को वहीदा से मिलने की सलाह दी. गुरुदत्त साहब अपने सहायक मित्र लेखक’ अबरार अल्वी’ को रात में फोन करते हैं. “मित्र तैयार हो जाओ मुझे अपनी ड्रीम प्रोजेक्ट ‘चौदहवीं का चांद’ फिल्म की नायिका की तलाश के लिए हैदराबाद जाना हैं, नायिका मिल भी गई है, लिहाज़ा खुद जाना होगा”. अबरार अल्वी ने कहा “सुबह चलते हैं”, गुरुदत्त साहब अपनी धुन के पक्के उस्ताद थे, गुरुदत्त साहब चल पड़े अपनी नायिका ‘वहीदा रहमान’ को बंबई लाने के लिए!! गुरुदत्त साहब ने वहीदा को स्क्रीन टेस्ट के लिए बंबई लेकर आए. देवानंद साहब अभिनीत अपनी फिल्म सीआईडी में काम करने का मौका दिया. गुरुदत्त साहब ने फिल्म निर्माण के दौरान जब ‘वहीदा जी’ को नाम बदलने के लिए कहा, तो’ वहीदा जी’ने साफ मना कर दिया और कहा “मेरा नाम वहीदा ही रहेगा” . गुरुदत्त साहब को हिन्दी सिनेमा के महान फ़िल्मकारों में क्यों गिना जाता है, क्योंकि उनकी सिनेमाई समझ का कैनवास इतना बड़ा है, कि हर किसी के समझ से परे है. दरअसल गुरुदत्त साहब फ़िल्म सीआईडी में एक छोटा, निगेटिव रोल देकर वहीदा रहमान को आज़माना चाहते थे. हालांकि वो इस बात से मुतमईन थे, कि वहीदा उनके ड्रीम प्रोजेक्ट ‘चौदहवीं का चांद’ के लिए परफेक्ट हैं. उनके इस प्रयोग को हिन्दी सिनेमा में प्रयोगवादी सिनेमा की एक लकीर के रूप में देखा जाता है. यह केवल गुरुदत्त साहब ही कर सकते थे गुरुदत्त साहब को वहीदा रहमान का गॉड फ़ादर कहा जाता है.
सीआईडी फिल्म में ‘वहीदा रहमान’ ने अपने अभिनय एवं हुनर से इस किरदार में जान डाल दी थी. इसके बाद उन्हें एक के बाद एक फिल्में मिलनी शुरू हो गईं. वहीदा जी ने अपने करियर की शुरुआत में गुरुदत्त साहब साथ तीन साल का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था, जिसमें उन्होंने शर्त रखी थी, कि वह कपड़े अपनी मर्ज़ी के पहनेंगी, और अगर उन्हें कोई ड्रेस पसंद नहीं आई तो उन्हें वह पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा. ये सब आदर्श दौर की बातेँ हैं, जिसे हिन्दी सिनेमा का आदर्श काल कहा जाता है. गुरुदत्त साहब और वहीदा जी ने मिलकर कई फिल्मों में काम किया जिनमे प्यासा, कागज के फूल, चौदहवीं का चाँद, साहिब-बीवी और गुलाम शामिल है, बड़ी बात है, कि ये चारो फ़िल्में विश्व मनोरंजन पत्रिकारिता में पढ़ाई जाती हैं, वहीदा जी की सिनेमाई पर्सनैलिटी बेहद चार्मिंग है.
बहुआयामी अभिनय में पारंगत ‘वहीदा रहमान’ ग्रेट शो मैन ‘राज कपूर साहब’ के साथ कविराज शैलेन्द्र की कल्ट फिल्म ‘तीसरी कसम’ में नाचने वाली हीराबाई का किरदार निभाया था. इसमें नौटंकी शैली में गाया गाना था- “पान खाए सैंया हमार हो, मलमल के कुर्ते पर पीक लाले लाल”, जो काफी लोकप्रिय हुआ था. इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था. दरअसल इस फ़िल्म में ‘वहीदा जी’ के साथ एक अप्रिय घटना हो गई थी. इस फिल्म की शूटिंग एमपी में हो रही थी. फिल्म में एक प्रमुख पात्र जागीरदार का होता है, फिल्म को यथार्थवाद से जोड़ने के लिए कविराज शैलेन्द्र जी ने गांव के सचमुच के जमींदार को रोल दे देते हैं. पान खिलाने के शॉट के बाद निर्देशक कहते हैं “कट” इस शब्द को सुनने के बाद असल के ज़मींदार ने ‘वहीदा रहमान’ जी की उँगली में मुँह से काट लिया था. जिसकी वज़ह से उस जागीरदार के रोल के लिए समानान्तर सिनेमा के उस्ताद इफ्तिखार साहब को लिया गया था… इस फिल्म में राज कपूर साहब के साथ ‘वहीदा रहमान’ जी का अभिनय यादगार है.
हिन्दी सिनेमा का जब भी जिक्र होगा, देवानंद साहब की महान फिल्म ‘गाइड’ का इसरार ज़रूर होगा. गाइड में ‘वहीदा रहमान’ और देवानंद साहब की जोड़ी ने ऐसा कमाल किया कि दर्शक सिनेमाघरों में फिल्म देखने को टूट पड़ते थे. इस फिल्म को लेकर शुरू से ही दुनिया भर में चर्चा थी. ‘वहीदा जी’ को इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था. ‘वहीदा रहमान’ की थिरकन से सारी फ़िल्मी दुनिया थिरकने लगती है. वहीदा जी ने जब फिल्म गाइड को साइन किया, तो कई लोगों ने ‘वहीदा जी’ को रोजी का रोल करने से मना किया. एक फिल्म निर्माता ने तो उनसे यहां तक कहा कि आप अपने कॅरियर को दांव पर लगा रही है, लेकिन वहीदा ने इस रोल को स्वीकार कर लिया था . इस फिल्म के जरिए ही वहीदा जी की बेहतरीन नृत्य कला से जमाना परिचित हुआ. ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’ में डांस करते वक्त वहीदा जी से निर्देशक विजय आनन्द ने कहा कि दिल खोल कर नाचो, उसी से स्टेप्स बन जाएंगे. इस गाने में वहीदा की डांस परफॉरमेंस को काफी पसंद किया गया. फिल्म में रोजी के किरदार के लिए जब वहीदा जी को फिल्म फेयर पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई, तो कई लोगों के साथ-साथ खुद वहीदा जी को भी बहुत अचंभा हुआ, क्योंकि वहीदा समझ रही थीं कि रोजी का किरदार ग्रे शेड लिए हुए था. वहीदा जी सोच रहीं थी कि तवायफ की बेटी जो अपने पति को छोड़कर गाइड के साथ रहती है और फिर उसे भी छोड़ देती है, ऐसी नायिका को ऑडिएंस से दया और सहानुभूति नहीं मिलेगी. कहा जाता है कि देव साहब गाइड बनाकर सन्यास भी ले लेते तो सदियों तक याद किए जाते. यही बात वहीदा जी के बारे में भी कही जाती है, गाइड फ़िल्म में उनका अभिनय हिन्दी सिनेमा में एक प्रतिष्ठित मानक के रूप में देखा जाता है.
‘वहीदा जी’ नफासत, स्त्रीत्व, अपनी मासूमियत, नज़रों के साथ अपनी अदायगी के लिए जानी जाती है. व्यक्तिगत रूप से मुझे वहीदा रहमान जी सबसे ज्यादा नीलकमल फ़िल्म में पसंद आईं थीं. गाइड में आधुनिक नर्तकी का यादगार किरदार निभाने के बाद फ़िल्म नीलकमल ‘ की नायिका परिस्थितियों का शिकार होकर भी आरोपों के बीच मर्यादाओं के भीतर बेगुनाही का सबूत तलाशती है. असफल फिल्मों से भी वहीदा सफल होकर निकलीं. कभी बनावटी और बड़बोली नहीं रहीं, और सादगी एवं सहजता को अपनी पहचान बनाया. बेशक वहीदा रहमान गाइड को अपनी सबसे महान फिल्म कहती हैं, लेकिन एक सिनेमाई कीड़ा होने के नाते फिल्म नीलकमल में मुझे लगता है उनकी भूमिका महानता के शिखर को छू लेने वाली है.
साहब, बीवी और गुलाम’ में वहीदा जी की शोखी और चुलबुली अदाएँ दर्शकों को मधुर अहसास में डुबो गईं. वे उनके साथ ही गुनगुना उठे ‘भँवरा बड़ा नादान है…’ ‘चौदहवीं का चाँद’ में पति को भरपूर चाहने वाली पारंपरिक और समर्पित वहीदा जी जैसी पत्नी किस युवा मन ने नहीं सँजोई होगी? आज भी ‘चौदहवीं का चाँद’ का मीठा-सा ‘हाय… अल्लाह’ सुनकर हर सिने प्रेमी झूमने लगता है.
‘वहीदा रहमान जी की सिनेमाई शख्सियत में मैं गुरुदत्त साहब का अक्स देखता हूं,फ़िल्म ‘ख़ामोशी’ बनाने पर उनको सभी ने रोका, लेकिन उनके ऊपर प्रयोगवादी गुरुदत्त साहब का इतना असर तो था कह सकते हैं. आख़िरकार वहीदा जी ने खामोशी फिल्म बनाई. फिल्म युवा राजेश खन्ना के जीवन का मील पत्थर साबित हुई. खामोशी’ की नर्स राधा की छटपटाहट और खामोश आहें सिने प्रेमियों को रुला देती हैं. ‘तुम पुकार लो’ ये गीत सुनकर आज भी फिल्म देख चुकी नारी के मन में राधा की पीड़ा साँस लेती है.’ हमने देखी है उन आखों की महकती खुशबू’ इस गीत के पाश में हर संगीत प्रेमी आज भी बंधा हुआ है. ख़ासकर आज भी मैं इस गीत के साथ बह जाता हूँ.
‘वहीदा रहमान’ की जोड़ी देवानंद साहब के साथ क्या खूब ज़मी. सिल्वर स्क्रीन पर दोनों अमर जोड़ी के रूप में याद आते हैं. वहीदा रहमान एवं देवानंद साहब का एक – दूसरे के प्रति निजी जीवन भी बेहद सम्मानित रहा. वहीदा रहमान एक साक्षात्कार में कहती हैं-
“महान देवानंद साहब हिन्दी सिनेमा के अग्रदूत हैं, देव साहब जिस तरह से वे चलते थे, बात करते थे, और अपनी फिल्मों में अभिनय करते थे, प्रशंसक उन महान अभिनेता के दीवाने थे. उस समय, उनकी जिस तरह की फैन फॉलोइंग थी, वह न केवल प्रतिष्ठित थी, बल्कि असाधारण भी थी. हाल ही में एक साक्षात्कार में, वहीदा रहमान ने कहा कि अन्य कलाकार देव साहब एवं दूसरों के स्पर्श में बहुत अन्तर था. देव साहब बहुत ही शालीनता के साथ पेश आते थे. 1965 में ‘गाइड’ की शूटिंग के दौरान, ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’ गाने से पहले एक शॉट था, जिसे वहीदा जी ने याद किया और कहा, “आज फिर जीने की तमन्ना है”, गाने से ठीक पहले एक और दृश्य था, जिसे एक सड़क पर शूट किया गया था. उदयपुर की सड़क के दृश्य में मैं राजू से कह रही हूं, “घुंघरू बांधो !” देव साहब ने बाद में मुझसे कहा, “मुझे सार्वजनिक रूप से सीन शूट करने में अजीब लगा,लेकिन तुम इतनी बिंदास थीं. क्या आपको होश नहीं आया?” मैंने कहा कि अगर मैं इतना परेशान करता तो इसके लिए इतने सारे रीटेक की जरूरत होती. मैंने बस यह विश्वास करते हुए स्विच ऑन और ऑफ किया कि बस हम दोनों ही थे. ”
देवानंद साहब की उनके सज्जनतापूर्ण व्यवहार की प्रशंसा करते हुए, वहीदा रहमान ने कहा, “जब भी वह नंदा, साधना, मधुबाला, मीना कुमारी, नूतन, वैजयंती माला, सुचित्रा सेन, माला सिन्हा, आशा (पारेख) या मुझसे एवं अपनी नायिकाओं से मिलते थे. देव साहब प्यार से हमारे कंधे पर हाथ रखते थे, लेकिन हम लड़कियों ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि उनके पास इतना साफ-सुथरा वाईब था, लेकिन अगर दूसरे ऐसा करते, तो हम पीछे हट जाते. दूसरे नायक टिप्पणी करते थे , “अरे वाह, देव साहब पर आपको कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जब हम जरा भी करीब आ जाते हैं, तो आप हट जाते हो ” कुछ लोगों के भद्दे वाइब्स थे. अगर वे हाथ पकड़ लेते तो आपका हाथ नहीं छोड़ते… लेकिन देव साहब ने आपको एक सुरक्षित एहसास दिया. इसलिए मैंने उन्हें ‘सभ्य इश्कबाज’ कहा है. देव साहब से ज्यादा शायद ही कोई अदाकार हुआ होगा या होगा जिसकी इतनी ज्यादा दीवानगी होते हुए भी देवानंद साहब कभी बहके नहीं… देव साहब जैसा सभ्य इश्क़बाज दूसरा नहीं हो सकता”. शादी के बाद वहीदा ने लगभग 12 वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया. वर्ष 2001 में वहीदा ने अपने करियर की नई पारी शुरू की और ओम जय जगदीश, वाटर, रंग दे बसंती, दिल्ली-6 जैसी फिल्मों से साबित किया कि क्यों उनको महानायिका कहा जाता है. वहीदा जी को 1972 में पद्मश्री और साल 2011 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया. हालाँकि प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्के पुरूस्कार उनको अभी तक क्यों नहीं मिला समझ से परे है, जल्द ही उनको यह सम्मान दिया जाना चाहिए, मेरा व्यक्तिगत रूप से ऐसा मानना है, कि आज वो सबसे उपयुक्त हकदार हैं. वहीदा रहमान जी आज भी स्वस्थ हैं, ईश्वर उनको उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करे. हिन्दी सिनेमा के चौदहवीं के चाँद को मेरा सलाम…