Monday, September 16, 2024
Homeमनोरंजन21वीं सदी के 21वें साल में हिन्दी सिनेमा

21वीं सदी के 21वें साल में हिन्दी सिनेमा

कहानी और उसके पात्र ही फिल्म की आत्मा होती है। फिल्में समाज को चेहरा दिखाती है। साथ ही उस दौर को परिभाषित भी करती है। 21 सदी के पिछले दो दशकों में कहानी और पात्रों की सीमा का तेजी से विस्तार हुआ है। कथा, पटकथा, पात्र और संवाद लेखन सभी स्तर पर नए प्रयोग हुए। दर्शकों ने इन प्रयोगों को हाथों हाथ लिया। नई सदी के 21वें साल में आते- आते फिल्में इस प्रकार जवान हुईं कि बीती शताब्दी में खींची गई कामर्शियल और आर्ट (समानान्तर) सिनेमा की लकीर मिटने लगी। आज के दर्शकों के लिए कहानी हीरो है। ‘कंटेन्ट’ जमकर बिक रहा है और हिट हो रहा है।   

इन वर्षों में ‘लगान’ से लेकर ‘उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसी गैर पारंपरिक सिनेमा की फिल्में ब्लॉक बस्टर (सौ करोडी क्लब) में शुमार होने लगी। ‘खोसला का घोसला’, ‘मुक्ति भवन’ से लेकर ‘न्यूटन’ तक हर तरह की कहानी और किरदार लिखे और पसंद किए जा रहे हैं। कहानी और पात्र धीरे- धीरे स्टार डम का दर्जा हासिल करने लगे जबकि बड़े- बड़े स्टारों की चमक भी कहानी के बिना फीकी पड़ गई।

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ को ब्रिटिश न्यूज पेपर ‘द गार्डियन’ ने 21वीं सदी में दुनिया की सौ बेहतरीन फिल्मों में शुमार किया! फिल्म को 59वां स्थान हासिल हुआ। दक्षिण की डब फिल्में हो, बाहुबली सीरीज हो या फिर एक मुर्गे की कहानी पर आधारित फिल्म ‘कड़कनाथ’ हो, कहानी और पात्रों में दर्शकों की एक नयी रुचि उत्पन्न हुई। उधर कमजोर कहानी और प्रस्तुतीकरण के कारण मेगास्टारों से भरपूर ‘ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’ और ‘जीरों’ जैसी फिल्में भी खारिज कर दी गईं। 

वर्ष 2000 से 2020 के दौर में फिल्मों का वर्गीकरण कर तुलनात्मक अध्ययन करें तो देखेंगे किस प्रकार कहानी के शिल्प में परिवर्तन हुआ। पात्रों का दायरा बढ़ता गया। डिजिटल क्रांति के कारण शार्ट फिल्म से लेकर तीन घंटे की बालीवुड फिल्म और 12 घंटे की वेब सीरीज उपलब्ध हुईं। मल्टी प्लेक्स से लेकर ओवर द टॉप (ओटीटी) वीडियो मार्केट और चौथी जनरेशन के मोबाइल ने मनोरंजन के दायरे को आसमान तक पहुंचा दिया। नए कलाकार और लेखकों के लिए संभावना के नए दरवाजे खुल गए। दुनिया जब घरों में सिमट गई तो ऐसे ही हुनरमनदों ने कहानी और पात्रों के जरिये दर्शकों को मनोरंजन की नई डोज़ दी।  फिर चाहे नए लेखकों की पहली कहानी हो या स्थापित लेखकों की हिट फिल्में हों। महिला, समाज, जीवनी, देशप्रेम पर आधारित सफल फिल्में हों या फिर तमाम चर्चाओं के बावजूद नकार दी गई विशेष फिल्में हों, कहानी और पात्रों की सीमाएं टूटती चली गई। पिछले बीस वर्षों के सिने कालखंड को प्रत्येक पाँच वर्षों में विभाजित कर कहानी और किरदारों का विश्लेषण करने पर स्थिति स्पष्ट हो जाती है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments