Sunday, September 8, 2024
Homeयात्रावीकेंड लाइफ2021 : विदाई- 2022: स्वागत और ओमिक्रॉन का ग्रहण

2021 : विदाई- 2022: स्वागत और ओमिक्रॉन का ग्रहण

नया साल आएगा तीसरी लहर लाएगा, कैसे हो कंट्रोल

जगदीश जोशी

वरिष्ठ पत्रकार

मूड आ जाए तो सब कुछ संभव, मुश्किल से मुश्किल काम आसान। ऐसे ही कई मूड एक साथ आने को उतावले हो रहे हैं। पहला मूड- नए साल के स्वागत का, अंग्रेजी वर्ष 2021 खत्म हो रहा है, शुक्रवार को उसका आखिरी दिन होने वाला है। दूसरा मूड- चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों का है, वह संवैधानिक मजबूरी का दुम पकड़ कर चुनाव कराना चाहते हैं हर हाल में। तीसरा मूड- कोरोना की तीसरी लहर का है जो अब ओमिक्रॉन के रूप में सामने आया है।

सबसे आखिरी मूड पर पहले चर्चा की जाए। देश की राजधानी दिल्ली ने गुरुवार को ओमिक्रॉन के फैलाव के रूप में पहला स्थान हासिल कर लिया है। दिल्ली में ओमिक्रॉन प्रभावितों की संख्या 900 को पार कर गई है, जबकि अब तक टॉप पर रही मुंबई दूसरे स्थान पर खिसक गई। दिल्ली में ओमिक्रॉन का पता लगाने के लिए की जाने वाली जांच-जीनॉम सीक्वेंसिंग के सैंपलों का 46 प्रतिशत ओमिक्रॉन पॉजिटिव निकल रहे हैं। मुंबई में ये टेस्ट करीब 51 हजार रोजाना हो रहे हैं। यह भी देखने में आ रहा है कि ओमिक्रॉन पीड़ितों में कई मरीज वैक्सीन की दोनों डोज लगाए हुए लोग हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कुछ दिन पहले घोषणा की थी कि हर एक मरीज की जीनॉम सीक्वेंसिंग कराई जाएगी। मगर कितनों की जांच लिखी जा रही है, कितनों का नंबर जांच के लिए आ पा रहा है, इसका अंदाज भी लगाना कठिन है।

हालांकि डाक्टरों का कहना है कि ओमिक्रॉन कोरोना के पिछले वैरियंट डेल्टा के बराबर घातक नहीं है। इसमें मरीज पांच-छह दिन में ठीक हो जा रहे हैं। इसके साथ ही आईसीयू की आवश्यकता न के बराबर है। डॉक्टरों का यह भी कहना है कि जीनॉम सीक्वेंसिंग आसान नहीं। मरीजों के बढ़ने की रफ्तार कितनी भी हो जीनॉम सीक्वेंसिंग की रफ्तार सीमित ही है। इतनी लैबें भी नहीं हैं कि सभी की जांच कराई जा सके। यह भी देखने में आ रहा है कि पिछली दो लहरों में कोरोना की चपेट में आए मरीजों में कई अभी तक पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाए हैं। बीमारी भलेही दुरुस्त हो गई हो, उसके साइड इफेक्ट अब भी परेशान किए हुए हैं। इसी तरह से ओमिक्रॉन भले ही जानलेवा न हो, मरीजों को अस्पताल में रहने अथवा जाने की आवश्यकता न हो, लेकिन इसके क्या साइड इफेक्ट हैं, इसका आकलन अभी नहीं हो पाया है।

दक्षिण अफ्रीका ओमिक्रॉन के दौर से निकल चुका है। वहां की कुछ स्टडी विशेषज्ञों के काम आ रही है, किंतु पूरी तरह से ओमिक्रॉन वायरस के व्यवहार पर स्टडी अभी नहीं हो पाई है। यह भी बताया जा रहा है कि कोरोना का वायरस लगातार म्यूटेट हो रहा है यानि अपना व्यवहार बदल रहा है। किसे कोरोना का कौन सा वैरियंट अपने बाहुपॉश में थाम लेता है, यह कहना विशेषज्ञों के लिए भी संभव नहीं हो पा रहा। यह भी स्टडी नहीं हो पाई है कि दुनिया में जितनी भी वैक्सीनें लग रही हैं, वह कितनी कारगर हैं, कितने दिन कारगर हैं, यह कहना अभी संभव नहीं। कई देश बूस्टर डोज लगा रहे हैं, अपने भी देश में बूस्टर डोज का कार्यक्रम घोषित हो चुका है लेकिन गारंटी किसी की भी नहीं।

अब आएं, दूसरे मूड पर, जो लोकतंत्र में मतदाता को सर्वोच्च शक्तिशाली बना देता है। मतदाता के मूड पर है कि वह जिसे चाहे ताज पहना दे, जिसे चाहे कुर्सी से उतार दे। पिछले पांच-छह महीनों की मेहनत के बाद उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के सभी राजनीतिक दल चुनावी मूड में आ चुके हैं। किसी भी प्रकार का खलल उन्हें पसंद नहीं। चुनाव आयोग, जिस पर रैफरी बन कर यह चुनाव कराने की जिम्मेदारी है वह भी सीटी लेकर मैदान पर उतरने के मूड में आ चुका है। फोर्थ अंपायर के रूप में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोरोना-ओमिक्रॉन को देखते हुए चुनाव टालने के लिए अपना मूड बताने की कोशिश तो की मगर स्पष्ट वह भी कुछ कहने के मूड में नहीं दिखा। अब ग्राउंड रैफरी की ही चलनी है, वह इसका कुछ-कुछ इशारा गुरुवार को उत्तर प्रदेश में राजधानी लखनऊ में दे चुका है। यानि चुनाव टालने का मूड उसका भी नहीं है, बस कार्यक्रम कब से जारी किया जाए, इस पर उसे कुछ संकोच है। चुनाव प्रचार को वर्चुअल बनाया जाए, इस पर भी दुविधा में है।

तीसरा मूड, उस मतदाता का है जो फिलहाल पुराने साल को विदा करने और नए साल को सुस्वागतम‌् कहने के साथ ही अपने प्रिय नेताओं की सभाओं में भीड़ बनने के मूड में है। शुक्रवार को मध्य रात्रि का जश्न मनाने के बाद वह वोट डालने के लिए मतदान केंद्र पहुंचने की तैयारी में जुट जाएगा। चुनावी रैलियों, जनसभाओं, वोट यात्राओं से बच गए काफी लोग बाजारों से खरीदारी, छोटे-छोटे मैदानों पर प्रवचन सुनने और मेले के आयोजन का अभिन्न अंग बन भी अपने मूड का प्रदर्शन कर रहे हैं। अभी अधिसंख्य लोग दो गज की दूरी, मास्क और हाथ धोने के पचड़े में न पड़ने के मूड में हैं। मूड का क्या आज ऐसा है, हफ्तेभर में बदल भी सकता है। पन्द्रह दिन में पूरी तरह से ‘यूटर्न’ ले सकता है। आज खुद किए गए कामों के लिए दूसरे को जिम्मेदार बताने का मूड भी हो सकता है। हो सकता है सरकारी अस्पतालों को गरियाने के मूड में आ जाएं। अस्पतालों में डॉक्टर और स्टाफ कम होने बात भी कहें। तब हो सकता है, चुनावी रैलियों को कोसने के मूड में आ जाएं। तब हो सकता है विपक्ष यह पूछने लगे चुनाव कराए ही क्यों जा रहे हैं। अच्छा ये है कि बाद में किसी और के सिर टोपी पहनाने के बजाय अभी संभल जाया जाए। अभी वह काम न किया जाए जिससे आपदा सिर पर आ जाए। पहला और इमीडियेट काम तो यही है कि जश्न को फिलहाल ‘न’ कहा जाए। जिंदा रहे तो साल आते रहेंगे, जाते रहेंगे। नववर्ष का स्वागत भी होता रहेगा। हालांकि ‘ये सब बातें हैं बातों का क्या, मूड आपका, जिधर घुमा लें, लेकिन भाई कंट्रोल, मूड कंट्रोल… ट्राइ टु कंट्रोल, बिकॉज… इट्स ऑनली कंट्रोल।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments