Thursday, November 21, 2024
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समय से पूर्व ही बाल्मीकी को था रामायण की सभी घटनाओं का ज्ञान

अरविंद जयतिलक

विश्व के सर्वाधिक प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में सिरमौर रामायण जिसे आदि रामायण भी कहा जाता है और जिसमें भगवान श्रीराम के पवित्र एवं जनकल्याणकारी चरित्र का वर्णन है, के रचयिता महर्षि वालमीकि संसार के आदि कवि हैं। उनके द्वारा रचित रामायण एक ऐसा महान महाकाव्य है जो हमें प्रभु श्रीराम के आदर्श और पावन जीवन के निकट लाता है। उनकी सत्यनिष्ठा, पितृ भक्ति और भ्रातृ प्रेम, कर्तव्यपालन और समाज के प्रति उत्तरदायित्व का बोध कराता है। रामायण हिंदु स्मृति का वह अंग है जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की कथा कही गयी है। हिंदू कालगणना के अनुसार रामायण कार रचनाकाल त्रेतायुग माना जाता है। रामायण से प्रेरित होकर गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमान जैसे महान महाकाव्य की रचना की। शास्त्रों में कहा गया है कि वाल्मीकि की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें रामायण की रचना करने की आज्ञा दी। ब्रह्मा जी के आशीर्वाद से उनको समय से पूर्व ही रामायण की सभी घटनाओं का ज्ञान हो गया और उन्होंने संस्कृत भाषा में महान ग्रंथ रामायाण की रचना की। चूंकि प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना वाल्मीकि ने की इस कारण इस ग्रंथ को आदि ग्रंथ और वाल्मीकि को आदि कवि कहा गया है। वाल्मीकि के जीवन चरित को लेकर समाज व साहित्य में कई तरह की भ्रांतियां प्रचलित हैं वाल्मीकि ने रामायण में श्लोक संख्या 7/93/16, 7/96/18 और 7/111/11 में स्वयं को प्रचेता का पुत्र कहा है। मनुस्मृति में  प्रचेता को वशिष्ठ, नारद व पुलस्त्स्य का भाई बताया गया है। प्रचेता का एक नाम वरुण भी है और वरुण ब्रह्मा जी के पुत्र थे। यह भी माना जाता है कि वाल्मीकि वरुण अथवा प्रचेता के 10 वें पुत्र थे और उनके दो नाम-अग्निशर्मा और रत्नाकर थे। समाज में एक क्विदंती यह भी है कि बाल्यावस्था में रत्नाकर यानी वाल्मीकि को एक निःसंतान भीलनी ने चुराकर उनका पालन-पोषण किया। भीलनी का समुदाय असभ्य और बर्बर था। वन्य जीवों का शिकार और दस्युकर्म उनके जीवनयापन का मुख्य साधन था। चूंकि रत्नाकर यानी वाल्मीकि इन्हीं असभ्य भीलों की संगति में रहते थे लिहाजा वे भी इन्हीं कर्मों में लिप्त हो गए। बड़े होकर वे भी अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए दस्यु कर्म करने लगे। एक बार जंगल में उनकी मुलाकात नारद मुनि से हुई। उन्होंने रत्नाकर को सत्य का ज्ञान कराया। रत्नाकर ने नारद जी से अपने किए गए पापों से उद्धार का मार्ग पूछा। नारद जी ने उन्हें तमसा नदी के तट पर राम-राम का जाप करने का परामर्श दिया। रत्नाकर दस्युकर्म का परित्याग कर कठोर साधना में जुट गए। कहा जाता है कि वे राम-राम का जप करना भूल मरा-मरा का जप करने लगे। कई वर्षों तक कठोर तपस्या के उपरांत उनके पूरे शरीर पर चीटियों ने बांबी बना ली, जिसके कारण उनका नाम वाल्मीकि पड़ा। राम-राम की जगह मरा-मरा का जाप करने वाले वाल्मीकि के बारे में कहा जाता है कि एक बार वे क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े को प्रेमालाप करते हुए निहार रहे थे तभी उसी समय एक बहेलिए ने पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप से महर्षि वाल्मीकि की करुणामय हो गए और उनके मुख से स्वतः ही श्लोक फुट पड़ा-‘मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः, यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम।’ इसका अर्थ यह हुआ कि ‘अरे बहेलिए तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी। वाल्मीकि ने अपने रामायण में अनेक घटनाओं के घटने के समय सूर्य, चंद्र एवं अन्य नक्षत्र की स्थितियों का भी उल्लेख किया है। इससे स्पष्ट जानकारी मिलती है कि वाल्मीकि ज्यातिष व खगोल विद्या के भी विद्वान थे। यही नहीं उन्होंने अपने महाकाव्य में अद्वितीय शैली में प्रकृति का चित्रण, संवाद-संयोजन और विषय का प्रतिपादन किया है। वाल्मीकि रामायण में दर्शन, राजनीति, नैतिकता, शासन कुशलता व मनोविज्ञान का भी विशद् वर्णन है। इसका तात्पर्य यह है कि महर्षि वाल्मीकि विविध विषयों के ज्ञाता थे। शास्त्रों में वर्णित है कि अपने वनवास के मध्य में भगवान श्रीराम वाल्मीकि के आश्रम में गए थे। तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है कि ‘देखत बन सर सैल सुहाए, बालमीक प्रभु आश्रम आए।’ इस उद्धरण से  स्पष्ट है कि वाल्मीकि भगवान श्रीराम के समकालीन थे। तुलसीकृत रामचरित मानस के अनुसार जब भगवान श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता का परित्याग कर दिया तब वाल्मीकि ने ही सीता को प्रश्रय दिया। वाल्मीकि और उनका महाकाव्य रामायण का उल्लेख अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, हरिवंश पुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण, महाकवि कालीदास द्वारा रचित रघुवंश, भवभूति रचित उत्तर रामचरित, वृहद धर्म पुराण जैसे अनेक प्राचीन गं्रथों में भी मिलता है। वृहद धर्म पुराण में इस महाकाव्य की प्रशंसा ‘काव्य बींज सनातनम्’ कह कर की गयी है। काव्यगुणों की दृष्टि से रामायण अद्वितीय महाकाव्य है। मूर्धन्य विद्वानों का मानना है कि यह महाकाव्य संस्कृत काव्यों की परिभाषा का आधार है। यह महाकाव्य परवर्ती महाकाव्यों के रचनाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है। 24 हजार श्लोक और सात अध्याय वाले वाल्मीकि कृत रामायण में राम महानायक हैं और कथावस्तु उनके ही चारो ओर ही घुमती है। महर्षि वाल्मीकि ने अपने महाकाव्य में राम को महामानव के रुप चित्रित किया है लेकिन ईश्वरीय गुणों से प्रतिष्ठित होने के बावजूद भी राम अपने किसी भी क्रियाकलाप से मानवेतर प्रतीत नहीं होते हैं। यहां तक कि शत्रुओं का संहार करते समय भी उनके द्वारा वैष्णवी शक्ति का उपयोग नहीं हुआ है। उन्होंने सागर पर सेतु निर्माण में भी किसी मायाशक्ति का उपयोग नहीं किया। वे नर-वानरों के योगदान से सेतु का निर्माण किए। अपने भ्राता लक्ष्मण की मुच्र्छा को दूर करने के लिए उन्होंने संजीवनी लाने के लिए हनुमान जी को हिमालय भेजा। उन्होंने अपना समस्त कार्य दसरों के सहयोग से किया। इस महाकाव्य में केवल राम व सीता के ही चरित्र का वर्णन नहीं है बल्कि दशरथ, कौशल्या, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघन, हनुमान, सुग्रीव इत्यादि पात्रों के चरित्र को भी सशक्त तथा प्रेरक रुप में प्रस्तुत किया गया है। यह गं्रथ पितृभक्ति, भ्रातृ प्रेेम, पातिव्र्रत्य धर्म, आज्ञापालन,  प्रतिज्ञापूर्ति तथा सत्यपरायणता की शिक्षा प्राप्त होती है। इस ग्रंथ में सभी चरित्र अपने धर्म का पालन करते हैं। राम एक आदर्श पुत्र हैं। पिता की आज्ञा उनके लिए सर्वोपरि है। पति के रुप में राम ने सदैव एकपत्नी व्रत का पालन किया। राजा के रुप में प्रजा के हित के लिए स्वयं के हित को हेय समझते हैं। वाल्मीकि के राम वीर्यवान, नीतिकुशल, धर्मात्मा, मर्यादापुरुषोत्तम, प्रजावत्सल, शरणागत को शरण देने वाले, तेजस्वी, विद्वान, बुद्धिमान, धैर्यशील, सुंदर, पराक्रमी और दुष्टों का संहार करने वाले हैं। राम की पत्नी महान पतिव्रता पत्नी हैं। वे सारे वैभव को ठुकराकर वन को चली जाती हैं। रामायण भ्रातृभाव का भी अनुपम उदाहरण है। राम के प्रेम के कारण लक्ष्मण उनके साथ वन चले जाते हैं वहीं भरत अयोध्या की राजगद्दी पर स्वयं आसीन होने के बजाए उस पर बड़े भाई राम की पादुका को प्रतिष्ठित करते हैं। हनुमान एक आदर्श भक्त हैं और वे अनुचर की भांति श्रीराम की सेवा में तत्पर रहते हैं। रावण के चरित्र से सबक मिलता है कि अहंकार से नाश होता है। वाल्मीकि रामायण ज्ञान का अथाह सागर है। मानव जीवन के लिए  प्रकाशपूंज है। शोक और करुणा से निवृत होने का मंत्र और पवित्र जीवन का सम्यक मार्ग है। वाल्मीकि कृत रामायण न केवल भारत की महान धार्मिक सभ्यता और उसके मूल्यों को समझने का साहित्यिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य है, बल्कि भौतिक लोक की संजीवनी भी है।

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