राम जन्म भूमि आंदोलन के नायक कल्याण सिंह यानि बाबू जी का 89 साल की उम्र में निधन हो गया। भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान और हिमांचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल के निधन पर लोग शोक में डूब गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लखनऊ आकर अंतिम दर्शन किए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कल्याण सिंह के आवास पर ही मौजूद रहे। उनका अंतिम संस्कार नरोरा में सोमवार को होगा।
भाजपा के राजनीति के पटल पर तेजी से छा जाने के पीछे कल्याण सिंह भी अहम चेहरा थे। 1980 में भाजपा के जन्म के ठीक दस साल बाद देशभर की राजनीति का माहौल बदलने लगा। ये वही साल था जब 1989-90 में मंडल-कमंडल वाली सियासत शुरू हुई और भाजपा को अपने सियासी बालपन में ही रोड़े अटकने का अहसास हुआ. इस अहसास और संकट के मोचक बनकर निकले कल्याण सिंह. जब आधिकारिक तौर पर पिछड़े वर्ग की जातियों को कैटिगरी में बांटा जाने लगा और पिछड़ा वर्ग की ताकत सियासत में पहचान बनाने लगा तो भाजपा ने कल्याण दांव चला. उस वक्त तक भाजपा बनिया और ब्राह्मण पार्टी वाली पहचान रखती थी. इस छवि को बदलने के लिए भाजपा ने पिछड़ों का चेहरा कल्याण सिंह को बनाया और तब गुड गवर्नेंस के जरिए मंडल वाली सियासत पर कमंडल का पानी फेर दिया था। वो कल्याण ही थे जिन्होंने भाजपा को उस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया कि पार्टी ने 1991 में अपने दम पर यूपी में सरकार बना ली. इसके बाद कल्याण सिंह यूपी में भाजपा के पहले सीएम बने, और फिर राम मंदिर आंदोलन के सबसे बड़े चेहरों में एक बनकर उभरे. मुख्यमंत्री बनने के ठीक बाद कल्याण सिंह ने अपने सहयोगियों के साथ अयोध्या का दौरा किया और राम मंदिर का निर्माण करने की शपथ ली थी. इसी के चलते 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी ढांचा गिराए गया. उस वक्त कल्याण सिंह ही यूपी के सीएम थे. हालांकि सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार, उन्होंने कारसेवकों पर गोली चलाने की अनुमति नहीं दी थी.