मनीष शुक्ल
वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार
हाल ही में नेपाल की राजधानी काठमाण्डू के चन्द्र्गिरी पर्वत पर दोनों देशों के साहित्यकारों ने हिन्दी और नेपाली भाषा साहित्य को और करीब लाने के लिए ऐतिहासिक घोषणा पत्र जारी किया। इस घोषणा पत्र को तैयार करने की समिति में भारत की ओर से मुझे भी शामिल होने का अवसर मिला। यह महज संयोग ही रहा कि सांस्कृतिक घोषणा पत्र के जारी होने के कुछ ही दिनों बाद हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुद्ध पूर्णिमा के दिन नेपाल गए। वहाँ लुम्बिनी में जाकर भगवान बुद्ध की जयंती मनाई। माया मंदिर का शिलान्यास किया। साथ ही नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के साथ छह समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए। जिसमें बौद्ध अध्ययन के लिए डॉ. अम्बेडकर पीठ की स्थापना से लेकर त्रिभुवन और काठमाण्डू विश्वविद्यालयों में भारतीय अध्ययन के भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) चेयर की स्थापना होना तय किया गया।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी पीएम मोदी ने कहा कि भगवान बुद्ध की भक्ति हमें एक साथ बांधती है और हमें एक परिवार का सदस्य बनाती है। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने शिक्षा का आदान- प्रदान और हिन्दी- नेपाली भाषा और साहित्य के विकास पर भी ज़ोर दिया। दोनों देशों के बीच समझौते ने न सिर्फ सांस्कृतिक और आध्य्यात्मिक रूप से एक होने के संदेश दिया बल्कि भारत और नेपाल के साहित्यकारों के लिए हिन्दी और नेपाली भाषा को दुनियाँ भर में संस्कृति के आदान प्रदान का सेतु बनाने की उम्मीद भी जगाई।
गौरतलब है कि पीएम मोदी की नेपाल यात्रा के कुछ ही दिनों पहले काठमाण्डू में दोनों देशों के 150 से अधिक साहित्यकार व कलमकार नेपाल-भारत साहित्य महोत्सव में शामिल होने के आए थे। महोत्सव के अंतिम दिन चन्द्रागिरी पर्वत पर ये कलमकार हिन्दी और नेपाली भाषा के विकास और साहित्यिक आदान प्रदान के लिए सात सूत्रीय घोषणापत्र जारी करते हैं। जो आने वाले समय में धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सम्बन्धों को आगे बढ़ाने में मिल का पत्थर साबित हो सकता है।
इस घोषणा पत्र में नेपाली और हिन्दी भाषा के लेखकों की उत्कृष्ट कृति को एक दूसरे की भाषा में प्रकाशित करने साथ साथ उक्त प्रयास को नेपाल और भारत की अन्य भाषाओं में भी विस्तार के प्रयास का संकल्प लिया गया। नेपाल और भारत के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध को साहित्य के माध्यम से प्रवर्धन कर सुदृढ बनाने पर सहमति हुई। साहित्य के माध्यम से महिला सशक्तिकरण के अभियान को तीव्रता देने का प्रयास किया जाएगा। नवोदित और छिपे हुए साहित्यकारों को आगे लाने हेतु अंतर्राष्ट्रीय मंच प्रदान किया जाएगा । सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु में से एक “किताब खरीद कर ही पढ़ें” की मान्यता को नेपाल और भारत दोनों तरफ ही प्रवर्द्धन करने के लिए प्रोत्साहित करने का फैसला लिया गया। नेपाल- भारत साहित्य महोत्सव को निरन्तरता प्रदान की जाएगी । इसके साथ ही महोत्सव के उदेश्य की प्राप्ति के लिए अन्य रचनात्मक कार्यक्रमों का संचालन किया जाएगा । घोषणा पत्र तैयार करने वालों में भारत से आयोजक और डा. विजय पण्डित, वरिष्ठ पत्रकार व लेखक मनीष शुक्ल, प्रदीप देवीशरण भट्ट, राधा पाण्डे, प्रो. मोनिका मेहरात्रा और नेपाल से अशेष मल्ल, नरेन्द्रबहादुर श्रेष्ठ, प्रमोद प्रधान, श्रीओम श्रेष्ठ रोदन, पवन आलोक, डा. शान्तिमाया गिरी, अमेरिका से गोविन्द गिरि प्रेरणा शामिल रहे।
दोनों देशों के साहित्यिक और सांस्कृतिक सम्बन्धों में सेतु बनाने वाला यह घोषणापत्र बिलकुल वैसा ही है जैसा कि पीएम मोदी ने दोनों देशों को एक परिवार और एक दोस्त करार दिया था। यह सच है कि भारत और नेपाल दोनों सार्वभौमिक स्वतंत्र अस्तित्व वाले राष्ट्र हैं लेकिन दोनों की सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत एक है। दोनों देश रोटी- बेटी के रिश्ते से आपस में जुड़े हैं, वो भी हजारों वर्ष पूर्व माता जानकी के समय से। नेपाल कि चर्चा भगवान पशुपतिनाथ और रुद्राक्ष के बिना भी अधूरी ही मानी जाएगी। जहाँ तक रुद्राक्ष ( रुद्र = शिव और अक्ष = आँसू ) की बात है, कहा जाता है कि इसकी उत्पत्ति भगवान शिव के आँसुओं से हुई है। ये एक मुखी से 29 मुखी तक होते हैं। मूलतः यह एक वृक्ष के फल का बीज है। जिसका अपना पौराणिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी महत्त्व है| ये वृक्ष नेपाल की तलहटी, दक्षिण पूर्वी एशिया और भारत में पाया जाता है। इसकी 300 से अधिक प्रजातियाँ हैं। यह सच है कि एकमुखी रुदाक्ष मूल्यवान और दुर्लभ होता है और शुद्धता भी संदेहास्पद होती है। लेकिन पंचमुखी रुद्राक्ष सामान्य रूप में उपलब्ध है और शुद्ध भी है।
लेकिन पशुपति नाथ जी के दरबार से सत्कार बहने वाली सदानीरा बागमती नदी पर नजर पड़ती है तो अपनी गोमती और यमुना जैसी नदियों के बुरे हाल का दृश्य सामने आ जाता है। पिछले कुछ समय में माँ गंगा की हालत में थोड़ा बहुत सुधार नजर आया हो लेकिन यमुना और गोमती का हाल बागमती जैसा ही है। इन नदियों को स्वच्छ और निर्मल बनाना अभी बाकी है। इस दिशा में सरकार के साथ स्थानीय लोगों के भागीरथ प्रयास का अभाव नजर आता है। तीन दिनों तक विभिन्न सत्रों में साहित्यिक गतिविधियां जारी रहती हैं। इसमें कविता पाठ, मुशायरा, लघुकथा में दोनों देशों के कलमकार अपनी प्रतिभा का परिचय देते हैं। भारत की तरफ से श्रीगोपाल नारसन हिन्दी का भारतीय उपमहाद्वीप और वैश्विक स्तर पर कल, आज और भविष्य पर शोधपत्र प्रस्तुत करते हैं। नेपाल की तरफ से प्रमोद प्रधान द्वारा ‘नेपाली साहित्यको अंतरराष्ट्रीयकरणको प्रश्न अनुवादको समस्या’ विषय पर शोधपत्र पढ़ा जाता है। यहाँ इतिहास और वर्तमान पर भी गंभीर चिंतन होता है
अगर हम इतिहास पर नजर डालें तो प्राचीनकाल में नेपाल भारतवर्ष का ही अंग था इसीलिए हमारे कहते हैं ‘जम्मू दीपे भारत खंडे आर्यावर्ते’। बाद में राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थितियाँ बदलीं। अब नेपाल एक स्वतंत्र संघीय गणराज्य है। सितम्बर 2015 के संविधान के अनुसार नेपाल में सात राज्य हैं। भाषायी दृष्टि से चाहे 123 भाषाएँ हैं लेकिन राष्ट्रीय भाषा नेपाली ही है। जिसकी लिपि देवनागरी के समान ही है। यानि हिन्दी और नेपाली भाषा में बहुत समानता है | वरिष्ठ इतिहासकार,साहित्यकार प्रभु त्रिवेदी बताते हैं कि दोनों भाषाओं में एक जैसी मिठास है। जब कोई पूछता है ‘सर ! जल प्राप्त हो गया क्या ? ये शब्द अंतरमन में आत्मीयता भर जाते हैं। हैदराबाद से आए साहित्यकार प्रदीप देवीशरण भट्ट कहते हैं कि मियां नेपाल तो हमारी ननिहाल है। माता सीता कहाँ की हैं नेपाल के जनकपुर की, और हम उनके बच्चे हैं तो नेपाल हमारा ननिहाल हुआ ना। हरियाणा के वरिष्ठ कवि दलबीर फूल कहते हैं कि “भारत देश का भूगोल भी तो रंग बिरंगा है, कहीं कंकर कहीं बंजर कहीं पे बहती गंगा ॥दोनों देशों के कलमकार एक दूसरे से अपने तार जोड़ते हैं। नेपाल भारत साहित्य महोत्सव के आयोजक संस्थान क्रांतिधरा साहित्य अकादमी मेरठ, भारत के संस्थापक डॉ विजय पंडित मानते हैं कि इस तरह के आयोजन का उद्देश्य नेपाल और भारत के मध्य एक साहित्यिक सेतु का निर्माण करना है। साथ ही नवोदित व गुमनाम साहित्यिक व सामाजिक प्रतिभाओं को वरिष्ठ साहित्यकारों के सान्निध्य में एक अंतरराष्ट्रीय मंच उपलब्ध कराने के साथ साथ ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना के साथ देश दुनियां में साहित्य के माध्यम से दिलो को दिलो से जोड़ने का प्रयास है।