Thursday, November 21, 2024
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फिटनेस : प्रोटीन का खेल

डॉ सरनजीत सिंह

फिटनेस एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट

हमारे शरीर को सुचारु रूप से चलाने के लिए हमें करीब चालीस तरह के पोषक तत्वों की ज़रुरत होती है. ये पोषक तत्व हमें भोजन से लेने पड़ते हैं. इन तत्वों को शरीर के लिए ज़रूरी मात्रा के आधार पर दो श्रेणियों में बाँटा जाता है. जिन तत्वों की हमें ज़्यादा मात्रा में ज़रुरत होती है उन्हें ‘मैक्रोन्युट्रिएंट्स’ और जिन तत्वों की हमें कम मात्रा में ज़रुरत होती है उन्हें ‘माइक्रोन्युट्रिएंट्स’ कहते हैं. कार्बोहाइड्रेट्स, फैट, प्रोटीन और पानी मैक्रोन्यूट्रिएंट की श्रेणी में आते हैं और तमाम तरह के विटामिन्स और मिनरल्स माइक्रोन्युट्रिएंट्स की श्रेणी में आते हैं. इस लेख में मैं विशेष रूप से प्रोटीन का ज़िक्र करूँगा क्योंकि पिछले कुछ सालों में इस मैक्रोन्यूट्रिएंट पर बहुत शोध होने के कारण हमारे भोजन में इसके महत्व की जानकारी का ख़ूब प्रचार हो रहा है. इसके चलते फिटनेस से जुड़े लोगों और खिलाड़ियों के साथ-साथ सामान्य लोगों में भी इसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है.

प्रोटीन एक बहुत जटिल कार्बनिक पदार्थ होता है जो शरीर की प्रत्येक कोशिका में पाया जाता है. हमारे शरीर का 18 से 20 प्रतिशत भार प्रोटीन से बना होता है. प्रोटीन की अधिकांश मात्रा मांसपेशीय ऊतकों में पायी जाती है. ये मांस-पेशियों की मरम्मत करने में मदद करती है और शरीर की सभी कोशिकाओं और ऊतकों के विकास में उपयोगी होती है. प्रोटीन की शेष मात्रा रक्त, अस्थियों, दाँत, त्वचा, बाल, नाखून तथा अन्य कोमल ऊतकों आदि में पायी जाती है. इसके अलावा हमारा शरीर कई तरह के एंजाइम, रसायन और हार्मोन को बनाने के लिए प्रोटीन का इस्तेमाल करता है. शरीर को सुचारु रूप से काम करने के लिए जिस उर्जा की आवश्यकता होती है उसका एक हिस्सा प्रोटीन से भी मिलता है. यही वजह है कि शरीर में प्रोटीन की कमी होने से थकान और कमजोरी महसूस होने लगती है. प्रोटीन हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर हमें कई तरह के संक्रामक रोगों से बचाता है. ये कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने और अवसाद (डिप्रेशन) को कम करने में सहायक होता है. प्रोटीन गर्भवती महिलाओं, बच्चों और किशोरों में वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है.

Natural Sources of Protein

अगर प्रोटीन की सरंचना की बात करें तो प्रोटीन सैकड़ों या हजारों छोटी इकाइयों से बने होते हैं जिन्हें अमीनो एसिड कहा जाता है. अमीनो एसिड 20 प्रकार के होते हैं. इन 20 एमिनो एसिड में 10 एमिनो एसिड हमारे शरीर में बनते हैं जिन्हें नॉन-एसेंशियल एमिनो एसिड कहा जाता है और बाकी के 10 एमिनो एसिड की पूर्ति के लिए हमें प्रोटीनयुक्त भोजन लेना होता है. इन एमिनो एसिड को एसेंशियल एमिनो एसिड कहते हैं. एमिनो एसिड का गठन कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ प्रोटीन में इन तत्वों के अतिरिक्त आंशिक रूप से गंधक, जस्ता, ताँबा तथा फास्फोरस भी पाया जाता है. प्रोटीन की गुणवत्ता और इसका अवशोषण इसके स्रोत में पाए जाने वाले एसेंशियल और नॉन-एसेंशियल एमिनो एसिड की सही मात्रा और उनके अनुपात पर निर्भर करता है. सामान्य तौर पर प्रोटीन आहार के रूप में कम वसा वाले पशु प्रोटीन जैसे मांस, मछली, डेयरी उत्पाद और अंडे जैसे खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाता है. प्रोटीन के मुख्य शाकाहारी स्रोत फलियां, सोया, टोफू, दालें, अनाज, मूंगफली, ड्राई फ्रूट्स और बीज होते हैं.

पर्याप्त प्रोटीन युक्त आहार का सेवन न करने से स्वास्थ से जुड़ी कई गंभीर समस्याएं हो सकती हैं. आहार के अलावा शरीर में प्रोटीन की कमी के कुछ और कारण जैसे आनुवंशिक, एनोरेक्सिया नर्वोसा (एक प्रकार का आहार संबंधी विकार), एड्स, कैंसर या सर्जरी (गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी) आदि भी हो सकते हैं. इसके अतिरिक्त मानव शरीर में प्रोटीन की कमी अनेक प्रकार की आंतरिक समस्याओं के कारण भी उत्पन्न हो सकती है. इनमे मुख्य कारण लिवर डिसऑर्डर, किडनी डिसऑर्डर, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज और सीलिएक रोग (प्रोटीन के अवशोषण में कमी के कारण) हो सकते हैं. प्रोटीन की कमी के शुरुआती लक्षण चेहरे और पैरों में सूजन आना, त्वचा के नीचे तरल पदार्थ का इकट्ठा होना (एडिमा), थकान महसूस होना, वजन में अत्यधिक कमी आना, बालों का शुष्क एवं भंगुर होना, बालो का झड़ना, नाखूनों में दरारे पड़ना या आसानी से टूट जाना, त्वचा सम्बन्धी समस्याएं होना, आसानी से संक्रमित हो जाना, महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म होना, चिंता और तनाव की स्थिति उत्पन्न होना, अनिद्रा या ख़राब नींद होना होते हैं. अगर समय रहते इनका सही उपचार नहीं होता तो प्रोटीन की कमी से पीड़ित व्यक्ति में स्वास्थ सम्बन्धी कई गंभीर समस्याएँ विकसित हो सकती हैं. इसकी वजह से मांस-पेशियों का नुकसान, प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना, दिल की समस्याएँ, श्वसन तंत्र की समस्याएं, रक्त में प्रोटीन स्तर की अत्यधिक कमी (हाइपोप्रोटीनेमिया) और फैटी लिवर जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कुछ स्थितियों में प्रोटीन की कमी से क्वाशियोरकर और मरास्मस जैसी जानलेवा समस्याएँ विकसित हो सकती हैं। ये समस्याएँ अधिकतर बच्चों को प्रभावित करती हैं.

प्रोटीन की कमी की जाँच के लिए कुछ ख़ास तरह के रक्त व मूत्र परिक्षण कराये जाते हैं. प्रोटीन की कमी का उपचार, इसके कारणों के अतिरिक्त, मरीज के आहार, स्वास्थ्य की स्थिति, आयु और चिकित्सा इतिहास पर निर्भर करता है. आहार सम्बन्धी विकार होने पर प्रोटीन की कमी का इलाज करने के लिए प्रोटीन युक्त संतुलित आहार और प्रोटीन सप्लीमेंट के सेवन की सलाह दी जाती है. सीलिएक रोग की स्थिति में प्रोटीन की कमी का इलाज करने के लिए ग्लूटेन फ्री डाइट ली जाती है और लीवर या किडनी की समस्या होने पर डॉक्टर की निगरानी में व्यापक चिकित्सा उपचार की आवश्यकता होती है. ज़रुरत से अधिक मात्रा में प्रोटीन लेना भी स्वास्थ के लिए हानिकारक हो सकता है. इससे शरीर में जमा फैट की मात्रा बढ़ सकती है, इससे निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन), उल्टी होना, जी मिचलाना, यूरिक एसिड बढ़ना या लिवर और किडनी की कार्य क्षमता में कमी होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

अच्छे स्वास्थ के लिए हमें भोजन में प्रोटीन की उचित मात्रा लेनी चाहिए. हाल ही में इंडियन मार्किट रिसर्च ब्यूरो की एक स्टडी के मुताबिक ज्यादातर लोगों की डाइट में प्रोटीन की मात्रा ज़रुरत से बहुत कम होती है. ये जानने के लिए कि हमें भोजन में कितना प्रोटीन लेना चाहिए हेल्थ से जुड़ी विश्व की ज़्यादातर संस्थाओं ने वजन के आधार पर कुछ मापदंड बनाये हैं. इनके अनुसार हमारे वजन के प्रति किलोग्राम वजन के लिए हमें एक ग्राम प्रोटीन की ज़रुरत होती है. यानि कि यदि किसी व्यक्ति का वजन 70 किलोग्राम है तो उसे एक दिन में 70 ग्राम प्रोटीन की ज़रुरत होगी. कुछ संस्थाओं के अनुसार ये मात्रा इससे कुछ कम और कुछ के अनुसार कुछ ज़्यादा हो सकती है. अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाये तो इन मापदंडों में कई तकनीकी त्रुटियां हैं. इसमें सबसे पहली त्रुटि तो ये है कि भोजन में ज़रूरी प्रोटीन की मात्रा को शरीर के वजन से निर्धारित नहीं किया जा सकता क्योंकि हमारे वजन में फैट का वजन भी सम्मिलित होता है जिसे प्रोटीन की आवश्यकता नहीं होती. वैज्ञानिक रूप से किसी व्यक्ति के भोजन में प्रोटीन की उचित मात्रा निर्धारित करने के लिए कई पहलुओं का ध्यान रखना होता है. इसके लिए सबसे पहले उस व्यक्ति की उम्र, लिंग, उसकी शारीरिक सरंचना (बॉडी कम्पोजीशन), उसकी क्रियाशीलता (एक्टिविटी लेवल), उसका शाकाहारी या मांसाहारी होना और उसके भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा जानना बहुत ज़रूरी होता है. इसके लिए कुछ ख़ास तरह के परीक्षण किये जाते हैं और उस व्यक्ति के खान-पान और उसकी जीवन शैली के बारे में पूरी जानकारी लेनी होती है. इन परीक्षणों के बारे में मैं पहले के कुछ लेखों में बता चुका हूँ जिनका लिंक इस लेख के आखिरी में दिया गया है. इस विधि से भोजन में प्रोटीन की मात्रा निर्धारित करने पर पता चलता है कि इससे और वजन से निर्धारित की गयी प्रोटीन की मात्रा में आधे से दुगने तक का अंतर हो सकता है. यानि कि ऊपर बताये गए व्यक्ति जिसका वजन 70 किलोग्राम है, हो सकता है कि उसके भोजन में प्रोटीन की ज़रुरत मात्र 35 ग्राम हो या फिर ये 140 ग्राम भी हो सकती है. स्वास्थ से जुड़ी किसी भी स्थिति में अनुचित मापदंड के कारण परिणामों में इतना बड़ा अंतर होना स्वाथ्य के लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि अगर आप अपनी ज़रुरत से कम प्रोटीन का सेवन कर रहे हैं तो आपको इसकी कमी से होने वाले नुक्सान हो सकते हैं और अगर ये मात्रा आपकी ज़रुरत से अधिक है तो भी ये आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है.

पिछले कुछ सालों में फिटनेस के प्रति जागरूकता बढ़ने के कारण कुछ लोगों ने अपनी जीवन शैली में काफी सुधार किये हैं. एक्सरसाइज के साथ-साथ उन्होंने अपने खाने की आदतों में भी बहुत बदलाव किये हैं. वो अब फुल क्रीम दूध की जगह स्किम्ड मिल्क लेने लगे हैं, वाइट ब्रेड की जगह ब्राउन ब्रेड या होल व्हीट ब्रेड का सेवन करने लगे हैं, ब्राउन राइस की खपत भी पहले से बढ़ गयी है, लोग फाइबर वाले बिस्किट खाने लगे हैं, जंक फ़ूड से परहेज करने लगे हैं और प्रोटीन की कमी पूरी करने के लिए प्रोटीन शेक, प्रोटीन बार और प्रोटीन बॉल्स लेने लगे हैं. प्रोटीन के अच्छे प्राकृतिक स्रोत बहुत सीमित होने के कारण और उनकी गुणवत्ता में गिरावट आ जाने के कारण तरह-तरह के प्रोटीन उत्पाद बाजार में मिलने लगे हैं. इनमें मुख्य रूप से व्हे, कैसीन, सोया, पी, हेम्प और एग प्रोटीन आते हैं. बाजार में मिलने वाले सभी फ़ूड सप्लीमेंट का 85 से 90 प्रतिशत कारोबार प्रोटीन पाउडर और प्रोटीन बार की वजह से होता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 2019 में दुनिया में प्रोटीन उत्पादों का बाजार क़रीब 14 अरब अमरीकी डॉलर का था और जैसे-जैसे लोगों में अपने स्वास्थ्य और फिटनेस के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, निकट भविष्य में इसके कई गुना बढ़ने की संभावनाएं भी बढ़ गयी हैं. प्रोटीन की बढ़ती मांग के चलते कई मल्टी-नेशनल कम्पनियाँ अपने-अपने प्रोटीन उत्पादों के साथ बाजार में उतर चुकी हैं. इनमे से कुछ विश्वस्तरीय कम्पनियाँ नेटवर्क मार्केटिंग के ज़रिये न केवल अपने उत्पादों को ग्राहक तक पहुँचा रही हैं बल्कि वो उन्हें इससे मोटी कमाई का प्रलोभन भी दे रही हैं. प्रोटीन के कारोबार में अच्छी कमाई होने के कारण हर छोटे-बड़े शहर में आये दिन फ़ूड सप्लीमेंट के नाम से सैकड़ों दुकाने खुल रही हैं और इन पर कोई रोक न होने के कारण इनकी सख्यां लगातार बढ़ती जा रही है. इन दुकानों पर तमाम देसी-विदेशी ब्रांड्स के अलग-अलग आकार के रंग-बिरंगे डिब्बे सजाये जाते हैं और ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए इनका प्रचार फ़िल्मी कलाकारों, मॉडल्स और नामचीन खिलाड़ियों को ब्रांड अम्बैसडर बना कर किया जाता है. प्रोटीन के बारे में विशेष जानकारी न होने के बावज़ूद ये अपनी प्रसिद्धि का फायदा उठाते हैं और अपने उत्पाद के बड़े-बड़े दावे करते हैं. इसके प्रचार के लिए कम्पनियाँ इन्हें मोटी रकम देती हैं और ग्राहक कुछ तहक़ीक़ात किये बिना इन सप्लीमेंट का सेवन करने लगते हैं. कई प्रोटीन सप्लीमेंट के डिब्बों पर ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए स्टेरॉइड का दुरूपयोग करने वाले बॉडीबिल्डर की फोटो लगाई जाती है. ऐसा होने से नौजवान प्रोटीन की बजाये इन ख़तरनाक दवाओं का इस्तेमाल करने के लिए ज़्यादा प्रेरित होते हैं. ज़्यादातर प्रोटीन सप्लीमेंट के डिब्बों पर लगे लेबल्स को किसी जानी मानी कंपनी से चुरा कर कॉपी-पेस्ट किया जाता है और इनकी कोई लैब टेस्टिंग न होने के कारण ग्राहक बहुत आसानी से इनके झांसे में आ जाते हैं. कुछ सप्लीमेंट बनाने वाली कम्पनियाँ इन डिब्बों पर किसी सर्टिफिकेट की मोहर लगा कर अपने उत्पाद को दूसरे से बेहतर होने का दावा करती हैं जबकि हकीकत तो ये है कि इनमें से ज़्यादातर सर्टिफिकेट को बहुत आसानी से खरीदा जा सकता है. प्रोटीन के कारोबार की सबसे गंभीर समस्या ये है कि कुछ कम्पनियाँ अपने उत्पाद को सस्ता और प्रभावी सिद्ध करने के लिए इसमें ख़तरनाक स्टेरॉयड की मिलावट कर देती हैं. उनके लेबल पर इसका ज़िक्र न होने की कारण ऐसे सप्लीमेंट का सेवन करने वाले अनजाने में इन दवाओं से जुड़ी गंभीर समस्याओं का शिकार बन जाते हैं और कई बार इन मिलावटी सप्लीमेंट का प्रयोग करने से खिलाड़ी डोपिंग में फंस जाते हैं.

लगभग सभी तरह के प्रोटीन सप्लीमेंट में पायी जाने वाली एक और तकनीकी त्रुटि इन सप्लीमेंट के लेबल पर सुझाई गयी इनकी मात्रा यानि प्रोटीन की डोज़ से जुड़ी है. इन सप्लीमेंट को बनाने वाली ज़्यादातर कंपनियों के अनुसार इनके डिब्बे में मौजूद स्कूप को दिन में दो बार लेना होता है.अब मान लीजिये कि अगर किसी व्यक्ति को एक दिन में 70 ग्राम प्रोटीन की ज़रुरत है और सप्लीमेंट पर लगे लेबल के अनुसार इसके एक स्कूप से आपको 25 ग्राम प्रोटीन मिलता है तो दिन में दो बार इसका प्रयोग करने से आपको 50 ग्राम प्रोटीन की पूर्ति होगी. अब अगर ये व्यक्ति पहले से प्राकृतिक स्रोतों द्वारा शेष 20 ग्राम प्रोटीन से अधिक प्रोटीन ले रहा हो तो इस सप्लीमेंट के दो स्कूप लेने पर उसके शरीर में प्रोटीन की मात्रा बढ़ सकती है और अगर वो इस प्रक्रिया को ज़्यादा दिनों तक जारी रखता है तो उसके स्वाथ्य पर इसका बुरा असर पड़ सकता है और यदि उसके भोजन में शेष 20 ग्राम प्रोटीन भी नहीं मिलती है तो सप्लीमेंट के दो स्कूप लेने पर भी उसकी प्रोटीन की पूर्ति नहीं हो पायेगी. फ़ूड सप्लीमेंट इंडस्ट्री से जुड़ी इन अनियमितताओं को जड़ से ख़त्म करने के लिए मेडिसिन इंडस्ट्री की तरह इस इंडस्ट्री के लिए भी कड़े कानून बनाने होंगे. इसमें सबसे पहले फ़ूड सप्लीमेंट बनाने वाली कंपनियों पर नकेल कसनी होगी, अपने उत्पादों को बाजार में उतारने से पहले उन्हें कड़े लैब परीक्षणों से गुजरना होगा. उन पर लगे लेबल पर सप्लीमेंट में इस्तेमाल किये सभी तत्वों और उनकी सटीक मात्रा की जानकारी अंकित करनी होगी. इनके प्रचार में लगे बॉडीबिल्डर को स्टेरॉयड के सेवन की जानकारी देनी होगी और उसे एक डिस्क्लेमर की तरह डब्बे पर अंकित करना होगा. इसके बाद दवा की दुकान की तरह बिना लाइसेंस के फ़ूड सप्लीमेंट की दुकानों को खुलने से रोकना होगा और इन्हें चलाने के लिए वहां हर समय एक रजिस्टर्ड नुट्रिशनिस्ट या डाईटीशियन की मौजूदगी अनिवार्य होगी।

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