Thursday, November 21, 2024
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गोण्डवी की आवाज : दिल पे रखके हाथ कहिए देश क्या आजाद है…

सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है,

दिल पे रखके हाथ कहिए देश क्या आजाद है

एक जन कवि जिसकी ऐसी पंक्तियाँ सत्ता और शासन को हिला देती थी। उनको पूरी दुनियाँ अदम गोंडवी के नाम से जानती है। वो जब लिखते थे तो उसमें आम जनता की आवाज सुनाई देती थी। उन्होने लिखा….

काजू भुने पलेट में, ह्विस्की गिलास में,

उतरा है रामराज विधायक निवास में

या फिर

तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम बहुत गुलाबी है,

मगर ये आंकड़े झूठे ये दावा किताबी है…

इन पंक्तियों का असर आज भी नजर आता है। इसलिए गोण्डवी को लोग दुष्यंत कुमार की धारा का कवि कहते हैं। गोण्डवी का वास्तविक नाम राम नाथ सिंह था। उनका जन्म  22 अक्टूबर 1947 को अट्टा परसपुर, गोंडा , उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी कविताएं हाशिए की जातियों, दलितों, गरीब लोगों की दुर्दशा को उजागर करती है। गरीब किसान परिवार में जन्मे गोण्डवी ने व्यवस्था में छिपी बुराइयों को कविता के जरिये उजागर किया। 1998 में, मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें दुष्यंत कुमार पुरस्कार से सम्मानित किया। उनके काव्य संग्रह धरती की सता पार (पृथ्वी की सतह) और सामे से मुथबेड़े (समय के साथ मुठभेड़) काफी लोकप्रिय हैं। गोण्डवी के जन्मदिन पर विशेष।

अदम गोंडवी बहुत ही प्रासंगिक और आधुनिक रचनाकार के तौर पर हमेशा याद रहेंगे। यही वजह है कि उनकी कुछ रचनाओं ने तो नारों की शक्ल अख्तियार कर ली।  बात चाहे प्लेट में भुने काजुओं की हो या फिर फाइलों में झूठे आंकडों की. अदम की रचना सीधे नश्तर सी लगती हैं। फैजाबाद से लगे गोंडा के रामनाथ सिंह ने अदम गोंडवी बनकर जन- जन की आवाज उठाई। इसी वजह से उन्होंने “… फटे कपड़ों से तन ढांपे जहां कोई गुजरता हो, समझ लेना वो पगडंडी अदम के गांव जाती है.” जैसी पंक्तियाँ लिखकर हालात बयान किए।

उन्होंने लिखा….

“खुदी सुकरात की हो या रूदाद गांधी की सदाकत जिंदगी के मोरचे पर हार जाती है… ”

वो मजलूमों की आवाज बने…

है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी

आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी

चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा

मैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसा.

इसी कारण उनका जीवन तंघाली में बीता। अंत में अपनी कविताओं के जरिये वो मरकर भी अमर हो गए।  

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