एकओर भारत में सामान नागरिक संहिता पर चर्चा हो रही है तो दूसरी तरह अमेरिका में भी भेदभाव मिटाने के लिए यूएस सुप्रीम कोर्ट ने एतिहासिक फैसला लिया है| कोर्ट ने नस्ल आधार पर होने वाले कॉलेज एडमिशन पर रोक लगा दी है| गौरतलब है कि भारतीय मूल का संगठन स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशन्स अमेरिका के कॉलेजों में भेदभाव की नीति का विरोध करता रहा है। क्योंकि अमेरिका के कॉलेजों में जातीय और नस्ल के आधार पर एडमिशन से भारतीय छात्रों को भी नुकसान पहुंचता है| वहीँ कोर्ट की ओर से इस नीति पर प्रतिबंध लगने के बाद भारतीय छात्रों को एडमिशन में काफी फायदा होने की उम्मीद है|
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का फैसला विश्वविद्यालय की नीतियों में ब्लैक, हिस्पैनिक और मूल अमेरिकी आवेदकों को प्राथमिकता देकर श्वेत और एशियाई आवेदकों के साथ भेदभाव करने की खबरों के बीच आया है। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन नाराज नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से वो बिल्कुल सहमत नहीं है। जान लें कि यह फैसला हार्वर्ड विश्वविद्यालय और उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय में एडमिशन प्रोग्राम को लेकर सुनाया गया है।
अमेरिका में सकारात्मक विभेद की शुरुआत साल 1978 में हुई थी। इसके अनुसार जाति और नस्ल के आधार पर कॉलेज के एडमिशन की अनुमति दी गई थी। इस आदेश का मकसद अमेरिका में भेदभाव के शिकार वर्ग को लाभ पहुंचाना था। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस वक्त ये आदेश लागू किया गया था, उस वक्त इसकी जरूरत थी। हालांकि, ये आदेश हमेशा के लिए लागू नहीं रह सकता। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि छात्रों को उनके मैरिट के आधार पर मौका मिलना चाहिए, न कि नस्ल और जाति के आधार पर।