राखी बख्शी
पाकिस्तानी गायिका मलिका पुखराज द्वारा गायी गयी हफीज जालंधरी की नज़्म ‘’ अभी तो मैं जवान हूँ’’ सुनकर बचपन में हम लोगों को हंसी आती थी। ( यहाँ हम से तात्पर्य मुझसे, मुझसे कुछ ही बरस छोटी मेरी बहन और मेरे हम उम्र दोस्तों से है) हमें लगता कि एक अधेड़ महिला जवान होने का यूं पुरज़ोर ढंग से भला क्यों ऐलान कर रही है? दरअसल उस वक़्त हम लोग इसके मायने नहीं समझ पाते थे । पर आज ज़िंदगी के चौथे दशक में प्रवेश करने के बाद हम इसके अल्फ़ाज़ों का मतलब समझते हैं और ये नज़्म हमें बेहद प्रासंगिक लगती है। कुछ रचनाएँ कालजयी होती हैं और उनकी प्रस्तुति करने वाले कलाकार भी उनके साथ सर्वकालिक हो जाते हैं। इस नज़्म में शायर जवानी और ज़िंदगी का कतरा – कतरा पूरा लुत्फ लेकर जीने का ख़्वाहिशमंद है —–
हवा भी खुशगवार है, गुलों पे भी निखार है
तरन्नुमें हज़ार हैं, बाहर पुरबहार है
कहाँ चला है साकिया, ( इधर तो लौट इधर तो आ)
अरे, यह देखता है क्या ? उठा सुबू , सुबू उठा
सुबू उठा, पियाला भर पियाला भर के दे इधर
चमन की सिम्त कर नज़र, समा तो देख बेखबर
वो काली काली बदलियाँ-2 ऊफक पे हो गईं अयां
वो इक हुजूम – ए_- मयकशां, है सू- ए – मैकदा रवां
ये क्या गुमां है बदगुमां, समझ ना मुझको नातवां
खयाल- ए – जोहद अभी कहाँ? अभी तो मैं जवान हूँ ,
अभी तो मैं जवान हूँ।
उम्र बढ़ने के साथ अक्सर कुछ लोगों को एक निराशा सी घेरने लगती है, जो धीरे-धीरे उन्हें अकेलेपन , अकर्मण्यता और जड़ता की ओर धकेलने लगती है और इस स्थिति से उबरने के लिए उन्हें किसी प्रेरणा की आवश्यकता होती है जबकि दूसरी ओर कुछ लोग ज़िंदादिल होते हैं और उनके लिए उम्र सिर्फ एक संख्या मात्र होती है। ऐसे लोग मन से कभी बूढ़े नहीं होते और आखिरी सांस तक जीवन को भरपूर जीते हैं ।
आमतौर पर साठ (60) साल के बाद उम्र का असर या तो हमारे शरीर पर प्रत्यक्ष दिखने लगता है या फिर हममे से बहुत से लोग बुढ़ापा जनित रोगों की गिरफ्त में आ जाते हैं लेकिन आजकल ज़्यादातर लोग अपने शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को ले कर बेहद सचेत रहते हैं और 50 से 60 वर्ष की उम्र के बाद भी व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में बहुत कुछ अर्जित करते हैं । ऐसे बहुत से लोग हैं जिनकी उम्र भले ही 60 पर हो गयी हो लेकिन उन्होंने अपनी हसरतों को जवान रखा । उन्होंने जीवन जीने की ललक और लालसा को नहीं छोड़ा। अपने लक्ष्य की और बढ़ते रहे और मंज़िल को प्राप्त किया और इस मामले में महिलाएं भी पुरुषों से किसी मामले में कम नहीं ।
उम्र को पीछे छोड़ ज़िंदगी की दौड़ में पूरी तन्मयता और सक्रियता से आगे की बढ़ने वालों में आस्ट्रेलियाई घुड़सवार मेरी हाना का नाम हमेशा याद रखा जाएगा।
मेरी हाना ने 66 वर्ष की उम्र में टोक्यो ओलिम्पिक में घुड़सवारी कि ड्रेसेज स्पर्धा में भाग लिया । उनका यह छठा ओलिम्पिक था। मेरी इस ओलिम्पिक में कोई पदक तो नहीं जीत पायी लेकिन जीवन के छ: दशक पार करने के बाद भी उन्होने जिस अंदाज़ में घुड़सवारी करके अपना दमखम दिखाया वो अपने आप में एक मिसाल है। मेरी वर्ष 2024 में पेरिस में होने वाले अगले ओलिम्पिक में भी भाग लेने की ख़्वाहिशमंद हैं। टोक्यो ओलिम्पिक से पूर्व उन्होने 1996 में अटलांटा ओलिम्पिक , 2000 में सिडनी ओलिम्पिक , 2004 में एथेंस ओलिम्पिक, 2012 में लंदन ओलिम्पिक और 2016 में रियो ओलिम्पिक में भाग लिया था।
मेरी हाना ओलंपिक में भाग लेने वाली दूसरी सबसे अधिक उम्र की महिला खिलाड़ी हैं। ब्रिटेन की लोरना जॉनस्टोन दुनिया की सबसे अधिक उम्र की महिला ओलंपिक खिलाड़ी हैं जिन्होंने 1972 में 70 साल की उम्र में ओलिम्पिक में भाग लिया था। हाना का जन्म 1 दिसम्बर 1954 को ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न शहर में हुआ था। उनके पति रॉब हाना भी एक घुड़सवार हैं। घुड़सवारी को लेकर मेरी हाना का जज़्बा प्रशंसनीय है । उन्हें देख कर लोगो में एक नया उत्साह जागृत होता हैं और उम्र के किसी भी पड़ाव पर अपने शौक को ज़िंदा रखने की प्रेरणा मिलती है।
ओलंपियन डारा टोर्र्स एक ऐसी खिलाड़ी हैं जिनके लिए उम्र एक संख्या मात्र है। डारा ने इस विषय पर एक पुस्तक भी लिखी है। डारा ओलंपिक में तैराकी स्पर्धा में भाग लेने वाली दुनिया की सबसे उम्रदराज महिला हैं। उन्होंने बीजिंग समर ओलिम्पिक में 41 वर्ष की आयु में वापसी की थी । उन्होंने कुल पाँच बार ओलिम्पिक में भाग लेकर 12 पदक जीते। डारा आज भी अपनी फिटनेस को लेकर बहुत सजग रहती हैं। वह नियमित रूप से एक्ससरसाइज करती हैं । वर्ष 2008 में बीजिंग ओलिम्पिक में उन्होंने तीन सिल्वर मेडल जीते थे।
डारा ने अपनी पुस्तक ‘’ एज इज जस्ट ए नंबर ‘’ में खुलासा किया है कि उन्होंने ओलिम्पिक में वापसी का सपना उस वक़्त देखा जब वह गर्भवती थीं।
उनके अनुसार जिस वक़्त वो प्रशिक्षण के लिए वापस लौटीं उस समय उनपर अपनी छोटी सी बेटी और कैंसर की बीमारी से जूझ रहे पिता की देखभाल की दोहरी ज़िम्मेदारी थी । इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी दोनों जिम्मेदारियों को बखूबी पूरा करते हुए प्रशिक्षण प्राप्त किया।
उम्र की परवाह किए बिना ज़िंदादिली से अपनी ख़्वाहिशों को पूरा करने वालों की फेहरिस्त में भारतीय अभिनेत्री सुहासिनी मुले का नाम भी शामिल है। सुहासिनी मुले ने वर्ष 2011 में 60 वर्ष की आयु में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर अतुल गुर्टू से विवाह किया । उन्होंने ने एक साक्षात्कार में कहा था कि सपने , जुनून पूरा करने के लिए कोई बूढ़ा नहीं होता। यहाँ तक कि अपना बैटर हाफ खोजने के लिए कोई सही उम्र नहीं होती । उनके विवाह को आज एक दशक हो चुका हैं। सुहासिनी की अपने पति से मुलाकात सोशल नेटवर्किंग साइट फकेबुक पर हुई थी। आपसी मुलाकात के मात्र डेढ़ महीने बाद ही उन दोनों ने शादी कर ली थी ।
मानव जीवन में हर कोई चाहता है कि उसे एक अच्छा हमसफर मिले, जिसके साथ वो ज़िंदगी के सुख-दुख साझा कर सके । बहुत से लोगों को युवावस्था में ही उनके मन का मीत मिल जाता है और वो सात फेरों के बंधन में बंध जाते हैं पर कुछ लोग जीवन में अकेले रह जाते हैं । ऐसे लोग एक उम्र के बाद आमतौर पर एकाकी जीवन को अपनी नियति मान लेते थे लेकिन आज के युग में विवाह के मायने भी बदले हैं। अब विवाह केवल एक संस्कार या संतानोत्पति के लिए एक वैध सामाजिक संस्था मात्र नहीं रह गया है । आज लोग ढलती उम्र में किसी का साथ पाने के लिए भी विवाह कर रहे हैं । सुहासिनी मुले के अलावा भी ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने जीवन के उत्तरार्ध में विवाह बंधन में बंधने का फैसला किया और आज अपने जीवन साथी के साथ खुश हैं । 50- 55 या 60 पार करके विवाह करना अब समाज में कोई अचरच की बात नहीं है। आधुनिकता का प्रभाव बढ़ने के साथ व्यक्ति को अपने ढंग से जीवन जीने की अधिक स्वतन्त्रता भी मिली है ।
दरअसल बुढ़ापे का संबंध मनुष्य की उम्र के अलावा उसकी सोच, जिजीविषा और ज़िंदादिली से भी है। हर हाल में खुश और सकारात्मक रहने वाले लोग निश्चित रूप से बेहतर जीवन जीते हैं और अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा करते हैं । उनके लिए उम्र एक संख्या मात्र है।
राखी बख्शी
बेहतरीन प्रस्तुति एवं प्रेरणादायक लेख! बधाई राखी!!