हमारे देश को भले ही 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ लेकिन पहले लोकसभा चुनाव करने में चार सालों का वक्त लग गया। पच्चीस अक्टूबर, 1951 को आज के दिन ही पहले लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई। तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने 21 फरवरी 1952 तक चुनाव प्रक्रिया पूरी करने की अधिसूचना जारी की। जिसके बाद समूची दुनियाँ की निगाहें सबसे बड़े लोकतन्त्र की ओर लग गई। चुनाव में 17 करोड़ से अधिक भारतीय मतदाताओं ने भाग लिया और उन्होंने अंग्रेजों के इस अनुमान को गलत साबित कर दिया कि भारतीय समाज लोकतंत्र का दायित्व नहीं निभा पाएगा।
पहले चुनाव में 21 साल या उससे ऊपर के महिला-पुरुषों को मताधिकार दिया गया। राजनीतिक दलों और स्वतंत्र उम्मीदवारों के चुनाव चिह्न वितरित किया गया। पोलिंग बूथों पर दो करोड़ से ज्यादा अलग-अलग बैलट बॉक्स रखे गए। साथ ही 62 करोड़ बैलट पेपर छापे गए थे।
चुनाव प्रक्रिया चार महीनों में और 68 चरणों में संपन्न हुई । उस समय लोकसभा की कुल 489 सीटें थीं। इसमें मल्टी सीट सिस्टम लागू किया गया था। हालांकि संसदीय क्षेत्र 401 ही थे। 314 संसदीय क्षेत्र ऐसे थे, जहां से सिर्फ एक-एक प्रतिनिधि चुने जाने थे। 86 संसदीय क्षेत्र ऐसे थे जहां एक साथ 2 लोगों को सांसद चुना जाना था। इनमें से एक सामान्य वर्ग से और दूसरा सांसद एससी/एसटी समुदाय से चुना गया। एक संसदीय क्षेत्र नॉर्थ बंगाल तो ऐसा भी रहा, जहां से 3 सांसद चुने गए। बाद में आरक्षण व्यवस्था लागू करके एक संसदीय क्षेत्र से एक सांसद चुनने की प्रक्रिया लागू की गई। पहले आम चुनाव में कुल 1874 उम्मीदवारों ने अपना दम दिखाया। मतदाता के लिए तब न्यूनतम उम्र 21 वर्ष थी और कुल 36 करोड़ आबादी में करीब 17.3 करोड़ मतदाता थे। जवाहर लाल नेहरू की अगुआई में कांग्रेस के अलावा श्रीपाद अमृत डांगे के नेतृत्व में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, श्यामा प्रसाद मुखर्जी का भारतीय जन संघ (जो बाद में बीजेपी बना), आचार्य नरेंद्र देव, जेपी और लोहिया की अगुआई वाली सोशलिस्ट पार्टी, आचार्य कृपलानी के नेतृत्व में किसान मजदूर प्रजा पार्टी समेत कुल 53 छोटे-बड़े दल मैदान में थे। इस पहले आम चुनाव में कुल 45.7 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की अगुआई में कांग्रेस ने इन चुनावों में एकतरफा जीत हासिल की। फूलपुर लोकसभा सीट से जवाहर लाल नेहरू ने विशाल अंतर से जीत हासिल की। साधारण बहुमत के लिए 245 सीटों की जरूरत थी, लेकिन कांग्रेस ने कुल 489 सीटों में से 364 पर अपना परचम लहराया। दूसरे नंबर पर सीपीआई रही, जिसके खाते में 16 सीटें आईं। 12 सीटों के साथ सोशलिस्ट पार्टी तीसरे स्थान पर रही।