अरविंद जयतिलक
गत जुलाई माह में भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की ताजिकिस्तान की राजधानी दुशान्बे में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के रक्षामंत्रियों की बैठक में उपस्थिति कई मायने में महत्वपूर्ण रही। अफगानिस्तान के बिगड़ते हालात, पाकिस्तान द्वारा तालिबान को खुला समर्थन और आतंकी गतिविधियों में आयी तेजी से क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर चुनौतियाँ बढ़ी है। ऐसे में भारत का चिंतित होना और एससीओ मंच के जरिए सदस्य देशों से क्षेत्रीय सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने का आह्नान करना लाजिमी है। यह उचित ही है कि भारत ने एससीओ और इसके क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी ढांचे (आरएटीएस) के साथ अपने सुरक्षा-संबंधी सहयोग को गहरा करने में दिलचस्पी दिखायी और उसे भरपूर समर्थन मिला। याद होगा पिछले वर्ष एससीओ के 20 वें वर्चुअल सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन और पाकिस्तान को सख्त संदेश दिया था कि एससीओ के सभी सदस्य देश एकदूसरे की सार्वभौमिकता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करें। तब प्रधानमंत्री ने सदस्य देशों के बीच संपर्क मजबूत करने में भारत की सहभागिता का उल्लेख करते हुए कहा था कि एससीओ क्षेत्र से भारत का घनिष्ठ ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संबंध है। हमारे पूर्वजों ने इस साझा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को निरंतर संपर्कों से जीवंत बनाए रखा है। अच्छी बात है कि एससीओ बैठक से इतर भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने बेलारुस के रक्षामंत्री लेफ्टिनेंट जनरल विक्टर खेनिन के साथ द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को भी धार दी । इस पहल से दोनों देशों के बीच सैन्य और सामरिक भागीदारी बढ़नी तय है। एससीओ में भारत की दमदार होती भूमिका और बढ़ती साख से स्पष्ट है कि मध्य एशिया में भारत की भू-राजनीतिक स्थिति लगातार मजबूत हो रही है। व्यापार, उर्जा, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, पर्यटन, पर्यावरण और सुरक्षा क्षेत्र को पंख लग रहा है। सदस्य देशों के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग का दायरा व्यापक हो रहा है और नियमित आदान-प्रदान, यात्राएं, विचार-विमर्श, सैन्यकर्मियों का प्रशिक्षण, सैन्य तकनीकी सहयोग तथा संयुक्त अभ्यास जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा मिल रहा है। उम्मीद है कि इस बैठक से क्षेत्रीय सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने के अलावा आर्थिक विकास को गति देने के साथ व्यापार, निवेश, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य सुविधाओं, कृषि, सूचना एवं संचार प्रौद्यागिकी के क्षेत्र में विस्तार को नया आयाम मिलेगा । जाहिर है कि मध्य एशिया बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार है और इस क्षेत्र में अब भारत के लिए स्वयं को स्थापित करने में मदद मिल रही है। साथ ही भारत के लिए इस क्षेत्र में उभर रही आतंकी गतिविधियों, अंतर्राष्ट्रीय खतरों, अवैध ड्रग कारोबार, जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए सभी सदस्य देशों को गोलबंद करना आसान होगा। यह तथ्य है कि भारत अरसे से विभिन्न क्षेत्रीय मंचों के जरिए क्षेत्रीय सुरक्षा की मजबूती और आतंकवाद के विरुद्ध आवाज उठाता रहा है। अच्छी बात है कि अब भारत को भरपूर तवज्जों मिलनी शुरु हो गयी है। उल्लेखनीय है कि शंघाई सहयोग संगठन एक ताकतवर संगठन है। इस मंच के जरिए भारत न सिर्फ पाकिस्तानी और चीनी सैन्य गतिविधियों पर निगरानी रख सकेगा बल्कि आतंकी समूहों की आवाजाही पर भी व्यापक दृष्टि रखने में सक्षम होगा। ध्यान देना होगा कि आतंकवाद से सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि मध्य एशिया समेत संपूर्ण विश्व लहूलुहान है। ऐसे में शंघाई सहयोग संगठन का क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर होना और आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होना उम्मीद जगाने वाला है। गौर करें तो इस संगठन ने तकरीबन हर बैठक में आतंकवाद के सभी रुपों की भर्त्सना की है और काउंटर टेरोरिज्म कन्वेंशन को लेकर सहमति जतायी है। संगठन का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग एवं विकास को स्थापित करना, अच्छे पड़ोसी की तरह रहना और समय पर एकदूसरे के काम आना है। इसके अलावा इसके उद्देश्यों में क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा को बढ़ाना, भविष्य में आने वाली आर्थिक, राजनैतिक समस्याओं का एकजुटता के साथ सामना करना, आपसी वाणिज्य और व्यापार को बढ़ावा देना, विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में आपसी सहयोग को बढ़ाना, संस्कृति, शिक्षा, उर्जा, परिवहन, पर्यावरण सुरक्षा जैसे मसलों पर आपसी सहयोग से कार्य करना तथा विश्व शांति के लिए प्रयास करना भी शामिल है। गौरतलब है कि 2018 में चीन के तटीय शहर किंगदाओ में संपन्न शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में भारत को पहली बार शिरकत करने का मौका मिला। इससे पहले वह बतौर पर्यवेक्षक की भूमिका में था। कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में संपन्न सम्मेलन में भारत की स्थायी सदस्यता पर मुहर लगी। गौर करें तो पहले संगठन के सदस्य राष्ट्रों का कुल क्षेत्रफल 30 मिलियन 189 हजार वर्ग किमी और जनसंख्या तकरीबन 1.5 बिलियन थी किंतु भारत के जुड़ जाने से संगठन का क्षेत्रफल व जनसंख्या व्यापक हो गयी है। आज की तारीख में यह संगठन विश्व की तकरीबन आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन बन चुका है। चूंकि इस संगठन ने संयुक्त राष्ट्र संघ के अलावा यूरोपीय संघ, आसियान, काॅमनवेल्थ और इस्लामिक सहयोग संगठन से भी संबंध स्थापित किए हैं इस लिहाज से संगठन का सदस्य होने के नाते भारत की भूमिका महत्वपूर्ण हो गयी है। गौर करें तो अभी तक संगठन पर चीन का वर्चस्व रहा है लेकिन चूंकि भारत की अर्थव्यवस्था चीन के मुकाबले तेजी से आगे बढ़ रही है ऐसे में संगठन में भारत की भूमिका का विस्तार होना तय है। कूटनीतिज्ञों की मानें तो भारत की भूमिका बढ़ने से चीन के व्यापक प्रभाव में कमी और दृष्टिकोण में बदलाव आएगा। एससीओ के दबाव के कारण वह आतंकिस्तान बन चुके पाकिस्तान को प्रश्रय देने से भी बचेगा। चूंकि एससीओ के सदस्य देशों की भारत से अति निकटता है ऐसे में संभव है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर चीन के रुख में बदलाव आए। ऐसा इसलिए कि शंघाई सहयोग संगठन के सभी सदस्य देश मसलन रुस, कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान पहले से ही संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन कर चुके हैं। शंघाई सहयोग संगठन के इतिहास में जाएं तो अप्रैल, 1996 में शंघाई में हुई एक बैठक में चीन, रुस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान आपस में एकदूसरे के नस्लीय और धार्मिक तनावों से निपटने के लिए सहयोग करने को राजी हुए। तब इस संगठन को शंघाई फाइव कहा गया। जून 2001 में चीन, रुस और चार मध्य एशियाई देशों कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं ने शंघाई संगठन सहयोग शुरु किया और धार्मिक चरमपंथ से निपटने के अलावा व्यापार व निवेश को बढ़ाने के लिए समझौता किया। शंघाई फाइव के साथ उजबेकिस्तान के आने के बाद इस समूह को शंघाई सहयोग संगठन कहा गया। यह संगठन एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसका कार्यालय बीजिंग में है और क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना ताशकंद में है। राज्य प्रमुखों की परिषद इस संगठन का सर्वोच्च निकाय है जिसकी प्रतिवर्ष बैठक होती है। इसके अलावा शासन प्रमुखों की परिषद (एचजीसी) की वार्षिक बैठक होती है। शंघाई सहयोग संगठन में 2008 से डायलाॅग पार्टनर यानी वार्ताकार सहयोग की व्यवस्था की गयी है। 2009 के शिखर सम्मेलन में सबसे पहले श्रीलंका और बेलारुस को डायलाॅग पार्टनर का दर्जा दिया गया। अफगानिस्तान, शंघाई सहयोग संगठन-अफगानिस्तान कांटैक्ट ग्रुप का हिस्सा है और इस ग्रुप की स्थापना 2005 में की गयी थी। इस संगठन की शिखर बैठकों में संयुक्त राष्ट्र, सीआईएस, यूरेशियन इकोनाॅमिक कम्युनिटी एवं सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन यानी सीएसटीओ के प्रतिनिधि भी भाग लेते हैं। गौरतलब है कि 2005 में भी कजाकिस्तान के आस्ताना में भारत के प्रतिनिधियों ने पहली बार शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन में भाग लिया था। पिछले वर्ष यानी 2020 में पहला अवसर था जब पर्यवेक्षक देशों के प्रतिनिधियों के सम्मेलन में भारत को संबोधित करने का अधिकार दिया गया। जानना आवश्यक है कि भारत ने सितंबर 2014 में एससीओ की सदस्यता के लिए आवेदन किया था। अच्छी बात यह है कि एससीओ की सदस्यता ग्रहण करने के उपरांत हर सम्मेलन में भारत ने यूरेशियाई धरती के लोगों के साथ अच्छे संबंध रखने की प्रतिबद्धता दोहरायी है और आतंकवाद से मिलकर निपटने की वकालत की है। जिस तरह भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दो सम्मेलनों में अपने संबोधन के जरिए दुनिया को प्रभावित किया है उससे वैश्विक स्तर पर भारत की साख बढ़ी है।