Sunday, November 24, 2024
Homeक्राइमबेन जानसन : दुनियाँ का सबसे तेज धावक क्यों बन गया रिले...

बेन जानसन : दुनियाँ का सबसे तेज धावक क्यों बन गया रिले रेस पर काला धब्बा

डॉ. सरनजीत सिंह

फिटनेस एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट

दिन शुक्रवार, 23 सितम्बर, 1988 सिओल, साउथ कोरिया, ओलिंपिक का वो दिन जिसे कोई खेल प्रेमी कभी नहीं भूल सकता. ये वो दिन था जब सभी की आँखे दुनिया के सबसे तेज दौड़ने वाले इंसान को देखने के लिए बेकरार थीं. इसमें मुकाबला नौ बार ओलिंपिक गोल्ड मेडल जीतने वाले, अमेरिका के स्प्रिंटर कार्ल लेविस, 1984 लॉस एंजेल्स में दो ब्रॉन्ज़ मेडल जीतने वाले, जमैका में पैदा हुए, कैनेडियन स्प्रिंटर, बेन जॉनसन, 1986 यूरोपियन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले, जमैका में पैदा हुए ब्रिटिश स्प्रिंटर लिंफ़ोर्ड क्रिस्टी और 1984 ओलंपिक्स की 4×100 मीटर रिले रेस के गोल्ड मेडल विजेता कैल्विन स्मिथ के बीच था. रेस शुरू हुई और देखते ही देखते बेन जॉनसन ने 9.79 सेकेंड्स का नया विश्व रिकॉर्ड बनाते हुए सब को पीछे छोड़ दिया. उसके बाद जो हुआ उसकी वज़ह से 23 सितम्बर 1988 को आज भी ओलिंपिक का ‘काला दिवस’ माना जाता है. बेन जॉनसन डोपिंग में पकड़ा गया, उसका गोल्ड मैडल छीन लिया गया और उसके बनाये रिकॉर्ड को निरस्त कर दिया गया. ये ओलिंपिक में आज तक का सबसे चर्चित डोपिंग केस है, हालाँकि इससे पहले, इससे भी बड़े काले दिवस ओलिंपिक देख चुका था लेकिन उन दिनों को बहुत ज़ल्द भुला दिया गया, जिनका ज़िक्र मैं अपने आने वाले लेखों में करूँगा.

फिलहाल हम जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर बेन जॉनसन क्यों पकड़ा गया? उससे कहाँ चूक हुई? क्या वो बच सकता था? जबकि उसके द्वारा प्रयोग की गयी शक्तिवर्धक प्रतिबंधित दवा, ‘स्टेरॉइड्स’ का प्रयोग खिलाड़ी पिछले करीब 30 सालों से कर रहे थे. इसके अलावा हम ये भी जानने की कोशिश करेंगे कि इस घटना के बाद बेन जॉनसन का क्या हुआ?

दरअसल, ‘स्टेरॉइड्स’ (मुख्यतः टेस्टोस्टेरोन), ख़ास तरह के हॉर्मोन्स होते हैं जो प्राकृतिक रूप से हमारे शरीर में गोनेड्स (जननांग – नरों में अंडकोष व मादाओं में अंडाशय) और एड्रेनल ग्लैंड्स (अधिवृक्क ग्रंथिओं) में बनता है. इनका मुख्य कार्य यौन लक्ष्णों के विकास, रक्त संचरण और मांसपेशियों का विकास करना होता है. मांसपेशियों पर इसके प्रभाव के कारण स्पोर्ट्स से जुड़े सभी देशों के वैज्ञानिक कई सालों से इसे कृत्रिम रूप से बनाने की कोशिश कर रहे थे. और 1935 में सबसे पहले इसकी सफलता जर्मनी के वैज्ञानिकों को मिली. जिसके बाद चूंहों पर इसका सफल परीक्षण करने के बाद इसका प्रयोग सैनिकों और खिलाड़ियों पर किया जाने लगा. जिससे उन्हें अधिक आक्रामक और शक्तिवर्धक बनाया जा सके. जर्मनी के बाद रूस और दुनिया कई विकसित देशों ने भी ज़ल्द ही इसमें कामयाबी हासिल कर ली, और इनका जमकर प्रयोग ओलिंपिक के साथ साथ सभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेलों में होने लगा.

यहाँ ये जानना बहुत ज़रूरी है कि 1968 में अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक कमेटी (आई ओ सी) ने जब डोपिंग पर बैन लगाया, और प्रतिबंधित दवाओं की पहली लिस्ट जारी की, तो उसमें ‘स्टेरॉइड्स’ नहीं शामिल थे. ‘स्टेरॉइड्स’ को पहली बार 1976 में प्रतिबंधित दवाओं की लिस्ट में शामिल किया गया, जबकि इन्हें पकड़ने का सही तरीका 1983 में जर्मनी ने तैयार किया, और तब तक इनके इस्तेमाल से तमाम विश्व और ओलिंपिक रिकार्ड्स बन चुके थे, ‘स्टेरॉइड्स’ को पकड़ने की इस तकनीक को ‘गैस क्रोमैटोग्राफी मास स्पेक्ट्रोमेट्र्री’ कहते हैं. इस तकनीक के आते ही सभी छोटे-बड़े खिलाड़ियों में हड़कंप मच गया, क्योंकि इस तकनीक से उस समय प्रयोग किये जाने वाले लगभग सभी ‘स्टेरॉड्स’ को पकड़ना आसान हो गया था. इन ‘स्टेरॉइड्स’ में एक ‘स्टेरॉयड’ था, ‘स्टेनाज़ोलोल’. इस ‘स्टेरॉयड’ को 1962 में बनाया गया था, और इसके मांसपेशियों पर एनाबोलिक प्रभाव की वजह से ये बहुत जल्द खिलाड़ियों में लोकप्रिय हो गया था. ये वही ‘स्टेरॉयड’ था जिसका प्रयोग बेन जॉनसन लम्बे अरसे से करता चला आ रहा था. ‘गैस क्रोमैटोग्राफी मास स्पेक्ट्रोमेट्र्री’ तकनीक आने के बाद 1986 में प्रतिबंधित दवाओं की लिस्ट में ‘स्टेनाज़ोलोल’ को भी शामिल किया गया. इसकी जानकारी बेन जॉनसन के कोच चार्ली फ्रांसिस को भी थी, इसके बावज़ूद बेन जॉनसन ‘स्टेनाज़ोलोल’ का प्रयोग करता रहा, उसे लगा कि रेस के दिन तक ये उसके शरीर से निकल (वाश आउट) जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, और में वो पकड़ा गया. उस पर दो सालों का प्रतिबन्ध लगा दिया गया. हालाँकि इसके बाद बेन जॉनसन की जांच प्रक्रिया पर भी कई सवाल उठते रहे.

अब अगर उस समय बेन जॉनसन ‘स्टेनाज़ोलोल’ का प्रयोग न कर रहा होता या उसके शरीर से ‘स्टेनाज़ोलोल’ रेस के पहले ‘वाश आउट’ हो चुका होता, और या फिर उस समय तक ‘गैस क्रोमैटोग्राफी मास स्पेक्ट्रोमेट्र्री’ की खोज न हुई होती तो आज उसका भी नाम कई नामचीन और प्रतिष्ठित खिलाड़ियों में शामिल होता. अब यहाँ हैरान करने वाली बात ये है कि बहुत ज़ल्द खिलाड़ी ‘गैस क्रोमैटोग्राफी मास स्पेक्ट्रोमेट्र्री’ की खामियों को भी भांप गए, और उसके बाद ‘डिज़ाइनर स्टेरॉइड्स’ की खोज की गयी और अनुचित तरीके से रिकार्ड्स बनाने और मेडल्स जीतने का सिलसिला चलता रहा. 1991 में निलंबन समाप्त होने के बाद बेन जॉनसन ने फिर से खेलों में वापसी की, और 1993 में मॉन्ट्रियल, कनाडा में होने वाली एक रेस के दौरान उसे एक बार फिर प्रतिबंधित दवाओं के सेवन का दोषी पाया गया और उस आजीवन प्रतिबन्ध लगा दिया गया. कनाडा के तत्कालीन खेल मंत्री पियररे कौडियूक्स ने बेन जॉनसन को  ‘राष्ट्रीय अपमान’ घोषित किया और उसे जमैका वापिस जाने के लिए कहा, 1999 में एक अधिनिर्णायक ने जॉनसन के आजीवन प्रतिबन्ध में प्रक्रियात्मक त्रुटि होने की बात कही जिससे उस पर लगा आजीवन प्रतिबन्ध तो हट गया लेकिन किसी भी खिलाड़ी उसके साथ किसी भी रेस में हिस्सा न लेने की सख्त हिदायत दी गयी. 1999 का अंत आते आते एक बार फिर उसका डोप टेस्ट हुआ, और वो फिर से दोषी पाया गया. इस तरह बेन जॉनसन का नाम खेल के इतिहास में एक कलंक बन कर रह गया.

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments