- मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद चुनाव मैदान में उतरेंगे
- डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा, जतिन प्रसाद जैसे दिग्गज लड़ेंगे चुनाव
- एमएलसी, मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष भी खोलेंगे चुनावी मैदान में मोर्चा
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में भले ही विधान सभा चुनाव भले हो अगले वर्ष 2022 में होने हैं लेकिन सभी राजनैतिक दलों ने चुनावी मोर्चा अभी से खोल दिया है। बसपा सुप्रीमो मायावती के ब्राह्मण कार्ड का जवाब देने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत भाजपा के सभी दिग्गज चुनावी मैदान में उतरेंगे।
हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है, का नारा एकबार फिर यूपी में गूंज रहा है। 2007 में उत्तर प्रदेश में पहली बार बसपा ने पहली बार इस नारे के जरिये ‘सोशल इंजीनियरिंग’ जैसी शब्दावली गढ़ी थी। उस समय बसपा चुनावों में अपने परंपरागत दलित वोट बैंक के साथ-साथ ब्राह्मणों को भी काफी हद तक साथ लाने में कामयाब रही थी। नतीजा- बसपा की सरकार बनी थी, मायावती मुख्यमंत्री बनी थीं। बसपा ने 2022 के विधान सभा चुनाव में एकबार फिर पुराना आजमाया फार्मूला इस्तेमाल करने की कवायद शुरू की है। ब्राह्मणों को साथ लाने के मकसद से पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने इसकी अयोध्या से शुरुआत की है। बसपा ने ये ऐलान भी किया कि पार्टी ब्राह्मण सम्मेलन को अयोध्या के बाद काशी, मथुरा और चित्रकूट तक लेकर जाएगी. 23 जुलाई से 29 जुलाई तक अलग-अलग जगहों पर ये सम्मेलन किए जाएंगे।
बसपा अयोध्या, मथुरा और काशी के जरिये भाजपा को उसके गढ़ में चुनौती देना चाहती है। दूसरी भाजपा ने अपने परंपरागत ब्राह्मण वोटरों को रिझाने के लिए विधान सभा से लेकर बूथ तक रणनीति बनाई है। भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में इसकी मुहर भी लगाई जाएगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खुद प्रचार की कमान संभालेगा। राष्ट्र की नीतियों को लेकर घर- घर जाकर लोगों तक बात पहुंचाई जाएगी। विधान सभा के लेकर वार्ड और बूथ स्तर तक कार्यकर्ता प्रदेश सरकार के कार्यों को जनता तक ले जाएंगे। दूसरी भाजपा ने अपने सभी दिग्गजों को विधान सभा चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा इस बार खुलकर मैदान में लड़ेंगे। पार्टी ने ये रणनीति 2017 के विधान सभा चुनाव के हटकर अपनाई है। पिच्छले विधान सभा चुनाव में इन दिग्गजों ने चुनाव न लड़कर प्रचार का जिम्मा उठाया था। उस समय मुख्यमंत्री गोरखपुर से सांसद थे जबकि डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा लखनऊ के मेयर थे। इसी प्रकार डिप्टी सीएम केशव मौर्य सांसद और प्रदेश अध्यक्ष थे। बाद में सभी को एमएलसी बनाकर सदन में भेजा गया था। हालांकि आने वाले विधान सभा चुनाव में पार्टी की रणनीति है कि पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं को चुनाव लड़वाया जाए। उनका इस्तेमाल प्रचार से लेकर मैदान तक किया जाए।
इसीलिए पार्टी में शामिल हुए नेता जतिन प्रसाद को प्रदेश में ब्राह्मण चेहरे के तौर पर पेश किया जा रहा है। उनको पार्टी चुनाव मैदान में उतारेगी। पार्टी ने पिछले काफी समय से ठंडे बस्ते में पड़े वरिष्ठ नेता लक्ष्मीकान्त वाजपेई को भी महत्व देना शुरू कर दिया है। प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से लेकर सभी बड़े नेता वाजपेई से उनके घर जाकर मिल चुके हैं। इसके अलावा दिनेश शर्मा को भी पार्टी ब्राह्मण चेहरे के तौर पर पेश कर रही है। उधर भाजपा सरकार के ब्राह्मण विरोधी आरोप की हवा निकालने की भी तैयारी शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद परंपरागत वोटरों को रिझाने का जिम्मा लेंगे। सभी राजनैतिक दल ब्राह्मणों को रिझाने में इसलिए जुटे हैं क्योंकि ब्राह्मण वोट बैंक यूपी के लगभग हर जिले में है। पूर्वांचल यानी फैजाबाद, वाराणसी, गोरखपुर, गाजीपुर, गोंडा, बस्ती, महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, जौनपुर जैसे जिले ब्राह्मण वोट बैंक का गढ़ माने जाते हैं। मध्य यूपी यानी कानपुर, रायबरेली, फर्रुखाबाद, कन्नौज, उन्नाव, लखनऊ, सीतापुर, बाराबंकी, हरदोई, इलाहाबाद, सुल्तानपुर, प्रतापगढ, अमेठी आदि जिले भी इस वोट बैंक का गढ़ हैं। इसी तरह बुंदेलखंड जोन यानी हमीरपुर, हरदोई, जालौन, झांसी, चित्रकूट, ललितपुर, बांदा आदि इलाके ब्राह्मण वोटर्स का केंद्र हैं। प्रदेश की दस फीसदी से ज्यादा ब्राह्मण आबादी कई जिलों में निर्णायक भूमिका निभाती है। ऐसे भाजपा, सपा और बसपा अपने- अपने तरीके से इस वोट को अपने पाले में लाना चाहते हैं। भाजपा ने फिलहाल अपने दिग्गज नेताओं को मैदान में उतारने की रणनीति बनाकर विरोधियों के लिए कठिन चुनौती देने का निर्णय ले लिए है।