महान गायक मोहम्मद रफी के गीत आज भी लोगों के जुबान पर हैं। इस अमर गायक ने 41 साल पहले शुक्रवार 31 जुलाई 1980 को अंतिम सांस ली थी। रफी संगीत के प्रति इतने समर्पित थे कि अपने जीवन के आखिरी दिन भी वो गाने को रिकार्ड करने में व्यस्त थे। दयालु इतने कि एक रुपए लेकर भी गाना गाने को तैयार रहते थे। मोहम्मद रफी ने कई भारतीय भाषाओं में कुल 7,405 गाने गाए थे. इनमें 4,334 गाने हिन्दी में गाए थे।
हिंदी सिनेमा के शुरुआती दौर में सिर्फ मुकेश और तलत मेहमूद ही लोगों के बीच प्रसिद्ध थे। उस वक्त रफी साहब को कोई नहीं जानता था। हालांकि जब नौशाद ने फिल्म बैजू बावरा के लिए रफी साहब को मौका दिया तो उन्होंने कहा था कि, ‘इस फिल्म के साथ ही तुम सबकी जुबां पर छा जाओगे…’इस बात में कोई शक नहीं की उनकी बात एकदम सच निकली।
मोहम्मद रफी ने अपने साथ ही किशोर कुमार की फिल्मों के लिए भी गीत गाए जिनमें ‘बड़े सरकार’, ‘रागिनी’ और कई फिल्में शामिल है। उन्होंने किशोर कुमार के लिए करीब 11 गाने गाए। रफी साहब से जुड़ा एक किस्सा था जो बहुत मशहूर हुआ था। फिल्म ‘नील कमल’ का गाना ‘बाबुल की दुआएं लेती जा’ गाते वक्त रफी साहब की आंखों में आंसू आ जाते थे। इसकी वजह ये थी कि इस गाने के ठीक एक दिन पहले उनकी बेटी की सगाई हुई थी और इसलिए वो बहुत भावुक थे। इस गीत के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
मोहम्मद रफी का जन्म पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में 24 दिसंबर 1924 को हुआ था। हाजी अली मोहम्मद के परिवार में जन्मे मोहम्मद रफी छह भाई बहनों में दूसरे नंबर पर थे। उन्हें घर में फीको कहा जाता था। गली में फकीर को गाते सुनकर रफी ने गाना शुरू किया था। 1935 में रफी के पिता लाहौर चले गए और वहां भट्टी गेट के नूर मोहल्ले में हजामत बनाने का काम शुरू किया।
रफी के निधन से कुछ दिन पहले ही कोलकाता से कुछ लोग उनसे मिलने पहुंचे थे। वो चाहते थे कि रफी काली पूजा के लिए गाना गाएं। जिस दिन रिकॉर्डिंग थी उस दिन रफी के सीने में बहुत दर्द हो रहा था लेकिन उन्होंने किसी को कुछ नहीं बताया। हालांकि रफी बंगाली गाना नहीं गाना चाहते थे लेकिन फिर भी वो रिकॉर्डिंग में व्यस्त रहे। वो दिन उनकी जिंदगी का आखिरी दिन था। हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया था।