Wednesday, April 2, 2025
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रोमांटिक फ़िल्मों के ब्लाक बस्टर फ़िल्मकार… शक्ति सामंत

लेखक : दिलीप कुमार

हिन्दी सिनेमा की रोमांटिक फ़िल्मों का सृजनकार जो खुद सिल्वर स्क्रीन पर अपनी अदाकारी का जादू बिखेरना चाहते थे, लेकिन नियति ने उन्हें फ़िल्मकार बना दिया. शक्ति सामंत ने खुद भी नहीं सोचा होगा जो खुद स्टार बनना  चाहते थे, वो खुद स्टार मेकर बन गए.  फ़िल्मों का अपना व्यावसायिक दर्शक वर्ग है. वहीँ कॉमिक, संजीदा, रोमांटिक, समान्तर, एक्शन सभी फ़िल्मों को रचने वाले फ़िल्मकार अपने – अपने योगदान के लिए याद किए जाते हैं. प्राकृतवाद  को सिल्वर स्क्रीन के धरातल पर उतारने वाले फ़िल्मकार शक्ति सामंत रोमांटिक फ़िल्मों के पुराने अग्रदूतों में से एक हैं. हिन्दी सिनेमा के सबसे पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना एवं पहले रॉकिंग सुपरस्टार शम्‍मी कपूर को सुपरस्‍टार बनाने की श्रेय शक्ति सामंत को ही जाता है. 13 जनवरी, 1926 में बंगाल के बर्द्धमान जिले के एक छोटे से गांव में जन्‍मा यह शख्‍स यूं तो खुद स्‍टार बनने की हसरत से ही मुंबई आया था, लेकिन तकदीर कुछ यूं रही कि वह दूसरों को स्‍टार बनाने वाले डायरेक्‍टर बन गए.

शक्ति सामंत हिन्दी सिनेमा की रोमांटिक दुनिया रचने के लिए याद आते हैं. उनकी सुपरहिट फ़िल्मों में आराधना, अमर प्रेम, कश्‍मीर की कली, बरसात की रात, आनंद आश्रम, हावड़ा ब्रिज, कटी पतंग और अमानुष जैसी कालजयी फिल्‍में हैं . शक्ति सामंत की प्रमुख सुपरहिट फिल्‍में आराधना, आनंद आश्रम, अमर प्रेम और कटी पतंग के हीरो राजेश खन्‍ना थे. आराधना राजेश खन्‍ना के सिने कॅरियर की पहली ब्लॉकबस्टर फिल्‍म थी, जिसने उन्‍हें रातोंरात सफलता के सातवें आसमान पर पहुँचा दिया था. इस फिल्‍म के लिए शक्ति सामंत और शर्मिला टैगोर दोनों को फिल्‍मफेयर अवॉर्ड से सम्‍मानित किया गया था.

दिलचस्प किस्सा है आराधना का आराधना के निर्देशक /निर्माता शक्ति सामंत आराधना बनाना ही नहीं चाहते थे. इस फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले ही कैंसिल होने वाली थी. 1969 की बात है, जब शक्ति सामंत आर्थिक विपत्ति ग्रस्त हो गए थे. उनकी एक फिल्म रीलिज हुई थी “एन इविनिंग इन पेरिस” शानदार फिल्म थी. रिलीज होने के तीन दिन बाद पूरे देश में थियेटर मालिकों ने हड़ताल कर दिया. यह वो दौर था जब कोई ओटीटी, ऑनलाइन का ज़माना नहीं था, डीवीडी भी नहीं बिकती थीं, फिल्म को केवल थियेटर में ही देख सकते थे. फिल्म रिलीज होने के बाद का तीन हफ्ते का समय फिल्म बिजनैस के लिए सबसे बढ़िया होता है. इत्तेफ़ाक स्ट्राइक भी तीन हफ्ते तक चली, इस स्ट्राइक ने शक्ति सामंत को मुश्किल में डाल दिया था..

एक दिन शक्ति सामंत अपने ऑफिस में बैठे थे, यह ऑफिस बंबई के फेमस स्टुडियो में था फेमस स्टुडियो में बड़े – बड़े फिल्म निर्माताओं के भी ऑफिस थे. उसी स्टुडियो में अनिल कपूर के पिता सुरेन्द्र कपूर का भी ऑफिस था. उन्होंने तब शशि कपूर स्टार्टर फिल्म  ‘एक श्रीमान एक श्रीमती’ बनाई थी, जो 1969 में रिलीज हुई. उन्होंने शक्ति सामंत को अपनी फिल्म दिखाई की देखिए कैसी है. फिल्म का क्लाईमेक्स उनकी आराधना जैसे ही था, देखकर शक्ति सामंत का दिमाग खराब हो गया. क्योंकि इस फिल्म का लेखन आराधना के ही लेखक सचिन भौमिक ने ही किया. उन्होंने सचिन को बुलाया और शिकायत किया कि यह जो कहानी आप ने लिखी है आराधना के लिए वो पहले ही सुरेंद्र कपूर बना चुके हैं. सचिन ने समझाने की कोशिश किया, कि थोड़ा बहुत मिलती है, पूरी एक जैसी नहीं है. उन्होंने सचिन भौमिक को जाने के लिए कह दिया. और फेमस स्टुडियो के बाहर गुस्से में टहलने लगे! चूँकि फेमस स्टूडियो में बड़े – बड़े फिल्म निर्माताओं के ऑफिस थे, तो वहां फिल्मी हस्तियों का आना-जाना लगा रहता था.

वहीँ उनको दो लेखक मिले,”गुलशन नंदा” जो “सावन की घटा फिल्म शक्ति सामंत के लिए चुके थे. , मधुसूदन, जो उनकी फिल्म “जाने अनजाने” लिख रहे थे. दोनों ने शक्ति सामंत को कहा कि हम आपका क्लाईमेक्स लिखने एवं सुधारने में मदद करेंगे. गुलशन नंदा से शक्ति सामंत ने पूछा कि तुम्हारे पास कोई कहानी है, तत्काल! चाहिए. गुलशन नन्दा ने कहा कि मेरे पास एक कहानी है, तीनों उनके ऑफिस पहुंचे, उन्होंने एक नई कहानी का एक घंटे तक नरेशन किया. वह स्टोरी कटी पतंग की थी. जब शक्ति सामंत ने यह कहानी सुनी तो उन्होंने कहा यह फिल्म बनाना है, अराधना नहीं बनाऊँगा. गुलशन नंदा ने पूछा आराधना की कहानी मे क्या दिक्कत है? शक्ति सामंत ने गुलशन नंदा को बताया. उसी दिन शक्ति सामंत के घर तीनों पहुँचे रात दो बजे कहानी पर री – वर्क किया, और कहानी फ़ाइनल हुई कि राजेश खन्ना जो इंटरवल तक का रोल करने वाले थे, वो अब बाद का भी रोल करेंगे. राजेश खन्ना का डबल रोल बनाया गया. डिस्ट्रीब्यूटर ने मना कर दिया कि यह फिल्म फ्लॉप हो जाएगी. हम पैसा नहीं फंसा सकते. कुछ दिनों तक तनातनी चली बाद में सब ठीक रहा, क्योंकि शक्ति सामंत आत्मविश्वासी और पक्के थे, कि फिल्म हिट होगी. बाद में फिल्म वैसे ही रिलीज हुई जैसे बनी थी, तय समय पर रिलीज हुई. दिल्ली में इस फिल्म ने तहलका मचा दिया था, एक हफ्ता बाद मुंबई में रिलीज हुई तब तक यह फिल्म ब्लॉकबस्टर हो चुकी थी. इस फिल्म के गीतों ने पूरे बॉलीवुड को एक दिशा दी, शक्ति सामंत को बेस्ट फीचर फिल्म के लिए बतौर निर्माता बेस्ट फिल्म का फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला. इस फिल्म के बाद से राजेश खन्ना सुपरस्टार बन चुके थे. फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. आराधना फिल्म अपने आप में एक फिल्म सिलेबस है. शक्ति सामंत निर्देशित राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म कालजयी मानी जाती है. राजेश खन्ना के जीवन का मील पत्थर साबित हुई बाद में कटी पतंग पर काम शुरू हुआ, राजेश खन्ना ने सीनियर आशा पारिख के साथ पर्दे पर रोमांस करते हुए हिन्दी सिनेमा में तहलका मचा दिया था. और बॉलीवुड को मिला पहला सुपरस्टार राजेश खन्ना जिनका स्टारडम सोचकर आज भी रोमांच से भर जाते हैं. इस खूबसूरत दुनिया को रचने वाले शक्ति सामंत ही थे.

शक्ति सामंत का कोई फिल्‍मी बैकग्राउंड नहीं, बल्कि सिनेमा के शौकीन थे. दिखने में अच्छे थे, तो अभिनेता बनने ख्‍याब पाल बैठे. इस ख्‍वाब के साथ वो मुंबई आ गए. यहां शुरू में काफी संघर्ष था. तो उन्‍होंने मुंबई से कोई 200 किलोमीटर दूर पुणे के रास्‍ते में दापोली नामक जगह पर एक स्‍कूल टीचर की नौकरी कर ली. 1948 में उन्‍हें फिल्‍मों में पहला ब्रेक मिला, लेकिन बतौर एक्‍टर नहीं, बल्कि बतौर असिस्‍टेंट डायरेक्‍टर. सतीश निगम राज कपूर के साथ सुहाने दिन नाम की एक‍ फिल्‍म बना रहे थे. उन्‍होंने शक्ति सामंत को अपना असिस्‍टेंट रख लिया. बतौर डायरेक्‍टर सामंत की पहली फिल्‍म थी बहू, जो 1954 में बनी थी. फिल्‍म में ऊषा किरण, शशिकला, प्राण और करण देवन भूख्‍य भूमिकाओं में थे. फिल्‍म बॉक्‍स ऑफिस पर सफल रही.  फिर एक के बाद एक इंसपेक्‍टर1956,

शीरू1956,  डिटेक्टिव1957 , और हिल स्‍टेशन1957 आदि सुपरहिट फ़िल्मों का निर्माण किया. अपनी सिनेमाई सफलता के बाद 1957 में उन्‍होंने अपनी खुद की प्रोडक्‍शन कंपनी शुरू की. शक्ति सामंत का एक्सीडेंट हो गया था. वो बहुत दिनों तक काम से ब्रेक लेकर बिस्तर पर पड़े रहे. और पड़े-पड़े एक पिक्चर की कहानी सोच ली जिसका नाम रखा हावड़ा ब्रिज . इस बैनर के तले बनी पहली फिल्‍म थी, जो हिन्दी सिनेमा की कालजयी फिल्म मानी जाती है. इस फिल्म में अशोक कुमार और मधुबाला मुख्‍य भूमिकाओं में थे. इस फिल्‍म के लिए शक्ति सामंत ने मधुबाला को सिर्फ एक रुपए में साइन किया था. वो नए प्रोड्यूसर थे. उनके पास देने को ज्‍यादा पैसे नहीं थे.साथ ही संगीतकार ओपी नैयर को 1000 रुपये देकर साइन किया. ये फिल्म पर्दे पर सुपरहिट साबित हुई. और शक्ति सामंत की पहचान एक प्रॉड्यूसर के रूप में भी बन गई. लेकिन अशोक कुमार और मधुबाला, दोनों को उन पर पूरा यकीन था, कि शक्ति सामंत की फिल्‍म है तो कमाल ही होगी. फिल्‍म सुपरहिट रही. उसके बाद तो शक्ति सामंत ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

शक्ति सामंत की एक बड़ी बात हिट पिक्चरों के साथ हिट गानों की भी थी. उनकी फिल्मों के कई गाने यादगार गाने बन गए. इन गानों की कतार लम्बी है सभी का जिक्र नहीं हो सकता. पर इनमें से कुछ खास नगमे ‘रूप तेरा मस्ताना’, ‘तारीफ करूं क्या उसकी’, ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू’, ‘कोरा कागज था ये मन मेरा’, ‘बार-बार देखो’, ‘चंदा है तू’, ‘एक अजनबी हसीना से’ और ‘ये शाम मस्तानी’ प्रमुख हैं. शक्ति सामंत के की फ़िल्मों का संगीत इसलिए भी यादगार है कि उन्होंने अधिकाशं काम महान बर्मन दादा के साथ किया. बर्मन दादा के बारे में जितना भी लिखा जाए कम है, शक्ति सामंत की फ़िल्मों में बर्मन दादा का तिलिस्मी संगीत की दुनिया बहुत सुन्दर है.

शक्ति सामंत राजेश खन्ना, शम्मी कपूर को हिन्दी सिनेमा में काबिज कराने वाले फ़िल्मकार थे, लेकिन वो आलोचक भी बहुत उम्दा थे. राजेश खन्ना अपने चरम पर थे, तो वो चाटुकारों से घिरे रहते थे, तब शक्ति सामंत ने कहा ‘राजेश हमें अपने स्टारडम को संभालना आना चाहिए, अगर हम आलोचना सहना सीख गए तो सफ़लता हमारी दोस्त बन जाती है, वही इस दौर में अपनी आलोचना सुनना चाहिए, कठिन परीक्षा होती है, नहीं समझोगे तो गिर जाओगे. मदमस्त राजेश खन्ना नहीं समझे इतिहास गवाह है कि हमेशा समय के साथ खुद को ढालने में ही समझदारी है.  शक्ति सामंत ने यही सलाह शम्मी कपूर को भी दिया, “देखो शम्मी तुम्हारा वज़न बढ़ गया है, तुम कैरेक्टर रोल करना शुरू कर दो या अपना वजन कम करो अन्यथा बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुँह गिरोगे’. यह वो दौर था जब शम्मी कपूर की कि खूब धमक थी, किसी की हिम्मत नहीं थी, कि वो शम्मी कपूर की मुँह पर आलोचना कर सके. शम्मी कपूर ने शक्ति सामंत की सलाह मानी, और कैरेक्टर रोल करने लगे, और अपनी दूसरी पारी में आज तक सबसे ज्यादा प्रभावी रहे हैं. वहीँ राजेश खन्ना ने सलाह नहीं मानी तो गिर गए. हिन्दी सिनेमा एक अज़ीब शापित दुनिया है, यहां चढ़ते सूरज को सलाम किया जाता है, वहीँ असक्रिय महान लोगों को भुला दिया जाता है, जिनका अपना अविस्मरणीय योगदान है. शक्ति सामंत भी सक्रिय नहीं थे तो सभी कोई उनको भूल चुका था, कोई भी उनके अंतिम दिनों में कोई भी उनसे मिलने तक नहीं आया. उनके बेटे के मुताबिक फिल्मफेयर उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड देने वाला था, लेकिन उससे कुछ दिन पहले शक्ति सामंत पैरलाइज़्ड हो गए इसके बाद वो ठीक नहीं हो पाए. और दिल की धड़कन रुकने से 83 साल की उम्र में 9 अप्रैल, 2009 को शक्ति सामंत फानी दुनिया को रुखसत कर गए. कोई भी फिल्मी दुनिया से उनके अंतिम संस्कार में भी नहीं आया. और शक्ति दा बड़ी बेरुखी झेलते हुए रुखसत हो गए. इसलिए सिनेमा को शापित, निरंकुश दुनिया कहना ही उचित है. अपनी महान दुनिया रचने के लिए शक्ति सामंत हमेशा यादो में रहेंगे. रोमांटिक फ़िल्मों के अग्रदूत शक्ति सामंत को मेरा सलाम..

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