Sunday, September 8, 2024
Homeमनोरंजनमुझे फ़क्र है मेरी शायरी, मेरी जिंदगी से जुदा नहीं ... शकील...

मुझे फ़क्र है मेरी शायरी, मेरी जिंदगी से जुदा नहीं … शकील बदायूंनी

लेखक : दिलीप कुमार

एक ऐसे गीतकार जिन्होंने इस नफ़रत भरी दुनिया में प्रेम के गीतों का संसार रचा, जिनके गीत दवा और दुआ का काम करते हैं. शकील साहब ने अपनी ज़िन्दगी मुहब्बत के नग्मो के नाम करते हैं, बाद में दर्द के हवाले कर दिया था. हिन्दी सिनेमा में गीतकार बनने से पहले उर्दू, अरबी अदब की दुनिया का बड़ा नाम बनकर मकबूलियत हासिल कर चुके थे. अपने समकालीन गीतकारों में सबसे अलग मुकाम रखते थे, प्रमुख चार गीतकारों साहिर, मजरुह, शैलेन्द्र, के साथ शकील साहब प्रख्यात थे. दरअसल यही चारों गीतकार सबसे महान माने जाते हैं. प्रेम, प्राकृतवाद की चाहत रखने वालों के दिलों में आज शकील साहब के नग्मे खनकते हैं. हिन्दी सिनेमा के साथ गानों का अपना एक मुकाम लोगों के साथ संवेदना के सेतु का काम करता है, सिनेमा भी रोमांटिक गीतों पर टिका हुआ है. कोई फिल्म देखे या न देखे, सिनेमा के गीतों का रोमांटिसिज्म पीढ़ियों को जोड़ता है, इस विधा में शकील साहब का नाम सबसे ऊपर बड़ी अदब के साथ लिया जाता है, जिनकी लेखनी के मयार को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें गीतकार ए आज़म की उपाधि से सम्मानित किया था.

एक बार शकील साहब से पूछा गया “आपको यह शेरो-शायरी विरासत में मिली है क्या? शकील साहब ने बेबाकी से जवाब दिया कि ‘’मेरी शायरी का फन, मारुशी (पैतृक) नहीं है, क्योंकि ना मेरे वालिद शायर थे न दादा! हां, मेरी सातवीं पुश्त में जो मेरे जद्दे – अमजद मतलब पूर्वज थे. उनके बारें में किताबों में पढ़ा है, कि वो शायर थे और उनका नाम खलीफा मोहम्मद वासिल था. मुमकिन है वही जौक सात पुश्तों की छलांग लगाकर मेरे हिस्से में आया हो”.

गीत और ग़ज़ल से मुहब्बत की खूशबू दुनियाभर में महकाने वाले शकील बदायूंनी आसान शब्दों में अवामी जज़्बात की अदायगी बहुत ख़ूबसूरती किया है. शकील साहब ने जब भी गीत लिखने के लिए क़लम उठाई, ऐसी रचना निकली, जो अमर हो गई. फिल्मी दुनिया के वो ऐसे गीतकार हैं, जिनके गीतों की लोगों को एक या दो लाइन नहीं पूरे गीत दशकों बाद आज भी कंठस्थ हैं, चाहे वह फिल्म बरसात का गाना-कल रात ज़िंदगी से मुलाक़ात हो गई या फिर मुग़ले आज़म का जब प्यार किया तो डरना क्या, हो. भजन लिखे तो डूबकर और जब देशभक्ति गीत की बारी आई तो अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं, ऐसी रचना दे गए, जो ख़ास मौक़ों पर बजता है तो सुनने वालों के लिए वतन पर मर मिटने का जज़्बा हिलोरे मारने लगता है, और देशभक्ति की भावनाएं का ज्वार फ़ूट पड़ता है.

रोजाना हर कोई मुंबई अपने सपनों को पूरा करने आता है, कोई सफल हो जाता है, कोई बहुत असफल हो जाता है. शकील साहब अपनी अलग मिट्टी से बने थे. उन्होंने फिल्मी गीत लिखने की धुन बना ली थी. सन 1944 में दिल्ली से अपनी चार साल की नौकरी को छोड़कर शकील साहब अपनी कलम को ऊंचाई देने के लिए बंबई पहुंचे. आख़िरकार वो दौर आया जब हिन्दी सिनेमा को शकील साहब के रूप में एक नायाब गीतकार मिला. एक बार शकील साहब बंबई में मुशायरा पढ़ रहे थे वहाँ मशहूर फ़िल्मकार ‘के आर कारदार’ शकील साहब से खासे प्रभावित हुए, उन्होंने फ़िल्मों में लिखने की दावत दे दी. ‘के आर कारदार साहब शकील साहब को दिग्गज’ नौशाद अली’ के पास लेकर गए. नौशाद साहब ने कहा – “अपनी काव्य प्रतिभा को एक लाइन में बयान करो मुझे प्रभावित करो”, तब शकील साहब ने कहा “हम दर्द का अफ़साना दुनिया को सुना देंगे हर दिल में मुहब्बत की आग लगा देंगे”. इस लाइन को सुनकर नौशाद ने कहा “हिन्दी सिनेमा की दुनिया में गीतकारों का सरताज़ कदम रख चुका है. यही से शुरू होता है शकील बदायूंनी साहब के मुहब्बत के गीतों का फलसफा जो आज भी तारी है. इसके बाद नौशाद अली एव शकील साहब की दोस्ती का युग 25, साल तक चलता रहा.. जहां गीतों के रूप में रचा गया पूरा का पूरा एक संसार.. ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने केवल नौशाद अली के लिए ही गीत लिखे उन्होंने संगीतकार हेमंत कुमार, संगीतकार रवि के साथ भी अमर गीत लिखे. संगीतकार रवि के साथ तो शकील साहब ने पूरा गीतों का इतिहास ही लिख डाला.

चौदहवीं का चांद’ पिक्चर का पहला गाना रिकॉर्ड किया जाना था. गुरुदत्त साहब बैचैन थे, और उनसे भी ज़्यादा स्टूडियो के कोने में कुर्सी पर बैठे हुए शकील बदायूंनी. संगीतकार रविशंकर शर्मा उर्फ़ ‘रवि’ दोनों की बैचैनी को बड़ी अच्छी तरह से समझ रहे थे. दरअसल, ‘कागज़ के फूल’ फ्लॉप हो चुकी थी. गुरुदत्त और बर्मन दादा की जोड़ी टूट चुकी थी और उधर शकील साहब भी पहली बार नौशाद साहब के साथ नहीं किसी नए संगीतकार से जुड़े थे. चिंता वाज़िब थी.

शकील साहब संगीतकार रवि से पूछते हैं “भाई रवि, सब ठीक तो रहेगा?’ तब रवि कहते हैं “फ़िक्र न करिए शकील साहब बस धैर्य रखिए “गुरुदत्त साहब ने इन दोनों की बातचीत को सुना तो घबराकर कहा : ‘अरे गीत/संगीत जो शानदार नहीं हुआ तो फिल्म फ्लॉप हो जाएगी . शकील तुम बदायूं चले जाना और रोबी तुम दिल्ली चले जाना, और मैं डूबकर मर जाना चाहूँगा. आख़िरकार फिल्म सुपरहिट हुई. रवि को बेस्ट म्यूजिक कंपोजर का अवार्ड मिला, शकील साहब के हिस्से में पहली कामयाबी आती है. उन्हें ‘चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो जो भी तुम ख़ुदा की कसम लाजवाब हो..’ के शीर्षक गीत के लिए 1961 में बेस्ट गीतकार का फिल्मफेयर अवार्ड मिला. फिर इसके बाद लगातार आने वाले दो साल यानी सन ‘1962 में फिल्म ‘घराना’ और सन ‘1963 में फिल्म ‘बीस साल बाद’ के गानों के लिए फिल्मफेयर अवार्ड उनकी झोली में आता है, लेकिन चौदहवीं का चांद हो के लिए शकील साहब को शर्मशार होना पड़ा था, साहित्य एवं फिल्मी साहित्य में थोड़ा फर्क़ है, फिल्मी गीतों में थोड़ा शाब्दिक त्रुटि की गुंजाईश होती है. शकील साहब बहुत संस्कारी, बड़ों का सम्मान करने वाले शालीन इंसान थे, हुआ यूं कि ग्वालियर में एक मुशायरे का आयोजन हुआ था, मुशायरे में महान शायर हजरत नातिक गुलाम भी शिरकत करने पहुँचे. सभी लोगों ने उनका बहुत ही शानदार तरीके से स्वागत किया. इस बीच शकील बदायूंनी ने भी उनके स्वागत में उन्हीं का एक मशहूर शेर पढ़ दिया.शकील के मुंह से अपना लिखा हुए शेर सुनते ही हजरत नातिक गुलाम भड़क उठे. उन्होंने शकील से कहा – “तुम फिल्मी लाइन में जाते ही शायरी के नियम भूल गए. हजरत नातिक गुलाम ने यह बात सभी के सामने कही थी. सभी के सामने डांट पड़ता देख शकील शर्मसार हुए. फिर बाद में हंसी में बात को उड़ाते हुए हजरत नातिक गुलाम से कहा कि हो सकता है कि मुझसे कोई गलती हो गई हो. आप मुझे बता दें. मैं उसे दुरुस्त कर लूंगा. शकील की बात सुनकर नातिक ने उसने कहा कि अब कैसे सही करोगे, वो तो रिकॉर्ड हो चुका है और मैंने उसे रेडियो पर सुन भी लिया है.नातिक, शकील बदायूंनी से कहते हैं- गौर फरमाइये आपने क्या लिखा है- चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो… यहां पहली लाइन में एक शब्द कम है. शायरी का मीटर जो है वो यहां ठीक नहीं है. पहली लाइन में अगर ‘तुम’ शब्द जोड़ देते तो यह ठीक होता. ये कुछ ऐसे होता- तुम चौदहवीं का चांद हो या तुम आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो” यह सुनकर शकील बदायूंनी, हजरत नातिक गुलाम को अपनी सफाई में यह बताना चाहते थे कि अक्सर संगीतकार धुन का मीटर ठीक करने के लिए गाने के शब्दों को घटा या बढ़ा देते हैं. पर वह डांट खाते रहे और उन्होंने अपनी सफाई में नातिक से कुछ नहीं कहा. शकील बदायूंनी इसलिए चुप रहे, क्योंकि नातिक का कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं था. उनका मानना था कि फिल्म का गाना लिखना अपने आप में एक बहुत बड़ी कला है.

शकील साहब ने जो देखा, सोचा और महसूस किया, वही लिखा. उनके लिखे शेर से बात को अंजाम दिया जाये तो ठीक है. मैं ‘शकील’ दिल का हूं तर्जुमा, कि मुहब्बतों का हूं राज़दां,

मुझे फ़क्र है मेरी शायरी, मेरी जिंदगी से जुदा नहीं.’

60 के दशक में तमाम सारे नए नए रेडियो खुल रहे थे, और हर जगह इनॉगरल कंसर्ट के लिए अक्सर ग़ज़ल साम्राज्ञी बेगम अख़्तर को बुलाया जाता था. एक कंसर्ट करने के लिए वो बम्बई गईं और बंबई से जब वो चलने लगीं बॉम्बे स्टेशन पर उनसे मिलने शक़ील साहब आए. शकील साहब ने बाहर कुशल क्षेम पूछा और एक कागज़ मोड़ कर के बेग़म साहिबा को खिड़की के माध्यम से दिया. उन्होंने कहा आपके लिए गज़ल लिखा है इसे आराम से पढ़िएगा.वहीं जब तक उन लोगों में और कुछ बातें होती ,तो ट्रेन आगे बढ़ गयी. बेग़म अख्तर साहिबा ने जिगर मुरादाबादी, शक़ील बदायूं, कैफ़ी आज़मी, दाग़, मोमिन और ग़ालिब तक को गाकर के अपने संगीत से समृद्ध बनाया बेग़म साहिबा एक तरफ जहां पूर्वी ठुमरी, चैती, दादरा और तमाम तरह की उप-शास्त्रीय गायन में पारंगत थीं. गज़ल में बेगम साहिबा के लिए कहा जाता है. उन्होंने हमेशा अल्फाज़ को संगीत को और उसके पूरे प्रदर्शन को शायरी के तलफ़्फ़ुज़ को बहुत खूबसूरती से पिरो कर के सामान्य जन के लिए आसान बनाया. उनका नाम बहुत एहतराम से आज भी लिया जाता है. की उस ज़माने में बंबई से लखनऊ पहुंचने में 24 घंटे लगते थे. रात में बेगम साहिबा को नींद आ गयी वो सो गयीं. अचानक बेगम अख्तर ने अपनी शागिर्द से कहा हार्मोनियम निकालो तो वो कागज़ वो कहां रख दिया तुमने जो कल रात मैंने तुम्हे दिया था. देखें शकील साहब ने क्या लिखा है”. उन्होंने गज़ल पढ़ी. हारमोनियम निकाल कर ख़ुद धुन देती गयीं. शकील बदायूंनी की लिखी गज़ल जो बाद में चलकर बहुत मशहूर हुई. ग़ज़ल की दुनिया में सबसे यादगार, ग़ज़ल के रूप में विख्यात है.

फिल्म बैजू बावरा में ‘ओ दुनिया के रखवाले’ इस गीत को अमीर खान साहब को गाना था, लेकिन गाने के आखिर में नौशाद साहब एक लम्बा अलाप चाहते थे, कि अमीर खां साहब को कहना पड़ा, “भाई मुझसे नहीं होगा” मैंने सुबह रियाज के वक्त कई बार खैंच के देख लिया. हारकर नौशाद साहब ने शकील साहब से मशवरा लिया. शकील साहब ने कहा – “रफ़ी से कोशिश करवा के देखिए भजन हरी दर्शन तो उसने कमाल का गाया है.” रफ़ी साहब को इस गाने का रियाज़ करते वक्त गला सूज गया था, और उन्होंने यह बात छुपा ली थी.उनको डर था कहीं ये लोग काम देना बंद ना कर दें. रिकॉर्डिंग के वक्त जब रफ़ी साहब इस गाने के आखिर में पहुंचे, ‘तू अब तो नीर बहा ले. नीर बहा ले’ और फिर वो ना खत्म होने वाला अलाप…स्टुडिओ में सभी लोगों की सांसे रुक गई थीं.शकील साहब की आंखों में आंसू थे.नौशाद साहब भी आवाक रह गए थे. नौशाद साहब की बायोग्राफी में किया गया है. एक बार किसी को फांसी की सजा सुनाई गई, उससे आखिरी इच्छा पूछी गई तो उसने यही गीत सुनने की इच्छा जाहिर की थी. शकील साहब ने ऐसा तिलिस्म रचा है सन 1955 में आई फिल्म “उड़न खटोला” का गाना “ओ दूर के मुसाफ़िर, हमको भी साथ ले ले रे, हम रह गए अकेले” या फिल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ की वो मशहूर कव्वाली जिसके बोल थे ‘तेरी महफ़िल में किस्मत आज़माकर हम भी देखेंगे, घड़ी भर को तेरे नज़दीक आकर हम भी देखेंगे, तेरे क़दमों पे सर अपना झुकाकर हम भी देखेंगे’ खूब मशहूर हुआ. 1960 में रिलीज़ हुई ‘मुग़ल-ए-आज़म’ की वो मशहूर कव्वाली याद है जिसमें ‘अनारकली’ बनी अदाकारा मधुबाला ‘अकबर’ के सामने उसके शीश महल में गाती है. उसके बोल थे;इस कव्वाली ने यकीनन दिलीप साहब के दिल में मधुबाला के लिए जाने कितनी कसक पैदा कर दी होगी. अज़ीब इत्तेफाक है, शकील साहब ने जब भी नौशाद के साथ काम किया उन्हें एक भी सम्मान नहीं मिला.शकील को तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिले. जिनमें से दो बार रवि के साथ और एक बार हेमंत कुमार के साथ जोड़ी बनाने पर मिला. नौशाद एवं शकील साहब ने दोस्ती की मिसाल है आज भी दी जाती है. एक दौर था, जब तपैदिक जानलेवा बीमारी थी, आज के दौर में ईलाज उपलब्धि है. तपैदिक के इलाज़ के लिए शकील साहब अस्पताल में भर्ती हुए, दुःखद उनके पास उतनी ज्यादा रकम नहीं थी, तब नौशाद उनके लिए तीन फिल्मों में गाने लिखने का कॉन्ट्रैक्ट करवाकर लाये थे, और फीस भी दस गुना ज़्यादा दिलवाई थी ताकि उनका इलाज़ तसल्ली से हो सके. ऐसी मित्रता आज के लिए एक मिशाल है. नौशाद साहब की मदद को दरकिनार करते हुए मौत ने शकील साहब को अपने आगोश में ले लिया था. 3 अगस्त 1916 को बदायूं में जन्मे शकील साहब 20 अप्रैल 1970 को असमय इस फानी दुनिया से रुख़सत कर गए, उनके दुनिया छोड़कर जाने के बाद रोमांटिक गीतों की दुनिया ठहर गई थी. जिनके गीतों की लोकप्रियता आसमान पर थी. जिनके लिखे भजनों पर फतवा जारी हो गए थे, लेकिन महान शकील साहब ने भारत की गंगा जमुनी तहज़ीब को हमेशा प्राथमिकता दी. शकील बदायूंनी अपनी कलम की ताकत प्रेम के नग्मे, भक्ति में डुबो देने वाले भजनों एवं अपने साहित्य के रचे गए संसार के कारण आप हम सब के दिलों में अनंतकाल तक रहेंगे.. महान शकील बदायूंनी साहब को मेरा सलाम….

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments