तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल के छठे संस्करण का हुआ भव्य आगाज़ , समस्त भारत सहित नेपाल, ब्रिटेन, जापान, आष्ट्रीया, रूस की साहित्यिक विभूतियों की सहभागिता रही, संचालन डा रामगोपाल भारतीय ने किया। सरस्वती वंदना सुषमा सवेरा द्वारा की गई।
क्रांतिधरा साहित्य अकादमी द्वारा चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के सहयोग से बृहस्पति भवन में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल के छठे संस्करण उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में जापान की वरिष्ठ हिन्दी सेवी डा रमा पूर्णिमा शर्मा रहीं, विशिष्ट अतिथि के रूप में आचार्य चंद्रशेखर शास्त्री, श्रीगोपाल नारसन, श्रीमति जय वर्मा ब्रिटेन, हयग्रीव आचार्य नेपाल और रूस से श्वेता सिंह ऊमा रही।
कार्यक्रम के अध्यक्ष चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय हिन्दी विभागाध्यक्ष डा नवीन चंद्र लोहनी ने कहा कि हिन्दी को रोजगार की भाषा बनाने पर जोर देना होगा और अपनी आनेवाली पीढी को भी अनिवार्य रूप से हिन्दी से जोडने ँके साथ भाषा उत्थान के लिए जमीनी स्तर पर ईमानदारी से कार्य किया जाना चाहिए ।
तीन दिवसीय आयोजन के प्रथम दिन के दूसरे सत्र में हिन्दी के वैश्विक स्थति विषय पर परिचर्चा हुई जिसका संचालन हिन्दी विभाग की डा अंजु सिंह ने किया और वक्ता के रूप में डा विदूषी शर्मा, प्रदीप देवीशरण भट्ट, डा अशोक मैत्रेय, डा ईश्वर चंद गंभीर रहे ।
तृतीय सत्र डिजिटल क्रांति में पुस्तकों से दूरी विषय पर परिचर्चा हुई जिसमें श्रीगोपाल नारसन, आचार्य चंद्रशेखर शास्त्री, डा विदूषी शर्मा, डा सुबोध कुमार गर्ग, मनीष शुक्ला वक्ता के रूप में शामिल रहे।
चतुर्थ सत्र मे अंतरराष्ट्रीय मुशायरा हुआ जिसकी सदारत रियाज सागर ने की, मुशायरे मे अतिथि के रूप में विएना आस्ट्रीया से सुनीता चावला रहीं, वरिष्ठ शायर किशन स्वरूप, अनुराग मिश्र गैर, के. के भसीन, डा अमर पंकज, सुंदर लाल मेहरानीयां, डा रामगोपाल भारतीय, दिलदार देहलवी, अनिमेष शर्मा, मनोज फगवाड़वी, सपना अहसास, देवेंद्र शर्मा देव, फ़करी मेरठी, मुकर्रर अदना, मुक्ता शर्मा आदि ने शिरकत की।
प्रथम दिन के समापन पर आयोजक पूनम पंडित ने कहा कि संस्थान के द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक महोत्सव व पुस्तक प्रदर्शनी आदि आयोजित करने का मुख्य उद्देश्य ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना के साथ देश दुनियां में साहित्य, संस्कृति , आध्यात्म , योग के माध्यम से दिलो को दिलो से जोड़ना, एक दूसरे के लेखन व शोध से रूबरू कराना, अनुवाद , प्रकाशन , विचारों के आदान प्रदान, परस्पर सहयोग की भावना , पठन – पाठन व साहित्य के दायरे का विस्तार और नवोदित व गुमनाम कलमकार बन्धुओ को वरिष्ठ साहित्यकारों के सानिध्य में एक अंतर्राष्ट्रीय मंच प्रदान करना हैं और मेरठ की सकारात्मक छवि देश दुनिया के सामने लेकर आना है ।
क्रांतिधरा साहित्य अकादमी द्वारा मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल के छठे संस्करण के अंतर्गत चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के वृहस्पति भवन में दूसरे दिवस पर
प्रथम सत्र में लघुकथा सत्र का आयोजन किया गया, जिसका संचालन प्रमुख शिक्षाविद् डॉ सुधाकर आशावादी ने किया।
जिसके अंतर्गत मुज्जफ्फर नगर कांधला की डॉ शिखा कौशिक ‘नूतन’ के ‘लघुकथा संग्रह काली सोच’ का विमोचन किया गया और उनके द्वारा प्रेम की अभिव्यक्ति लघुकथा का वाचन किया गया। डाक्टर शिखा ने प्रेम की अभिव्यक्ति लघुकथा के माध्यम से लघुकथा के क्लेवर को प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा कि वास्तव में लघुकथा मंद मंद बहती सरिता नहीं वरन् झरने की भांति तीव्रता से प्रवाहित होते हुए चरम तक पहुंचने वाली विधा है। गाजियाबाद से पधारे डाक्टर बलराम अग्रवाल, नेपाल के डॉ पुष्कराज भट्ट, दिल्ली की अलका शर्मा ने भी सत्र में अपने विचार व्यक्त किए।
दिवतीय सत्र में क्रांतिधरा मेरठ का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व पर चर्चा हुई, जिसका संचालन एयरफोर्स से सेवानिवृत्त इतिहासकार ए के गांधी ने किया। डा गांधी ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर मेरठ ने बहुत सारा प्रभाव छोड़ा है।
आजादी पाने का प्रस्ताव सबसे पहले मेरठ के विक्टोरिया पार्क में ही पास किया गया था । विक्टोरिया पार्क की जेल में ही 85 विद्रोही सैनिकों को कैद कर रखा गया था ।
श्रीजी नृत्य नाटिका की संचालिका और राम सहाय इंटर कालेज मेरठ की एक्टिविटी हैड अनुराधा शर्मा ने कहा कि मेरठ विविधता में एकता लिए है, जहां पर हिंदू, मुस्लिम,सिख, ईसाई,जैन और बौद्ध धर्म सभी के अनुयाई रहते हैं। उन्होंने अपने बचपन के अनुभव भी श्रोताओं के साथ साझा किए और बच्चों को संस्कार देने पर बल दिया
इतिहासकार के. के शर्मा ने अपनी शुरुआत इन शब्दों से की-इबादत की तरह मैं काम करता हूं। मेरा उसूल है सबसे पहले शहीदों को सलाम करता हूं। उन्होंने मेरठ से उठी क्रांति की ज्वाला को विस्तार से जानकारी देते हुए कहा मंगल पांडे का मेरठ से कोई नाता नहीं रहा है,वे कलकत्ता के बैरकपुर में तैनात थे जो मेरठ के क्रांतिकारियों की प्रेरणा का प्रमुख कारण बने। उन्होंने बताया कि पहले 10 मई को मेरठ में शहीद दिवस मनाया जाता था, परंतु अब इसे क्रांति दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले 20 वीं पैदल सेना के सिपाहियों ने विद्रोह की शुरुआत की।
कार्यक्रम में शामिल कवि एवं भजन लेखक नरेंद्र त्यागी ने प्रश्न किया कि हम प भारत इतिहास ही पढ़ते आए हैं। नया इतिहास अब तक आएगा ॽ इसका उत्तर देते हुए के के शर्मा ने कहा कि इतिहास नहीं बदला जा सकता, परंतु इतिहास में दृष्टि होती है।मोदी सरकार इस पर कार्य कर रही है। निकट भविष्य में इसके परिणाम देखने को मिलेंगे।
रिटायर डीएसपी जी सी शर्मा ने अंग्रेजों के अत्याचारों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि मुराद नगर से लगे पांच गांव अंग्रेजों ने बागी घोषित कर दिए थे। और उन्हें तरह तरह से प्रताड़ित किया जाता था। वास्तव में देखा जाए तो आजादी की अलख जगाने वाले ये किसान ही थे। उन्होंने कहा कि इन गांवों को क्रांति ग्राम घोषित किया जाना चाहिए,ये ऐसे आदर्श गांव बने जहां से कोई भी सरकारी योजना इन्ही गांवों से लागू हो,जो ओरो के लिए प्रेरणा स्रोत बनें। उन्होंने बागपत के बसोड गांवों पर अंग्रेजों के जुल्मों की जिक्र किया जिसमें शाहमल किसान नेता पर अत्याचारों को सुनकर श्रोताओं के रोंगटे खड़े हो गए।
इतिहासकार विघ्नेश त्यागी ने बताया कि कैसे मेरठ से 1857 की क्रांति की कैसे तैयारी की गई, कैसे भड़की और पल्लवित हुई। मेरठ का नाम कैसे मयराष्ट्र से अपभ्रंश होकर मेरठ बना इसकी बहुत ही सुन्दर जानकारी दी।
अंग्रेज इसे मीरथ लिखा करते थे। उन्होंने बताया कि मेरठ खड़ी भाषा की जन्म स्थली है। उन्होंने बताया कि इस्माईल मेरठी के नाम पर इस्माईल नाम से कई कालेज बनें है जो मुस्लिम लीग के वाईस प्रेसिडेंट थे। उन्होंने फिल्मों में मेरठ के योगदान के बारे में भी बताते हुए कहा कि बरसात की एक रात के हीरो भारत भूषण और राम तेरी गंगा मैली की हिरोइन मंदाकिनी आदि का मेरठ से नाता रहा है।
तृतीय सत्र में भारतीय संस्कृति-नदियां-समाज की भूमिका पर परिचर्चा आयोजित की गई । इसमें मुख्य वक्ता हरियाणा के सिरसा से पधारे पर्यावरणविद रमेश गोयल ने जल बचाने पर पुरजोर देते हुए कहा कि यदि हम जल की ऐसे ही बर्बादी करते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब पानी राशन में मिलेगा
उन्होंने बताया कि जल संरक्षण पर उन्होंने हनुमान चालीसा की तर्ज पर जल चालीसा लिखीं हैं,जो कार्यक्रम में शामिल सभी व्यक्तियों को निःशुल्क दी गई। जिसका अंतिम दोहा है-
कूएं नदियां बावड़ी,जब लौं जल भरपूर।
तब लौं जीवन सुख भरा,बरसे चहुं दिस नूर।।
जल बचाव अभियान की,मन में लिए उमंग।
आओ सब मिलकर चलें, रमेश गोयल के संग।।
कार्यक्रम में मेरठ के प्रख्यात चित्रकार जसवंत सिंह माथुरी की ऊं के माध्यम से तूलिका से उकेरी गई मंत्र मुग्ध करने वाली रामायण एक आलौकिक यात्रा की चित्रकारी पत्रिका भी सभी उपस्थित श्रोताओं को वितरित की गई।
भोजनावकाश के पश्चात पत्रकारिता, आमजन-एक फासला विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई, जिसका संचालन मेरठ के यशस्वी साहित्यकार डाक्टर राम गोपाल भारतीय ने किया। परिचर्चा का शुभारंभ करते हुए दैनिक जनवाणी के मुख्य संवाददाता ज्ञान प्रकाश ने कहा कि अमर उजाला के संपादक राजेंद्र सिंह ने कि लोगों के जीवन को मोबाइल कंज्यूम कर रहा है। उन्होंने बताया कि 1780, में बंगाल से पत्रकारिता शुरू हुई और 1826 में पहला हिंदी समाचार पत्र निकला,जो ब्रिटिश राज के अधीन थे ।
संपादकों को काफी यातनाएं झेलनी पड़ती थी। उदारीकरण और ग्लोबलाइजेशन ने पत्रकारिता को मीडिया में बदल दिया। अब चौबीस घंटे खबरिया चैनल चल रहें हैं। उन्होंने कहा कि बदलाव ही जीवन है और ठहराव मृत्यु। गूगल एआई से चलता है परन्तु प्रिंट अखबार की विश्वसनीयता ज्यादा है।
पत्रकारिता अब प्रोफेशन में बदल गई है,जिसके सामने कई चुनौतियां हैं। कुछ दूरियां बढ़ी हैं जो नहीं पहचानते कि पाठकों की जरूरत क्या हैं ,जो मिट सकती हैं। लोग अखबारों को पढ़कर विचार धारा तय करते हैं। जिस दिन पत्रकारिता का आम जनता से फासला बढ़ेगा उस दिन अखबार खत्म हो जाएगा।
हिन्दुस्तान अखबार के संपादक सूर्य कांत द्विवेदी ने
कहा लोग विज्ञप्ति द्वारा झूठी खबरें अखबारों में छपने के लिए भेजते हैं, ऐसे में अखबार कई तरीकों से छानबीन कर सही खबर का चयन कर छापते हैं। यह बात कार्यक्रम में उपस्थित नरेंद्र त्यागी के द्वारा समाचार पत्रों पर लगाए गए आरोप कि अखबारों में खबर जुगाड से छपती हैं प्रश्न के जवाब में कही।
उन्होंने आगे कहा कि पत्रकारिता साहित्य की एक विधा है। पहले साहित्य पर अच्छी पकड़ वाले ही संपादक हुआ करतें थे। और राजनेताओं को भी साहित्यिक भाषा की पूरी जानकारी होती थी उन्होंने कहा कि आज पत्रकारिता से आमजन के फासले का कारण मिथ्याचरण है।
उन्होंने बताया कि अखबार 15 प्रतिशत लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जबकि 85 प्रतिशत लोग सोचते हैं कि हमारे बोलने से समाज पर क्या फर्क पड़ेगा अर्थात् कुछ नही जो ग़लत सोच है।
उन्होंने कहा कि अखबार भावनाओं को प्रदर्शित करने का सशक्त माध्यम है,जो अपनी नहीं आमजन की स्थानीय भाषा का प्रयोग करता है, जैसे विद्युत चली गई के स्थान पर अखबार बिजली या बत्ती गुल हो गई लिखता है।
उन्होंने कहा कि आमजन की हर पीड़ा में अखबार आपके साथ है। साथ ही अख़बार को जिम्मेदारी है कि वह सकारात्मक सोच रखें और सबका प्रतिनिधित्व करें।
परिचर्चा का समापन करते हुए दैनिक जागरण के संपादक रवि तिवारी ने कार्यक्रम संचालन डॉ राम गोपाल भारतीय द्वारा यह कहे जाने पर कि कवियों को लिखने के लिए अखबारों से मसाला मिल जाता है,पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि हमारी मेहनत को मसाला तो मत कहो। उन्होंने पत्रकारिता में निहित बातों को बहुत ही सुन्दर ढंग से समझाया और अखबार और पाठकों को पूरक कोण की संज्ञा देते हुए कहा कि जैसे पूरन कोण तभी बनता है जब दोनों रेखाएं आपस में मिलती है।
वैसे ही अख़बार के अस्तित्व के लिए पत्रकार और पाठकों का एक दूसरे से जुड़ना जरूरी है। उन्होंने कहा कि सूचना क्रांति के वर्तमान युग में जो चलता है, वहीं टिकता है और वही बिकता है। यह उक्ति अखबारों पर पूर्णतया लागू होती।
उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय आधार पर अखबारों की भाषा बदलती रहती है जैसे लखनऊ में चौपला लिखा जाएगा तो मेरठ के अखबार में चौराहा। भारतीय सैनिकों को शहीद लिखा जाएगा जबकि पाकिस्तानी सैनिकों के लिए ढेर शब्द। भारतीय खिलाड़ियों के लिए जीत की संभावना तो पाकिस्तानी खिलाड़ियों के लिए जीतने की आशंका ।
पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि अब लोगों में पढ़ने का दायरा सिमटता जा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर जीवन में पढ़ना छोड़ देंगे तो क्या यह जाएगा।
उन्होंने कहा कि आज सूचना सबके पास है, लेकिन सूचना के आयाम क्या हैं। ये समाचारपत्र देता है। इस अवसर पर लखनऊ के पत्रकार मनीष कुमार शुक्ल की पुस्तक ‘न्यूज रूम का चाट मसाला’ का भी विमोचन हुआ। इसके साथ साथ नरेंद्र कुमार त्यागी नीर को दो पुस्तकों-भक्ती धारा भजन संग्रह और द बाउंसर 2022 मूक अभिव्यक्ति तथा योगेश कुमार धीर पथिक की सचित्र गीता एवं सरल पाठ का भी विमोचन किया गया।
कार्यक्रम के अंतिम पंचम सत्र में अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसका सफल संचालन मेरठ महिला काव्य मंच की अध्यक्ष सुषमा सवेरा ने किया । जिसमें मेरठ के यशपाल कौत्सायन, नरेंद्र कुमार त्यागी नीर सत्यपाल सत्यम,डोरी लाल भास्कर, रितिक कुमार ठाकुर, मुक्ता शर्मा, हिमानी शर्मा, सुषमा सवेरा, प्रमोद मिश्र निर्मल तथा नेपाल के हयग्रीव आचार्य, माधव पोखरेल, हेमंत ढुंगेल, किशन पौडेल आदि ने काव्य पाठ कर श्रोताओं को काव्य गंगा में डुबकी लगवाई।
क्रांतिधरा साहित्य अकादमी द्वारा हिन्दी विभाग चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय के सहयोग से तीन दिवसीय मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल के छठे संस्करण के तीसरे दिन भी चौ चरणसिंह विश्वविद्यालय के बृहस्पति भवन में अनेक सत्रों का आयोजन किया गया।
मेरठ लिटरेरी फ़ेस्टिवल तृतीय दिवस के प्रथम सत्र में कवि प्रवीण कुमार के कविता संग्रह ‘नियंता नहीं हो तुम’ का विमोचन किया गया। विमोचन सत्र की अध्यक्षता कर रहे सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ धनंजय सिंह ने कहा कि-कवि प्रवीण कुमार प्रकृति के उपासक कवि हैं।वह कुदरत की व्यवस्था में मानवीय हस्तक्षेप को अनुचित मानते हैं। कविता संग्रह की शीर्षक कविता में वह मानव जाति को स्पष्ट रूप से यह संदेश देते हैं कि-वह स्वयं को इस जगत् का नियंता न समझे।पृथ्वी पर मौजूद अन्य जीवों-वनस्पतियों की तरह वह भी एक जीव मात्र है।वह न इस ब्रह्मांड की व्यवस्था का और न ही जीव जगत का नियंत्रक है।
कविता संग्रह पर बोलते हुए दूसरे वक्ता प्रख्यात गीतकार डॉ रमेश कुमार भदौरिया ने कहा कि-प्रवीण कुमार अपनी कविताओं में सिर्फ़ वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण की ही बात नहीं कर रहे हैं।अपितु वह आज के मनुष्य के मन में व्याप्त प्रदूषण को भी परत-दर-परत उजागर कर रहे हैं।कवि प्रवीण कुमार व्यवस्था से लेकर समाज में फैले हर तरह के प्रदूषण से आम जन को मुक्ति दिलाना चाहते हैं।
इस अवसर पर प्रखर आलोचक डॉ नीरज कुमार मिश्र ने कविता-संग्रह में संकलित कविताओं की गहराई से पड़ताल करते हुए कहा कि-प्रवीण कुमार अपने आस-पास घटित हो रही घटनाओं पर सजग निगाह बनाए रखते हैं और अपनी रचनाओं में विसंगतियों पर करारा प्रहार करते हैं।यही वजह है कि उनकी कविताओं में कोरोना की विभीषिका से लेकर भूमंडलीकरण, पूँजीवाद और बाज़ार के प्रभाव से समाज में व्याप्त निराशा,हताशा और अकेलेपन की गूंज-अनगूंज को महसूस किया जा सकता है।उन्होंने आगे कहा कि मेरी नज़र में प्रवीण कुमार प्रेम की भाषा को जानने-समझने वाले कवि हैं।
उनकी कविता ” अबूझ पहेली जैसा प्रेम ” को पढ़कर आपको हिंदी के कई बड़े कवि याद आ जायेंगे।उन्होंने कबीर,तुलसी,जायसी,बोधा, बिहारी,मुक्तिबोध, अज्ञेय जैसे अनेक कवियों की कविताओं के माध्यम से इस कविता में निहित प्रेम के अनेक शेड्स पर अपनी बात रखी। संकलन में शामिल कई कविताओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसी प्रेम कविताएँ वही लिख सकता है,जिसने प्रेम किया भी हो और प्रेम को जिया भी हो। इस अवसर पर कवि प्रवीण कुमार ने अपनी दो कविताएँ ‘मिट्टी का मोल’ व ‘अबूझ पहेली जैसा प्रेम’ सुनाई जो उपस्थित श्रोताओं को बेहद पसंद आईं।
कार्यक्रम का संचालन ब्रज राज किशोर ‘राहगीर’ ने किया।
मेरठ लिटरेरी फ़ेस्टिवल में अहम भूमिका निभा रहे चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो नवीन चंद्र लोहनी ने सभी मेहमानों का आभार व्यक्त किया ।
मेरठ लिटरेरी फेस्टीवल में देश-विदेश से आए सैकड़ों साहित्यकारों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराई। सत्र के उपरांत हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो नवीन चंद्र लोहनी ने विश्वविद्यालय परिसर में निर्मित ‘पंडित मदन मोहन मालवीय साहित्य कुटीर’ का भ्रमण कराया। उक्त कुटीर में हिंदी के महान साहित्यकारों की प्रतिमाएँ अवस्थित हैं। उक्त कुटीर की कल्पना साहित्य के मंदिर जैसी है।
साक्षात्कार सत्र में ब्रिटेन के नाटिंघम से पधारी वरिष्ठ हिंदी जय वर्मा और मुरादाबाद से वरिष्ठ साहित्यकार डा महेश दिवाकर का साक्षात्कार रहा, जिसका संचालन चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में शिक्षक सहायक डॉ विद्यासागर सिंह ने किया।
श्रीमती जया वर्मा ने कहा कि साक्षात्कार एक दूसरे के विचार जानने का माध्यम है। उन्होंने कहा कि साहित्य लोगों को आपस में जोड़ना सिखाता है। एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि प्रवासी साहित्य की सबसे पहले चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय ने शुरुआत कराई। उन्होंने कहा कि प्रवासी साहित्य खूब लिखा जा रहा है उन्होंने कहा कि प्रवासी साहित्य में सबसे बड़ी बाधा उसके प्रकाशित कराने की रही है। उन्होंने अपनी बात फांसी के समय शहीद भगत सिंह की मां को संबोधित इन पंक्तियों का पाठ करते हुए की-
-मां आंसू मत गिरा। भगतसिंह की मां है तू।
हंस कर मुझे दे विदाई। एक शहीद की मां है तू।
कार्यक्रम में हिन्दुस्तान स्काउट गाइड एसोशिएशन के द्वारा विशेष रूप से उपस्थिति दर्ज की गई, हिन्दुस्तान स्काउट गाईड के प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों के नेतृत्व में शार्पन पब्लिक स्कूल इंचौली के बच्चों ने बीच बीच में सुंदर तालियां बजाने एक सुंदर प्रस्तुति दी। जिसमें प्रिंसिपल कंचन का प्रोत्साहन रहा।
तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक महाकुंभ के समापन समारोह के मुख्य अतिथि वरिष्ठ शिक्षाविद् डॉ चिंतामणि जोशी ने साहित्यिक की परिभाषा देते हुए कहा कि जो समाज के हित की सोचें वही है साहित्य। जो जीव भाव में स्थित की कामना करें। इसके लिए प्रेरित होता है। शब्दों को हार में पिरोकर जो जीवन के रेगिस्तान में अमृत वर्षा करता है , जो जात पात,ऊंच-नीच,काल, स्थान से परे होता है,ऐसी विलक्षण प्रतिभा कोई भी हो सकता है। वह सामान्य व्यक्ति नहीं होता है।
शिष्टाचार काव्य की पंक्तियों से ही प्राप्त होता है और व्यवहार का ज्ञान भी कवि के काव्य से प्राप्त होता है। कवि संसार से नश्वर शरीर छोड़ने के बाद भी अपने यश से जीवित रहता है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में दिल्ली से विशेष तौर पर आंमत्रित राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय में सहायक निदेशक डा रघुवीर शर्मा ने देश विदेश में हिन्दी लेखन व प्रचार प्रसार संबंधित अपने अनुभव साझा किए।
विशिष्ट अतिथि गाजियाबाद से पर्यावरणविद् विजयपाल बघेल ने अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाने पर बल देते हुए कहा कि आक्सीजन बनाने का काम केवल पेड़ ही करते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में प्रति व्यक्ति पेड़ का औसत कम है जबकि पर्यावरण को जिंदा रखने के लिए एक आदमी पर 500 पेड़ होने चाहिए। उन्होंने बताया कि हमें हर तीन से पांच सेकंड में सांस लेने के लिए आक्सीजन की आवश्यकता है,जो कारखाने में नहीं बनाई जा सकती, यह केवल पेड़ों से ही मिल सकती है।समापन समारोह में मुरादाबाद के वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी, रमेश कुमार भदौरिया, जय भारत मंच के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र शर्मा, पूर्व कमिश्नर आर के भटनागर, राम चरित मानस पर पीएचडी धारक डॉ पी सी शर्मा, प्रदीप देवीशरण भट्ट अधीक्षक खादी ग्रामोद्योग आयोग हैदराबाद, ब्रजराज किशोर राहगीर, योगेश धीर, हेमंत सक्सैना, आशीष त्यागी, सुनील कुमार शर्मा, डा राजीव रस्तौगी, वरूण शर्मा, कविता मधुर, दिनेश कुमार शांडिल्य, सुरेश चंद शर्मा, डा ईश्वर चंद गंभीर, सिलचर, असम से डा कृष्णा सिंह की गरिमापूर्ण उपस्थिति रही।
अंत में डाक्टर महेश दिवाकर ने मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि ऐसे आयोजन समाज को जोड़ने के लिए आवश्यक हैं।
समापन सत्र में मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल आयोजक डॉ विजय पंडित और पूनम पंडित के एक संकल्प, हम सभी नई शुरुआत करेंगे – अच्छा लिखेंगे, अच्छा पढ़ेंगे और लेखन के माध्यम से समाज को जोडेंगे, साथ ही समाज को एक नई राह दिखाएंगे, डा विजय पंडित यह भी कहा कि वरिष्ठ साहित्यकारों के सानिध्य में नवोदित व गुमनाम कलमकारों को एक अंतरराष्ट्रीय मंच उपलब्ध कराना उनका मुख्य उद्देश्य है, समाज में कलमकारों की जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है जब वह एक शिक्षक, पत्रकार, कवि और साहित्यकार होता है लोग उनसे समाज को नई राह दिखाने की उम्मीद रखते हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य एक दीपक का कार्य करता है जो समाज को एक नई राह दिखाता है और मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल समाज को निश्चित रूप से एक नई राह दिखाएगा। कार्यक्रम का समापन कवयित्री कविता मधुर जी के नेतृत्व में राष्ट्रगान जन गण मन के सामूहिक गान से हुआ।