Monday, September 16, 2024
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…जब सिनेमा पर चढ़ा रवींद्र संगीत का जादू

लेखक : दिलीप कुमार

गुरु रवींद्रनाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, उन्होंने हज़ारों गीत लिखे वहीँ संगीत की दुनिया में अपनी एक अलग ही दुनिया रची. रवींद्र संगीत रचा, हज़ारों धुनें उन्होंने गढ़ी जो उनकी मौलिक थीं. जिसे संगीत की दुनिया में रवींद्र संगीत नाम से जाना गया है.. आज बहुतेरे लोगों को पता भी नहीं है. पता हो ऐसा जरूरी भी नहीं है. हिन्दी सिनेमा में बंगाली, फिल्मकारों, कहानीकारों, गायकों, संगीतकारों का सबसे ज्यादा योगदान रहा है.. रवींद्र संगीत की उपज बांग्ला में हुई, हालांकि रवींद्र संगीत के प्रति दीवानगी हिन्दी सिनेमा में भी खूब देखी गई.. हिन्दी सिनेमा में इसके लिए दो वर्ग रहे हैं, एक इसके उपासक एक विरोधी… बांग्ला से लेकर हिन्दी सिनेमा तक रवींद्र संगीत की दीवानगी आज भी अपने टॉप पर है.

यूँ तो हर संगीतकार की एक विशेषता होती है, शंकर – जय किशनजी हमेशा से ही राग भैरवी पर संगीत रचते थे. वहीँ बर्मन दादा की सिग्नेचर स्टाइल थाट बिलावल था, उसमें से भी राग बिहाग था प्रमुख था. थाट बिलावल में मूलतः दस राग होते हैं, सभी में बर्मन दादा पारंगत थे. बर्मन दादा थाट बिलावल पर ही संगीत रचते थे. बर्मन दादा सबसे ज्यादा अपनी मौलिकता के लिए प्रख्यात थे. हालाँकि बर्मन दादा रवींद्र संगीत का सबसे ज्यादा प्रयोग करते थे, हालांकि हर बार स्वीकार्यता नहीं मिली. एक खास वर्ग उनका विरुद्ध बातेँ करते थे, कि बर्मन दादा बांग्ला संगीत थोप रहे हैं, हालांकि बर्मन दादा सहित बहुत से महान संगीतकारों का अपना महत्वपूर्ण योगदान रहा है. हिन्दी सिनेमा में बर्मन दादा का अपना क्लास रहा है, या तो राजेश रोशन बर्मन दादा से प्रेरित थे, या गुरु रवींद्रनाथ टैगोर से प्रेरित थे, उन्होंने हिन्दी सिनेमा में रवींद्र संगीत का बहुत प्रयोग किया. रवींद्र संगीत का उपयोग करने वालों में हेमंत कुमार और पंकज मलिक भी शामिल थे. जितने भी संगीतकार थे, सभी बंगाली थे, केवल राजेश रोशन को छोड़कर, हालांकि उनकी माँ बंगाली थीं.

रवींद्र संगीत का कमाल यह भी है कि सन 1941 से शुरू हुआ हुआ संगीत सफ़र आज भी चल रहा है. आम तौर पर हिन्दी सिनेमा में अब संगीत कौन से राग में कौन सा गीत कौन सी धुन ली गई है, संगीतकार क्या उपयोग करते हैं, बताना बड़ा मुश्किल है, दुःखद यह भी है कि कुछ भी मौलिक नहीं है. अब नए गीतों में न शंकर – जय किशनजी का अंदाज़ भैरवी दिखता, और न ही बर्मन दादा का थाट बिलावल दिखता, और न ही नौशाद साहब का राग ठुमरी, क्लासिकल जॉनपुरी दिखता… अब केवल केवल और केवल उसको पार्श्व संगीत कहा जाता है. हालाँकि बंगाली सिनेमा में संगीतकार कुछ कार गुजारी करते हो तो कहा नहीं जा सकता, हालांकि कुछ साल पहले तक बर्मन दादा, पंकज मलिक साहब के न होने के बाद भी रवींद्र संगीत का खूब उपयोग किया गया है… रवींद्र संगीत को पहली बार सिनेमा के साथ जोड़ने एवं मुख्य धारा में लाने का प्रयास को सबसे पहले पंकज मलिक ने ही किया था. हिन्दी सिनेमा में कुछ गीत पूरी तरह से रवींद्र संगीत पर रचे गए हैं, वहीँ कुछ पूरी तरह उनसे प्रभावित हैं. साल 1941 में डॉक्टर फिल्म आई थी, इस फिल्म में संगीतकार पंकज मलिक थे, सभी गीत रवींद्र संगीत पर रचे गए थे.

पंकज मलिक, बर्मन दादा के साथ – साथ अनिल विश्वास ने भी रवींद्र संगीत का खासा सफल प्रयोग किया… उन्होंने धुनें तो ज्यादा नहीं उपयोग किया, हालांकि संगीत ज़रूर प्रेरित था. सन 1944 में ‘बादबान’ फ़िल्म में “कैसे कोई जिए, ज़हर है ज़िन्दगी आया तूफ़ान” को रवीन्द्र-संगीत पर रचा जो यादगार हो गया. इसे हेमंत कुमार, गीता दत्त ने गाया था. एक और अनिल बिस्वास द्वारा स्वरबद्ध रवीन्द्र-संगीत पर आधारित सबसे लोकप्रिय गीत फ़िल्म ‘वारिस’ का “राही मतवाले, तू छेड़ एक बार मन का सितार” गीत, तलत महमूद साहब और सुरैया जी की आवाज़ों में यह गीत बहुत ज़्यादा लोकप्रिय तो हुआ था.

इसके बाद बर्मन दादा ने खूब उपयोग किया.  साल 1947 में आई दो भाई फ़िल्म में गीत था ‘मेरा सुन्दर सपना बीत गया’ इसका बर्मन दादा ने संगीत दिया था. हालाँकि इसकी धुनें टैगोर ने बनाई थीं, जो उपयोग की गई थीं. रवींद्र संगीत में सम्राट बर्मन दादा कहे जाते हैं, उन्होंने जो इसका उपयोग सार्थक किया शायद ही किसी ने किया हो. 1950 में आई फिल्म अफ़सर में एक कालजयी गीत आज भी मकबूल है, “नैन दीवाने, एक नहीं माने” इसका संगीत भी बर्मन दादा ने ही दिया था. यह गीत सुरैया पर फ़िल्माया गया था. आम तौर पर सुरैया खुद गाती थीं, एवं पर उनकी शैली सबसे अलग थी. बर्मन दादा द्वारा स्वरबद्ध कुछ और गीत हैं, “जायें तो जायें कहाँ…” टैक्सी ड्राइवर, ‘मेघा छाई आधी रात’ रात”  सन 1971 में आई फिल्म शर्मीली में एक कालजयी गीत को अपनी आवाज दी. किशोर दा ने इसको संगीत दिया बर्मन दादा ने यह गीत रवींद्र संगीत की अपनी खास धुन के लिए याद किया जाता है. 1973 में आई फिल्म अभिमान में एक गीत है किसको याद नहीं “तेरे मिलन की यह रैना इसको भी किशोर दा- लता मंगेशकर ने गाया था. यह गीत भी रवींद्र संगीत के लिए प्रसिद्ध है.

हेमन्त कुमार की आवाज़ में कुछ लोकप्रिय गीत  रवीन्द्र संगीत पर है. हेमन्त कुमार ने ही गीत की धुन पर 1964 की हिन्दी फ़िल्म ‘माँ बेटा’ में एक गीत कम्पोज़ किया था. “मन मेरा उड़ता जाए बादल के संग दूर गगन में, आज नशे में गाता गीत मिलन के रे, रिमझिम रिमझिम रिमझिम”, लता मंगेशकर का गाया यह गीत ज़्यादा लोकप्रिय तो नहीं हुआ,लेकिन इसे सुनने का अनुभव बहुत उम्दा है. इस गीत के फ़िल्मांकन में निरुपा रॉय सितार हाथ में लिए गीत गाती हैं, और एक नर्तकी इस पर नृत्य कर रही है. इस नृत्य शैली को ” रवींद्र -नृत्य” नाम से मकबूलियत हासिल हुई.

बर्मन दादा के बेटे पंचम दा ने बंगाल और नेपाल के लोक-संगीत का अपने गीतों में ख़ूब प्रयोग किया है. रवीन्द्र-संगीत की तरफ़ भी झुके फ़िल्म ‘जुर्माना’ में लता के गाये “छोटी सी एक कली खिली थी एक दिन बाग़ में…” गीत के लिए पंचम ने जिस रवीन्द्र-रचना को आधार बनाया, उसके बोल हैं “बसन्ते फूल गान्थलो आमार जयेर माला”, यह बंगाली फिल्म का रीमेक हमराही से बनाया गया था. पंचम दा ने 1982 की फ़िल्म ‘शौकीन’ में आशा भोसले -किशोर दा से “जब भी कोई कंगना बोले…” गीत गवाया था, जो रवीन्द्र संगीत की धुन पर आधारित था. 1942 ए लव स्टोरी’ में कविता कृष्णमूर्ति का गाया “क्यों नए लग रहे हैं ये धरती गगन” भी रवीन्द्र-संगीत से प्रेरित है. पंचम दा ने एक साक्षात्कार में कहा था. इसी का प्रयोग पंचम ने बरसों पहले ‘हीरा-पन्ना’ के टाइटल सोंग “पन्ना की तमन्ना है कि हीरा मुझे मिल जाए” के अन्तरे की पंक्ति “हीरा तो पहले ही किसी और का हो गया”  में किया था. सन 1974 में आई फिल्म आपकी कसम में एक कालजयी गीत है, “ज़िन्दगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते” इस गीत को किशोर दा ने गाया था, इसको रवींद्र संगीत पर पंचम दा ने रचा था. जुर्माना, शौकीन जैसी सुपरहिट फ़िल्मों में भी पंचम दा ने संगीत दिया. इसके कालजयी गीत, भी किशोर दा ने ही गाए हैं.

बप्पी लाहिड़ी ने 1986 में आई फ़िल्म ‘अधिकार’ में  “मैं दिल तू धड़कन, तुझसे मेरा जीवन…” गीत भी रवीन्द्र संगीत शैली में ही रचे गए थे. शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित फिल्म परिणीता 2005 में आई थी. इसका गीत है ‘पिया बोले’ यह सबसे ज्यादा लोकप्रिय गीत है, इसका संगीत भी शांतनु मोइत्रा ने दिया…

राजेश रोशन ने भी बहुतेरे गीतों को रवीन्द्र संगीत में संगीतबद्ध किया है.  फ़िल्म ‘याराना’ में राजेश रोशन द्वारा स्वरबद्ध गीत “छू कर मेरे मन को, किया तूने क्या इशारा”  रवीन्द्र संगीत से प्रेरित था.  सन 1984 में फ़िल्म ‘इन्तहा’ में फिर एक बार इसी धुन की पर कम्पोज़ किया एक और गीत “तू ही मेरा सपना, तू ही मेरी मंज़िल’  इसे भी किशोर दा ने ही गाया. फ़िल्म ‘युगपुरूष’ में राजेश रोशन ने दो गीतों में रवीन्द्र संगीत का फिर से सफल प्रयोग किया. इनमें एक था आशा भोसले का गाया “कोई जैसे मेरे दिल का दर खटकाए” दूसरा गीत था प्रीति उत्तम का गाया “बन्धन खुला पंछी उड़ा’ राजेश रोशन इकलौते ऐसे संगीतकार हैं, जिन्होंने रवीन्द्र संगीत पर खूब लोकप्रिय गीतों को संगीतबद्ध किया.. हालाँकि किशोर दा सभी की पसंद बने रहे.  सबसे ज्यादा किशोर दा से बर्मन दादा ने ही गवाया तो वहीँ किशोर दा बर्मन दादा को अपने गुरु अपने पिता तुल्य मानते थे. हालाँकि ज्यादा ख्याति उन्हें बर्मन दादा के बेटे पंचम दा के साथ मिली. भारतीय सिनेमा में एक से बढ़कर एक संगीतकार हुए हैं, लेकिन बर्मन दादा, शंकर – जय किशनजी एवं नौशाद साहब का कोई जवाब नहीं है.. कई लोगों को जनकारी का आभाव है, बर्मन दादा शास्त्रीय संगीत पर अपनी मौलिक धुनों का प्रयोग करते थे. दरअसल यह पोस्ट Subroto Chatterje  सर के सुझाव पर लिखी गई है. उन्होंने एक पोस्ट में लिखा था – “अगर बांग्ला में रवीन्द्र संगीत नहीं होता तो हिन्दी में किशोर के सबसे बेहतरीन गाने नहीं होते. मैं सुब्रतो सर से पूर्णतः सहमत हूँ… अगर बर्मन दादा, पंचम दा, बप्पी दा, राकेश रोशन अगर इस संगीत पर संगीत नहीं बनाते तो किशोर दा का यह मुकाम नहीं होता… कई मित्र उस पोस्ट पर कुछ समझ नहीं पाए थे, नहीं समझ पाए थे इसमे कोई अज़ीब बात नहीं है. हालांकि कुछ लोगों ने आपत्ति दर्ज की थी, वह ज़रूर अज़ीब थी….

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